
हर ऐब से पाक है अल्लाह , जिसने सभी चीज़ों को जोड़े में पैदा किया। -पवित्र कुरआन,यासीन,36
सुख का जोड़ा दुख है । जो लोग केवल सुख के अभिलाषी हैं , वास्तव में वे एक ऐसी चीज़ चाहते हैं जो इस दुनिया में आज तक न तो किसी को मिली है और न ही मिल पाएगी । इस दुनिया में अगर आप सुख चाहते हैं तो आपको दुख भी स्वीकार करना होगा । आप स्वीकार न करें तब भी दुख तो आपको पहुंचकर रहेगा लेकिन उसे स्वीकारने का फ़ायदा यह होगा कि अब वह आपको कष्ट नहीं देगा । दुख इनसान को इतना दुखी नहीं करता जितना कि उसे कुबूल न कर पाना ।
आपको परमेश्वर का यह नियम जानना भी होगा और मानना भी कि उसने सुख के साथ दुख को भी आपके भले के लिए अनिवार्य कर दिया है ।किसी भी चीज़ की पहचान इनसान तभी कर पाता है जबकि वह उसके विपरीत का भी अनुभव रखता हो ।मिलन के सुख को वही प्रेमी जान सकता है जिसने विरह की पीड़ा को भोगा हो । मां होने का सुख वही औरत पाती है जिसने प्रसव की वेदना को सहा हो । कुछ बनने के लिए मेहनत और संघर्ष इस दुनिया का अनिवार्य नियम है । आदमी बाप भी होता है और किसी का बेटा भी । बाप का फ़र्ज़ औलाद की हिफ़ाज़त, परवरिश और बेहतर तालीम है और औलाद का फ़र्ज़ यह है कि वह अपने बाप का आदर करे और उसके आदेश का पालन करते हुए उसकी बेहतरीन परम्पराओं को बाक़ी रखे । दोनों ही हालत में आदमी के लिए सख्त मेहनत के सिवाय चारा नहीं है ।
बाप और औलाद की गवाही ले लो । बेशक इनसान को पैदा करके हमने उसे मेहनत और उलझन में डाला है । -पवित्र कुरआन,बलद,3 व 4
मानव सभ्यता के ये दो बुनियादी किरदार हैं बाप और औलाद । यह तक बनने के लिए इनसान को मेहनत किये बग़ैर चारा नहीं है । मेहनत करना ही दुख उठाना है लेकिन जब इनसान के सामने मक़सद साफ़ होता है तो फिर उस मक़सद को पाने की लगन उसके लिए न सिर्फ़ वह कष्ट सहना आसान हो जाता है बल्कि उसे उसमें सुख और आनन्द का अनुभव होने लगता है । मानवीय सभ्यता को बाक़ी रखने के लिए नस्ल चलाना ज़रूरी है । जब लोगों के औलाद होगी तो इनसानी पैदाइश के हर संभव रूप प्रकट होना लाज़िमी है । वे रूप भी हमारी गोद में खेलेंगे जो बहुतों की समस्याओं का समाधान करेंगे और वे रूप भी हमारे साथ रहेंगे जो खुद एक समस्या होंगे । अगर हम एक का स्वागत खुशी खुशी करते हैं तो हमें दूसरे रूप को भी स्वीकार करना होगा क्योंकि यही इस दुनिया का क़ायदा और मालिक का विधान है । अगर हम इसमें तरमीम करके अपाहिज भ्रूणों को मां के पेट में ही मारने के रास्ते पर चल पड़ेंगे तो फिर अपाहिजों और निरूपयोगी बूढ़ों के लिए ज़रूरी रहमदिली का लोगों में नितान्त अभाव हो जाएगा और तब इनसान एक बेरहम व्यापारी तो बन जाएगा लेकिन इनसान नहीं रह पाएगा ।
हम क्या बनना चाहते हैं ?
यह हमें तय करना है । जो आप बनेंगे वही चेतना आपकी औलाद में भी ट्रांसफ़र होगी । आपका फ़ैसला व्यापक प्रभाव रखता है और मानवता को सदा प्रभावित करता रहेगा । आइये प्रभु के सुख-दुख के विधान को स्वीकार कीजिए ताकि दुख आपको भविष्य के सुख का साधन प्रतीत होने लगे । आपकी सही सोच दुख के प्रभाव को बदलने में सक्षम है । पवित्र कुरआन यही सिखाता है ।
वेदज्ञ साहिबान भी बताएं कि वेद मनुष्य की बेहतरी के लिए क्या बताते हैं ?
और अपाहिज भ्रूण के विषय में वह क्या उपाय सुझाता है ?
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ReplyDeleteफ़िरदौस जी की हिम्मत की मैं दाद देता हूँ और एक वक़्त था जब सभी धर्म के ठेकेदार और जानकार उनके पीछे पड़े हुए थे और फ़िरदौस जी उनकी एक न सुनी. लोगों को लगा कि वे हिन्दू धर्म में जाने के लिए मन सा बना लिया है और शीघ्र ही वे हिन्दू धर्म स्वीकार कर लेंगी. उन्हें किसी ने हिन्दू धर्म स्वीकार करने का न्योता दे दिया था. लेकिन फ़िरदौस जी, महफूज़ जी और हम जैसे राष्ट्रवादी जानते हैं कि हमारे लिए धर्म कोई मायने नहीं रखता है. हम राष्ट्रवादी किसी भी धर्म में रहें, हम न तो हिन्दू में ही होते हैं न मुस्लिम में; हम सबमें होते हुए भी किसी में भी नहीं होते बल्कि राष्ट्रवादी होते हैं. हम देश-हित को पहले रखते हैं, धर्म को नहीं. हाँ अगर डीपली कहें तो इस्लाम धर्म से थोडा ज़्यादा विमुख और हिन्दू धर्म के थोडा सा करीब होते हैं क्यूंकि हम भारत में रहते हैं और हमें यहाँ उसी हिसाब से चलना पड़ेगा जैसा कि राष्ट्रवाद की विचारधारा हमें बताती है और यही हमारे हित में भी है. हर वह भारतीय राष्ट्रवादी मुस्लिम फ़िर चाहे वह शाहरुख ख़ान हो, आमिर ख़ान हो अथवा सलमान ख़ान और हाँ सैफ़ अली ख़ान (करीना वाला), महफूज़ जी, और हम सब-के-सब राष्ट्रहित में शराब भी पी लेते हैं हमें कोई हर्ज़ नहीं क्यूंकि हमें पता है कि शराब तो मात्र मनोरंजन का साधन है.
ReplyDeleteतो शीर्षकान्तर न हो, मैं मुद्दे पर आता हूँ आज की पोस्ट में दी गयी टिपण्णी के चित्र में फ़िरदौस जी ने जिस दीलेरी से स्वयं को "काफ़िर" घोषित किया वह वाक़ई क़ाबिले-तारीफ़ है और हम सबको, हम सभी राष्ट्रवादियों को फ़िरदौस जी की इस हिम्मत को दाद देनी चाहिए. मैं पूछता है किसी में इतनी हिम्मत?
क्या आप एक भी ऐसे मुसलमान को जानते हैं जो पहले इस्लाम पर लिखता हो, बल्कि ब्लॉग-जगत के कथित "विश्व के प्रथम एवम एकमात्र इस्लाम धर्म के चिट्ठे" का सक्रिय सदस्य हो और फ़िर कूप-मंदूप्ता से निजात पाई हो, वो एकमात्र ब्लॉगर हैं: हम सबकी चहेती राष्ट्रवादी फ़िरदौस जी!
क्या आप किसी ऐसे मुस्लिम को जानते हैं जो इस्लाम धर्म में घुटन महसूस करता हो और हिन्दू धर्म अपनाने का उसे न्योता मिला हो. वो एकमात्र ब्लॉगर हैं: हम सबकी चहेती राष्ट्रवादी फ़िरदौस जी! लेकिन चुकि राष्ट्रवादी धर्म के ऊपर होते है और राष्ट्रहित से लबरेज़ रहते हैं. इसीलिए उन्होंने हिन्दू धर्म स्वीकार करने से मना कर दिया.
क्या आप किसी ऐसे मुसलमान को जानते हो जो इस्लाम धर्म में रहते हुए स्वयं को "काफ़िर" घोषित कर चुका हो? वो एकमात्र ब्लॉगर हैं: हम सबकी चहेती राष्ट्रवादी फ़िरदौस जी!
काफ़िर का मतलब क्या होता है?
काफ़िर उसे कहते हैं जो ईश्वर के अस्तित्व को सिरे से इनकार कर दे. अंग्रेजी में नॉन-मुस्लिम कहते हैं!
सभी राष्ट्रवादी ब्लॉगर से अनुरोध है कि फ़िरदौस जी के विचारों का साथ दें!
जय हिंद! जय भारत !! जय राष्ट्रवाद !!!
http://laraibhaqbat.blogspot.com/2010/05/blog-post_21.html
क्या आप एक भी ऐसे मुसलमान को जानते हैं जो पहले इस्लाम पर लिखता हो, बल्कि ब्लॉग-जगत के कथित "विश्व के प्रथम एवम एकमात्र इस्लाम धर्म के चिट्ठे" का सक्रिय सदस्य हो और फ़िर कूप-मंदूप्ता से निजात पाई हो, वो एकमात्र ब्लॉगर हैं: हम सबकी चहेती राष्ट्रवादी फ़िरदौस जी!
ReplyDeleteक्या आप किसी ऐसे मुस्लिम को जानते हैं जो इस्लाम धर्म में घुटन महसूस करता हो और हिन्दू धर्म अपनाने का उसे न्योता मिला हो. वो एकमात्र ब्लॉगर हैं: हम सबकी चहेती राष्ट्रवादी फ़िरदौस जी! लेकिन चुकि राष्ट्रवादी धर्म के ऊपर होते है और राष्ट्रहित से लबरेज़ रहते हैं. इसीलिए उन्होंने हिन्दू धर्म स्वीकार करने से मना कर दिया.
क्या आप किसी ऐसे मुसलमान को जानते हो जो इस्लाम धर्म में रहते हुए स्वयं को "काफ़िर" घोषित कर चुका हो? वो एकमात्र ब्लॉगर हैं: हम सबकी चहेती राष्ट्रवादी फ़िरदौस जी!
@एजाज़ भाई ! बहन फ़िरदौस जो चाहे करें आप छोड़िए उन्हें उनके हाल पर । हमें उम्मीद है कि अगर आज वे खुद को राधा कह रही हैं तो एक दिन वे सीता भी बनने की कोशिश करेंगी और सीता जी को मैंने हमेशा माता कहा है और तब मैं फिरदौस जी को भी इसी इज़्ज़त वाले लक़ब से खि़ताब करूंगा । फ़िलहाल तो आप मेरी पोस्ट से संबंधित कमेन्ट करके अपाहिज भ्रूणों का जीवन बचाने में मदद कीजिये ।
ReplyDeleteवेद में केवल जीव का वर्णन आया है अपाहिज भ्रूण का नहीं । हत्या जघन्य अपराध है । तुम जो मुरगे हलाल करते हो उनको जीव नहीं मानते क्या ? तुम खा जाओ पूरा बकरा और तुमसे मारा न जाय एक भ्रूण , आश्चर्यजनक !
ReplyDeleteपरम आर्य जी ! ओछी हरकत की है आपने । यह पोस्ट मांसाहार के विषय पर नहीं है और न ही जीव हत्या के विषय पर है । आप भी तो चिता पर मुर्दा जलाते हो और उस समय मुर्दे के शरीर में अनगिनत जीव होते हैं जिन्हें आप जला डालते हैं । शिकार की घटनाएं तो खुद पुराणों में भी हैं ... लेकिन आज की पोस्ट का विषय जो है आप उसपर खुद को केन्द्रित करें ।
ReplyDeleteभाइयो, आप सभी को एक अन्यंत दुःख देने वाली घटना का साझीदार बना रहा हूँ . एम्स के प्रसूती विभागकी की डॉ अंजली खेडा के परामर्श अनुसार बच्चे को जन्म देने से माँ की जान को ख़तरा है. बहुत सोच समझ कर मैंने गर्भ समापन कराने का निर्णय लिया है, बाकी अल्लाह के हाथ में है. आप सभी दुआ करें और मैं भी दुआ कर रहा हूँ. कुछ महीनो के किये ब्लॉग जगत से दूर रहूँगा.
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ReplyDeleteबड़ा दुख तो इस नीच इन्सान पर है जिसने मेरा फ़ोटो लगाकर मेरे ही नाम से ऐसा भददा कमेन्ट किया कि मैं एबॉर्शन करा रहा हूं । इतना बड़ा झूठ मेरे नाम से बोलकर न सिर्फ़ इसने लोगों को गुमराह करने की कोशिश की बल्कि अपाहिज भ्रूणों की हिफ़ाज़त में चलाई जा रही मेरी मुहिम के प्रभाव को भी नष्ट करने की कोशिश की । दिल में तो आया कि मैं कहूं कि जैसा बच्चा मेरे घर में पैदा होने जा रहा है वैसा ही तेरे घर भी पैदा हो तब शायद तू इस दर्द और तड़प को समझे लेकिन इस्लाम में बददुआ देना मना है सो मैं रूक गया । मैं इस आदमी की हिदायत के लिए मालिक से दुआ करूंगा और आप भी करें और बताएं कि अगर कैसे लोगों को कन्फ़यूज़न से बचाया जाए ?
ReplyDeleteजमाल साहब, एक बिल्कुल सीधा साधा सा सवाल करना चाहता हूँ.आशा है आप जवाब देकर मन की जिज्ञासा को शान्त करेंगें....
ReplyDeleteसवाल ये है कि इस सम्पूर्ण कायनात को बनाने वाला अल्लाह/ईश्वर/परमेश्वर/गोड है...लेकिन "शैतान" की रचना करने वाला कौन है ? क्या उसका सृ्जन भी अल्लाह द्वारा ही किया गया है या फिर किसी अन्य शक्ति द्वारा...
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ReplyDeleteअजीब कन्फ्यूजन है जमाल साहब. पहले इस पोस्ट से सम्बंधित कमेन्ट डालते-डालते आपका एक कमेन्ट आगया. फिर दूसरी बात रखने कि कोशिश कि तो अलग ही बयान है. समझ नहीं पा रहा हूँ.
ReplyDeleteवैसे आपके मेल तक मेरी भावनाए पहुँच चुकी होगी, ईश्वर आपको हर परिस्थिति में संबल प्रदान करे .
अच्छी पोस्ट
ReplyDeleteक्या कमेन्ट करू कुछ समझ में नहीं आता है,आपको अगर मेरी किसी भी प्रकार से सहायता की जरूरत हो तो बताइयेगा /
ReplyDeletenice अच्छा पैगाम post
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट
ReplyDeleteअरे यहाँ तो जाली अनवर जमाल भी है
ReplyDelete@अमित जी पोस्ट के समर्थन मे लिखा गया कमेँट ही अनवर साहब का है दूसरा कमेँट किसी फर्जी व्यक्ति ने किया है।
ReplyDelete@EJAZ AHMAD IDREESI,
ReplyDeleteव्यक्तिगत तौर पर आप किसी पर कीचड़ नहीं उछाल सकते भले ही वह किसी भी दशा में हो. हम और हमारी अन्जुमन के सभी सम्मानित सदस्य चाहते हैं कि आप अपनी बेहूदगी भरी और ग़ैर-इस्लामिक बातों पर तुरंत विराम लगायें.
जमाल व सलीम खान साहब फिरदौस बहन की स्टार न्यूज सर्विस पर मेरी पोस्ट आयी है देखें आपको बेहद खुशी होगी ऐसी उम्मीद है
ReplyDeleteपुरातत्वेत्ताओं ने खोजी नूह की कश्ती
http://www.starnewsagency.in/2009/10/blog-post_1809.html
लारैब ने बहन भाईयों में बहुत दूरी कर दी है, जमाल साहब इसके लिये हमें सोचना चाहिये
ReplyDeleteआपको यह जानकर बेहद खुशी होगी फिरदौस जी अब सभी के कमेंटस पब्लिश किया करेंगी वह आज किसी एक मोमिन की पोस्ट पढने के इन्तजार में हैं जो खुद को मोमिन समझते हैं उन्हें जरूर पढनी चाहिये
ऐ अल्लाह के रसूल! क्या यही है तेरा इस्लाम...?
http://firdaus-firdaus.blogspot.com/2010/05/blog-post_22.html
नीचता की हद देखिये, ये नामाकूल नकली प्रोफाइल-धारी मुझे नकली बता रहा है, शायद इसे पता नहीं की मैं किस मनोद्वंद से गुज़र रहा हूँ. मैं abortion इसलिए करवा रहा हूँ कि जन्म देने से मेरी पत्नी की जान को खतरा है...मैं अब भी विकलांग-भ्रूण-ह्त्या के पक्ष में नहीं हूँ..
ReplyDeleteडा. साहब, बेहतर यही है की आप Name/URL तथा Anonymous का आप्शन हटा दें. इन आप्शंस ने पहले भी बहुत गलतफहमियां पैदा की हैं.
ReplyDeleteज़ीशान भाई ये ऊपर वाला कमेँट फर्जी ही है प्रोफाइल मे जाकर चेक किया जा सकता है ये इस तरह के कमेँट और भी कई जगह करके आया है पर सब जगह हमने इसका भाँडा फोड़ दिया
ReplyDeleteRequest as a order बहन फ़िरदौस की ख़ातिर भाई एजाज़ इदरीसी से एक पठानी विनती
ReplyDeleteबहन फ़िरदौस साहिबा ! आप एक आला तालीमयाफ़्ता ख़ातून हैं । आपने एजाज़ की पोस्ट से आहत होकर अपने ब्लॉग के साथ ज़्यादती कर डाली । आपके अमल से आपकी हस्सासियत ए तबअ और नज़ाकत ए क़ल्ब का पता चलता है । आपके दुख से हम भी बहुत दुखी हैं । हम आपकी भी क़द्र करते हैं और आपके हक़ ए आज़ादी ए इज़्हारे ख़याल की भी । जब कभी आपको ज़रूरत पड़ेगी , यह बन्दा ए मोमिन आपके साथ होगा । हम आपके पुकारने की भी इन्तेज़ार न करेंगे । आपके लिए हमारा मश्विरा एक शेर की शक्ल में है -
आंसुओं की शमशीरों से ये जंग न जीती जाएगी
लफ़्ज़ ए मुजाहिद लिखना होगा झंडों पर दस्तारों पर
शब्दार्थ - अश्क - आंसू , शमशीर - तलवार ,
मुजाहिद - सत्य के लिए जानतोड़ संघर्ष करने वाला , दस्तार - पगड़ी
भाई एजाज़ साहब के लिए एक फ़रमान बशक्ले इल्तेजा यह है कि आइन्दा आप बहन फ़िरदौस के बारे में ख़ामोशी इख्तियार करें या फिर उनका तज़्करा ख़ैर के साथ करें । उनके साथ गुफ़्त ओ शुनीद के लिए हम लखनवी अख्लाक़ से मुज़य्यन जनाब सलीम ख़ान साहब को काफ़ी समझते हैं । कोई भी एजाज़ लफ़्ज़ों के जज़ीरे की शहज़ादी और हमारी मुश्तरका इज़्ज़त को मजरूह करने का मजाज़ हरगिज़ हरगिज़ नहीं है ।
जय हिन्द , वन्दे ईश्वरम्
जय हिंद
ReplyDelete@ वत्स जी ! हरेक चीज़ का रचयिता एक परमेश्वर है ।
ReplyDelete@ भाई अमित जी ! आपके द्वारा पुराण वचनों का संकलन वाक़ई क़ाबिले दीद है । मैं चाहूंगा कि आप उसे संपादित करके पुनः प्रकाशित करें । इससे इसलाम और वैदिक धर्म के आध्यात्मिक एकत्व का भी बोध होगा और विश्वासी जनों को पाप से बचने की प्रेरणा भी मिलेगी ।
@ डा. अयाज़ साहब और सभी भाइयों का मैं आभारी हूं जिन्होंने इस दुर्जन बहुरूपिए का बरवक्त पर्दा चाक कर दिया ।