कश्मीर के मसले को भी मुसलमानों ने ही बिगाड़ा है। सन् 1949 में वल्र्ड वॉर सेकंड में जापान ने ओकिनावा जज़ीरे पर क़ब्ज़ा कर लिया। जापान के रिकन्सट्रक्शन के लिए वहां के रहनुमा ने 30 का एक प्रोग्राम बनाया। उसने ओकिनावा को वैसे ही छोड़ दिया। जापान इकॉनॉमिक सुपर पॉवर बनकर उभरा और 1972 में अमेरिका को वहां से अपना क़ब्ज़ा हटा लिया। इसे ‘डीलिंकिंग पॉलिसी‘ कहा जाता है। पाकिस्तान को बिज़नेस की अपॉरचुनिटी पर ध्यान देना चाहिये और कश्मीर के मसले बातचीत के लिए मेज़ पर छोड़ देना चाहिये। You have to delink problem to opportunities .
जापान ने सब्र किया और इकॉनॉमिक सुपर पॉवर बन गया और पाकिस्तान ने बेसब्री दिखायी और आज वह एक फ़ेल्ड स्टेट बनकर रह गया है। वह आज अमेरिका की मदद से चल रहा है।
यही हाल सददाम हुसैन का हुआ। 57 मुस्लिम देश हैं। सब जगह इस्राईल को सबसे बड़ा दुश्मन बताया जाता है। मैं कहता हूं कि अरब देश अपनी ग़लत पॉलिसियों की क़ीमत अदा कर रहे हैं।
इस मजलिस में हमारे साथ भाई तारकेश्वर गिरी, डा. अयाज़, मास्टर अनवार और भाई शाहनवाज़ भी थे। सभी को एक बिल्कुल रूहानी अहसास हो रहा था।
सहनशीलता सारी कामयाबियों की कुंजी है, जब कोई व्यक्ति सहनशीलता धारण करता है तो सारी प्राकृतिक शक्तियां उसकी सहायता करना शुरू कर देती है। वहीँ असहनशीलता अर्थात बेसब्री स्थिति को सामान्य करने की प्राकृतिक प्रक्रिया को समाप्त कर देती है।
मौलाना बिना किसी लाग लपेट के अपनी बात कह रहे थे और मैं सोच रहा था कि यह सब आज एक सपना हो चुका है। आज जितने भी वाद हैं वे दरअस्ल विवाद हैं न कि विवादों का समाधान । सारे मसलों का हल सच को जानना और मानना है।
अनवर भाई एक दिन में क्या एक साल का ज्ञान मिल गया था,पदम भूषण मौलाना वहीदुद्दीन ख़ान साहब की महफिल में यकीन नहीं होता 4 घण्टे में इतनी अच्छी बातें सुनने को मिली थीं चार ब्लाग वाले सुना रहे हैं और खत्म नहीं हो रहीं हैं
ReplyDeletenice post.
ReplyDeleteअपनी ग़लत पॉलिसियों की क़ीमत हर किसी को एक न एक दिन अदा करना ही परता है ,यही प्रकृति का नियम है | इसलिए इंसानियत और सत्य न्याय के खिलाप किसी भी कीमत पर कदम नहीं बढ़ाना चाहिए |
ReplyDeleteअबे ये सब मिलकर क्या पट्टी पढ़ा रहे हो
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट
ReplyDeleteउमर भाई, इंसान ऐसे व्याख्यान कभी-कभी ही सुन पाता है. इसमें एक बात जो बेहद महत्तवपूर्ण थी वह वह है व्याख्यान के समय का माहौल.
ReplyDeleteडाक्टर साहेब , कोई बुरा न माने लेकिन हमारे यहाँ एक कहावत है कि एक हिन्दु ज्यों-ज्यों बुड्डा होता चला जाता है, उसकी अक्ल घास चरने जाने लगती है और मुसलमान ज्यों-ज्यों बुड्डा होता है उसे अक्ल आने लगती है ! मौलाना साहब ने जो कहा , बहुत उच्च कोटि का कहा, मगर क्या कहने भर से अथवा आपके यहाँ पर उसका वर्णन कर देने भर से काम हो जाता है ? आप और हम (सभी ) में से कितने लोग उसे वास्तविक जीवन में अपनाते है ? शायद ही कोई अपने गिरेवाँ में झाकने का प्रयास करता हो ! ( यह बात मैं सभी के लिए कह रहा हूँ चाहे वो "हि" हो या फिर "मु") अपने आस पास आज ऐसे बहुत से लोगो को जानता हूँ जिन्हें पूछो कि जनाव कहाँ थे दिखाई नहीं दिए सुबह से ? तो जबाब मिलता है सत्संग में गया था ! और शाम को देखो तो बीबी बच्चों को माँ-बहिन की गालियाँ दे रहा होता है :) क्या करना ऐसे सत्संग जाने का ?
ReplyDeleteत्यागी जी यहाँ तो प्यार की पट्टी ही पढ़ाई जा रही है। पर आपका विषय तो लगता है नफरत है?
ReplyDeleteगोदियाल जी ! आपका यह क़ौल आपकी ही वज़्नदार है । अमल भी बेहद ज़रुरी है ।
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ReplyDeleteBahut Umda Post
ReplyDeleteAnvar, esme nayii baat koun see hain, ye saari baate hum sab musalmaano ko samjha rahe the, Ek musalmaan ne ye baate boldi to waa waahhhhh
ReplyDeletechaloo hum bhii bolte hain waa waahhh, nice post.... musalmaano ko thodii akal to aaye, lekin kutton kii dum kabhii seedhhi nahi ho saktii.
Kal tum bhi bhonkne lag jaoge, मौलाना वहीदुद्दीन jaaye TEL lene
डा० साहब शुक्रिया, इतनी अच्छी और सटीक बातें हम सब को बताने के लिए..
ReplyDeleteवाक़ई सब्र बहुत बड़ी चीज़ है, सब्र पर इतनी अच्छी दलीले पहली बार सुनी हैं,
कल की पोस्ट का इन्तेज़ार रहेगा....
ReplyDeleteभाई सहसपुरिया और भाई जनाब उमर कैरानवी साहब ! एक मजलिस मेँ वाक़ई वहाँ ऐसा इल्म मिलता है जिसे समझा जाए तो जीवन की दिशा बदल जाए और लिखा जाए तो महीना निकल जाए ।
ReplyDeleteवन्दे ईश्वरम का नया अंक उपलब्ध है , एक नज़र इधर भी ।
ReplyDeleteवन्दे ईश्वरम !
ReplyDeleteमौलाना साहिब का लेख हमने भी वंदे ईश्वरम मेँ दिया है ।
ReplyDeleteइस्लाम की शिक्षाओं से मुसलमान से ज्यादा औरों ने सबक लिया. इसका जीता जागता सुबूत है जापान.
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