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Saturday, May 22, 2010

Satanic activities पवित्र कुरआन की आयतों को साक्षात होते देख रहा है ब्लॉगिस्तान

114. सूरह ए नास

1. कह दो मैं इनसानों के रब की शरण में आया ।
2. मैं इनसानों के बादशाह की शरण में आया ।
3. मैं तमाम इनसानों के बादशाह के माबूद (उपास्य) की शरण में आया ।
4. वसवसा (बुरा ख़याल) डालकर छिप जाने वाले ख़न्नास (शैतान) के शर (उपद्रव) से बचने के लिए 5. जो लोगों के सीनों में वसवसा (बुरा ख़याल, वहम) डालता है ।
6. फिर वह जिन्नों में से हो या इनसानों में से।


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नेकी और बदी की जंग शुरू से ही जारी है । नेकी और सच्चाई के आम होने से झूठ और अंधविश्वास का ख़ात्मा होना निश्चित है । इनके ख़त्म होने से बहुत से ऐसे लोगों का वुजूद ही मिट जाएगा जिन्हें झूठ और अंधविश्वास के बल पर ही समाज में धन,पद और वैभव प्राप्त है । ऐसे लोग जब धर्म और सत्य के मुक़ाबले में स्वयं को निर्बल और तर्कहीन पाते हैं तो वे सत्य के प्रचारक को समाज की नज़रों में अविश्वसनीय बनाने की घृणित चाल चलते हैं ।
कल ब्लॉगिस्तान ने पवित्र कुरआन की आयतों को साक्षात होते हुए देखा । कल किसी दुर्जन ने मेरे फ़ोटो और मेरे नाम का ग़लत उपयोग करते हुए बहन फ़िरदौस को भी भरमाया और
महाजाल के पाठकों को भी चकराया नीचता की हद तो उसने तब की जब उसने मेरे ही ब्लॉग पर मेरे विचार और अभियान के खि़लाफ़ ही टिप्पणी कर डाली और यही आदमी मेरा फ़ालोअर भी बन गया ।
यह आदमी उर्दू नहीं जानता इसीलिये हर्फ़ ‘क़ाफ़‘ के बजाए ‘काफ़‘ का इस्तेमाल करता है ।उसका यह कर्म ‘वसवसा डालना‘ कहा जाएगा । वसवसे का मक़सद उपद्रव फैलाना होता है जो कि ‘ख़न्नास‘ अर्थात शैतान का मिशन है । इसका समाधान यह है कि पालनहार प्रभ की शरण पकड़ी जाए ।
ईश्वर दया, प्रेम, ज्ञान और उपकार आदि गुणों का स्रोत है और जो भी उसकी शरण में जाएगा उसमें भी यही गुण झलकेंगे । इन्हीं गुणों के होने या न होने से पता चलता है कि आदमी परमेश्वर की शरण में वास्तव में है कि नहीं ?


और यह भी कि आदमी ने उसकी शरण में आने के लिए वास्तव में प्रयास कितना किया ?


आयतों को जुबान से मात्र पढ़ लेने से ही अभीष्ट लक्ष्य पूरा नहीं हो सकता । इसके लिए तदनुकूल कर्म भी ज़रूरी है । तभी हरेक उपद्रव और शर का ख़ात्मा होगा ।अपनी और समाज की बेहतरी के लिए ज़रूरी है कि आप शैतानों को पहचानें और उनके शैतानी जाल में न फंसें ।उन्हें आपके द्वारा पहचान लेना ही उनकी साज़िश को नाकाम करने के लिए काफ़ी है ।
अन्त में ...
मेरी टिप्पणी पर प्रतिक्रिया देने से यह ज़रूर सुनिश्चित कर लें कि वह टिप्पणी वास्तव में मेरी ओर से है या फिर किसी ख़न्नास का फैलाया बड़ा जाल है ?


@ वत्स जी ! हरेक चीज़ का रचयिता एक परमेश्वर है ।
@ भाई अमित जी ! आपके द्वारा पुराण वचनों का संकलन वाक़ई क़ाबिले दीद है । मैं चाहूंगा कि आप उसे संपादित करके पुनः प्रकाशित करें । इससे इसलाम और वैदिक धर्म के आध्यात्मिक एकत्व का भी बोध होगा और विश्वासी जनों को पाप से बचने की प्रेरणा भी मिलेगी ।
@ डा. अयाज़ साहब और सभी भाइयों का मैं आभारी हूं जिन्होंने इस दुर्जन बहुरूपिए का बरवक्त पर्दा चाक कर दिया । और एक अच्छी ख़बर गर्भस्थ भ्रूण के संबंध में भी है जिसे मैं आपसे नेक्स्ट पोस्ट में share करूंगा ।


20 comments:

  1. maqsad nek ho toh koi kuchh nahin bigad sakta bhai !

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  2. Request as a order बहन फ़िरदौस की ख़ातिर भाई एजाज़ इदरीसी से एक पठानी विनती
    http://lucknowbloggersassociation.blogspot.com/2010/05/request-as-order.html

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  3. नेकी और बदी की जंग शुरू से ही जारी है । नेकी और सच्चाई के आम होने से झूठ और अंधविश्वास का ख़ात्मा होना निश्चित है । इनके ख़त्म होने से बहुत से ऐसे लोगों का वुजूद ही मिट जाएगा जिन्हें झूठ और अंधविश्वास के बल पर ही समाज में धन,पद और वैभव प्राप्त है ।
    Anonymous

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  4. जब शैतान देखता है की बातिल की तरफ से लोग खबरदार हो रहे हैं तो वह हक में बातिल की मिलावट कर देता है, ताकि लोग कन्फ्यूज़ हो जाएँ. लेकिन अल्लाह के सच्चे बन्दे इससे बेअसर रहते हैं, क्योंकि वह पढ़ते हैं, 'एह्दिनस-सिरातल-मुस्तकीम!'

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  5. अनवर साहब अब तो नकली भी आ गए मजा आएगा

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  6. यहाँ तो एक ही भारी लगता था अब दूसरे को कैसे झेलेगे

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  7. मुझे तो यह अनवर जमाल की ही चाल लगती है कि अपने विरोधियो को इस फर्जी आईडी से कुछ भी कह दो और साफ सुथरे बने रहो

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  8. अनवर भाई, मेरे ख्याल से तो सभी ब्लोगर्स को बेनामी ऑप्शन बंद कर देना चाहिए, तथा ऐसे फर्जी लोगो के खिलाफ केस करना चाहिए. किसी के नाम का इस्तेमाल करके किसी को बदनाम करना और सनसनी फैलाना बहुत ही बुरी बात है. इसका विरोध सशक्त तरीके से करना चाहिए.

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  9. ऐसे लोग गोबर की तरह है, जो जगह-जगह फ़ैल कर बदबू फैलाना चाहते हैं. लेकिन योग्य व्यक्ति गोबर को भी खाद की तरह इस्तेमाल करना जानते हैं. इस तरह के गोबर को खाद ना बनाया गया तो बदबू फैलती रहेगी. :)

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  10. बेनामी ने कहा…
    अब वो किसी मज़हब को नहीं मानते...फ़िरदौस ख़ान

    बात देश की राजधानी दिल्ली की है... और कई साल पहले की है... एक मुस्लिम लड़की और एक हिन्दू लड़का विवाह करना चाहते थे, लेकिन मज़हब उनकी राह का रोड़ा बना हुआ था... लड़की के पिता के कुछ मुस्लिम दोस्त मदद को आगे आए... उन्होंने लड़के से कहा कि उसे लड़की से विवाह करना है तो इस्लाम क़ुबूल करना पड़ेगा... मरता क्या न करता... उसने यह शर्त मान ली... दोनों का निकाह हो गया... अब यह जोड़ा मुसलमान था...

    अब मुश्किल यह थी कि लड़की का पिता ख़ुद धर्मांतरण के ख़िलाफ़ होने वाली मुहिमों में बढ़-चढ़कर शिरकत करता है... अब क्या होगा...? उसने कुछ हिन्दू मित्रों ने बात की और उनकी ही सलाह पर एक मन्दिर में जाकर हिन्दू रीति-रिवाज से एक बार फिर से दोनों का विवाह करा दिया गया... अब यह जोड़ा हिन्दू था...

    लड़की अब अपनी हिन्दू ससुराल में है... ख़ास बात यह है कि अब दोनों में से कोई भी मज़हब को नहीं मानता...

    कुछ अरसा पहले एक केन्द्रीय मंत्री के आवास पर लड़की के पिता से मिलना हुआ... बातचीत के दौरान हमने उनकी बेटी की खैरियत पूछी तो कहने लगे- अपनी ससुराल में बहुत ख़ुश है... ख़ास बात यह है कि पूजा-पाठ को लेकर उससे कोई ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं की जाती... जैसा हमारे यहां है... हमारे परिवार में कोई हिन्दू लड़की आ जाती तो उसके "पक्का मुसलमान" बनाकर ही दम लेते... उनकी इस बात पर हमें हंसी आ गई और वो भी हंसने लगे... उन्होंने बताया कि दोनों ही अब किसी मज़हब को नहीं मानते... उन्होंने यह भी बताया कि उनके मुस्लिम दोस्त नाराज़ हो गए कि हमने तो लड़के को 'मुसलमान' बना दिया था... फिर क्यों उसे हाथ से जाने दिया...? आख़िर किसी हिन्दू को इस्लाम में लाने के लिए मिलने वाला 10 हज का सवाब जो ज़ाया (व्यर्थ) हो गया था...

    हमने सोचा... लड़की और लड़के दोनों में ही एक-दूसरे के लिए त्याग का जज़्बा है... दोनों ने ही अपने साथी के लिए अपना मज़हब छोड़ा... ऐसे जोड़े तो विरले ही मिलते हैं... ख़ुदा (ईश्वर) इन्हें हमेशा ख़ुश रखे...आमीन..

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  11. IRFAN ने कहा…
    theek kaha,dharm se badhkar insaaniyat hai.pahle hum insaan hain.
    rahi Firdaus ki himmat ki baat unhein meri shubhkaamnaayen.

    click Here to see post

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  12. mohd maqsud inamdar ने कहा…
    बहन फ़िरदौस हमेशा इंसानियत की बात करती हैं, इसलिए कुछ मुल्ला बलोगरों ने उन्हें मुसलमान मानने से इनकार कर दिया. "इंसानियत का दुश्मन "मुसलमान" होने से कहीं बेहतर है इंसानियत से सराबोर "काफ़िर" होना. हम भी खुद को ऐसा "काफ़िर" कहलाना पसंद करेंगे, जो राहे-हक़ पर हो
    Aaj muslim aurate islam mein ghutan mahasoos kar rahii hain,
    vo kewal bachha paida karne kii machine ho gaya hain jab chaahe jo chahe (sasur bhii..), unse bachaa paide kar deta hain

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  13. बुर्क़े की क़ैद से आज़ादी : वो सुबह कभी तो आएगी...
    Posted Star News Agency Thursday, May 13, 2010
    फ़िरदौस ख़ान


    गौरतलब है कि इससे पहले मिस्र की राजधानी काहिरा स्थित अल-अज़हर विश्वविद्यालय के इमाम शेख़ मोहम्मद सैयद तांतवई ने कक्षा में छात्राओं और शिक्षिकाओं के बुर्क़ा पहनने पर रोक लगाकर एक साहसिक क़दम उठाया था. इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ कई इस्लामी सांसदों ने शेख़ तांतवई के इस्तीफ़े की मांग करते हुए इसे इस्लाम पर हमला क़रार दिया था. हालांकि बुर्क़े पर पाबंदी लगाने का ऐलान करने के बाद इमाम शेख़ मोहम्मद सैयद तांतवई ने क़ुरान का हवाला देते हुए कहा है कि नक़ाब इस्लाम में लाज़िमी (अनिवार्य) नहीं है, बल्कि यह एक रिवाज है.

    उनका यह भी कहना है कि 1996 में संवैधानिक कोर्ट ने अपने फ़ैसले में कहा था कि कोई भी सरकारी मदद हासिल करने वाले शिक्षण संस्था का अधिकारी स्कूलों में इस्लामिक पहनावे पर अपना फ़ैसला दे सकता है. बताया जा रहा है कि पिछले दिनों एक स्कूल के निरीक्षण के दौरान शेख़ मोहम्मद सैयद तांतवई ने एक छात्र से अपने चेहरे से नक़ाब हटाने को भी कहा था. गौरतलब है कि मिस्र के दानिश्वरों का एक बड़ा तबका बुर्क़े या नक़ाब को गैर ज़रूरी मानता है. उनके मुताबिक़ नक़ाब की प्रथा सदियों पुरानी है, जिसकी शुरूआत इस्लाम के उदय के साथ हुई थी. अल-अज़हर विश्वविद्यालय सरकार द्वारा इस्लामिक कार्यो के लिए स्थापित सुन्नी समुदाय की एक उदारवादी संस्था मानी जाती है, जो मुसलमानों की तरक्की को तरजीह देती है. इसलिए अल-अज़हर विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा छात्रों और शिक्षिकाओं के नक़ाब न पहनने को सरकार द्वारा सार्वजनिक संस्थानों में बुर्क़ा प्रथा पर रोक लगाने का एक हिस्सा माना जा रहा है. क़ाबिले-गौर है कि सऊदी अरब के दूसरे देशों के मुक़ाबले मिस्र काफ़ी उदारवादी देश है. अन्य मुस्लिम देशों की तरह यहां भी बुर्क़ा या नक़ाब पहनना एक आम बात है.

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  14. अल्लाह सबको हिदायत दे

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  15. कुछ अरसा पहले एक केन्द्रीय मंत्री के आवास पर लड़की के पिता से मिलना हुआ... बातचीत के दौरान हमने उनकी बेटी की खैरियत पूछी तो कहने लगे- अपनी ससुराल में बहुत ख़ुश है... ख़ास बात यह है कि पूजा-पाठ को लेकर उससे कोई ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं की जाती... जैसा हमारे यहां है... हमारे परिवार में कोई हिन्दू लड़की आ जाती तो उसके "पक्का मुसलमान" बनाकर ही दम लेते... उनकी इस बात पर हमें हंसी आ गई और वो भी हंसने लगे... उन्होंने बताया कि दोनों ही अब किसी मज़हब को नहीं मानते... उन्होंने यह भी बताया कि उनके मुस्लिम दोस्त नाराज़ हो गए कि हमने तो लड़के को 'मुसलमान' बना दिया था... फिर क्यों उसे हाथ से जाने दिया...? आख़िर किसी हिन्दू को इस्लाम में लाने के लिए मिलने वाला 10 हज का सवाब जो ज़ाया (व्यर्थ) हो गया था...

    हमने सोचा... लड़की और लड़के दोनों में ही एक-दूसरे के लिए त्याग का जज़्बा है... दोनों ने ही अपने साथी के लिए अपना मज़हब छोड़ा... ऐसे जोड़े तो विरले ही मिलते हैं... ख़ुदा (ईश्वर) इन्हें हमेशा ख़ुश रखे...आमीन.

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  16. डॉ. साहब आप कमेन्ट पर ब्लॉग likh देते हे ,इस से अछ्हा कोई subject पर लिखे

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