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Tuesday, November 16, 2010

Sacrifice of animals in Vedic yag वैदिक यज्ञ में पशुबलि और ब्राह्मणों द्वारा गोमांसाहार - According to Sayan and Vivekanand

स्वामी विवेकानंद ने पुराणपंथी ब्राह्मणों को उत्साहपूर्वक बतलाया कि वैदिक युग में मांसाहार प्रचलित था . जब एक दिन उनसे पूछा गया कि भारतीय इतिहास का स्वर्णयुग कौन सा काल था तो उन्होंने कहा कि वैदिक काल स्वर्णयुग था जब "पाँच ब्राह्मण एक गाय चट कर जाते थे ." (देखें स्वामी निखिलानंद रचित 'विवेकानंद ए बायोग्राफ़ी' प॰ स॰ 96)
€ @ अमित जी, क्या अपने विवेकानंद जी की जानकारी भी ग़लत है ?
या वे भी सैकड़ों यज्ञ करने वाले आर्य राजा वसु की तरह असुरोँ के प्रभाव में आ गए थे ?
2- ब्राह्मणो वृषभं हत्वा तन्मासं भिन्न भिन्नदेवताभ्यो जुहोति .
ब्राह्मण वृषभ (बैल) को मारकर उसके मांस से भिन्न भिन्न देवताओं के लिए आहुति देता है .
-ऋग्वेद 9/4/1 पर सायणभाष्य
सायण से ज्यादा वेदों के यज्ञपरक अर्थ की समझ रखने वाला कोई भी नहीं है . आज भी सभी शंकराचार्य उनके भाष्य को मानते हैं । Banaras Hindu University में भी यही पढ़ाया जाता है ।
क्या सायण और विवेकानंद की गिनती कुक्कुरों , पशुओं और असुरों में करने की धृष्टता क्षम्य है ?
जो मुँह में आए कह देते हैं यह नहीं देखते कि अपना कहा हुआ दूसरों से पहले खुद पर ही पड़ रहा है और वैदिक सभ्यता के बारे मेँ खुद को नादान साबित कर रहे हैं बेतुकी और झूठी बात कहने वाले ।
सभी उद्धरण डा. सुरेन्द्र कुमार शर्मा अज्ञात की पुस्तक 'क्या बालू की भीत पर खड़ा है हिन्दू धर्म' से साभार

32 comments:

  1. चाहे विवेकानंदजी हो या फिर दयानन्दजी या फिर आप और हमारे जैसे संसारी जीव यदि विवेक को साथ रखते हुए वेदार्थ पर विचार किया जाएगा तो वेद भगवान् ही ऐसी सामग्री प्रस्तुत कर देतें है, जिससे सत्य अर्थ का भान हो जाता है. जहाँ द्वयर्थक शब्दों के कारण भ्रम होने की संभावना है, वहाँ बहुतेरे स्थलों पर स्वयं वेदभगवान ने ही अर्थ का स्पस्थिकरण कर दिया है----
    "धाना धेनुरभवद वत्सोsस्यास्तिल:" ( अथर्ववेद १८/४/३२ ) --- अर्थात धान ही धेनु है और तिल ही उसका बछडा हुआ है .

    "ऋषभ" एक प्रकार का कंद है; इसकी जद लहसुन से मिलती जुलती है. सुश्रतु और भावप्रकाश आदि में इसके नाम रूप गुण और पर्यायों का विशेष विवरण दिया गया है . ऋषभ के - वृषभ, वीर, विषाणी, वृष, श्रंगी, ककुध्यानआदि जितने भी नाम आये है, सब बैल का अर्थ रखते है. इसी भ्रम से "वृषभमांस" की वीभत्स कल्पना हुयी हुई है, जो "प्रस्थं कुमारिकामांसम" के अनुसार 'एक सेर कुमारी कन्या के मांस' की कल्पना से मेल खाती है. वैध्याक ग्रंथों में बहुत से पशु पक्षियों के नाम वाले औषध देखे जाते है. ------- वृषभ ( ऋषभकंद ), श्वान ( ग्रंथिपर्ण या कुत्ता घास) , मार्जार ( चित्ता), अश्व ( अश्वगंधा ), अज (आजमोदा), सर्प (सर्पगंधा), मयूरक (अपामार्ग), कुक्कुटी ( शाल्मली ), मेष (जिवाशाक), गौ (गौलोमी ), खर (खर्परनी) .
    यहाँ यह भी जान लेना चहिये की फलों के गुदे को "मांस", छाल को "चर्म", गुठली को "अस्थि" , मेदा को "मेद" और रेशा को "स्नायु" कहते है -------- सुश्रुत में आम के प्रसंग में आया है----
    "अपक्वे चूतफले स्न्नायवस्थिमज्जानः सूक्ष्मत्वान्नोपलभ्यन्ते पक्वे त्वाविभुर्ता उपलभ्यन्ते ।।"
    'आम के कच्चे फल में सूक्ष्म होने के कारण स्नायु, हड्डी और मज्जा नहीं दिखाई देती; परन्तु पकने पर ये सब प्रकट हो जाती है.'

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  2. जब असुरों ने वेदार्थ तक को अपनी मन मर्जी से लगाने की कोशिश कर डाली, तो यह तो और ज्यादा सरल था की अप्रकाशित भाष्यों के प्रकाशन का काम करते हुए महा असुर मैक्समूलर ने अपने मत का प्रतिष्ठापन्न किया .

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  3. अल्लाह ने कुर्बानी इब्रा‍हीम अलैय सलाम से उनके बेटे की मांगी थी जो की उनका इम्तिहान था, जिसे अल्लाह ने अपनी रीती से निभाया था. अब उसी लीकटी को पीटते हुए कुर्बानी की कुरीति चलाना कहाँ तक जायज है समझ में नहीं आता. अगर अल्लाह की राह में कुर्बानी ही करनी है तो पहले हजरत इब्राहीम की तरह अपनी संतान की बलि देने का उपक्रम करे फिर अल्लाह पर है की वह बन्दे की कुर्बानी कैसे क़ुबूल करता है.

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  4. @ अमित जी, कृप्या मूल प्रश्नों के जवाब स्पष्ट रूप से दें कि
    1- क्या अपने विवेकानंद जी की जानकारी भी ग़लत है ?
    या वे भी सैकड़ों यज्ञ करने वाले आर्य राजा वसु की तरह असुरोँ के प्रभाव में आ गए थे ?
    2- सायण से ज्यादा वेदों के यज्ञपरक अर्थ की समझ रखने वाला कोई भी नहीं है . आज भी सभी शंकराचार्य उनके भाष्य को मानते हैं ।
    क्या सायण और विवेकानंद की गिनती कुक्कुरों , पशुओं और असुरों में करने की धृष्टता क्षम्य है ?
    3- Banaras Hindu University में भी यही पढ़ाया जाता है ।
    क्या BHU में भी ग़लत पढ़ाया जा रहा है ?

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  5. सच है अनवर साहब की किसी भी विषय पे बोलने से पहले इंसान उस विषय का पूरा ज्ञान प्राप्त कर ले फिर बोले.

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  6. धर्म कर्मकाण्ड और अध्यात्म इन बातों को आलग अलग रख कर बात हो तो सबको सब समझ आवेगा.
    1. ब्लाग4वार्ता :83 लिंक्स
    2. मिसफ़िट पर बेडरूम
    लिंक न खुलें तो सूचना पर अंकित ब्लाग के नाम पर क्लिक कीजिये

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  7. @ गिरीश बिल्लोरे जी ! कर्मकांड और अध्यात्म दोनों धर्म के ही अंग हैं । अंग भंग करके कुछ भी समझ में न आएगा,
    हाँ धर्म का जनाज़ा ज़रूर निकल जाएगा ।
    जैसे कि कोई कहे कि आदमी का सिर और धड़ अलग करके देखो तब समझ आएगी आदमी की असलियत ।

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  8. अमित साहब आपकी अधिक जानकारी के लिए बताना चाहूँगा के नेपाल जो की हिन्दू रास्ट्र है वहां सदियों से यह प्रथा चली आ रही है के वहां के हिन्दू पशु बलि देते है मैं खुद गोरखपुर का रहनें वाला हूँ वहां से पचास किलोमीटर दूर क़स्बा बांस गाँव है वहां दुर्गा जी का काफी पुराना मंदिर है उस मंदिर में साड़ों से बलि दी जाती है पशु की ओर इन्सान की भी फर्क सिर्फ इतनां है के पशु की गर्दन पूरी अलग की जाती है ओर इन्सान में कुंवारे की सिर्फ एक अंग की ओर शादीशुदा की आठ अंगों की नांई उस्तरे से खून निकलनें क बाद पीपल के पत्ते से पोछ कर दुर्गा जी के चरणों में ड़ाल देते है

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  9. kam jankari adhik bolna buri baat hai amait ji

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  10. kam jankari adhik bolna buri baat hai amait ji

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  11. ठाकुर विनयजी मैंने कोई भी बात किसी एक उपासना पद्दत्ति के अनुगामियों के लिए नहीं कही है, जो कहीं भी मात्र अपने जीभ के स्वाद और उपासना के नाम पर हिंसा करता है उसके विरोध में है, फिर वोह चाहे अल्लाह की राह में कुर्बानी का ढोंग हो या देवी-देवताओं के निमित्त बलि का पाखण्ड.
    किसी भी बुराई का विरोध आप लोग अपने ऊपर ही क्यों लेते है ?????? क्या सभी बुराइयों का पैरोकार नहीं सिद्ध करते ऐसी उच्छल्कुद मचाकर :)

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  12. @ अमित जी, कृप्या मूल प्रश्नों के जवाब स्पष्ट रूप से दें

    # जमाल साहेभ क्या रट्टा लगाए हुए हैं आप किसी भी मनुष्य का ज्ञान हमेशा पूर्ण नहीं होता, और ना हिन्दू किसी एक का आँख मीच कर अनुगमन करने वाली भेड़ है. (आप जैसे मेरे कुटुम्बियों के समान)
    विवेकानंदजी क्या कहा, क्या पाया इसका उन्होंने दुराग्रह नहीं किया की मैंने जो जाना समझा है वही परीपूर्ण अंतिम सत्य है ..................और जो इसे नहीं मानेगा वह मार डाला जाएगा.
    तो जब उन्होंने इस बात का उद्घोष ही नहीं किया की मेरा ज्ञान ही परीपूर्ण,अंतिम और सत्य है ............मैं जो कह रहा हूँ उसके इनकारी के लिए सिर्फ और सिर्फ मौत है ...................जब उनका ऐसा आग्रह नहीं था तो आप क्यों विवेकानंदजी की अवमानना को लेकर दुःख दुबले हो रहे है.
    ऐसा ही सायण भाष्य और BHU के लिए समझे .
    बंधुजी मेरा घर मेरे पुरखों के प्रताप से सुरक्षित है....................आप अपने पाप के ताप से अपने घर को बचाने का उपाय सोचिये .

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  13. @ प्यारे भाई अमित जी आप आजाद हैं जिसकी जिस बात का विरोध करना चाहें करें लेकिन आप सायण जैसे भाष्यकार को अधोगामी असुर और कुत्ता कहें इसका अधिकार आपको हरगिज़ नहीं है ।
    कृप्या मेरी पीड़ा को समझें और मेरी आपत्ति दर्ज करें .
    यह दुखद है कि किसी हिंदू ने आपके कुकृत्य पर आपको अभी तक नहीं टोका ।
    2- आप ब्राह्मण हैं तो इसका अर्थ यह नहीं है कि आप अपने से ज्यादा बड़े ज्ञानियों को गालियां दें और कोई चूँ भी न करे ।
    3- सायण के भाष्य को तो आप और आपके साथी सगर्व अपने ब्लाग पर पेश करते भी आए हैं ऐसे में तो उन्हें गालियाँ देना और भी अनुचित है .
    4- क्या आप हठ और अहंकार छोड़ कर अपनी गालियाँ वापस ले रहे हैं या बनाऊं और नई पोस्ट ?

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  14. जब कोई फसने लगता है तो हर शब्द के भिन्न भिन्न अर्थ समझाने लगता है , और अपने ही पूर्वजों और धर्मगुरुओं को भी तुच्छ समझने लगता है ,
    ये केवल अज्ञानता की कमी के करणवश ही हो सकता है और या अपनी ही बात को सत्य सिद्ध करने के लिए , वरन उसके पास कोई साक्ष्य नहीं है .
    dabirnews.blogspot.com

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  15. अब आपको भाष्यकार सायण के लिए गालियाँ कहाँ दिखाई दे गयी महोदय !!!!!!!!!! जबकि मैंने स्पष्ट कहा है की ----जब असुरों ने वेदार्थ तक को अपनी मन मर्जी से लगाने की कोशिश कर डाली, तो यह तो और ज्यादा सरल था की अप्रकाशित भाष्यों के प्रकाशन का काम करते हुए महा असुर मैक्समूलर ने अपने मत का प्रतिष्ठापन्न किया .
    फिर आपको भाष्यकार सायण के लिए मेरे मत के बारे में भ्रमित नहीं होना चाहिये महोदय, बात को बात ही रहने दिया कीजिये बतंगड़ मत बनाया कीजिये...........इतनी हताशा ठीक नहीं बंधुजी

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  16. पशुओं के बलि के बारे में इनका चिल्लों पों करना बेमानी ही है , गाय को माता मानने वाले , अपनी ही गाय माता के चमड़े से बने चप्पल और जूते शान से पहनते हैं , और उसका व्यापार भी करते हैं , जब कोई इनकी गाय माता मर जाती है तो कसाई द्वारा चमड़े को उतार कर बेच दिया जाता है , और इनकी गाय माता को कुत्ते और और गिद्ध , चील अपनी खोराक बना लेते हैं , उसे ज़बह नहीं करते बल्कि बीमार हो कर मरने देते हैं तड़प तड़प कर , आज इतने लोगों के पास अपने इलाज के पैसे नहीं तो जानवरों के इलाज के पैसे ये कहाँ से खर्च करेगे ,

    ये सब गौर करने की बाते हैं पूर्वाग्रह छोड़ कर , सही मार्ग पर चलें

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  17. @ प्यारे भाई अमित ! आप मैक्समूलर को महा असुर कह रहे हैं । यह सरासर बदतमीज़ी की बात है आपकी । यह बात स्वयमेव सायण पर पड़ती है क्योँकि मैक्समूलर ने सायण को ही फ़ॉलो किया है ।
    2- कृपया बताएँ कि आपने अधोगामी और कुक्कुर किसे कहा है ?
    @ तौसीफ़ भाई ! कृपया आप बात कहें लेकिन फ़ीलिंग्स हर्ट न करें । बातचीत अच्छे माहौल में होनी चाहिए ।

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  18. http://jaishariram-man.blogspot.com/2010/11/blog-post_16.html

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  19. जमाल साहब गीताजी के "दैवासुरसंपत्तिविभागयोगः" नामक सोलवें अध्याय में वर्णित असुर प्रकृति के सारे मानव मेरी नजर में कुक्कुर है, चाहे फिर उस प्रकृति के लक्षण मेरे अन्दर ही क्यों ना विद्यमान हो.

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  20. जनाब अनवर ज़माल जी मैं आपका तहेदिल से शुक्रिया करना चाहूँगा कि आपने हिन्दू धर्म को नीचा दिखाने का अपना जो अभियान शुरू किया उससे ही हमें अमित जैसा बहुमूल्य हीरा मिला है जिसने मेरे खुद के धार्मिक ज्ञान को बहुत समृद्ध किया है.

    हिन्दू कभी भी आपने धर्म के प्रति कट्टर नहीं रहा क्योंकि जो श्रेष्ठ है उसे बेवजह कट्टरता अपनाने कि कोई जरुरत नहीं होती. पर हाँ अब आपके जैसे लोगों के अथक प्रयासों से आज का हिन्दू नवयुवक जो अपने श्रेष्ठ वैदिक धर्म को भुला बैठा था और उसकी श्रेष्ठता का पहचानता नहीं था अब पुनः अपनी जड़ों को ओर रुख कर रहा है.



    अमित बहुत बढ़िया और बहुत धन्यवाद .....

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  21. आऽख़...ख़ाऽ , विचार शून्य जी भी पधारे हैं आज तो हमारे ब्लाग पर ,
    @ विचार शून्य जी ! आप ने माना है कि मेरे अभियान से आपका वैदिक धर्म में विश्वास बढ़ा और आपको अमित जी जैसा हीरा भी मिला , यह मेरे अभियान की सफलता का प्रमाण है।
    2- आपको धर्मलाभ हुआ , यह जानकर अच्छा लगा । आप स्वाध्याय के साथ मेरे भ्राता पं. अमित शर्मा जी के साथ बने रहेँ , आगे आगे आपको और भी ज़्यादा लाभ होगा, बस अपनी जिज्ञासा और अपना विवेक जगाए रखें ।

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  22. प्यारे अनवर ये आऽख़...ख़ाऽ बीच में ही क्यों रुक गया पूरा क्यों नहीं हुआ..... मैंने तो ऐसा कोई काम नहीं किया कि आपके हलक में कुछ फंसे... हा हा हा ...

    जाओ प्यारे बकरी ईद मनाओ और इस्लाम के झंडे गाडो. मैं तो उस दिन इस्लाम को सच्चा धर्म मानूंगा जब इसके मानने वाले आपने भगवान का अनुसरण करते हुए वास्तव में अपने खुद के प्यारों को कुर्बान करेंगे ना कि निर्दोष जानवरों और लोगों को.

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  23. desh ki karoron bakriyaan kal aapse raham ki bheek mangengi.... ho sake to kal ek punya to kama hi lijiye....

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  24. @प्यारे भाई विचार शून्य जी ! आऽख़...ख़ाऽ की ध्वनि का अर्थ है आपका स्वागत है ।
    @ शेखर सुमन जी ! स्वामी करपात्री ने वेदार्थ पारिजात भाग 2 पृष्ठ 1977 पर लिखते हैं -
    यज्ञ में किया जाने वाला पशुवध भी पशुओं का स्वर्गप्रापक होने से तथा पशुयोनि निवारण पूर्वक दिव्यशरीर प्राप्ति कराने में कारण होने से पशु का उपकारक ही होता है । वह यज्ञीय पशु अपकृष्ट योनि से विमुक्त होकर देवयोनि में उत्पन्न होता है ।

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  25. हाँ बिलकुल आप एकदम सही कह रहे हैं...किसी की भी हत्या करने वाला कभी सुखी नहीं रह सकता ..चाहे वो हिन्दू हो या मुसलमान....मैं तो नास्तिक हूँ मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता आप हिन्दू धर्म को गाली दे दे कर मर जायें....क्यूंकि मुझे लगता है हम हिन्दू या मुसलमान होने से पहले इंसान हैं... लेकिन आपकी लगातार इंसान विरोधी पोस्ट को देख कर लगता है आप इंसान होना भी कबूल नहीं करते...वरना आप किसी सार्थक विषय पर इस देश की सेवा में दो शब्द जरूर कहते.. आपके लिए तो शायद धर्म ही सब कुछ है.... आपने काफी सारे ग्रन्थ पढ़े होंगे लेकिन नैतिक मूल्यों वाली कोई किताब नहीं पढ़ी लगता है....

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  26. @ शेखर सुमन जी ! अगर आप मुझे महज इल्ज़ाम देना चाहते हैँ तो मुझे कुछ नहीं कहना है लेकिन अगर आपने मेरी ताजा पोस्ट को ही पढ़ लिया होता ऐसी बेजा बात न कहते !
    मुझे नैतिकता की परवाह न होती तो मैं भाई अमित जी को गालियाँ देने से न रोकता जैसे कि आप नहीं रोक रहे हैं ।
    अपना बैड कैरेक्टर मुझमें क्यों इमेजिन कर रहे हैं नास्तिक जी ?
    2- अच्छा यह बताओ कि अंडा मछली खाते हो या नहीं ?
    3- I mean आपकी नास्तिकता का टाइप क्या है ?
    शाकाहारी या मांसाहारी ?
    जैसे कि अपने प्रिय प्रवीण जी 'मांसाहारी संशयवादी' हैं ।

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  27. यहाँ तो अजीब बात देखने को मिली . झंडा ऊंचा रहे हमारा के नारे के साथ तोड़ फोड़ चालू है. भाई धर्म के नाम पे अगर बहस करनी है तो, सवाल करो और जवाब लो. यह क्या की जो मैंने कह दिया वही सत्य. ईद मुबारक आप सब को.

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  28. @ मासूम साहब ! आदमी जब दलील के मुकाबले खुद को लाचार पाता है तब वह गालियां बकने लगता है या इल्ज़ाम देने लगता है । यह सब हताशा, निराशा और कुंठा के लक्षण हैं ।
    ख़ैर ,
    आप सभी भाइयों को ईद मुबारक ।

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  29. .

    Dr Anwar,

    ईद मुबारक हो।

    ये त्यौहार आपके एवं आपके परिवार के तथा मित्रों के जीवन में खुशहाली लाये ।

    .

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  30. .

    इतनी शक्ति हमें देना दाता , मन का विश्वास कमज़ोर हो न।

    .

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  31. @ दिव्य बहन दिव्या जी ! आपने मुझे ईद की मुबारकबाद दी , बेशक आपने केवल सुह्रदयता का ही नहीं बल्कि विशाल ह्रदयता का भी परिचय दिया है ।
    मालिक आपको दिव्य मार्ग पर चलाए और आपको रियल मंजिल तक पहुँचाए ।
    @ भाई तारकेश्वर जी ! आपकी शुभकामनाएं थ्रू SMS मौसूल हुई और वह भी बिल्कुल सुबह सुबह ।
    धन्यवाद !
    जिन्होंने मुझे शुभकामनाएं नहीं भेजीं , वे भी मेरा शुभ ही चाहते हैं ऐसा मेरा मानना है ।
    मालिक सबका शुभ करे ।

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  32. Nice post .
    'शाकाहार में मांसाहार'
    @ डाक्टर साहब, आपको और सभी भाइयों को ईद मुबारक !
    मेरे ब्लाग
    hiremoti.blogspot.com
    पर तशरीफ़ लाकर 'शाकाहार में मांसाहार' भी देख लीजिए ।

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