सनातन धर्म के अध्‍ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अ‍ाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to

जिस पुस्‍तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्‍दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्‍दी रूपान्‍तर है, महान सन्‍त एवं आचार्य मौलाना शम्‍स नवेद उस्‍मानी के ध‍ार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन पर आधारति पुस्‍तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्‍त के प्रिय शिष्‍य एस. अब्‍दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्‍य जावेद अन्‍जुम (प्रवक्‍ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्‍तक के असल भाव का प्रतिबिम्‍ब उतर आए इस्लाम की ज्‍योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्‍दी प्रेमियों के लिए प्रस्‍तुत है, More More More



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Saturday, March 20, 2010

क्या यही रीत होती है सच के क़द्रदानों की ? Death is destiny of man.



...तो कल बात ख़त्म हुई थी एक चश्मे वाले अपशु पर । लेकिन मेरे विरोधियों में सभी ऐसे नहीं हैं । उनमें कुछ आदमी भी हैं और उनके अन्दर आदमियत भी है । वे विरोध तो करते हैं लेकिन खुद को इनसानियत से गिरने नहीं देते । इनमें से एक साहब ‘धान के देश में‘ रहते हैं । मैं इनका सम्मान करता हूं और बुज़ुर्गों का सम्मान करना हमारा फ़र्ज़ भी है । मेरा काफ़ी प्रचार करके इन साहब ने मुझ पर उपकार भी किया है ।


भाई मिहिर भी हालांकि मुझसे बदगुमान हैं लेकिन फिर भी वे एक अच्छे इनसान हैं । मेरे पूर्वजों का नाम भी वे उन्हीं पोथों में मानते हैं जिनमें कि वे अपने पूर्वजों का मानते हैं । और यह सोलह आने सच है लेकिन वे कहते हैं कि मैं अपने पूर्वजों का अपमान करता हूं तो यह सच नहीं है ।


मैं खुद अपने आप को हिन्दू कहता मानता और लिखता हूं । सीता जी को माता और श्री रामचन्द्र जी को मर्यादा पुरूषोत्तम मानता हूं । मैं तो इस बात की भी परवाह नहीं करता कि लोग उन्हें काल्पनिक और मिथकीय पात्र मानते हैं । लोग ऐसा मानते होंगे लेकिन मैं तो उनसे सहमत नहीं हूं ।


श्री रामचन्द्र जी की महानता के बहुत से प्रमाण हैं जिनके सामने हरेक क्षेपक बेअसर हो जाता है । सभी महापुरूषों की जीवनियों में सदा से क्षेपक होते आये हैं । यह एक तथ्य है ।


क्षेपक को कोई भी विवेकवान पहली ही नज़र में पहचान सकता है । मैं अपने पूर्वजों की आभा को मन्द करने वाले किसी भी प्रसंग को सिरे से ही सत्य नहीं मानता


कोई बताए मेरी कौन सी बात ग़लत है ?


इसमें किस तरह किसी का अपमान होता है ?


मेरी नज़र में तो श्री रामचन्द्र जी आदि का अपमान वे करते हैं जो बताते हैं कि


उन्होंने बालि का वध छिपकर किया था ।


जो उनके द्वारा सीता माता की अग्नि परीक्षा लेना और गर्भावस्था में उनके द्वारा सीता माता का त्याग किया जाना सत्य मानते हैं ।


अपमान खुद कर रहे हैं ।


अमानवीय प्रसंगों को उनके साथ जोड़कर नारियों और बुद्धिजीवियों को उनसे नफ़रत दिला रहे हैं और चार्जशीट मुझ पर लगा रहे हैं ।


बहुत खूब ।


क्या यही रीत होती है सच के क़द्रदानों की ?


कोई भी भाई मेरी कोई भीग़लती बताए , मैं उसे स्वीकारूंगा और सुधारूंगा । ग़लती आपकी हो तो आप सुधारिये ।


श्री मुरारी जी ने बताया कि आपका मुद्दा सही है लेकिन आपका लहजा उचित नहीं है । लोगों के भड़कने की वजह आपका लहजा है ।


निःसन्देह यह एक बिल्कुल सटीक आलोचना है । मैंने आत्मनिरीक्षण किया तो पाया कि वाक़ई यह कमी तो मुझमें मौजूद है और मैं इसे फ़ौरन ही छोड़ने का इरादा करता हूं ।


लेकिन मेरे लहजे की तल्ख़ी भी श्री रामचन्द्र जी और अपने पूर्वजों के प्रति अटूट प्रेम का प्रमाण है । अगर किसी के माता पिता के बारे में लोग बड़े बड़े मंच सजाकर उल्टी सीधी बातें कह रहे हों तो क्या वह मूल बन्ध लगाकर शून्य मुद्रा में बैठा रहेगा ?


मेरे जैसे आदमी का , जो सीता जी को अपनी मां कहता है , उसे मूढ़ वेब व्यसनी माँ की गालियों के साथ टिप्पणी दे रहे हैं , नहीं जानते कि वे किसे गाली दे रहे हैं ?


वैसे गाल बजाएंगे कि साहब हमारे यहां नारी की पूजा होती है ।


एक भाई अमित बनकर मुझसे पूछ रहे हैं कि मुसलमान जनसेवा के कौन कौन से काम अन्जाम दे रहे हैं ?


विचार शून्य भाई की नसीहत का लिहाज़ करके मैं टाल रहा हूं तो जनाब मुझे पूर्वाग्रही और पक्षपाती कह रहे हैं । इसे कहते हैं अपनी शामत खुद बुलाना ।


अब तो मैं किसी को कुछ नहीं कह रहा हूं । अगर मैं जवाब दे बैठा तो जनाब ऐसे भागते नज़र आएंगे जैसे वह आदमी भागा था जिसका कि मैं नाम नहीं लेता ।


उनमें भी अजीब कॉम्पलैक्स देखा गया ।


हम तो उनका नाम लेने से भी पहले आदरणीय शब्द लगा रहे हैं कि चलो आदरणीय न हो तब भी लगा दो बेचारा प्रसन्न हो जाएगा ।


पता नहीं कब से आदर का भूखा होगा ? हमारे पास तो सचमुच के आदरणीय आते हैं । इसके साथ आदरणीय न लगाया तो खुद को ज़लील महसूस करेगा लेकिन जनाब ऐंठ दिखाने लगे ।


बोले , आप मेरा नाम लेकर अपनी पोस्ट हिट कर रहे हो । पहले तो मैं मज़ाक़ समझा लेकिन जब दोबारा कहा तो तय कर लिया कि अब इस आदमी का नाम तब तक नहीं लंूगा जब तक कि यह खुद न कहेगा कि आप मेरा नाम लीजिये और आज तो मैंने उनको यह भी कन्सेशन दे दिया कि उनका ज़िक्र उनके लक्षणों से नहीं किया ।


आखि़र आदमी की ज़िन्दगी है कितने दिन की ?


आज मैं ब्लॉग लिख रहा हूं और कल मैं मरा पड़ा होऊँ , कौन जानता है ?


जीवन में तो एक बार सन्देह हो सकता है लेकिन मौत तो आनी ही है ।


तब मैं कहां होऊँगा ?


अगर आज हमने आज सत्य का आश्रय लिया होगा तो मरने के बाद भी सत्य के ही आश्रय में होंगे ।

पद्य

सुबह के वक्त ये साक़ी की सदा आती है

अपनी तक़दीर का ले जाएं सभी ख्वास ओ आम

अपना साग़र मै ए गुल रंग से भर ले ‘फ़ितरत‘

इससे पहले कि तेरी उम्रका लबरेज़ हो जाम

अर्थ


सदा - आवाज़ , ख्वास - ख़ास का बहुवचन लबरेज़ - पूरा भरा होना
आप सभी भाइयों और बहनों का आभारी हूं । आपकी नसीहतें मेरे लिए मार्गदीप हैं ।मैं आपकी क़द्र करता हूं ।



...और जल्द ही लिखूंगा क


लोगों के अपकारी विचार बुद्धिजीवियों को नास्तिक कैसे बनाते हैं ?


तब बने रहिये हमारे साथ ।


धन्यवाद