सनातन धर्म के अध्‍ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अ‍ाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to

जिस पुस्‍तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्‍दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्‍दी रूपान्‍तर है, महान सन्‍त एवं आचार्य मौलाना शम्‍स नवेद उस्‍मानी के ध‍ार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन पर आधारति पुस्‍तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्‍त के प्रिय शिष्‍य एस. अब्‍दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्‍य जावेद अन्‍जुम (प्रवक्‍ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्‍तक के असल भाव का प्रतिबिम्‍ब उतर आए इस्लाम की ज्‍योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्‍दी प्रेमियों के लिए प्रस्‍तुत है, More More More



Thursday, January 10, 2013

मानो या न मानो लेकिन इसलाम आ चुका है आपके जीवन में धीरे से ?

शालिनी कौशिक जी ने मोहन भागवत (आरएसएस प्रमुख) के एक बयान पर टिप्पणी करते हुए अपना ऐतराज़ जताया है। 
उनके लेख का शीर्षक और लिंक यह है-


हम उनकी भावनाओं का सम्मान करते हैं लेकिन उनका लेख पढ़कर लगा कि वह कन्फ़्यूज़ हैं। एक तरफ़ तो वह औरत के अधिकारों की वकालत करती हैं और दूसरी तरफ़ वह विवाह को संस्कार मानने पर बल देती हैं, जो कि उनसे तलाक़ और पुनर्विवाह का हक़ छीन लेता है।
हिंदू धर्म में विवाह एक संस्कार है जबकि इसलाम में निकाह एक क़रार है। 
क़रार होने के कारण निकाह का संबंध तलाक़ या मौत से टूट जाता है। औरत को अपने पति से अपने हक़ पूरे न होने की शिकायत हो तो वह इसलामी रीति से उससे संबंध तोड़ सकती है और पुनः अपनी पसंद के मर्द से निकाह कर सकती है।
हिंदू विवाह के संस्कार होने के कारण औरत तलाक़ का हक़ नहीं रखती लेकिन उसका पति उसका परित्याग कर सकता है। हिंदू विवाह के संस्कार होने के कारण विधवा नारी पति की मौत के बाद भी उसी की पत्नी रहती है। उसे पुनर्विवाह का अधिकार नहीं है। वैदिक विद्वान इस पर एकमत हैं। जबकि पति अपनी पत्नी के जीते जी भी किसी से विवाह कर सकता है और उसकी मौत के बाद भी। 
हिंदू विवाह के संस्कार होने से विधवा नारी के दोबारा विवाह करने पर पाबंदी लाज़िम आयी और शास्त्रों ने बताया कि उसका पति के साथ सती होना उत्तम है या फिर वह सफ़ेद कपड़े पहनकर भूमि पर शयन करे और एक समय बिना नमक-मसाले का भोजन करे और मासिक धर्म के दिनों में एक समय का भोजन भी मना है। विवाह आदि शुभ अवसरों पर वह सामने न पड़े। इस तरह जो औरतें सती होने से बच भी जाती थी तो वे कुपोषण और डिप्रेशन का शिकार होकर तड़प तड़प कर मर जाती थीं। मरने के बाद भी दुदर्शा उनका पीछा नहीं छोड़ती।
पति के मरने के बाद हिंदू संस्कारों का पालन करने वाली विधवा की दुर्दशा को जानने देखिए ये पोस्ट्स-




भारत में इसलाम आया तो औरत के लिए जीने के रास्ते खुले। उसे अपना हक़ अदा न करने वाले पति से छुटकारे के लिए तलाक़ का हक़ मिला। तलाक़शुदा औरतों और विधवाओं को पुनर्विवाह का हक़ मिला।
यह सब इसलाम के प्रभाव से हुआ। जिन हिंदू समाज सुधारकों ने औरतों के लिए इसलाम जैसे अधिकारों की वकालत की। उनका एकमात्र विरोध संस्कृति और संस्कार की रक्षा करने वालों ने ही किया।
आज किसी में हिम्मत नहीं है कि वह औरत के तलाक़ पाने के हक़ का या उसके दोबारा विवाह करने के हक़ का विरोध कर सके।
विवाह बहुत पहले कभी संस्कार हुआ करता था, अब नहीं है। वे दिन गए। अब यह एक क़रार है। कोर्ट में तलाक़ और पुनर्विवाह के लिए आने वाली औरतें इसका सुबूत हैं।
जब औरतें ही विवाह को संस्कार मानने से इन्कार कर दें तो फिर कोई क्या कर सकता है ?
जिन शास्त्रों से आपने हिंदू विवाह को संस्कार बताने संबंधी श्लोक दिए हैं, उन्हीं शास्त्रों में यह बताया गया है कि विधवाओं को कैसे रहना चाहिए ?
क्या विधवाएं आज उस ज़ुल्म को बर्दाश्त करना गवारा करेंगी ?
अगर नहीं तो फिर ज़ुल्म की हिमायत क्यों और किसके लिए जब कोई उसे गवारा करना ही नहीं चाहता।

रही मोहन भागवत जी की बात तो वह अपने कथन में केवल मर्द के अधिकार की बात कर रहे हैं। इसी अधिकार को वह औरत के लिए नहीं मानेंगे कि अगर पति उसका भरण-पोषण न कर पाए या उसकी रक्षा न करे तो वह भी अपने पति को छोड़ सकती है। इसी से पता चलता है कि वह संस्कार ही की बात कर रहे हैं न कि वह हिंदू विवाह को क़रार ठहरा रहे हैं।

आप एक लड़की भी हैं और एक वकील भी। आप औरतों के हित में क्या चीज़ पाती हैं ?
1. क्या औरत विवाह को एक संस्कार मानकर उसकी पाबंदियों को पूरा करे जैसा कि शास्त्रों में बताया गया है ?
या कि 
2. औरत उसे संस्कार न माने और पति से निर्वाह न होने पर तलाक़ ले और चाहे तो फिर से विवाह करके अपने जीवन को सुखी बनाए ? 
पहली बात हिंदू धर्म की है और दूसरी बात इसलाम की है।
आप क्या मानना चाहेंगी ?,
यह देखने के साथ यह भी देखें कि सारी दुनिया आज क्या मान रही है ?

क्या यह हक़ीक़त नहीं है कि इसलाम आ चुका है आपके जीवन में धीरे से ?