सनातन धर्म के अध्‍ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अ‍ाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to

जिस पुस्‍तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्‍दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्‍दी रूपान्‍तर है, महान सन्‍त एवं आचार्य मौलाना शम्‍स नवेद उस्‍मानी के ध‍ार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन पर आधारति पुस्‍तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्‍त के प्रिय शिष्‍य एस. अब्‍दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्‍य जावेद अन्‍जुम (प्रवक्‍ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्‍तक के असल भाव का प्रतिबिम्‍ब उतर आए इस्लाम की ज्‍योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्‍दी प्रेमियों के लिए प्रस्‍तुत है, More More More



Saturday, November 19, 2011

क़ुरबानी पर ऐतराज़ करते हैं लेकिन मांसाहार पर नहीं, जीवों के प्रति दया दर्शाने वाले Contradictions

शिल्पा जी जो अधिकार अपने लिए चाहती हैं वह अधिकार वह दूसरे के लिए नहीं मानतीं.
1. मिसाल के तौर पर आप क़ुरआन की जानकारी कम रखती हैं और फिर भी उसके शब्दों के अर्थ बताने की भरपूर चेष्टा करती हैं कि क़ुरआन की इस आयत का अर्थ वह न माना जाए जो कि दुनिया के सारे मुस्लिम आलिम मानते हैं बल्कि उसका वह अर्थ माना जाए जो कि आप बता रही हैं।
लेकिन आप दूसरे को रोक देती हैं कि वह आपको यह न बताए कि हिंदू धर्म का अधिकृत विद्वान कौन है ?
ज़रा ग़ौर कीजिए कि जब आप अपने लिए दूसरों से अधिकृत विद्वान तक तय नहीं करवाना चाहतीं तो फिर आप दूसरों के लिए उनके धर्मग्रंथ का अर्थ किस अधिकार से तय करना चाहती हैं ?

2. आप सिर्फ़ दूसरों के धर्मग्रंथ के अर्थ ही तय नहीं करना चाहतीं बल्कि उनकी धार्मिक परंपरा में भी फेरबदल करना चाहती हैं।
किस अधिकार से ?
केवल इसलिए कि आपकी अंतरात्मा की आवाज़ ऐसा करने के लिए कह रही है ?
लेकिन अंतरात्मा तो दूसरों के पास भी है,
तब वे आपकी अंतरात्मा की आवाज़ पर क्यों चलें ?
वे अपनी अंतरात्मा की आवाज़ पर चलेंगे,
क्या आप उनकी अंतरात्मा की आवाज़ पर चलेंगी ?
नहीं।
आप तो दूसरों की अंतरात्मा की आवाज़ पर चलना नहीं चाहती हैं और दूसरों से यह चाहती हैं कि अपनी अंतरात्मा के बजाय वे आपकी आवाज़ पर चलें ?

3. आप ख़ुद क़ुरआन की आयतों की तुलना गीता के श्लोक से करती हैं हालांकि आप क़ुरआन के बारे में कम ही जानती हैं।
आप केवल इसलिए ऐसा करती हैं ताकि आपके नज़रिए को बल मिल सके ,
लेकिन जब हमने क़ुरआन की आयतों की तुलना  वेद के मंत्रों से करके बताया कि वेदों में बलि का विधान है तो आप कहती हैं कि वेदों के बारे में आपकी जानकारी कम है और हमें इस बारे में किसी जानकार से बात करनी चाहिए।
क़ुरआन के बारे में आपकी जानकारी कम है लेकिन आप बेखटके उस पर बात करती हैं,
जो बात आपने वेद के बारे में कही है वही बात आपको क़ुरआन के बारे में कहने की तौफ़ीक़ न हुई कि मैं क़ुरआन की जानकारी कम रखती  हूँ  इसलिए मैं इसके बारे में बात नहीं करुँगी।
इसके विपरीत आप ज़बर्दस्त तरीक़े से डटी रहीं और हमारी टिप्पणियों पर प्रश्न उठाती रहीं।

4. जब आप प्रश्न उठाएंगी तो उनके उत्तर देना वाजिब है और जब उत्तर दिए जाएंगे तो वह बहस बन ही जाएगी और जब पोस्ट पर बहस बन गई तो आप कहती हैं कि मैं तो बहस नहीं करती।
जब आप बहस नहीं करतीं तो फिर बहस क्यों की ?
और अगर बहस की है तो फिर यह दिखाने की कोशिश क्यों की है कि आप तो बहस नहीं करतीं लेकिन लोग हैं कि आपसे बहस करते रहते हैं।
इस तरह तो आप अपने ब्लॉग पर बहस करने वालों को अपमानित कर रही हैं।

5. आपने क्या सोचा था कि आप एक पोस्ट लिखेंगी और मुसलमान आपसे सहमत होकर क़ुरबानी करने से तौबा कर लेगा ?
क्या आपके ख़याल में यह बात न थी कि कोई भी आदमी अपनी धार्मिक-सामाजिक परंपरा छोड़ने से पहले तर्क-वितर्क कर सकता है ?

6. आप कहती हैं कि बहस किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकी,
इसके लिए आपको खेद है।
इसमें खेद की क्या बात है ?
आपको जानना चाहिए कि बहस की कामयाबी के लिए यह ज़रूरी नहीं है कि बहस के अंत में एक पक्ष दूसरे पक्ष की बात को मान ही ले।
बहस की कामयाबी इस बात में होती है कि संबंधित विषय में दोनों पक्ष अपनी भरपूर दलीलें सामने ले आएं।
गुज़रते हुए समय के साथ पढ़ने वाले फ़ैसला करेंगे कि उन्हें अपनी भलाई किस बात में नज़र आ रही है ?

7. क़ुरआन की आयतों के अर्थ निर्धारित करना आपका अधिकार नहीं है,
हमने इसी को आपकी अनाधिकार चेष्टा कहा है तो हमने क्या ग़लत कहा है ?
और इसमें आपको हमारी क्या नाराज़गी नज़र आ गई ?
आप कुछ भी कहें तो आपकी नीयत ठीक समझी जाए और आप पर आक्षेप न किया जाए जबकि आप हम पर आक्षेप कर रही हैं कि हम नाराज़ हो गए ?
हम नाराज़ नहीं हुए बल्कि आपको सच बताया है कि क़ुरआन के बारे में आपकी जानकारी कम है, उसके अर्थ निर्धारण करने की चेष्टा न करें।

8. आप केवल जवाब देने ब्लॉगर पर ही आक्षेप नहीं करतीं बल्कि उसकी मां की तुलना एक जानवर से करती हैं।
यह क्या तरीक़ा है ?
क्या आप अपनी मां की तुलना पशुओं से किया जाना पसंद करेंगी ?

9. आप बार बार पूछती हैं कि क़ुरआन में कहां लिखा है कि मवेशी जानवर की क़ुरबानी की जाए ?
और जब आपको लिखा हुआ दिखा दिया तो आप कहती हैं कि मैं जानवरों की क़ुरबानी के खि़लाफ़ हूं चाहे वह किसी भी ग्रंथ में लिखा हुआ हो,
मैं तो अपनी अंतरात्मा की आवाज़ पर चलती हूं।

10. जब आप अपनी अंतरात्मा की आवाज़ पर चलती हैं तो आप क़ुरआन पर सवाल क्यों कर रही थीं ?
आप को पहले ही यह स्पष्ट कहना चाहिए था कि मैं क़ुरबानी के खि़लाफ़ हूं चाहे वह किसी भी ग्रंथ में लिखा हो।
आपने ख़ामख्वाह हमारा समय एक ऐसी बात पर ख़र्च करवाया जिसे आपको देखकर भी मानना नहीं था।

11. दरअस्ल ऐसा करने के पीछे आपका उद्देश्य कुछ जानना और जानकर मानना था ही नहीं और यही बात आपने कही है कि बकरों की क़ुरबानी का ख़याल आते ही आपके हलक़ से कुछ उतर नहीं रहा है और आप यह चाहती हैं कि मुसलमान आपसे सहमत होकर क़ुरबानी करना छोड़ दें और अगर एक मुसलमान भी क़ुरबानी करना छोड़ देता है तो इस तरह 30-40 बकरों की जान बच जाएगी।
आपने ख़ुद ही बताया कि इस पोस्ट से आपका मक़सद यह था कि मुसलमान क़ुरबानी को धार्मिक कर्तव्य मानना छोड़ दें क्योंकि जब तक वे क़ुुरबानी को धार्मिक कर्तव्य मानना नहीं छोड़ेंगे तब तक वे क़ुरबानी भी नहीं छोड़ेंगे।
इस तरह आप मुसलमानों की धार्मिक आस्था और उनकी परंपरा की जड़ पर प्रहार कर रही थीं।
क्या किसी के धर्म के मूल पर प्रहार करना उचित है ?
क्या आपकी अंतरात्मा आपको यही शिक्षा देती है ?

12. आप जैसे लोग ख़ुदसिरे कहलाते हैं।
यानि ये ऐसे लोग होते हैं जो कि विषय के अधिकारी विद्वान की भी अनसुनी कर देते हैं और वह करते हैं जो उनके मन की मौज होती है और जो उनकी बुद्धि में समाता है।
ज़ाहिर है कि हरेक आदमी की बुद्धि अलग होती है और हरेक आदमी की रूचि भी अलग होती है।
ऐसे में अगर लोग धर्म को अपने एक्सपेरिमेंट का टूल बना लें तो फिर वह विकृत होकर ही रहेगा और उसमें सैकड़ों तरह के मतभेद जन्म ले लेंगे। आप जैसे लोगों की प्रयोगधर्मिता और बग़ावत का नतीजा यह हुआ कि आज हिंदू कहलाने वाले लोग खान-पान और धार्मिक रस्मों के मामले में एकमत नहीं रह गए हैं।
मुसलमान अपने खान-पान और अपनी इबादत के मामले में आज भी एक हैं।
आप क्यों चाहती हैं कि उनका हाल भी आप जैसा ही हो जाए ?

13. आप पोस्ट लिखती हैं तो वह विद्वत्ता समझी जाए और जब दूसरा आदमी उसका जवाब दे तो उसे बहस और विवाद समझा जाए ?

14. क़ुरबानी के लिए बिकते हुए बकरे देखकर आपका हलक़ सूखने लगता है लेकिन जब टनों मछलियां पकड़ने के लिए रोज़ाना जहाज़ रवाना होते हैं तो आपका गला तर ही रहता है क्योंकि आप कहती हैं कि आपको मांसाहार पर ऐतराज़ नहीं है बल्कि आपको क़रबानी पर ऐतराज़ है।
जीवों के प्रति आपकी दया भी बड़े अजीब क़िस्म की है।

15. रोज़ाना खाने के लिए करोड़ों जीव मारे जाते हैं और क़ुरबानी से ज़्यादा मारे जाते हैं तो आपके मन-बुद्धि और हलक़ पर कोई असर तक नहीं पड़ता ?
यह सब जीवों के प्रति दया है या मुसलमानों की धार्मिक आस्था पर प्रहार ?

आपकी टिप्पणियों ने ही आपकी सारी मनोग्रंथियों को खोलकर रख दिया है।

हमने आपके ब्लॉग पर टिप्पणी की और आपके द्वारा प्रकाशित न किए जाने पर ही हमने उसके प्रकाशित न किए जाने की शिकायत की है।
आप देखिए,
हो सकता है कि हमारी वह टिप्पणी आपके स्पैम में पड़ी हो।
अब आपने हमारे बारे में एक लंबी सी टिप्पणी की है तो यह टिप्पणी उसका जवाब है,
इसे भी आप अपनी पोस्ट पर प्रकाशित करें ताकि हमारा पक्ष भी सबके सामने आ जाए कि हमने क्या कहा और क्यों कहा ?
नई टिप्पणियां आपके द्वारा बंद हैं, इसलिए अपनी पोस्ट पर हमारी टिप्पणी आप ही लगा सकती हैं।
धन्यवाद !
देखिए मछली बनाने के तरीक़े और यह भी देखिए कि ये तरीक़े बताने वाला किस धर्म का है ?
और एक प्रश्न भी,
गोरक्षा की तरह मत्स्य रक्षा के लिए कोई आंदोलन क्यों नहीं चलाया जाता जबकि गाय को देवताओं का केवल निवास स्थान बताया जाता है और मछली को स्वयं विष्णु जी का अवतार रूप माना जाता है ?
आप जैसे लोग किसी भी चीज़ को अपने मन से बचाने के लिए खड़े हो जाते और किसी भी चीज़ को खाने के लिए चुन लेते हैं।
न बचाने के पीछे कोई सिद्धांत है और न ही खाने के पीछे और न ही खाने का कोई तरीक़ा ही निश्चित है।
मछली को ज़िंदा भी खाते और खिलाते हैं हमारे हिंदू भाई-बहन !
देखिए -
Treatment for asthma, live fish for wonder cure, Thousands swallow

Treatment for asthma 
 Hundreds and thousands of people jostled in Hyderabad on Monday to swallow medicine stuffed inside live fish .

4 comments:

Anonymous said...

१. मैंने पवित्र कुरआन के कोई अर्थ अपनी ओर से नहीं बताए - सिर्फ आपकी बताई आयत के इन्टरनेट पर उपलब्ध लिनक्स दिए - उनमे उपलब्ध अर्थ quote किये, और आपसे पूछा कि यदि ये अर्थ सही नहीं हैं - तो ये इन्टरनेट पर उपलब्ध क्यों हैं |

२. यदि आपको मेरे कुरान के अर्थ - जो इन्टरनेट पर उपलब्ध हैं, पढने, समझने और quote करने पर ऐतराज है, तो फिर यही बात आपको अपने वेदों के interpretation पर भी apply करनी चाहिए | यह मैं नहीं कह रही, यह आप ही कह रहे हैं | मैं मानती हूँ कि आपको और मुझे - दोनों ही को, पवित्र वेदों पर भी और पवित्र कुरआन पर भी, दोनों ही पर study करने का पूरा अधिकार हैं, क्योंकि हम दोनों ही उसी एक परमसत्ता के रचे मनुष्य हैं |

३. हर मनुष्य को पूरा अधिकार है कि वह इन ग्रंथों को study करे, और जो अर्थ उपलब्ध हैं, उस पर मनन करे | पर किसी पर कोई जबरदस्ती नहीं हो सकती कि उसे करना ही पड़ेगा |

४. वेदों पर मुझे जानकारी नहीं है, परन्तु कई जानकार सुधि जनों से कई जगह आपकी चर्चा पढ़ चुकी हूँ, परन्तु आप अपने बताये अर्थों पर उनके बताये अर्थों से सहमत होते कहीं नहीं दीखते मुझे | तो जो असहमति का अधिकार आपका है, मेरा भी है |

५. मैंने कुर्बानी शब्द की परिभाषा पर सवाल किया है, आपको या किसी को भी अपनी परंपरा छोड़ देने को नहीं कहा | न ये कहा कि ऐसा हो, या फिर वैसा हो | सिर्फ यह कहा है कि यदि ऐसा हो, तो यह कुर्बानी क्यों कहलाये / क्यों नहीं कहलाये ? उस लेख में देवी के आगे होने वाली पशुबलि पर भी बात हुई है, सिर्फ बकरीद पर नहीं , ना ही सिर्फ जीवदया पर |

Bharat Swabhiman Dal said...

श्रीमान जी किसी पशु की हत्या करके या करवाकर प्राप्त की हुई लाश का खाया जाना ( मांसाहार ) प्रत्येक स्थिति में निन्दनीय है , वह हत्या भले ही देवी की बलि या अल्लाह की कुर्बानी के नाम पर की गई हो । हजरत इब्राहिम ने तो त्याग के रूप में अपने प्राण प्रिय पुत्र इसमाईल की बली दी थी , क्या आज के मुस्लिम समाज को अल्लाह पर विश्वास नहीं रहा है कि वह अपने पुत्रों की बलि न देकर निर्दोष पशुओं की हत्या के पाप के भागी बनते है !

Anonymous said...

१. मैंने पवित्र कुरआन के कोई अर्थ अपनी ओर से नहीं बताए - सिर्फ आपकी बताई आयत के इन्टरनेट पर उपलब्ध लिनक्स दिए - उनमे उपलब्ध अर्थ quote किये, और आपसे पूछा कि यदि ये अर्थ सही नहीं हैं - तो ये इन्टरनेट पर उपलब्ध क्यों हैं |

२. यदि आपको मेरे कुरान के अर्थ - जो इन्टरनेट पर उपलब्ध हैं, पढने, समझने और quote करने पर ऐतराज है, तो फिर यही बात आपको अपने वेदों के interpretation पर भी apply करनी चाहिए | यह मैं नहीं कह रही, यह आप ही कह रहे हैं | मैं मानती हूँ कि आपको और मुझे - दोनों ही को, पवित्र वेदों पर भी और पवित्र कुरआन पर भी, दोनों ही पर study करने का पूरा अधिकार हैं, क्योंकि हम दोनों ही उसी एक परमसत्ता के रचे मनुष्य हैं |

३. हर मनुष्य को पूरा अधिकार है कि वह इन ग्रंथों को study करे, और जो अर्थ उपलब्ध हैं, उस पर मनन करे | पर किसी पर कोई जबरदस्ती नहीं हो सकती कि उसे करना ही पड़ेगा |

४. वेदों पर मुझे जानकारी नहीं है, परन्तु कई जानकार सुधि जनों से कई जगह आपकी चर्चा पढ़ चुकी हूँ, परन्तु आप अपने बताये अर्थों पर उनके बताये अर्थों से सहमत होते कहीं नहीं दीखते मुझे | तो जो असहमति का अधिकार आपका है, मेरा भी है |

५. मैंने कुर्बानी शब्द की परिभाषा पर सवाल किया है, आपको या किसी को भी अपनी परंपरा छोड़ देने को नहीं कहा | न ये कहा कि ऐसा हो, या फिर वैसा हो | सिर्फ यह कहा है कि यदि ऐसा हो, तो यह कुर्बानी क्यों कहलाये / क्यों नहीं कहलाये ? उस लेख में देवी के आगे होने वाली पशुबलि पर भी बात हुई है, सिर्फ बकरीद पर नहीं , ना ही सिर्फ जीवदया पर |

DR. ANWER JAMAL said...

@ भाई विश्वजीत जी ! मांसाहार निंदनीय नहीं है और पशु को क़ुरबान कर उसे ग़रीब ज़रूरतमंदों में और अपने दोस्तों और रिश्तेदारों में बांटना धर्म का काम है।
वैदिक काल से ही यह धर्म का काम समझा जाता रहा है। इस बात पर शिल्पा जी की पोस्ट पर विस्तृत चर्चा की गई है जिसका लिंक पोस्ट की सबसे पहली लाइन में दिया भी गया है।
आपकी ग़लतफ़हमी उसे पढ़कर दूर हो जाएगी।

इस पोस्ट में यह भी पूछा गया है कि
मछली रक्षा के लिए कोई बड़ा राष्ट्रीय आंदोलन आज तक क्यों नहीं चलाया गया जबकि मछली भी गाय की तरह ही एक जीव है बल्कि हिंदू धर्म की कथाओं के अनुसार उसका रूतबा गाय से कुछ बढ़कर ही है ?