Pages

Thursday, November 18, 2010

Haj or Yaj विभिन्न धर्म-परंपराओं का संगम : हज By S. Abdullah Tariq

हज, अनेक महापुरूषों की परंपराओं का दर्शन
हज, एक ऐसी इबादत और ऐसा उत्सव है जिसे सारे विश्व के लोग, कुछ पसंदीदगी से और कुछ ईष्र्या से देखते हैं, परंतु एक ही समय में एक स्थान पर, एक वेशभूषा के 25 लाख श्रद्धालुओं के प्रतिवर्ष समूह को कोई नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता। हज संबंधी संस्कारों में कुछ अनिवार्य हैं जिनके बिना हज नहीं होता और कुछ क्रियाएं आवश्यक तो हैं किन्तु उनके छूट जाने पर हज हो जाता है बशर्ते कि उनके बदले कुछ निश्चित तावान अदा कर दिया जाए। प्रथम श्रेणी की पृष्ठभूमि में जो मुस्लिम परंपराएं हैं वह पृथ्वी के पहले मानव ह. आदम अ. तक पहुंचती हैं और उनकी झलक हम हिन्दू परंपराओं में भी पाते है और द्वितीय प्रकार की क्रियाओं के पीछे जो इतिहास है उसके अंश यहूदी तथा ईसाई धार्मिक इतिहास में देखने को मिल सकते हैं। इस प्रकार हज के दार्शनिक इतिहास के पीछे हैं हिन्दू, यहूदी तथा ईसाई परंपराएं और इन सभी के संगठन का नाम है ‘हज‘-मुस्लिम परंपरा।
मानवता का प्रारंभ भारत से
स्वर्गलोक से समस्त मानवजाति के पिता का आगमन धरती पर हुआ। उनका नाम आदम था और उनकी पत्नी का नाम हव्वा।
‘‘आदमो नाम पुरूषः पत्नी हव्यवती तथा‘‘
                 (भविष्य पुराण-प्रतिसर्ग पर्व 4, 18)
अनुवाद-आदम नाम का पुरूष तथा पत्नी का नाम हव्यवती था।
‘‘अतः प्रभु परमेश्वर ने मनुष्य को अदन के उद्यान में भेज दिया कि वह उस भूमि पर खेती करे जिससे उसे बनाया गया था।‘‘      (बाइबिल, उत्पत्ति, 3, 23)
‘‘मनुष्य ने अपनी पत्नी का नाम हव्वा रखा क्योंकि वह समस्त जीवनधारी प्राणियों की माता बनी।  (बाइबिल, उत्पत्ति, 3,20)
कुरआन के प्रसिद्ध भाष्यकार इब्ने कसीर ने मुस्नद ए अब्दुर्रज़्ज़ाक़ को उद्धृत करते हुए अपने भाष्य में लिखा है कि ‘‘ह. आदम अ. भारत की भूमि पर उतरे थे। उनका क़द बहुत लम्बा था।‘‘
    ईशदूत ह. मुहम्मद स. के सत्संगिंयों तथा अन्य मुस्लिम संतों और इतिहासकारों की एक बड़ी संख्या से यही उल्लिखित है कि पृथ्वी के पहले मानव ने, जो ईश्वर के पहले दूत भी थे, अपना पहला क़दम भारत में रखा। उन्होंने अपनी संतान में ईश-प्रदत्त सनातन धर्म (अरबी भाषा में दीन-ए-क़य्यिम) का प्रचार प्रसार किया और बाद में समय समय पर संसार के विभिन्न भागों में ईशदूतों ने उसी एक ईश्वरीय धर्म को पुनर्जीवित किया। आदम या आदिम शब्द, जिसका अर्थ है ‘‘सबसे पहला‘‘, भारतीय मूल का होना भी यही सिद्ध करता है कि आदि मानव भारत में उतरा। उसी को बाद में भारतीय साहित्य में आदि मनु या स्वयंभू मनु कहा गया।
स्वायंभू मनु अरू सतरूपा।
जिन्ह तें भै नरसृष्टि अनूपा।।
दंपत्ति धरम आचरण नीका।
अजहुँ गाव श्रुति जिन्ह कै लीका।।
(रामचरित मानस, दो. 141, चौ. 1)
अर्थात स्वायम्भूव मनु और उसकी पत्नी शत्रूपा जिन से मनुष्यों की यह अनुपम सृष्टि हुई, इन दोनों पति पत्नी के धर्म और आचरण बहुत अच्छे थे आज भी वेद जिनकी मर्यादा का गान करते हैं।
अरफ़ात, पति पत्नी के मिलने का स्थान
    इस्लामी परंपरा के अनुसार आदम की पत्नी हव्वा को स्वर्गलोक से जिद्दा (सऊदी अरब) में उतारा गया। दोनों एक दूसरे को तलाशते रहे, यहां तक कि दोनों की मुलाक़ात अरफ़ात में हुई जो मक्का से 12 किमी. दूर एक निर्जन खुले क्षेत्र का नाम है। हज के महीने की 9वीं तारीख़ को सुबह चलकर अरफ़ात पहुंचना और सूर्य अस्त से पहले तक समय वहां ईश्वर से प्रार्थना आदि में बिताना हज का सबसे प्रमुख अंग है।
काबे की प्ररिक्रमा
तत्पश्चात मानव जाति के पूर्वज दोनों पति पत्नी ने पृथ्वी की नाभि, काबा की ओर प्रस्थान किया। उस समय न मक्का नगर था और न ‘काबा‘ का वर्तमान निर्मित अस्तित्व। काबा पृथ्वी की उस जड़ का नाम था जिसे देवताओं (फ़रिश्तों) ने परमेश्वर के आदेश से स्थित किया था और जिस के नीचे से इस्लामी परंपरा के अनुसार पृथ्वी का विस्तार हुआ था।
काबे की परिक्रमा करते हाजी
    भूमि के अस्तित्व से पहले पृथ्वी पर जल था और उस स्थान पर जहां आज बैतुल्लाह (काबा) है, पानी पर झाग और बुलबुले थे। यहीं से भूमि फैलाई गई (इब्ने कसीर)
    ह. आदम अ. और हव्वा अ. ने वहां काबे का निर्माण किया और उसकी परिक्रमा की। कुरआन और हदीस में इस हदीस में इस घटना के कुछ विवरण इस प्रकार हैं-
    ‘‘निस्संदेह मानव जाति के लिए जो पहला (उपासना कां) स्थल निर्मित किया गया वह यही है जो मुबारक है और सब संसारों के लिए मार्गदर्शन (केन्द्र) है।‘‘ (कुरआन, 3, 96)
    ‘‘आदम और हव्वा ने बैतुल्लाह (काबे) का निर्माण किया और परिक्रमा की और परमेश्वर ने कहा -तुम पहले मानव हो और यह पहला उपासना स्थल है।‘‘ (बैहिक़ी)
    हज के अन्तिम चरणों में काबे की सात परिक्रमाएं, हज का दूसरा अनिवार्य अंग है जिसके बिना हज नहीं हो सकता।
    वेदों में अनेकों स्थानों पर काबे के उल्लेख में से एक निम्न है-
    इलायास्त्वा पदे क्यं नाभा पृथिव्या अधि।

                       (ऋग्वेद 3, 29, 4)
    सर मौनियर विलियम्स ने अपने संस्कृत-अंग्रेज़ीशब्दकोष में ‘इलायास्पद‘ का अर्थ (इला अर्थात पूजा का स्थल) लिखा है और पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य ने ऋग्वेद 3, 23, 4 में इस शब्द का अनुवाद ‘पवित्र स्थान‘ किया है।
    अन्य भारतीय धर्म साहित्य में काबे को ‘आदि पुष्कर तीर्थ‘ भी कहा गया है जो अन्य देश में है और जिसके स्थित होने का स्थान आज तक अज्ञात है। (स्पष्ट रहे कि पुष्कर के नाम से एक तीर्थ अजमेर में है परन्तु आदि पुष्कर तीर्थ कहां है ?, जहां स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति पद्म पुराण में बताई गई है, यह सर्वथा अज्ञात है)
काबे से संबंध की झलक भारत में
    आदि मनु या आदम जिनकी हम सब संतान होने के नाते एक वर्ण और परस्पर भाई-भाई हैं, उनकी इस याद को सबसे प्राचीन धार्मिक जातियों के समूह हिन्दुओं ने अपने विभिन्न धार्मिक रीतियों में सात परिक्रमाओं के रूप में शेष रखा हुआ है और अन्य यादें उस घटना की सांकेतिक रूप से हिन्दुओं में आज तक प्रचलित हैं। उदाहरणतः अन्तिम ईशदूत ह. मुहम्मद स. ने निर्देश दिया कि हज के समय यात्री या तो नंगे पैर रहें या फिर केवल ऐसे चप्पल या खड़ांव पहन लें जिनका केवल तला हो पर ऊपरी भाग न हो। इन चप्पलों का आदर्श रूप वे खूंटे वाली खड़ांव हैं जो भारतीय ऋषियों मुनियों को चित्रों में पहने दिखाया जाता है और जिनका तीर्थ यात्राओं पर पहनना आज भी उत्तम समझा जाता है। अंतिम ईशदूत स. ने यह भी निर्देश दिया कि यात्री (हज की एक शास्त्र विधि) अपने सिर के बालों का मुंडन कराएं कराएं या कम से कम कुछ कटवाएं। यह प्रथा भी आज तक हिन्दू यात्रियों में प्राचीन काल से चली आ रही है।
शिला का चुम्बन
‘हजरे अस्वद‘, स्वर्ग से आई शिला
 जो काबे की दीवार में स्थित है
आदम स्वर्ग से अपने साथ एक शिला लाए थे जिसे हिन्दू परंपरा में कहीं मत शिला और कहीं मत्स्य शिला भी कहा गया है। मुस्लिम परंपरा के अनुसार यह मतदान की शिला थी। स्वर्गलोक में हम सभी की आत्माओं ने परमेश्वर को अपना प्रभु मानने का वचन देकर अपने अहं का जो दान किया था, वह वचन इस शिला में रिकॉर्ड है। यह पत्थर जिसे मुसलमान हज्र-ए-अस्वद (काला पत्थर) कहते हैं, काबे की दीवार के एक कोने में आदम द्वारा स्थित किया गया था। काबे की प्रत्येक परिक्रमा के बाद हाजी इस पत्थर को चूमते हैं ताकि वह वचन ताज़ा हो सके जो आत्मालोक में उन्होंने परमेश्वर को दिया। पत्थर को चूमने से उसकी पूजा या उपासना या ईश्वर का प्रतीक मानना या उस तक पहुंचने का साधन समझने का अर्थ लिया जाना एक भ्रम है। यह पत्थर न कुछ देने की शक्ति रखता है और न ईश्वर तक पहुंचने का साधन है, हां स्वर्ग-लोक का होने के कारण पवित्र अवश्य है।
    यह पत्थर जो आदम के साथ स्वर्ग से उतरा, आरंभ में चमकते हुए हीरे के समान था। बाद में आदम की संतान (मानव जाति)के पापों के कारण यह काला हो गया।  (इब्ने कसीर)
बिना सिले वस्त्र
    हज का तीसरा अनिवार्य अंग ‘अहराम‘ है। अहराम वे बिना सिले वस्त्र हैं जो हाजी पहनते हैं। दो बिना सिले कपड़े जिनमें से एक को धोती या तहबंद के स्थान पर और दूसरे को चादर की तरह लपेट लिया जाता है। लाखों हाजियों को यही वेशभूषा अपनानी होती है ताकि
‘अहराम‘ बिना सिले वस्त्र
1.    छोटे-बड़े, अमीर-ग़रीब और हर प्रकार का अन्तर मिटने की भावना उत्पन्न हो।
2.    मानव जाति मौत को याद कर सके कि ऐसा ही बिना सिला कफ़न पहनकर उसे एक दिन संसार से विदा होना है और यह जीवन कुछ समय का अवकाश है।
3.    अहराम पहनने के बाद पुनः गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करने तक बहुत सी वे चीज़ें जो पहले वैध थीं अब उन पर अंकुश लगा दिया जाता है, जैसे पति-पत्नी का शारीरिक संबंध अहराम त्यागने तक मना है ताकि सब नर-नारी अपने को एक समान समझ कर सांसारिक ऐश्वर्य को त्याग कर पूर्णतः ईश्वर की ओर ध्यानमग्न हो सकें।
स्वाभाविक संयोग
अहराम की यह प्रथा भी हिन्दू धार्मिक जातियों ने ऐसी अपनाई कि साधारण जीवन में भी धोती और साड़ी के रूप में बिना सिले वस्त्र धारण कर लिए।
    ह. आदम और हव्वा काबे की परिक्रमा करने के पश्चात भारत लौट आए जो उनका मुख्य प्रचार क्षेत्र और वतन है।
    ‘‘एक परंपरा के अनुसार आदम और हव्वा ने भारत से पैदल चलकर चालीस बार हज किया। (तारीख़-ए-तबरी)
    कोई आश्चर्य नहीं है कि विश्व में केवल भारतीय मूल की जातियों ने ही काबा संबंधी प्रथाओं को सांकेतिक रूप में अपने सामान्य जीवन में शेष रखा हुआ है।
‘सई‘ , व्याकुल हाजिरा की याद
    हज की अन्य अधिकतर क्रियाओं का संबंध ईशदूत हज़रत इबराहीम अ., उनकी पत्नी हाजिरा और उनके पुत्र इस्माईल अ. से है जो बाद में स्वयं ईश्वर के दूत हुए। ये सभी क्रियाएं हज के अनिवार्य (फ़र्ज़) अंग नहीं हैं बल्कि आवश्यक (वाजिब) अंग हैं। इबराहीम और उनके परिवार की प्रासंगिक घटनाओं के कुछ अंश बाइबिल में भी हैं।
अरफ़ात में हाजियों के लाखों तम्बू
    परमेश्वर के आदेशानुसार हज़रत इबराहीम अ. अपनी दूसरी पत्नी ह. हाजिरा और उनसे उत्पन्न अपने पुत्र इस्माईल को जो उस समय गोद में थे, लेकर देवताओं (फ़रिश्तों) के मार्गदर्शन में काबे की ओर चले। ईशदूत हज़रत नूह अ. (महाजलप्लावन वाले मनु) के समय में जो जल प्रलय आई थी, उस कारण वह निर्माण नष्ट हो चुका था जिसे हज़रत आदम अ. ने बनाया था। जल प्रलय के बाद बहुत समय बीत जाने से वह स्थान एक मरूस्थल बन चुका था जिसके मध्य में काबे के स्थान पर एक टीला था। इबराहीम ने वहां पहुंचकर अपनी पत्नी और नन्हें बच्चे को छोड़ दिया।
    हदीस के प्रामाणिक ग्रंथ बुख़ारी के मुताबिक़ आगे का बयान इस प्रकार है-
    ‘‘उस समय मक्का में कोई न रहता था और आस-पास कहीं पानी न था। उनके पास एक थैले में खजूरें और एक चमड़े के थैले में पानी था। फिर ह. इबराहीम लौटने लगे तो इस्माईल की माता ने उनका पीछा किया और कहने लगीं, हे इबराहीम ! आप ऐसी घाटी में हमें छोड़कर कहां जा रहे हैं ?
उन्होंने कई बार ये शब्द दोहराये परन्तु इबराहीम ने उनकी ओर मुड़कर नहीं देखा बल्कि केवल इतना कहा -‘मुझे ईश्वर ने यही करने का आदेश दिया है।‘
वह बोलीं-‘यदि ऐसा है तो वह हमें नष्ट नहीं होने देगा।‘
    इबराहीम अ. मुड़े और चलते रहे...इस्माईल की माता उन्हें दूध पिलाती रहीं यहां तक कि पानी समाप्त हो गया...उन्होंने देखा कि बच्चा एड़ियां रगड़ रहा है। वह इस दृश्य को सहन न करके पानी की तलाश में निकलीं। निकट ही सफ़ा पहाड़ी थी। उस पर चढ़कर घाटी की ओर देखा परन्तु कोई दिखाई न दिया। यह उतर आईं और घाटी में दामन समेटकर ऐसे दौड़ीं जैसे कोई मुसीबत का मारा दौड़ता है।...मरवा पहाड़ी (मेरू पर्वत) पर पहुंची...यही भागदौड़ (एक पहाड़ी से दूसरी पहाड़ी पर भागना) उन्होंने सात बार की...जब अन्तिम बार वह मरवा पहाड़ी पर चढ़ीं तो उन्होंने एक आवाज़ सुनी...उन्होंने एक फ़रिश्ते को देखा तो उसने अपनी ऐड़ी मारी यहां तक कि पानी निकलने लगा...उसके बाद पानी धरती से उबलने लगा।...फ़रिश्ते ने कहा अपने नष्ट होने का विचार भी मन में न आने देना क्योंकि यहां बैतुल्लाह (काबा) है जिसे यह बालक और इसके पिता (इबराहीम) निर्मित करेंगे।...बैतुल्लाह पृथ्वी से कुछ ऊँचा था जैसे टीला। बाढ़ आती तो पानी कटकर उसके इधर उधर से निकल जाता।‘‘ (बुख़ारी-किताबुलअम्बिया)
    इस उल्लेख से मालूम हुआ कि काबा जिसका पुनर्निर्माण ह. इबराहीम अ. को करना था यहां टीले रूप में पहले से मौजूद था।
    हज़रत हाजिरा जिन पहाड़ियों के बीच भागी थीं, उनके बीच उसी प्रकार सात चक्कर लगाकर हाजी उनके बलिदान की याद ताज़ा करते हैं। इसे ‘‘सई‘‘ (प्रयत्न) कहते हैं।
बाइबिल की पुष्टि
बाइबिल में इस घटना का उल्लेख इस प्रकार है-
    ‘‘अब्राहम सबेरे उठे उन्होंने रोटी और पानी से भरी चमड़े की थैली हाजिरा को दी। उसे हाजिरा के कंधे पर रख दिया और बालक सहित उसको विदा कर दिया। हाजिरा चली गई और बएर-शबा के निर्जन प्रदेश में भटकने लगी। जब थैली का पानी समाप्त हो गया तब उसने बालक को एक झाड़ी के नीचे छोड़ दिया। वह बालक के सामने पर्याप्त दूर-तीर के निशाने पर बैठ गई, क्योंकि वह सोचती थी, मैं अपने बच्चे की मृत्यु अपनी आंखों से नहीं देख सकती। जब वह उसके सामने दूर बैठी तब बालक चीख़ मार कर रोने लगा। परमेश्वर ने बालक के रोने की आवाज़ सुनी, परमेश्वर के दूत ने स्वर्ग से हाजिरा को पुकारा और कहा, हाजिरा तुझे क्या हुआ है ? मत डर, जहां तेरा बालक पड़ा है वहां से परमेश्वर ने उसकी आवाज़ सुनी है। उठ और बालक को उठा। उसे अपने हाथों से सावधानी से संभाल, क्योंकि मैं उससे एक महान राष्ट्र का उद्भव अवश्य करूंगा। तब परमेश्वर ने उसकी आंखें खोल दीं। उसे एक कुआं दिखाई दिया, वह उसके निकट गई और चमड़े की थैली को पानी से भर लिया। तत्पश्चात उसने बालक को पानी पिलाया। परमेश्वर बालक के साथ था। वह बड़ा होता गया। वह निर्जन प्रदेश में रहता था। वह विख्यात धनुर्धारी बना। वह पारन (वर्तमान मक्का नगर) के निर्जन प्रदेश में रहता था।
शैतान का बहकाना और ‘रमी‘
    मरूस्थल में पानी का सोता फूटने से वहां क़ाफ़िले रूकने लगे और आबादी हो गई। जब परमेश्वर 13 वर्ष के हुए तो परमेश्वर ने अपने दूत ह. इबराहीम अ. की एक और कड़ी परीक्षा ली। उन्होंने स्वप्न में देखा कि वे अपने पुत्र की बलि दे रहे हैं। तीन दिन तक निरन्तर एक ही स्वप्न देखते रहे। ह. इस्माईल उनके बुढ़ापे की सन्तान की संतान थे और उस समय तक इकलौते ही थे। अभी इस्हाक़ का जन्म नहीं हुआ था जो उनकी पहली पत्नी सायरा से थे और इस्माईल से 14 वर्ष छोटे थे। पुत्र को एक बार तो वह मौत की गोद में फेंक ही चुके थे। ईश्वर के आदेश को समझकर वह मक्का पहुंचे, इस्माईल को साथ लिया और आबादी से बाहर चल पड़े। जहां आजकल मिना है (मक्का से 4 किमी. दूर) शैतान ने वहां तीन बार इस्माईल को पिता के इरादों की सूचना देकर बहकाने की कोशिश की परन्तु उन्होंने उसे हर बार धुतकार दिया। इन तीनों स्थानों पर इस्माईल अ. की दृढ़ता की याद में हाजी लोग कंकरियां फेंक कर सांकेतिक रूप में शैतानको मारते हैं। इसे ‘रमी‘ कहते हैं।
कुरबानी, अभूतपूर्व बलिदान की निशानी
थोड़ी दूर पहुंचकर इबराहीम रूक गए और पुत्र को अपना इरादा और ईश्वर का आदेश बताया। इस्माईल सहर्ष राज़ी हो गए और पिता को सुझाव दिया कि अपनी आंखों पर पट्टी बांध लें ताकि छुरी चलाते समय नीयत न डगमगाए। पुत्र को लिटा कर इबराहीम छुरी चलाने ही वाले थे कि फ़रिश्ते की आवाज़ आई कि यह तो केवल एक परीक्षा थी जिस में आप पूरे उतरे फिर उसने एक मेंढा प्रस्तुत किया कि उसे ज़िबह कर लें।
आत्म बलिदान की इस महान घटना की याद में हाजी लोग मिना में उस स्थान पर पशुओं की कुरबानी करते हैं और उसी दिन अर्थात हज के महीने की 10 तारीख़ को पूरे विश्व के मुस्लिम प्रातः ईश्वर को धन्यवाद अर्पित करने के लिए ईदुल अज़्हा की नमाज़ पढ़ते हैं और फिर कुरबानी करते हैं।
कुरआन में बलिदान का विवरण
कुरआन में इस घटना का वृतान्त निम्न है-
इबराहीम ने कहा ‘मैं अपने प्रभु के (मार्ग) की ओर जाता हूं वही मेरा पथ प्रदर्शन करेगा। हे प्रभु, मुझे एक पुत्र प्रदान कर जो नेक हो।‘ हमने उसे एक संयमशील पुत्र कीश  शुभ सूचना दी। यह बालक जब उसके साथ परिश्रम करने की आयु को पहुंचा तो इबराहीम ने (एक दिन) कहा ‘हे पुत्र, मैं स्वप्न में स्वयं को तुझे ज़िबह करते हुए देख रहा हूं, तू बता तेरा क्या विचार है ? बालक ने कहा, पिताजी आपको जो आदेश मिला है कर डालिए, ईश्वर ने चाहा तो आप मुझे धैर्यवान ही पाएंगे। फिर जब दोनों ने (प्रभु की इच्छा के प्रति) समर्पण कर दिया और इबराहीम ने पुत्र को माथे के बल लिटा दिया और हमने पुत्र को आवाज़ दी कि ‘हे इबराहीम तूने सपना साकार कर दिखाया। हम नेकी करने वालों को ऐसा ही बदला देते हैं।‘ निश्चय ही यह एक खुली परीक्षा थी और हमने एक बड़ी कुरबानी बदले में देकर उस बालक को छुड़ा लिया और उसकी प्रशंसा सदा के लिए आने वाली नस्लों में निश्चित कर दी। सलाम (शांति) है इबराहीम पर।
हम परोपकारी को ऐसा ही बदला देते हैं। निश्चय ही वह आस्तिक बन्दों में से था और फिर हमने उसे इस्हाक़ (दूसरे पु़त्र) के जन्म की शुभ सूचना दी। जिसे एक परोपकारी ईशदूत बनाना था। (कुरआन, 37,101 से 112 तक)
बाइबिल का बयान
बाइबिल में उपरोक्त कुरबानी की घटना में यह मुख्य अंतर है कि उसमें इबराहीम अ. अपने छोटे पुत्र इसहाक़ अ. को कुरबानी के लिए लेकर निकलते बताए गए हैं। बाइबिल में नक़ल करने वालों के हाथों अनेकों ग़लतियां होना ईसाई शोधकर्ताओं को मान्य है। इसके अतिरिक्त स्वयं बाइबिल में एकलौते पुत्र की कुरबानी का उल्लेख है। एकलौते पुत्र तो 14 वर्ष की आयु को पहुंचने तक इस्माईल ही थे जैसा कि स्वयं बाइबिल भी बताती है।
‘‘जब हाजिरा ने अब्राम (अब्राहम) से यिश्माएल (इस्माईल) को जन्म दिया तब अब्राम छियासी वर्ष के थे (उत्पत्ति, 16,16)
‘‘अपने पुत्र इसहाक़ के जन्म के समय अब्राहम सौ वर्ष के थे।‘‘  (उत्पत्ति, 21,5)
आगे घटनाक्रम का जो उल्लेख उद्धृत किया जा रहा है, उसमें इकलौते पुत्र इसहाक़ का नाम है जबकि इकलौत इस्माईल थे (14 वर्ष तक)
इन घटनाओं के पश्चात परमेश्वर ने अब्राहम को कसौटी पर कसा। उसने उन्हें पुकारा ‘अब्राहम‘। उन्होंने उत्तर दिया ‘प्रभु, क्या आज्ञा है ?‘ परमेश्वर ने कहा, ‘तू अपने पुत्र, अपने एकलौते पुत्र इसहाक़ को प्यार करता है। तू उसको लेकर मोरियाह देश जा। वहां मैं तुझे एक पहाड़ बताऊंगा, तू उस पहाड़ पर अपने पुत्र को अग्नि-बलि में चढ़ाना। अब्राहम सवेरे उठे। उन्होंने अपने गधे पर ज़ीन कसी, अपने साथ दो सेवकों एवं अपने पुत्र इसहाक़ को लिया, अग्नि बलि के लिए लकड़ी काटी और स्थान की ओर चले... उन्होंने अपने सेवकों से कहा तुम यहीं गधे के पास ठहरो... वे उस स्थान पर पहुंचे जिसके विषय में परमेश्वर ने अब्राहम से कहा था। वहां अब्राहम ने एक वेदी बनाकर उस पर लकड़ियां रख दीं। तब उन्होंने अपने पुत्र इसहाक़ को बांधा और उसे लकड़ियों के ऊपर वेदी पर लिटा दिया। फिर अब्राहम ने अपने पुत्र को बलि करने के लिए हाथ बढ़ाकर छुरा उठाया। किन्तु प्रभु के दूत ने स्वर्ग से उन्हें पुकार कर कहा, ‘‘अब्राहम, अब्राहम। वह बोले, ‘प्रभु क्या आज्ञा है ?‘ दूत ने कहा, ‘बालक की ओर अपना हाथ मत बढ़ा और न उसे कुछ कर। अब मैं जान गया हूं कि तू परमेवर का सच्चा भक्त है... अब्राहम ने अपनी आंखें ऊपर उठाईं तो देखा कि उनके पीछे एक मेंढा खड़ा है। वह अपने सींगों से एक झाड़ी में फंसा हुआ है। अब्राहम गए। उन्होंने उस मेंढे को पकड़ा और अपने पुत्र के स्थान पर उसकी अग्नि-बलि चढ़ाई। (उत्पत्ति, 22,1 से 13)
अंतर का महत्व नहीं
सत्य की खोज के लिए शोध कार्य का अपना महत्व है परन्तु इब्राहीम के वह पुत्र इस्माईल थे या इसहाक़ इससे कोई अंतर नहीं पड़ता। सांप्रदायिक जातिवाद से ऊपर न उठ सकने वाले यहूदियों, ईसाईयों या मुसलमानों की दृष्टि में हो सकता है, इनमें से किसी एक का महत्व अधिक हो (क्योंकि ह. इसहाक़ की सन्तान में उन ईशदूतों ने जन्म लिया जिनमें यहूदी तथा ईसाई आस्था रखते हैं और ह. इस्माईल अ. के वंश में अंतिम देवदूत ह. मुहम्मद स. उत्पन्न हुए) किन्तु सच्चे मुसलमानों के लिए महत्व केवल इस बात का है कि ह. इब्राहीम अ. ईश्वर के आदेश पर अपने एकलौते पुत्र की कुरबानी देने के लिए तैयार हो गए थे। मुसलमान ह. इस्माईल और ह. इसहाक़ में एक समान आस्था रखते हैं क्योंकि कुरआन ने उन्हें पृथ्वी के हर भाग और हर जाति में आए सभी ईशदूतों में आस्था रखने और उनमें भेद न करने का आदेश दिया है।
अंतिम ईशदूत स. द्वारा परमेश्वर के आदेशानुसार मुसलमान इस बलिदान की घटना की याद में प्रत्येक वर्ष कुरबानी (यज्ञ) करते हैं और कुरबानी (यज्ञ) के मांस का एक तिहाई भाग ग़रीबों में बांटते हैं।
हिन्दू परंपरा में मांसाहार
वर्तमान में हिन्दू भाइयों की दृष्टि में कुरबानी करना धार्मिक रीति तो क्या, घोर पाप है, परंतु अतीत में बौद्धों और जैनियों के प्रभाव से पूर्व ऐसी किसी धारणा का अस्तित्व न केवल नहीं था बल्कि हिन्दू ग्रंथों में आज भी कुरबानी और मांस भक्षण का उल्लेख मौजूद है। मनु स्मृति जिसे समाज का एक वर्ग ब्राह्मणों द्वारा रचित विधान और व्यवस्था का नाम देता है, के पंचम अध्याय का अधिकतर भाग कुरबानी तथा मांस भक्षण पर ही आधारित है। उदाहरण के लिए -
यज्ञार्थं ब्राह्मणैर्वध्याः प्रशस्ता मृगपक्षिणः ।
भृत्यानां चैव वृत्यर्थमगस्त्यो ह्याचरत्पुरा ।।  (मनु. 5,22)
अर्थात यज्ञ के लिए तो अवश्य तथा रक्षणीय की रक्षा के लिए शास्त्र-विहित मृग और पक्षियों का वध करे। ऐसा अगस्त्य ऋषि ने पहले किया था।
प्राणास्यान्नमिदं सर्वं प्रजापतिरकल्पयत् ।
स्थावर। जंगमं चैव सर्व प्राणस्य भोजनम् ।। (मनु. 5, 28)
अर्थात प्रजापति ने जीव का सब कुछ खाने योग्य कहा है। सब स्थावर (फल, सब्ज़ी आदि) तथा जंगम (पशु-पक्षी, जलचर आदि) जीव जीवों के खाद्य भक्ष्य हैं।
नात्ता दुष्यत्यदन्नाद्यान्प्राणिनोऽहन्यहन्यपि ।
धात्रैव सृष्टा ह्याद्याश्च प्राणिनात्तार एव च ।। (मनु. 5, 30)
अर्थात प्रतिदिन भक्ष्य जीवों को खाने वाला भी भक्षक दोषी नहीं होता है, क्योंकि सृष्टा ने ही भक्ष्य तथा भक्षक, दोनों को बनाया है।
नाद्यादविधिना मांस विधिज्ञोपनदि द्विजः । (मनु. 5, 33)
अर्थात विधान को जानने वाला द्विज बिना आपत्तिकाल में पड़े विधिरहित मांस को न खाए।

नियुक्तस्युक्त यथान्यायं यो मांसं नात्ति मानवः ।
स प्रेत्य पशुतां याति संभवानेकविंशतिम् ।। (मनु. 5, 35)
अर्थात शास्त्रानुसार नियुक्त जो मनुष्य मांस को नहीं खाता है, वह मर कर इक्कीस जन्म तक पशु होता है।
यज्ञार्थं पशवः सृष्टा स्वयमेव स्वयंभुवा ।
यज्ञस्य भूत्यै सर्वस्य यस्याद्यज्ञे वधोर्वधः ।। (मनु. 5, 39)
अर्थात सृष्टा ने यज्ञ के लिए पशुओं को स्वयं बनाया है और यज्ञ संपूर्ण संसार की उन्नति के लिए है, इस कारण यज्ञ में पशु का वध वध नहीं है।
उपरोक्त ‘लोकों से स्पष्ट है कि स्मृतिकार की दृष्टि में केवल विधिरहित वध का निषेध है। ईशदूतों की सिखलाई विधि के अनुसार ईश्वर का नाम लेकर कुरबानी करना उत्तम है और कुरबानी या यज्ञ का मांस न खाना पाप है।
आजकल मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामचन्द्र जी की गाथाएं बड़ी लोकप्रिय हैं, परन्तु उनकी गाथाओं के मूल आधार वाल्मीकि रामायण का साधारण जनता को कम ही ज्ञान है। वाल्मीकि रामायण में अनेकों स्थानों पर श्री रामचन्द्र जी के शिकार करने और मांस खाने का उल्लेख है। केवल एक उदाहरण यहां उद्धृत किया जा रहा है -
तां तदा दर्शयित्वा तु मैथिली गिरिनिम्नगाम् ।
निषसाद गिरिप्रस्थे सीतां मांसेन छन्दयन् ।।
इदं मध्यमिदं स्वादु निष्टप्तमिद मग्निना ।
एवमास्ते स धर्मात्मा सीतया सह राघवः ।।
(वाल्मीकि रामायण, अयोध्या काण्ड, 96, 1 व 2)
अर्थात इस प्रकार सीता जी को (नदी के) दर्शन कराकर उस समय श्री रामचन्द्र जी उनके पास बैठ गए और तपस्वी जनों के उपभोग में आने योग्य मांस से उनका इस प्रकार लालन करने लगे, ‘‘इधर देखो प्रिये, यह कितना मुलायम है, स्वादिष्ट है और इसको आग पर अच्छी तरह सेका गया है।‘‘
इसके अतिरिक्त श्री रामचन्द्र जी के मृगादि के शिकार तथा मांस खाने के वृतान्त के लिए वाल्मीकि रामायण में देखें - अयोध्या काण्ड, 52-102; 56-22 से 28; और अरण्य काण्ड 47-23 व 24 आदि।
पाराशर, पतंजलि और याजनवल्क्य के मांस भक्षण संबंधी उद्धरण तो वर्तमान अज्ञान की स्थिति में प्रस्तुत करना उचित ही नहीं है क्योंकि उससे शाकाहारियों और गौ-प्रेमियों की भावनाएं उत्तेजित होंगी। यद्यपि उन्हें धार्मिक भावनाएं नहीं कहा जा सकता, क्योंकि ये उद्धरण तो धार्मिक ग्रंथों के ही हैं।
अंतर्राष्ट्रीय समानता का आह्वान
इस प्रकार हज केवल एक उपासना या तीर्थ ही नहीं बल्कि हर रंग, वंश और जाति के लोगों की अंतर्राष्ट्रीय एकता का एक ऐसा विचित्र सामूहिक प्रदर्शन है जिस में सभी मुख्य धर्मों की परंपराओं की झलक भी है।  कुरआन कहता है कि 
काबा विश्व की सभी जातियों के लिए मार्गदर्शन का केन्द्र है। (3, 96)
और परमेश्वर सभी को इस शांति स्थल की ओर आमंत्रित कर रहा है। (10, 25)
जनाब एस. अब्दुल्लाह तारिक़ साहब का नाम तुलनात्मक धार्मिक अध्ययन के क्षेत्र में विश्व स्तर पर प्रसिद्ध है। जनाब तारिक़ साहब आचार्य मौलाना शम्स नवेद उस्मानी साहब के ज्येष्ठ शिष्य हैं और विश्व कल्याण आगम संस्थान, रामपुर, उ. प्र. के अध्यक्ष हैं। आपका उद्देश्य धर्मग्रंथों के एकत्व को जनसामान्य के सामने लाना है। गुजराती भाषा के वेदभाष्यकार आचार्य विष्णुदेव पंडित जी समेत अनेक विद्वानों ने आपके शोधकार्य की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। नॉर्थ गुजरात यूनिवर्सिटी, अहमदाबाद के डा. गजेन्द्र कुमार पण्डा जी व जयपुर के वेदाचार्य डा. श्री राजेन्द्र प्रसाद मिश्र जी समेत कई प्रतिष्ठित विद्वानों के साथ देश के विभिन्न प्रांतों में आपके प्रोग्राम हो चुके हैं। पीस टी. वी. उर्दू पर आपके लेक्चर्स नियमित रूप से आते रहते हैं।
S. Abdullah Tariq and  Shanti Kunj workers
प्रस्तुत लेख ‘विश्व एकता संदेश, पाक्षिक, रामपुर, जून प्रथम पक्ष 1994 के अंक‘ से आपके ज्ञानवर्धन के लिए साभार प्रस्तुत है। इस लेख के संबंध में किसी भी प्रकार की अधिक जानकारी के लिए आप ‘विश्व कल्याण आगम संस्थान, बाज़ार नसरूल्लाह ख़ां, रामपुर 244901‘ पर पत्राचार कर सकते हैं। जनाब तारिक़ साहब की लिखी पुस्तकों को भी आप इसी जगह से मंगा सकते हैं। ‘वेद और कुरआन फ़ैसला करते हैं- कितने दूर कितने पास‘ जनाब की लिखी हुई विश्व प्रसिद्ध किताबों में से एक है।
वेद और कुरआन के समान सूत्रों के आधार पर भारत के हिन्दुओं और मुसलमानों के दरम्यान दिव्य एकत्व का बोध कराना जनाब के जीवन का एकमात्र लक्ष्य है।

34 comments:

  1. प्यारे भाई अमित जी ! आपसे नाराज़ होने का तो सवाल ही नहीं है। शालीनता से आप कोई सवाल पूछना आपका हक़ है। मनभेद तो आपसे है ही नहीं और हो सकता है कि मतभेद भी समय के साथ न्यून होते चले जाएं।
    आपने मुझे अपने लिए उत्प्रेरक का दर्जा दिया है। आपका आभार। अस्ल बात तो आपके दिल में जगह पा लेना है, उस जगह की उपाधि कोई भी हो। आप मेरे लेख पर ध्यान देते हैं, मैं समझता हूं कि मेरा लेखन सफल है।
    प्रस्तुत पोस्ट के ‘लोकों को मैंने पाक्षिक पत्र से लिखा है और फिर ‘संस्कृति संस्थान, बरेली‘ से छपी मनु स्मृति से भी उनका मिलान किया है। कृप्या इन्हें ग़ौर से देखें कोई ग़लती रह गई हो तो अवश्य सूचित करें। मैं सुधार कल लूंगा।

    ReplyDelete
  2. subahan allah kafi behtarin jankari di hai

    ReplyDelete
  3. allah har musalman ko apne ghar par bulaye aamin

    ReplyDelete
  4. jo log jiyada kami nikalne ke aadi hote hai allah se wahi log hidayat bhi pa jate hai mujhe nazar aa raha hai amit ji ko hidayat milne wali hai insaallah

    ReplyDelete
  5. ‘‘एक परंपरा के अनुसार आदम और हव्वा ने भारत से पैदल चलकर चालीस बार हज किया। (तारीख़-ए-तबरी)

    ReplyDelete
  6. ‘‘एक परंपरा के अनुसार आदम और हव्वा ने भारत से पैदल चलकर चालीस बार हज किया। (तारीख़-ए-तबरी)

    ReplyDelete
  7. वेदों में काबा और मक्का का ज़िक्र का प्रमाण देकर आपने दूरियों को नज़्दीकियों में बदल दिया है ।

    ReplyDelete
  8. हिंदू पुस्तकों में मांसाहार की जानकारी भारत के सुनहरे अतीत की याद दिलाती है ।

    ReplyDelete
  9. एक और शानदार पोस्ट!

    ReplyDelete
  10. एक अच्छी और ज्ञानवर्धक पोस्ट

    ReplyDelete
  11. तरीक अब्दुल्लाह साहब ना केवल अच्छा लिखते हैं, बल्कि एक अच्छे व्यक्तित्व के मालिक भी हैं, पिछले साल किसी काम से मुरादाबाद जाना हुआ था, तब रामपुर में जाकर उनसे मुलाक़ात की थी.

    ReplyDelete
  12. हज के बारे में विस्तृत जानकारी पाकर अच्छा लगा. इसमें से कई बातें मुझे पहले नहीं पता थी.

    ReplyDelete
  13. ज्ञानवर्धक तथा अति उत्कृष्ट लेख
    dabirnews.blogspot.com

    ReplyDelete
  14. ब्‍लागजगत में यह कई विषयों पर भरपूर जानकारियों वाली इस पोस्‍ट को प्रस्‍तुत करने से इन्‍टरनेट पर आने वाली नस्‍लें तक आपकी अहसानमन्‍द रहेंगी

    इस पोस्‍ट पर भाईयों की खामोशी से इसकी सफलता पर कोई शक नहीं रहा

    ReplyDelete
  15. .

    बेहतरीन , ज्ञानवर्धक लेख के लिए आभार।

    .

    ReplyDelete
  16. धर्मग्रंथों में और परम्परा से भी,शरीर को कमतर बताते हुए केवल आत्मा पर ज़ोर दिया गया। इस अवधारणा को संतुलित करने की कोशिश ओशो समेत कुछ अन्य लोगों ने की। ऐसा प्रतीत होता है कि सभ्यता के आरंभिक दिनों में,मांसाहार सहज और सुलभ रहा होगा। बाद में,अनुभवजन्य कारणों से इसके निषेध की पहल की गई होगी।

    ReplyDelete
  17. ब्लॉग युद्ध - अमित बनाम अनवर जमाल

    ये ब्लॉग युद्ध लड़ा जा रहा है उस देश में जहाँ 45 लाख का एक बकरा बिकता है, बकरों का 3-4 लाख में बिकना भी यहाँ कोई बड़ी बात नहीं है, ध्यान दीजिये उस देश में जहाँ आज भी हर दूसरा बच्चा कुपोषण का शिकार है !

    पात्र परिचय -


    हिंदी ब्लॉग एक आसमान पर चमकते हुए एक सितारे का नाम है डा. अनवर जमाल !

    http://meradeshmeradharm.blogspot.com/2010/11/blog-post.html

    मेरा देश मेरा धर्म said...
    Read full post @

    http://meradeshmeradharm.blogspot.com/2010/11/blog-post.html

    ReplyDelete
  18. @ ऐ साहिब अ देश धर्म ! यहाँ कोई धर्म युध्ह नहीं बल्कि धर्म वार्ता चल रही है .
    क्या दो भाई आपस में धर्म चर्चा भी नहीं कर सकते ?
    मत भिन्नता अलग बात है , कोई बैर नहीं है हमें .
    शुभकामनायें .
    अच्छे उद्गार के लिए आभार .
    वन्दे ईश्वरं . ॐ शांति .
    २- मैं पहली बार आपके ब्लाग पर गया लेकिन तिरंगे के सिवा कुछ देख ही न पाया ऐसा क्यों ?

    ReplyDelete
  19. @ दिव्या जी के लिए आभार .
    @ कुमार राधा रमण जी और सभी भाइयों का भी आभारी हूँ .
    आप सभी ने अपना बेहद कीमती वक़्त दिया .
    शुक्रिया .

    ReplyDelete
  20. यदि आप को "अमन के पैग़ाम" से कोई शिकायत हो तो यहाँ अपनी शिकायत दर्ज करवा दें. इस से हमें अपने इस अमन के पैग़ाम को और प्रभावशाली बनाने मैं सहायता मिलेगी,जिसका फाएदा पूरे समाज को होगा. आप सब का सहयोग ही इस समाज मैं अमन , शांति और धार्मिक सौहाद्र काएम कर सकता है. अपने  कीमती मशविरे देने के लिए यहाँ जाएं

    ReplyDelete
  21. ज़ालिम कौन Father Manu या आज के So called intellectuals ?
    एक अनुपम रचना जिसके सामने हरेक विरोधी पस्त है और सारे श्रद्धालु मस्त हैं ।
    देखें हिंदी कलम का एक अद्भुत चमत्कार
    ahsaskiparten.blogspot.com
    पर आज ही , अभी ,तुरंत ।
    महर्षि मनु की महानता और पवित्रता को सिद्ध करने वाला कोई तथ्य अगर आपके पास है तो कृप्या उसे कमेँट बॉक्स में add करना न भूलें ।
    जगत के सभी सदाचारियों की जय !
    धर्म की जय !!

    ReplyDelete
  22. किसने कहा की अनवर जमाल और अमित शर्मा का धर्म युद्ध हो रहा है? ऐसी बकवास ना करें और दिलों मैं नफरत ना फैलें. एक ज्ञानी और अज्ञानी का युद्ध वैसे भी नहीं हो सकता.

    ReplyDelete
  23. लोग हमारी वार्ता को युद्ध की संज्ञा देते हैं ।
    @ जनाब मासूम साहब ! मेरा मानना यह है कि मैं एक अलग माहौल में पला बढ़ा हूँ और मेरे भाई अमित शर्मा जी मुझसे मुख़्तलिफ़ माहौल में। इसमें न तो मेरी कोई खूबी है और न ही अमित जी का कोई दोष । मेरे माहौल की छाप मेरे जहन पर है और अमित जी के जहन पर उनके माहौल की । वे अपने धर्म-दर्शन के प्रति गंभीर हैं , मुझे यह अच्छा लगता है । मैं रब का शुक्र अदा करता हूँ कि वे आस्तिक हैं । अगर वे नास्तिक और शराबी होते तो हम उनका क्या कर लेते ? उन्होंने खुद को बहुत सी ख़राबियों से बचाया आज के दौर में यह कम बात नहीं है ।
    उन्हें अज्ञानी कहना ज्यादती होगी । वह पैदाइश के ऐतबार से भी पंडित हैं और अपने अमल से भी ।
    हमारे कुछ विचार टकराते हैं तो कुछ मिलते भी हैं जैसे कि हम दोनों ही धर्मपसंद हैं । कार्बन कॉपी तो न मैं उनकी बन सकता हूँ और न ही वे मेरी बनेंगे ।
    हमारी धर्मवार्ता को धर्मयुद्ध नाम देने वाले वास्तव में मुग़ालते के शिकार हैं ।
    जहाँ आदमी होंगे वहाँ बातचीत जरूर होगी । लोग अपनी रुचि के अनुसार ही बात करते हैं ।
    अमित जी की और मेरी रुचि धर्म में है सो हम धार्मिक विषय पर बातें करते हैं , बस ।
    युद्ध वहाँ होते हैं जहाँ हवस और रंजिशें होती हैं , ये दोनों ही चीजें हम दोनों में ही नहीं हैं , शुक्र है मालिक का !

    ReplyDelete
  24. सर्वसाधारण को सूचित किया जाता है कि कविराज श्री सतीश कुमार सक्सेना जी की कविता और उस पर डा. अनवर जमाल जी का कमेन्ट दोनों Comment pot में सुरक्षित कर लिए गए हैं .
    देखिये निम्न पोस्ट -
    जवानी दोबारा हासिल करने का बिलकुल आसान उपाय

    http://commentpot.blogspot.com/2010/11/best-comment-no-3.html

    ReplyDelete
  25. @दिव्योत्साही बहन दिव्या जी ! कृपया अमन के पैगाम पर जाकर देखें कि वहां अर्थ का क्या अनर्थ हो रहा है ?
    मैंने भी वहां यह कमेन्ट दिया है .
    बुलंदी पर जाने के लिए ईमान शर्त है।
    @ भाई तारकेश्वर गिरी जी की पर्सनैलिटी दमदार है। ऐसी जानदार बात कहते हैं कि हरेक नर नारी तुरंत सहमत हो जाता है, कभी सोचकर और कभी बिना सोचे ही। उनकी अमन की बात पर तो आदमी बिना सोचे भी सहमत हो जाए तो नफ़े में रहेगा लेकिन यह क्या कि उनके शेर पर भी मेरी दिव्योत्साही बहन दिव्या जी सहमत हो गईं ?
    अगर वे जानतीं कि शेर का मतलब क्या है तो वे हरगिज़ सहमत न होंतीं।
    शेर यह है -
    ‘जितनाझुकेगा जो, उतना उरोज पाएगा
    ईमां है जिस दिल में, वो बुलंदी पे जाएगा‘

    चलिए अपने गिरी बाबू तो भोले जी के भगत हैं लेकिन क्या हिंदी-उर्दू के दूसरे मूर्धन्य जानकारों का ध्यान भी इस तरफ़ न गया कि ‘यहां झुकने से कौन सा उरोज पाया जा रहा है ?‘
    इससे पता चलता है कि पोस्ट को ज़्यादा लोग कम ग़ौर से पढ़ते हैं।
    इससे यह भी पता चलता है कि लोग जिससे सहमत होने का मूड एक बार सैट कर लेते हैं तो फिर न उसके कलाम को देखते हैं और न उसके शब्दों के अर्थ को।
    भाई तारकेश्वर गिरी जी को ब्लाग जगत का इतना ज़बरदस्त समर्थन मिलता देखकर मैं बहुत प्रसन्न हूं और उनकी बुलंदी की कामना करता हूं क्योंकि बुलंदी पर जाने के लिए ईमान शर्त है।

    ReplyDelete
  26. सनातन है इस्लाम , एक परिभाषा एक है सिद्धांत
    ईश्वर एक है तो धर्म भी दो नहीं हैं और न ही सनातन धर्म और इस्लाम में कोई विरोधाभास ही पाया जाता है । जब इनके मौलिक सिद्धांत पर हम नज़र डालते हैं तो यह बात असंदिग्ध रूप से प्रमाणित हो जाती है ।
    ईश्वर को अजन्मा अविनाशी और कर्मानुसार आत्मा को फल देने वाला माना गया है । मृत्यु के बाद भी जीव का अस्तित्व माना गया है और यह भी माना गया है कि मनुष्य पुरूषार्थ के बिना कल्याण नहीं पा सकता और पुरूषार्थ है ईश्वर द्वारा दिए गए ज्ञान के अनुसार भक्ति और कर्म को संपन्न करना जो ऐसा न करे वह पुरूषार्थी नहीं बल्कि अपनी वासनापूर्ति की ख़ातिर भागदौड़ करने वाला एक कुकर्मी और पापी है जो ईश्वर और मानवता का अपराधी है, दण्डनीय है ।
    यही मान्यता है सनातन धर्म की और बिल्कुल यही है इस्लाम की ।

    अल्लामा इक़बाल जैसे ब्राह्मण ने इस हक़ीक़त का इज़्हार करते हुए कहा है कि

    अमल से बनती है जन्नत भी जहन्नम भी
    ये ख़ाकी अपनी फ़ितरत में न नूरी है न नारी है

    ReplyDelete
  27. अनवर जी, आपके वैदिक धर्म की व इतिहास की जानकारी की दाद देनी होगी...वस्तुतः पहले भारत संपूर्ण विश्व( मनुष्य व बस्तियों से युक्त)को ही कहा जाता था..विभिन्न धर्म व सम्प्रदाय भी नहीं थे.अतः आपका वर्णन सही ही है...
    ----निश्चय ही आदिम युग में मांसाहार प्रचलित रहा होगा...भारत में भी, परन्तु बाद में उसके अवगुण व अन्य भोज्य पदार्थों की उपलब्धता, खेती का अविर्भाव के कारण मांसाहार निरोध किया गया होगा...
    ---आप के संस्क्रत के उदाहरणों के अर्थ गलत है--यथा--
    १-यज्ञार्थं ब्राह्मणैर्वध्याः प्रशस्ता मृगपक्षिणः ।
    भृत्यानां चैव वृत्यर्थमगस्त्यो ह्याचरत्पुरा ।। (मनु. 5,22)
    अर्थात यज्ञ के लिए तो अवश्य तथा रक्षणीय की रक्षा के लिए शास्त्र-विहित मृग और पक्षियों का वध करे। ऐसा अगस्त्य ऋषि ने पहले किया था। यह गलत है सही अर्थ है....
    (----यग्य के लिये व ब्राह्मण के लिये पशु –पक्षी अवध्य हैं यह प्रशस्त मार्ग है,, भ्रत्य( नौकर-चाकर..) और व्रत्ति( प्रोफ़ेशन-जीविका) के लिये भी नही----यह पुरा काल से अगत्य आदि रिष्यों का आचरण रहा है…
    -२---नात्ता दुष्यत्यदन्नाद्यान्प्राणिनोऽहन्यहन्यपि ।
    धात्रैव सृष्टा ह्याद्याश्च प्राणिनात्तार एव च ।। (मनु. 5, 30)
    अर्थात प्रतिदिन भक्ष्य जीवों को खाने वाला भी भक्षक दोषी नहीं होता है, क्योंकि सृष्टा ने ही भक्ष्य तथा भक्षक, दोनों को बनाया है।यह अर्थ गलत है...सही है---
    ---अन्न, धान्य, प्राणी, अहन्य,( अवध्य) व हन्य( वध्य)…सभी धाता ने प्राणियों के लिये बनाये, कही मानव द्वारा मांस खाने का अर्थ नहीं है…
    --३---तां तदा दर्शयित्वा तु मैथिली गिरिनिम्नगाम् ।
    निषसाद गिरिप्रस्थे सीतां मांसेन छन्दयन् ।।
    इदं मध्यमिदं स्वादु निष्टप्तमिद मग्निना ।
    एवमास्ते स धर्मात्मा सीतया सह राघवः ।।
    (वाल्मीकि रामायण, अयोध्या काण्ड, 96, 1 व 2)
    अर्थात इस प्रकार सीता जी को (नदी के) दर्शन कराकर उस समय श्री रामचन्द्र जी उनके पास बैठ गए और तपस्वी जनों के उपभोग में आने योग्य मांस से उनका इस प्रकार लालन करने लगे, ‘‘इधर देखो प्रिये, यह कितना मुलायम है, स्वादिष्ट है और इसको आग पर अच्छी तरह सेका गया है।‘ यह गलत अर्थ है...सही यह है---‘
    ---इस प्रकार दर्शन करके गिरि से नीचे जाते हुए, एक स्थान पर बैठकर खेत से खाद्य पदार्थ( कन्द-मूल-फ़ल) लेकर यह स्वादिष्ट है, यह अग्निवर्धक है—यह कहते हुए राम को खिलाने लगीं..इस प्रकार धर्मात्मा रम सीता के साथ रहने लगे।

    ReplyDelete
  28. @ डाक्टर श्याम गुप्त जी ! आपका और आपके विचारों का स्वागत है . कृपया
    डाक्टर सुरेन्द्र कुमार शर्मा अज्ञात जी का हिन्दू धर्म ग्रंथों में मांसाहार पर शोध भी देख लीजिये . हो सकता है कि इससे आपको सच्चाई तक पहुँचने में कुछ मदद मिले .
    आपका बारम्बार स्वागत है .

    ReplyDelete
  29. सभी भाई बहनों को सादर प्रणाम !
    कृपया देखिये मेरा एक आर्टिकलतीन अलग अलग जगहों पर
    'देशभक्ति का दावा और उसकी हकीक़त'
    http://ahsaskiparten.blogspot.com/2010/12/patriot.html

    http://lucknowbloggersassociation.blogspot.com/2010/12/patriot.html

    http://blog-parliament.blogspot.com/2010/12/patriot.html

    ReplyDelete
  30. @ बहन दिव्या जी !
    अपने ब्लाग पर आपकी आपत्तियों और सवालों के जवाब में आप मेरी पोस्ट ‘देश भक्ति का दावा और उसकी हक़ीक़त‘ देखने की तकलीफ़ ज़रूर गवारा करें और तब आप बताएं कि कमी क्या है ?
    इंशा अल्लाह मैं ज़रूर दूर करूंगा।

    दो नए ब्लाग भी, जो नए साल पर मैंने बनाए हैं , उन्हें भी आप ज़रूर देखिएगा।
    1- प्यारी मां

    2- कमेंट्स गार्डन

    http://zealzen.blogspot.com/2010/12/blog-post_29.html#comment-form

    ReplyDelete
  31. जो स्वयं अग्यात है उसे क्या ग्यात होगा....अनवर जी....आखिर मांसाहार कोई एसी महत्वपूर्ण बात तो है नही तो उस पर शोध की आवश्यकता ही क्यों पडी...बस यूंहीं..

    ReplyDelete