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Thursday, April 1, 2010

यह बात आज वे सभी लोग मानते हैं जो ईश्वर और धर्म में यक़ीन रखते हैं चाहे उनका मत , वतन और भाषा कुछ भी क्यों न हो ? Same truth .

इसमें कोई सन्देह नहीं है कि प्रकृति की क्रियाएं बेहतरीन तरीके़ से सम्पन्न हो रही हैं और इसमें भी कोई सन्देह नहीं है कि प्रकृति में बुद्धि और योजना बनाने का गुण नहीं पाया जाता । जब प्रकृति में बुद्धि पायी नहीं जाती और प्रकृति के सारे काम हो रहे हैं बुद्धिमत्तापूर्ण तरीक़े से , तो पता यह चलता है है कि अगर बुद्धि प्रकृति के अन्दर नहीं पायी जाती तो फिर प्रकृति के बाहर तो ज़रूर ही मौजूद है । यही बुद्धिमान अस्तित्व पालनहार ईश्वर के नाम से जाना जाता है ।
जिन हक़ीक़तों को इनसान अपनी आंख से नहीं देख सकता उनका भी पता वह अपनी अक्ल के ज़रिये लगा लेता है । लेकिन यह अक्ल सही फ़ैसला केवल तब कर पाती है जबकि वह निष्पक्ष होकर विचार करे । अगर आदमी पक्षपात के साथ विचार करेगा तो फिर उसे सत्य तथ्य नज़र न आएंगे बल्कि फिर तो उसे वही कुछ दिखाई देगा जो धारणा उसने पहले से ही बना रखी होगी ।
इस जगत का कोई सृष्टा ज़रूर है ।
उसी सृष्टा को अलग अलग भाषाओं में ईश्वर , अल्लाह , खुदा , यहोवा , इक ओंकार और गॉड आदि हज़ारों नामों से जाना जाता है ।
अकल्पनीय सृष्टि के स्वामी का रूप भी अकल्पनीय है ।किसी चित्रकार में इतनी ताक़त नहीं है कि वह उसका चित्र बना सके ।किसी मूर्तिकार के बस में नहीं कि वह उस निराकार का आकार बना सके । जिसने भी जब कभी जो कुछ बनाया अपनी कल्पना से बनाया , अपनी तसल्ली के लिए बनाया।
सत्यस्वरूप शिव हरेक कल्पना से परे है ।

20 comments:

  1. ईश्वर को लेकर बहुत सुंदर आलेख। ये सही है प्रकृति का कार्य निरंतर चल ही रहा है। सवाल हमेशा उठता रहा है कि प्रकृति को कौन सी शक्ति चला रही है। सभी ने यही कहा जो शक्ति संसार को चला रही है उसका नाम ईश्वर है। अक्ल पर आपने अच्छा लिखा है।

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  2. @ Janduniya walo ! Apke vichar aur apki saralta bhi sunder hai .
    Thanks .

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  3. सच चाहे किसी भी ज़बान मे हो सच ही होता है लेकिन murkhलोग उसे देसी या विदेशी के तौर पर देखकर अपनाने का फैसला लेते है और घाटे मे रहते है

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  4. ठीक कहते हैं आप 'सत्यस्वरूप शिव हरेक कल्पना से परे है।'

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  5. जिसने भी जब कभी जो कुछ बनाया अपनी कल्पना से बनाया , अपनी तसल्ली के लिए बनाया।

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  6. डोकटर बाबू तुम एक ठण्‍डी पोस्‍ट मारता है एक गरम मारता है हमको पागल समझता है

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  7. अरे भाई समझने की कया ज़रुरत

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  8. किसी चित्रकार में इतनी ताक़त नहीं है कि वह उसका चित्र बना सके ।किसी मूर्तिकार के बस में नहीं कि वह उस निराकार का आकार बना सके ।
    BILKUL SACH,

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  9. आपकी POST लाजवाब है अनवर भाई

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  10. आपकी POST लाजवाब है अनवर भाई

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  11. गुरूजी शिष्यवत करबद्ध प्रणाम !

    हरी अनंत हरी कथा अनंता ||

    कृपा करके इस वाक्य का अर्थ समझादिजिये.

    waiting for your response please answer

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  12. सत्यस्वरूप शिव हरेक कल्पना से परे है ।

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  13. http://laraibhaqbat.blogspot.com/2010/04/blog-post_02.html

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  14. कोई भी उपासना पद्दत्ति प्रतिक पूजा से दूर नहीं है. चाहे फिर उसका कारण जो भी हो .

    एक बार एक राजा ने मूर्ति पूजा का विरोध करते हुए स्वामीजी से कोई ऐसा तर्क पेश करने को कहा जिससे वो मूर्ती पूजा को सही सिद्ध कर सके इस पर स्वामीजी ने राजा से उनके पिताजी की तस्वीर की और इशारा करते हुए कहा की आप इस तस्वीर पर थूक दीजिये तो राजा क्रोधित हो गए तब स्वामीजी ने कहा की ये तो एक कागज़ का टुकड़ा है आपके पिताजी तो नहीं हैं फिर आप क्रोधित क्यों हो रहे हैं तब राजा के बात समझ में आई की जिस प्रकार उसके पिता के प्रति उसका सम्मान और प्रेम उनकी अनुपस्थिति में अब उस तस्वीर से जुड़ गया है ठीक उसी प्रकार मूर्ती रूप में भक्त की भगवान् से आस्था जुडी होती है

    मुस्लिम बंधु "हज़े-अस्वद " को चूमने का कारण बताते हुए कहते है की श्रीमोहम्मद साहब ने इसे चूमा था इसलिए हम इसे चूमते है , और कोई कारण नहीं है.
    फिर जब उनसे पूछा जाता है की श्रीमोहम्मद साहब ने इसे क्यों चूमा था तो बताते है की उनसे पहले से ही काबा के लोग इसे चुमते आ रहे थे, इसीलिए उन्होंने लोगो की भावनाओ को बेवजह कष्ठ पहुँचाना उचित ना समझ कर इसे चूमा था.(बात कुछ हजम नहीं हुई- जो श्रीमोहम्मद साहब अपनी छड़ी से काबा के सारे बुतों को तोड़ डालते है,बिना लोगो की भावनाओ का ख्याल किये हुए.वे किस प्रकार सिर्फ "हज़े-अस्वद " को लोगो की भावनाओ का ख्याल करके चूम लेते है.)

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  15. मेरा देश मेरा धर्म वालों ने मुझसे पूछा है कि
    गुरूजी शिष्यवत करबद्ध प्रणाम !

    हरी अनंत हरी कथा अनंता ||

    कृपा करके इस वाक्य का अर्थ समझादिजिये.

    waiting for your response please answer
    पालनहार प्रभु का एक गुणवाचक नाम हरि भी है अर्थात अपने भक्तों के पाप और दुखों का हरण करने वाला । क्यों कि वह अपने पर आश्रित असंख्य जीवों के पाप और दुखों का हरण अनन्त विधियों से करता है इसलिये उस पालनहार प्रभु श्री हरि का गुणगान और उसके आदर्श भक्तों की कथाओं को अनन्त काल तक भी कहा जाये तो उसका हक़ अदा नहीं हो सकता ।
    आपने आदेश दिया तो मैंने अति संक्षेप में आपके हुक्म की तामील करते हुए आपके आदरवश कुछ लिख दिया है वर्ना तो आप स्वयं ज्ञानी हैं । आपकी टिप्पणी पाना ही मेरे लिए सम्मान की बात है । स्वयं को शिष्य बताना भी आपके अन्दर के विनय को दर्शाता है । आपके वचनों के द्वारा भी वह पालनहार मेरे दिल के दुख को हरता है । आप भी उस महान प्रभु की अद्भुत योजना में प्रयुक्त हो रहे हैं । आप स्वयं में प्रभु पालनहार का वरदान हैं ।
    अन्ततः ईश्वर एक है और नैतिकता के मानदण्ड अर्थात धर्म भी सदा से एक ही है । इसी सच्चाई को आज हमें पहचानना है । आइये , अपना फ़र्ज़ अदा करें ।

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  16. saale milawati khoon, gandee nalee ke keede ..mere ek bhi swal ka jawab de nahi paya or apne aap ko doctor kahata he???? chootiye toojhe poochha thaa ki toomahari aurate namaj kyo nahi padhai he....lwab diya??

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  17. mene kaha tha ki tere se naa to ugalte abnega naa nigalte....ye to abhi jhanki he makka me shiv ka bhvya mandir baaki he...

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  18. इदरीसी जी... कोनसे शिव की बात कर रहे हें ?वही जो भांग पीते थे ? दोस्त तुम ने बहुत गलत समझा
    चे निस्बत ए खाक ब आसमान ए पाक

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