
मुझे पता चला कि जिस धर्म को संसार इस्लाम के नाम से जानता है वास्तव में वही धार्मिक मतभेद के प्रश्न का वास्तविक समाधान है।
क़ुरआन कहता है कि खुदा की सच्चाई एक है, आरम्भ से एक है, और सारे इनसानों और समुदायों के लिए समान रूप में आती रही है, दुनिया का कोई देश और कोई कोना ऐसा नहीं जहाँ अल्लाह के सच्चे बन्दे न पैदा हुए हों और उन्होंने सच्चाई की शिक्षा न दी हो, परन्तु सदैव ऐसा हुआ कि लोग कुछ दिनों तक उस पर क़ाएम रहे फिर अपनी कल्पना और अंधविश्वास से भिन्न भिन्न आधुनिक और झूटी बातें निकाल कर इस तरह फैला दीं कि वह ईश्वर की सच्चाई इनसानी मिलावट के अंदर संदिग्ध हो गई।इस्लाम दुनिया में कोई नया धर्म स्थापित नहीं करना चाहता
बल्कि उसका आंदोलन स्वंय उसके बयान के अनुसार मात्र यह है कि संसार में
प्रत्येक धर्म के मानने वाले अपनी वास्तविक और शुद्ध सत्य पर आ जाएं और बाहर से
मिलाई हुई झूटी बातों को छोड़ दें- यदि वह ऐसा करें तो जो आस्था उनके पास होगी उसी
का नाम क़ुरआन की बोली में इस्लाम है।
अब आवश्यकता थी कि सब को जागरुक करने के लिए एक विश्य-व्यापी आवाज़ लगाई जाए, यह इस्लाम है। वह इसाई से कहता है कि सच्चा इसाई बने, यहूदी से कहता है कि सच्चा यहूदी बने, पारसी से कहता है कि सच्चा पारसी बने, उसी प्रकार हिन्दुओं से कहता है कि अपनी वास्तविक सत्यता को पुनः स्थापित कर लें, यह सब यदि ऐसा कर लें तो वह वही एक ही सत्यता होगी जो हमेशा से है और हमेशा सब को दी गई है, कोई समुदाय नहीं कह सकता कि वह केवल उसी की सम्पत्ती है।उसी का नाम इस्लाम है और वही प्राकृतिक धर्म है अर्थात ईश्वर का बनाया हुआ नेचर, उसी पर सारा जगत चल रहा है, सूर्य का भी वही धर्म है, ज़मीन भी उसी को माने हुए हर समय घूम रही है और कौन कह सकता है कि ऐसी ही कितनी ज़मीनें और दुनियाएं हैं और एक ईश्वर के ठहराए हुए एक ही नियम पर अमल कर रही हैं।अतः क़ुरआन लोगों को उनके धर्म से छोड़ाना नहीं चाहता बल्कि उनके वास्तविक धर्म पर उनको पुनः स्थापित कर देना चाहता है। दुनिया में विभिन्न धर्म हैं, हर धर्म का अनुयाई समझता है कि सत्य केवल उसी के भाग में आई है और बाक़ी सब असत्य पर हैं मानो समुदाय और नस्ल के जैसे सच्चाई की भी मीरास है अब अगर फैसला हो तो क्यों कर हो? मतभेद दूर हो तो किस प्रकार हो? उसकी केवल तीन ही सूरतें हो सकती हैं एक यह कि सब सत्य पर हैं, यह हो नहीं सकता क्योंकि सत्य एक से अधिक नहीं और सत्य में मतभेद नहीं हो सकता, दूसरी यह कि सब असत्य पर हैं इस से भी फैसला नहीं होता क्योंकि फिर सत्य कहाँ है? और सब का दावा क्यों है ? अब केवल एक तीसरी सूरत रह गई अर्थात सब सत्य पर हैं और सब असत्य पर अर्थात असल एक है और सब के पास है और मिलावट बातिल है, वही मतभेद का कारण है और सब उसमें ग्रस्त हो गए हैं यदि मिलावट छोड़ दें और असलियत को परख कर शुद्ध कर लें तो वह एक ही होगी और सब की झोली में निकलेगी।
क़ुरआन यही कहता है और उसकी बोली में उसी मिली जुली और विश्वव्यापी सत्यता का नाम “इस्लाम” है।
लेखक सलीम ख़ान, स्वच्छ संदेश: हिन्दोस्तान की आवाज़
साभार हमारी अंजुमन
क़ुरआन यही कहता है और उसकी बोली में उसी मिली जुली और विश्वव्यापी सत्यता का नाम “इस्लाम” है।
लेखक सलीम ख़ान, स्वच्छ संदेश: हिन्दोस्तान की आवाज़
साभार हमारी अंजुमन
अब आप मुसलमानों के सामने समानता का आदर्श पेश कर दीजिए .
ReplyDeleteThis is a best article indeed . Thanks .
ReplyDeleteTahir malik
@ Guddu ji n Malik ji शुक्रिया .
ReplyDeleteबहुत अचछा
ReplyDeletebahut hi achcha lekh hai, aur bilkul sahi baat kahi hai aapne. Sadhuvad
ReplyDeleteक़ुरआन कहता है कि खुदा की सच्चाई एक है, आरम्भ से एक है, और सारे इनसानों और समुदायों के लिए समान रूप में आती रही है, दुनिया का कोई देश और कोई कोना ऐसा नहीं जहाँ अल्लाह के सच्चे बन्दे न पैदा हुए हों और उन्होंने सच्चाई की शिक्षा न दी हो, परन्तु सदैव ऐसा हुआ कि लोग कुछ दिनों तक उस पर क़ाएम रहे फिर अपनी कल्पना और अंधविश्वास से भिन्न भिन्न आधुनिक और झूटी बातें निकाल कर इस तरह फैला दीं कि वह ईश्वर की सच्चाई इनसानी मिलावट के अंदर संदिग्ध हो गई
ReplyDeleteKya baat hai..... mashallah bahut hi sahi baaat likhi hai.
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ReplyDeleteबहुत ही अच्छा लेख है. स्वयं अल्लाह ने कुरआन में फ़रमाया है, कि यह कोई नहीं दीन (धर्म) नहीं है, यह तो वही दीन (धर्म) जो इस संसार के प्रारंभ से चला आ रहा है. हाँ लोगो ने अपने स्वार्थ अथवा लोभ की वजह से ईश्वर की किताबों में समय-समय पर बदलाव कर दिए. और इसीलिए ईश्वर ने आखिरी संदेशवाहक मुहम्मद (स.) के ज़रिये हमें कुरआन-ऐ-करीम आता फ़रमाया. यह दुनिया की ऐसी किताब है, जिसमें कोई बदलाव नहीं कर सकता है, और ना ही इसके जैसी कोई और किताब लिखी जा सकती है, यह अल्लाह का खुली चुनौती
ReplyDeleteअनवर भाई आपके लेख का जबाब होता ही नही जबाब के बदले कबाब ही मिलते है वो भी इन लोगो के साथ जल भुन जाता है लेकिन आपने तो ज़ायक़ा ही बिरयानी वाला ला दिया
ReplyDeleteअरे मै तुम लोगो को रँग ज़रुर दिखाऊँगा
ReplyDeleteइसाई से कहता है कि सच्चा इसाई बने, यहूदी से कहता है कि सच्चा यहूदी बने, पारसी से कहता है कि सच्चा पारसी बने, उसी प्रकार हिन्दुओं से कहता है कि अपनी वास्तविक सत्यता को पुनः स्थापित कर लें, यह सब यदि ऐसा कर लें तो वह वही एक ही सत्यता होगी जो हमेशा से है और हमेशा सब को दी गई है, कोई समुदाय नहीं कह सकता कि वह केवल उसी की सम्पत्ती है।उसी का नाम इस्लाम है
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा लिखा है आपने ।
लेकिन आपने तो कुरान को भी पीछे छोड़ दिया है। कुरान मैं एक जगह लिखा है की ये इमान लाने वालो तुम इसाई और यहूदियों से दूर रहो क्यों की वो आपस मैं एक दुसरे के मित्र हैं।
इसके बारे मैं क्या कहेंगे आप।
लगता है की डॉ अनवर जमाल ने अपना नाम बदल लिया है।
डॉ. जमालगोटा का करम खोटा... बन गया वो बिन पेंदी का लोटा!
ReplyDeleteअब डॉ. जमालगोटा का करम ही खोटा है तो भला कोई क्या कर सकता है? ये जहाँ भी जाते हैं गाली ही खाते हैं। पर बड़ी मोटी चमड़ी है इनकी, इसीलिये गाली खाकर भी मुस्कुराते हैं। पहले ये हकीमी करते थे किन्तु "नीम हकीम खतरा-ए-जान" समझकर कोई इनसे इलाज ही नहीं करवाता था। परेशान होकर इन्होंने डॉ. नाईक को अपना उस्ताद बना लिया और उस्ताद ने इनके नाम के साथ "डॉ." का तमगा लगा दिया।
एक बार इन्होंने एक मरीज को, अपने नाम के अनुरूप, जमालगोटा खिला दिया। मरीज की हालत बिगड़ गई तो गिरी जी ने गुस्से में आकर इन्हें जमीन पर गिरा दिया और अवध्य बाबू ने इनका कपड़ा फाड़ डाला। इस घटना के बाद ये पागल हो गये और इनके दिमाग का ऑपरेशन करवाया गया। ऑपरेशन करने वाले डॉक्टर ने इन्हे ठीक करने के लिये इनके दिमाग में बहुत सारे गन्दगी के कीड़े भर दिये। तभी से इनके दिमाग से सिर्फ गंदे विचार ही निकलते हैं।
दिमाग का ऑपरेशन हो जाने के बाद ये पूरे पागल की जगह अब नीम पागल हो गये हैं पर स्वयं को बहुत बड़ा तालीमयाफ्ता और ब्रह्मज्ञानी समझते हैं। लोगों को जबरन ज्ञान बाँटते फिरते हैं। बिन पेंदी के लोटे के जैसे कभी वेद की तरफ लुढ़कते हैं तो कभी कुरआन की तरफ, कभी गायत्री का गान करते हैं तो कभी काबा की तरीफ करने लग जाते हैं। बिन पेंदी का यह लोटा सदा गंदे नाले की गंदगी से आधा भरा रहता है और आप तो जानते ही हैं कि "अधजल गगरी छलकत जाय"। इस लोटे से गंदगी हमेशा छलकती ही रहती है।
पर गिरी जी और अवध्य बाबू जब भी इन्हें दिखाई पड़ जाते हैं, इनका सारा ज्ञान घुसड़ जाता है और नीम पागल की जगह फिर से पूरे पागल बन कर अनाप शनाप बकने लगते हैं। गिरी और अवध्य बाबू इनके लिये लाइलाज बीमारी बन गये हैं जिसका इलाज हकीम लुकमान के पास भी नहीं हैं। अब क्या करें ये बेचारे जमालगोटा साहब? सिर्फ अपने करम को कोसते रहते हैं। चलनी में दूध दुहने वाला करम को कोसने के सिवाय और कर ही क्या सकता है?
अन्त में हम इतना ही लिखना चाहेंगे मित्रों कि न तो हमारे संस्कार इस प्रकार के लेखन की हमें इजाजत देते हैं और न ही ऐसा लेखन हमें शोभा देता है। हम यह भी जानते हैं कि गंदगी में ढेला मारने से छींटे अपने आप पर ही आते हैं। किन्तु हम इतने कायर भी नहीं हैं कि चुपचाप आतताई को सहन कर लें। अन्याय करना जितना बड़ा अपराध है, अन्याय सहना उससे भी बड़ा अपराध है। इसीलिये कभी-कभी "जिन मोहे मारा ते मैं मारे" वाले अंदाज में भी आना पड़ता है, ईंट का जवाब पत्थर से देना ही पड़ता है।
गुरू जी आज तो 13 कमेंटस के बाद आना हुआ, 13वें कमेंटस देख लें और इससे कतई अपना ध्यान विचलित न हो ने दें आप केवल मछली की आँख देखें इन सभी को मैं लौटा थमा थमा के दौडाता रहा हूँ अबकी बार तो इन्होंने जमाल गोटा खाया है अपना घर ही सडाते रहेंगे वह भी खिडकी बन्द और दरवाजे पे सांकल चढा के,
ReplyDeleteइन्होंने अभी आपका कमाल देखा कहाँ है अभी तो इन्होंने वह पोस्ट भी नहीं देखी जो केवल आप जब देंगे जब आप खुश होंगे और न वह देखी जब आपको गुस्सा आयेगा वह है ना शिवलिंग जिसमें रखा रहता है उसका विस्तार से समझाने की पोस्ट उसे अभी बिलकुल न दें महरबानी होगी
good post
ReplyDeleteNICE POST
ReplyDelete@ Tarkeshwar Giri
ReplyDelete"बहुत ही अच्छा लिखा है आपने ।
लेकिन आपने तो कुरान को भी पीछे छोड़ दिया है। कुरान मैं एक जगह लिखा है की ये इमान लाने वालो तुम इसाई और यहूदियों से दूर रहो क्यों की वो आपस मैं एक दुसरे के मित्र हैं।
इसके बारे मैं क्या कहेंगे आप।"
गिरी साहब, अगर विस्तारपुर्वक बता देते कि उपरोक्त वाक्य कुरआन में कहाँ लिखा है, तो हमें भी समझने में आसानी होती. वैसे कुरआन का एक श्लोक (आयात) आपके पेशे नज़र है:
[Quran 2:62] निसंदेह, ईमान वाले और जो यहूद हुए और इसाई और साबिई, जो भी ईश्वर और अंतिम दिन पर ईमान लाया (विश्वास किया) और अच्छा कर्म किया, तो ऐसे लोगो का उनके अपने रब (पालने वाला) के पास (अच्छा) बदला है, उनको न तो कोई भय होगा और न वे शोकाकुल होंगे.
@ Tarkeshwar Giri
ReplyDeleteउपरोक्त क़ुरआनी श्लोक (आयात) से तो पता चलता है, कि ईश्वर की नज़र में इस चीज़ का कुछ भी महत्त्व नहीं है कि कोई हिन्दू के घर पैदा हुआ है अथवा मुसलमान के घर, अपितु उसकी नज़र में केवल कर्मो का महत्त्व है.
वह है ना शिवलिंग जिसमें रखा रहता है
ReplyDeleteहम विस्तार से नहीं, संक्षेप में समझाते हैं :
वह हजर-ए-अस्वाद (काबा) है, जिसका आकार शिवलिंग के लिए फिट है, इसीलिए शिवलिंग उसमे रखा रहता है.
bahoot khoob !!!
ReplyDeleteभैया आपने लिखा तो ब्लोगवाणी ने सर आँखों पे बिठाया... मैंने लिखा तो एक दिन बाद ही सदस्यता ही बर्खास्त कर डाली... वह रे ब्लोगवाणी तू कब बनेगी मीठीवाणी...
ReplyDeleteमेरा लेख यहाँ पढ़ें
http://laraibhaqbat.blogspot.com/
Saare धर्म मानवता ke liye hi hai, kewal
ReplyDeleteइस्लाम hii nahii,
Hindu dharm mein to मानवता, vishva bandhutva, tyaag, aapasii bhaii chaara, Jiyo or Jeene do ka sidhaant,
adi saare guno se bhara hua hai,
Lekin Logo ko ye batane kii jaroorat kyo pad rahi hain ki Islam मानवता kaa dharm hain?
RAJ
Good Post!
ReplyDeleteEverybody should care humanity amongst all religion.
@ Giri ji ye baat un christian aur jews waghera ke bare men kahi gayi hai jo madine men mulims ki jasusi kar ke mecca walo khabren bhej kar attack ke liye mecca walo ko bulaya karte the . vibhishan jaise to wahan bhi the . Nek logon ke liye Holy Quran men woh baat ayi hai jo Bhai Shahnawaz ne batayi hai .
ReplyDeleteSabhi bhaiyyon ka shukriya .
ReplyDeleteइसमें दो राय नहीं है कि इस्लाम मानवता का धर्म है। आतंकवाद से जोड़कर इसे पेश करने पर तकलीफ होती है।
ReplyDelete@ Janduniya walo aap jaise log hi aaj insan kehlane ke haqdar hain jo sach kewal ek wakya men maanne ka sahas rakhte hain .
ReplyDeleteShukriya .
@ Bhaiyyon Awadhiya chacha ko hamare compounder ne to kewal cow moot pilaya tha , Ab us se inhen dast lag gaye to ismen ghalati meri kahan hai ? Koi bataye ?
ReplyDeleteB.T .BENGAN(LAND}KE CHakkaar me sabhi pagal ho gaye jayenge chod do is pagal ko
ReplyDeletetest tube baby he ye
ReplyDeleteएक बेहतरीन लेख़ है. तर्केश्वेर भाई कुरान की कुछ आयतें जंग के दौरान हिदायत और नसीहत पे तौर पे आयीं हैं. उनको किसी एक सुरे के तर्जुमे से समझने की कोशिश करना मुनासिब नहीं हुआ करता.
ReplyDeleteअपने परमात्मा को पहचानो और उसकी ख़ुशी के साथ कर्म करो.