सनातन धर्म के अध्‍ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अ‍ाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to

जिस पुस्‍तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्‍दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्‍दी रूपान्‍तर है, महान सन्‍त एवं आचार्य मौलाना शम्‍स नवेद उस्‍मानी के ध‍ार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन पर आधारति पुस्‍तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्‍त के प्रिय शिष्‍य एस. अब्‍दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्‍य जावेद अन्‍जुम (प्रवक्‍ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्‍तक के असल भाव का प्रतिबिम्‍ब उतर आए इस्लाम की ज्‍योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्‍दी प्रेमियों के लिए प्रस्‍तुत है, More More More



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Monday, November 1, 2010

Truth lies in every soul जब कुरआन फैलना शुरू ही हुआ था तब उसके खि़लाफ़ कोई साज़िश कामयाब न हुई तो अब क्या होगी ? - Anwer Jamal

वक़ालल-लज़ीना कफ़रू ला तसमऊ़ लिहाज़ल क़ुरआनि वलग़ौ फ़ीहि लाअ़ल्लकुम तग़लिबून .

अर्थात और कुफ़्र करने वालों ने कहा कि इस क़ुरआन को न सुनो और इसमें ख़लल डालो ताकि तुम छा जाओ। (क़ुरआन, 41, 26)
तर्क का उद्देश्य सत्य का निर्णय होना चाहिए
‘वलग़ौ फ़ीहि‘ की व्याख्या हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास ने ‘अय्यबूहु‘ के लफ़्ज़ से की है। (तफ़्सीर इब्ने कसीर) यानि क़ुरआन और पैग़म्बरे कुरआन में ऐब लगाओ और इस तरह लोगों को इससे दूर कर दो।
किसी बात या किसी आदमी के बारे में राय ज़ाहिर करने के दो तरीक़े हैं। एक आलोचना , दूसरा ऐब लगाना। आलोचना का मतलब है तथ्यों की बुनियाद पर बहस के मुद्दे का विश्लेषण करना। इसके खि़लाफ़ ऐब लगाना यह है कि आदमी बहस के मुद्दे पर दलीलें पेश न करे। वह सिर्फ़ उसमें ऐब निकाले, वह उस पर इल्ज़ाम लगाकर उस पर व्यंग्य करे।
आलोचना का तरीक़ा पूरी तरह जायज़ तरीक़ा है मगर ऐब लगाने का तरीक़ा कुफ्ऱ करने वालों का तरीक़ा है। मज़ीद यह कि ऐब लगाने का तरीक़ा रब की निशानियों का इन्कार है क्योंकि हर सच्ची दलील रब की एक निशानी है। जो लोग दलील के आगे न झुकें और ऐबजोई और इल्ज़ामतराशी का तरीक़ा इख्तियार करके उसे दबाना चाहें वे गोया रब की निशानी का इन्कार कर रहे हैं। ऐसे लोग आखि़रत में निहायत सख्त सज़ा के मुस्तहिक़ क़रार दिए जाएंगे।
                                      (तज़्कीरूल क़ुरआन, पृष्ठ 1306-1307, उर्दू से हिन्दी)

सब इन्सान आपस में बराबर हैं, एक राष्ट्र हैं
परमेश्वर ने अपनी वाणी कुरआन मे सच को झुठलाने वाले नास्तिकों का एक लक्षण यह दिया है कि वे बेहूदा बातें करके बहस में ख़लल डालते हैं ताकि लोगों तवज्जो अस्ल मुद्दे से हट जाए और सच लोगों के सामने न आने पाए और उनकी झूठी परंपराओं के फन्दे से लोग आज़ाद न होने पाएं। उनकी सरदारी बदस्तूर बनी रहे, उनका सम्मान और उनकी बड़ाई बनी रहे। जाति, भाषा, रंग, देश और राष्ट्र, इनमें से हरेक बुनियाद खुद ही बेबुनियाद है, इनमें से कोई भी चीज़ इन्सान को बड़ा या छोटा बनाने के लिए काफ़ी नहीं है। सब इन्सान बराबर हैं। उनमें परमेश्वर की नज़र में वही सबसे ज़्यादा प्यारा है जिसके दिल में मालिक का प्यार है। किसी बन्दे के दिल में मालिक का प्यार सचमुच है या नहीं, इसका पता उसके अमल से ही चल सकता है कि वह उस मालिक के हुक्म को कितना मानता है और उन्हें कितना पूरा करता है ?
यह बात इस पूरी दुनिया में केवल इस्लाम कहता है, कुरआन कहता है।

विरोधियों की ऊर्जा से फ़ायदा ही पहुंचता है
जो लोग दुनिया को ग़ुलाम बनाए हुए हैं और बदस्तूर बनाए रखना चाहते हैं, वे कुरआन के इस आज़ादी के हुक्मानामे को आम नहीं होने देना चाहते। इसके लिए पहले तो वे कुछ सवाल क़ायम करते हैं जिससे लोगों के सामने कुरआन और कुरआन के बारे में भ्रम फैले और लोग इस्लाम और मुसलमानों से नफ़रत करने लगें लेकिन जब कोई आदमी सही बात सामने लाकर उस भ्रम को दूर करके समाज से नफ़रत मिटा देना चाहता है तो उन्हें अपनी सारी मेहनत पर पानी फिरता हुआ दिखाई देता है। तब वे दलील नहीं देते बल्कि गालियां देते हैं, मज़ाक़ उड़ाते हैं ताकि बात किसी निर्णय तक न पहुंचन पाए।
जब से मैंने अपने ब्लॉग ‘वेद कुरआन‘ पर लोगों के सामने सच रखने की कोशिश की है तब से इस तरह के लोग इस ब्लॉग पर भी प्रकट होते रहे। मैंने उनकी तरफ़ कभी तवज्जो नहीं दी बल्कि उनकी ऊर्जा को उनके ही खि़लाफ़ इस्तेमाल किया। उनके विरोध ने मेरे ब्लॉग को वहां पहुंचा दिया जहां मैं केवल प्रशंसकों के सहारे हरगिज़ नहीं पहुंच सकता था। मेरे विरोधियों ने परोक्ष रूप से मेरा सहयोग ही किया है। इसलिए भी मैं उन्हें दुआ ही देता हूं।

समझ बढ़ती है तो लोगों का फ़ैसला भी बदल जाता है
लोग मेरे आदी होते चले गए। कुछ लोग सच बात समझ गए और कुछ लोग थककर हट गए। मैं भी लोगों का आदी हो गया, उनकी आदतों का आदी हो गया। जो उन्हें करना है वे ज़रूर करें लेकिन मैं उनके लिए भलाई की दुआ करता रहूंगा और भली बात उन्हें समझाता रहूंगा।
एक दिन लोग ज़रूर समझेंगे कि मैंने हमेशा उन्हें सच्ची बात ही बताई है और बदले में उनसे कुछ भी नहीं चाहा। उनका प्यार ही मेरे लिए सबसे बड़ा तोहफ़ा है और जो मुझसे नफ़रत करता है दरअस्ल वह भी मुझे अपने दिलो-दिमाग़ में जगह देता है। यह भी प्यार का ही एक रूप है। नफ़रत कभी भी मुहब्बत में बदल सकती है। ऐसा बहुत बार हुआ है, इसीलिए मैं किसी के आज की गालियों को देखकर उससे मायूस नहीं होता।

इतिहास की गवाही
अरब के लोगों ने पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद साहब स. के साथ बदसुलूकी की इंतेहा की लेकिन आखि़रकार वे अपनी नफ़रतों के बोझ से खुद ही घबरा गए। समय लगा लेकिन वे बदले, उनके दिल बदले और ऐसे बदले कि जो कल तक पैग़म्बर साहब स. की जान लेने की ताक में रहते थे वे उनके लिए जान देने के मौक़े ढूंढने लगे और जब समय आया तो वे अपनी जान देने में आगे ही रहे। जो नहीं दे सके वे अफ़सोस करते रहे और रोते रहे कि उनके लिए जान देने का सौभाग्य हमें नहीं मिल पाया।

सत्य आदमी की आत्मा में रचा-बसा है
आदमी दुनिया से लड़ सकता है, सारी दुनिया को झुठला सकता है लेकिन कोई भी आदमी खुद को नहीं झुठला सकता। एक बार आदमी के सामने सच आ जाए तो उसकी आत्मा सत्य को तरंत पहचान लेती है। वह लोक दिखावे के लिए अपने इन्कार पर डटा रहता है लेकिन दरअस्ल नफ़रत की बुनियाद पर खड़ी हुई भ्रम की दीवार उसके मन में गिरना शुरू हो जाती है।
इस बात को एक प्रचारक जानता है और उसे रोकने वाला भी यह सच जानता है लेकिन आम पब्लिक इस प्रक्रिया का आदि, अंत और इसका प्रभाव नहीं जानती। मैंने आज यह लेख इसीलिए लिखा है ताकि हरेक जान ले और विचलित न हो।

सत्य की विजय है
जब कुरआन फैलना शुरू ही हुआ था तब उसके खि़लाफ़ कोई साज़िश कामयाब न हुई तो अब क्या होगी ?
अब तो वह सारी दुनिया में फैल चुका है और लोगों का ज़हन भी पहले से काफ़ी आज़ाद हो चुका है सोचने में और अपनी भलाई का रास्ता चुनने में। इन्सान की भलाई उसके मालिक के हाथ में है, उसके बताए रास्ते पर चलने में है। कुरआन यही बताता है। कुरआन से पहले जो भी ‘ज्ञान‘ मालिक की तरफ़ से आया उसने भी यही बताया है। यही सत्य सनातन है। यही सत्य सुंदर है। यही सत्य कल्याणकारी है। सत्य ही प्रभावी होता है। जीत हमेशा सत्य की ही होती है। यह नियम आदि से ही चला आ रहा है और आज भी क़ायम है।