
इनसान एक सामाजिक प्राणी है । समाज के लिए संगठन की ज़रूरत होती है और संगठन के लिए नियम और नेतृत्व की आवश्यकता होती है । इनसान की रचना ईश्वर ने की है तो स्वाभाविक है कि उसे जीवन जीने के लिए हरेक ज़रूरी चीज़ की तरह नियम भी वही देगा । इन्हीं नियमों का नाम धर्म है ।
इन नियमों को जीवन में उतारने वालों को भी ईश्वर ही समाज के सामने एक आदर्श के तौर पर पेश करता है । इन्हें समाज ऋषि और पैग़म्बर के नाम से जानता है ।
ये निष्कलंक जीवन जीते हैं लेकिन बाद में लोग अपने नाजायज़ स्वार्थ की पूर्ति की ख़ातिर उनके चरित्र को बिगाड़ देते हैं ।
इसकी एक ताज़ा मिसाल श्री कृष्ण जी हैं । एक महान व्यक्तित्व के बारे में ऐसी बातें जोड़ दी गईं जो वास्तव में उन्होंने कभी की ही नहीं । वे पवित्र थे । उनका चरित्र भी पवित्र था । उनके बारे में ग़लत बातें बाद में ईजाद की गईं । यही गलत बातें विकार कहलाती हैं । महापुरूष कभी ग़लत आचरण नहीं करते क्यों कि वे जानते हैं कि समाज उनका अनुकरण करता है । श्री कृष्ण जी ने इस बात को गीता जी में बताया भी है ।
नैतिकता के आदर्श महापुरूषों को अनैतिकता का स्रोत बताना भी बुद्धि का दिवालियापन है और उस पर ख़ामोश रहना भी अपने पूर्वजों के प्रति और पूरी मानवजाति के प्रति घोर अपराध है ।
अब आप देख सकते हैं कि अपने पूर्वजों की ज्ञान चेतना का सच्चा वारिस कौन है ?
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मेरा देश मेरा धर्म said...
गुरूजी शिष्यवत करबद्ध प्रणाम !
गुरूजी शिष्यवत करबद्ध प्रणाम !
हरी अनंत हरी कथा अनंता
कृपा करके इस वाक्य का अर्थ समझादिजिये.
waiting for your response please answer
April 2, 2010 10:45 AM
April 2, 2010 10:45 AM
पालनहार प्रभु का एक गुणवाचक नाम हरि भी है अर्थात अपने भक्तों के पाप और दुखों का हरण करने वाला । क्यों कि वह अपने पर आश्रित असंख्य जीवों के पाप और दुखों का हरण अनन्त विधियों से करता है इसलिये उस पालनहार प्रभु श्री हरि का गुणगान और उसके आदर्श भक्तों की कथाओं को अनन्त काल तक भी कहा जाये तो उसका हक़ अदा नहीं हो सकता । आपने आदेश दिया तो मैंने अति संक्षेप में आपके हुक्म की तामील करते हुए आपके आदरवश कुछ लिख दिया है वर्ना तो आप स्वयं ज्ञानी हैं । आपकी टिप्पणी पाना ही मेरे लिए सम्मान की बात है । स्वयं को शिष्य बताना भी आपके अन्दर के विनय को दर्शाता है । आपके वचनों के द्वारा भी वह पालनहार मेरे दिल के दुख को हरता है । आप भी उस महान प्रभु की अद्भुत योजना में प्रयुक्त हो रहे हैं । आप स्वयं में प्रभु पालनहार का वरदान हैं ।अन्ततः ईश्वर एक है और नैतिकता के मानदण्ड अर्थात धर्म भी सदा से एक ही है ।
इसी सच्चाई को आज हमें पहचानना है ।
आइये , अपना फ़र्ज़ अदा करें ।
achha ji bahut achha hai aaj tom ji .
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ReplyDeleteमैंने इस ब्लॉग पर अभी तक दो ही रंग देखे हैं या तो हरा या फिर केसरिया। अरे कभी इन दो रंगों को छोड़ कर रंगहीन भी तो हो जाओ तभी तो तिरंगा पूरा होगा।
ReplyDeleteआपने SHRI KIRSHAN जी पर लगाए झूठे इल्ज़ामो का बहुत सही जवाब दिया है सच है जो बाते हम अपने बाप दादा के साथ नही जोड़ सकते उन्ही बातो को हम महापुरुषो के साथ जोड़कर उनका जूलूस कैसे निकाल सकते है
ReplyDeletetheek kehte ho,,krishna bare men hamen jo suune ko milta he yaqeen nahin hota
ReplyDeletenice post
ReplyDeleteअबे यह बताना तेरा काम नहीं तू अपनी डोकटरी कर
ReplyDeleteपूर्वजों की ज्ञान चेतना का सच्चा वारिस तू है
ReplyDeleteमित्रो कभी ऐसे सवाल किसी इम्तिहान में मिल जायें जैसे नीचे देखेंगें तो आप क्या जवाब दोगे? मैं जवाब में क्या लिखूंगा, पढ लो, फिर किसी पेपर में छूट हो कि आप भी सवाल कर लो तो आखिर में अपना सवाल रख दूंगा, ऐसे मैं पास होउंगा या फेल पता नहीं, अपना मशवरा दिजियेगा
ReplyDeleteहमारा सवाल : पुरुष अपनी बदसूरती कैसे छुपाएं...??? (क्या बुर्क़ा पहनकर...???)
दूसरा सवाल : पुरुष अपने सौन्दर्य को कैसे महफूज़ रखें...? (क्या बुर्क़ा पहनकर...???)
पहले सवाल का जवाबः
महिलाओं को ताज चाहिये न तख्त उसे चाहिये सख्त, इस लिये पुरूष को अपनी बदसूरती छुपाने की आवश्यकता ही नहीं, उसकी सारी खूबसूरती सख्ती में है, वह कितना ही बदसूरत हो लेकिन सख्त रखता हो तो वह खूबसूरत है, और अगर सख्ती नहीं रखता तो कितना ही खूबसूरत हो सब बेकार
दूसरे सवाल का जवाबः
पुरूष का सारा सौन्दर्य भी सख्ती में ही है और उसे सभी धर्मी अधर्मी बुर्के में रखते हैं, सबका उसे बुर्के में रखना ही साबित करता है वह ऐसे ही छुपा के रखने में ही महफूज है, खुला रखें तो पता नहीं किसकी बूरी नजर पड जाये और कब किसी ने पकडा और लगा लिया सुईच बोर्ड में और कर ली जन्नत की सैर
मेरा सवालः
जब धन्नो गिरजा गेंद-बल्ले का खेल खेलती है तो आप क्या देखते हैं गेंद या बल्ला?
:-@यह आपने क्या राज़ की बाते छेड़ दी
ReplyDeletefirdos baji bhi yahan pur aati hai
ReplyDeleteआपको बार बार पूर्वजो का सम्मान करने की बात का ढिंढोरा क्यों पीटना पड़ता है,
ReplyDeleteबंधु जो सम्मान करता है उसे यह बार बार बतलाने की जरुरत नहीं पड़ती की मै फलाने का सम्मान कर रहा हूँ , बल्कि उसके निर्मल मन की झांकी उसके कर्म-वचन से ही मिल जाती है.
आपका सम्मान करने का अंदाज तो सिर्फ ऐसा लगता है जैसे किसी घोर-शत्रु की मृत्यु पे लोकलाज की खातिर श्रृद्धा सुमन अर्पित करने पड रहे हो.
और इसकी जरूरत आपको नहीं है क्योंकि आप जिस अज्ञान के वशीभूत होकर जिस निर्मल धारा को सुखाने की कोशिश कर रहे है. वह ना कभी सूखी थी ना आगे कभी सूखेगी.
सवाल तो काफी है ,पर इन दो मुख्य सवालों का ज़वाब अभी दे दीजिए, क्योंकि विकार रहित तो दोनों घर एक ही साथ होने चाहिये ना.
इनके बाद जैसे जैसे समय मिलेगा जिज्ञासाओ को आपके सामने रखता रहूँगा.
१.हज यात्री जो सरकारी सब्सिडी से हज के किये जाते है.तो उनकी वह यात्रा मालिक के दर पे कुबूल है या रद्द है ?
२. और अगर कबूल है तो किस प्रकार है ,और रद्द है तो फिर इस विकार को दूर करने के लिए ब्लॉग पे पोस्ट कब लिख रहे है,और समाज में जाकर इस विकार को दूर करने के लिए अभियान कब चला रहे है ?
३.क्या आप मुसलमानों द्वारा खोले गए किसी अस्पताल (सिर्फ हकिम्खाना नहीं जहाँ सिर्फ मुसलमानों का ही इलाज होता हो )
या धर्मशाला (मुस्लिम मुसाफ्हिर्खाना नहीं जहाँ सिर्फ मुस्लिम ही ठहर सकतें हों ) या अन्य सेवा कार्यों का विवरण बतला सकतें हैं ,
की ऐसे सेवा कार्य देश में कहाँ कहाँ चल रहें हैं ?
please batana qabar banane men kitna kharch aata he Chita ka kharch men batata hoon
ReplyDeleteस्वामी दयानंद सरस्वती ने दाह संस्कार की जो विधि बताई है वह विधि दफ़नाने की अपेक्षा कहीं अधिक महंगी है। जैसा कि स्वामी जी ने लिखा है कि मुर्दे के दाह संस्कार में “शरीर के वज़न के बराबर घी, उसमें एक सेर में रत्ती भर कस्तूरी, माषा भर केसर, कम से कम आधा मन चन्दन, अगर, तगर, कपूर आदि और पलाष आदि की लकड़ी प्रयोग करनी चाहिए। मृत दरिद्र भी हो तो भी बीस सेर से कम घी चिता में न डाले। (13-40,41,42)
स्वामी दयानंद सरस्वती के दाह संस्कार में जो सामग्री उपयोग में लाई गई वह इस प्रकार थी - घी 4 मन यानी 149 कि.ग्रा., चंदन 2 मन यानि 75 कि.ग्रा., कपूर 5 सेर यानी 4.67 कि.ग्रा., केसर 1 सेर यानि 933 ग्राम, कस्तूरी 2 तोला यानि 23.32 ग्राम, लकड़ी 10 मन यानि 373 कि.ग्रा. आदि। (आर्श साहित्य प्रचार ट्रस्ट द्वारा प्रकाषित पुस्तक, ‘‘महर्शि दयानंद का जीवन चरित्र’’ से) उक्त सामग्री से सिद्ध होता है कि दाह संस्कार की क्रिया कितनी महंगी है।
very well going dr saab aur haan ye bevakoof raj ke pass topic pe likhne ke liye kuch nahi hai main to ise semi scholar samajhta tha par ye toh quater scholar bhi nahi hai topic less.
ReplyDeleteVery nice post! bahut hi achha likha hai Dr. Anwar sahab.
ReplyDeleteSarv-Dharm Sadbhav ki aaj hamare Desh ko bahut aavashyakta hai.
Dhanywad!
इसकी एक ताज़ा मिसाल श्री कृष्ण जी हैं । एक महान व्यक्तित्व के बारे में ऐसी बातें जोड़ दी गईं जो वास्तव में उन्होंने कभी की ही नहीं । वे पवित्र थे । उनका चरित्र भी पवित्र था । उनके बारे में ग़लत बातें बाद में ईजाद की गईं । यही गलत बातें विकार कहलाती हैं । महापुरूष कभी ग़लत आचरण नहीं करते क्यों कि वे जानते हैं कि समाज उनका अनुकरण करता है । श्री कृष्ण जी ने इस बात को गीता जी में बताया भी है
ReplyDeleteनाइस पोस्ट
ReplyDeleteGuruJi, Thank u very much for your answer
ReplyDeleteBahut Achchha likha hai aapane
@ MR. राज जी , आप जैसे करोड़ों- अरबों आये और चले गए ना तो वो खूबसूरती रख पाए और ना ही सख्ती !
ReplyDeleteआदमी खूबसूरत होता है अपने विचारों और बदसूरत भी होता है अपने विचारों से !
बुरा मत मानियेगा आप अपनी माँ के लिए, बहन के लिए खूबसूरत हैं चाहें आप कैसे भी हों, क्योंकि आप के पास सख्ती जो है !
जब आप पैदा हुए तो आपके पिताजी ने, पड़ोसियों ने और रिश्तेदारों ने भी कभी ना कभी कहा होगा- कितना खूबसूरत बच्चा है - उस समय भी तो आप के पास सख्ती थी!
बची बुर्के वाली बात वो आपको गुरूजी समझा देंगे और नहीं समझाते तो मैं समझा दूंगा !
जय हिंद !
@ विशाल said...स्वामी दयानंद सरस्वती ने दाह संस्कार की जो विधि बताई
ReplyDeleteविशाल बाबूजी आपका नाम विशाल है, तो थोडा विस्तृत सोचिये और मिश्र के पिरामिडों के बारे में जानकारी एकत्र कीजिये
बस एक ही धुन जय-जय भारत
@ नन्दू गुजराती said...
ReplyDeleteक्या 'हिन्दू शब्द भारत के लिए समस्या नहीं बन गया है?
आपका पैदा होने से पहले क्या नाम था, होते ही क्या नाम था, अब क्या नाम है, माँ-बाप ने क्या नाम रखा और तुम्हारे दोस्तों ने क्या रखा और यह भी बताना की ब्लोगीर्स की दुनिया में मैं तुम्हारा नया नाम क्या रखू ............
@राज साहब आपनेच बहुत अच्छा सवाल पूछा गेँद और बल्ले की जँग मे बल्ला तो अपने पास ही रहता है इसलिए गेँद का ही ध्यान रखना पड़ता है
ReplyDelete@बहन फ़िरदौस के ख़याल पर भी एक नज़र डालना ज़रूरी मालूम होता है । उनका मानना है कि ‘वस्त्र बुराई की जड़ है ।‘
ReplyDeleteउनके इस ख़याल को ग़लत साबित करने के लिए इतना जान लेना ही काफ़ी है कि वे खुद भी कपड़े पहनती हैं ।
लिबास इतनी बड़ी खूबी है कि दुनिया की हरेक सभ्यता में लिबास का इस्तेमाल किया गया है । जो जातियां जंगली मानी जाती हैं उनमें भी अपने अंग ढकने की परम्परा पाई जाती है । दुनिया की क़ौमों में इस बात पर तो मतभेद हो सकता है कि औरत और मर्द अपने जिस्म का कितना भाग ढकें लेकिन जिस्म ढकने को लेकर कोई मतभेद नहीं पाया जाता ।
जिन मुल्कों ने न्यूड क्लब्स को मान्यता दे रखी है । उन मुल्कों में भी नंगई समर्थक सार्वजनिक स्थानों पर नंगे नहीं घूम सकते ।
दुनिया के सारे अच्छे लोगों की लिस्ट बना लीजिये । आपको वे सभी लोग और उनके परिवार की औरतें लिबास पहने हुए दिखाई देंगी ।
फ़ैशन मॉडल हो या कोई तवायफ़ हो , वह भी कपड़े पहनती है बल्कि बाज़ दफ़ा तो वे अपने फ़ैन्स की नज़र से बचने के लिए बुर्क़ा तक पहनती हैं ।
जितने लोगों ने बहन फ़िरदौस के लेख की सराहना की है , क्या वे अपने घर की औरतों को बुराई यानि कि कपड़ा छोड़ने की प्रेरणा देना पसन्द करेंगे ?
यदि न तो बहन जी ही वस्त्र त्याग कर सकती हैं और न ही उनके फ़ैन्स तो फिर इस लिखने और सराहने का फ़ायदा क्या है ?
Bhai Desh Dharm wale ,भाई शाहनवाज़ , डा. अयाज़ , विचारशून्य , विशाल और बहन फ़िरदौस समेत सभी लोगों का शुक्रिया ।
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