साधना वैद जी की रचना देखिये
कब तक तुझसे सवाल करेंगे
और कब तक तुझे
कटघरे में खड़ा करेंगे !
नहीं जानते तुझसे
क्या सुनने की
लालसा मन में
करवटें लेती रहती है !
ज़िंदगी ने जिस दहलीज तक
पहुँचा दिया है
वहाँ हर सवाल
गैर ज़रूरी हो जाता है
और हर जवाब बेमानी !
अब तो बस एक
कभी ना खत्म होने वाला
इंतज़ार है
यह भी नहीं पता
किसका और क्यों
और हैं मन के सन्नाटे में
यहाँ वहाँ
हर जगह फ़ैली
सैकड़ों अभिलाषाओं की
चिर निंद्रा में लीन
अनगिनत निष्प्राण लाशें
जिनके बीच मेरी
प्रेतात्मा अहर्निश
भटकती रहती है
उस मोक्ष की
कामना में
जिसे विधाता ने
ना जाने किसके लिये
आरक्षित कर
सात तालों में
छिपा लिया है !
-साधना वैद
यह पीड़ा केवल एक साधना जी की ही नहीं है बल्कि बहुत से मन इस पीड़ा से कराह रहे हैं .
हमें हकीक़त का ज्ञान हो जाए तो यह पीड़ा निर्मूल जाती है .
हक़ीक़त यह है कि ईश्वर ने हमें निष्पाप पैदा किया है।
ईश्वर का प्रेम हमारी आत्मा में रचा बसा हुआ है। यही वजह है कि ईश्वर, आत्मा और प्रेम यह तीनों शब्द दुनिया की हरेक भाषा में मिलते हैं।
हमारी आत्मा में जो प्रेम है वह ईश्वर के प्रेम का रिफ़्लेक्शन मात्र है।
वास्तव में ईश्वर हमसे प्रेम करता है इसीलिए हम उससे प्रेम करने पर मजबूर होते हैं।
वह ईश्वर हमसे प्रेम करता है। इसीलिए उसने हमें निष्पाप पैदा किया है। बच्चा हरेक मासूम है , पिछले पापों का कोई इतिहास किसी का भी नहीं है .
उसने हमें किन्हीं पिछले जन्मों का दंड भुगतने के लिए पैदा नहीं किया है और न ही वह हमें 84 लाख योनियों में गाय, बंदर और सुअर आदि बनाकर पैदा करता है।
आवागमन की कल्पना सबसे पहले छांदोग्य उपनिषद में पेश की गई थी। उससे पहले यह कल्पना भारतीय साहित्य में मौजूद नहीं थी।
वेदों में पुनर्जन्म का वर्णन है लेकिन आवागमन का नहीं है। आवागमन का शब्द तक वेदों में नहीं है। जो शब्द वेदों में मौजूद ही नहीं है, वह एक पूरी अवधारणा बनकर भारतीय जनमानस में समा चुकी है केवल प्रचार के कारण।
ईश्वर का प्रेम हमारी आत्मा में रचा बसा हुआ है। यही वजह है कि ईश्वर, आत्मा और प्रेम यह तीनों शब्द दुनिया की हरेक भाषा में मिलते हैं।
हमारी आत्मा में जो प्रेम है वह ईश्वर के प्रेम का रिफ़्लेक्शन मात्र है।
वास्तव में ईश्वर हमसे प्रेम करता है इसीलिए हम उससे प्रेम करने पर मजबूर होते हैं।
वह ईश्वर हमसे प्रेम करता है। इसीलिए उसने हमें निष्पाप पैदा किया है। बच्चा हरेक मासूम है , पिछले पापों का कोई इतिहास किसी का भी नहीं है .
उसने हमें किन्हीं पिछले जन्मों का दंड भुगतने के लिए पैदा नहीं किया है और न ही वह हमें 84 लाख योनियों में गाय, बंदर और सुअर आदि बनाकर पैदा करता है।
आवागमन की कल्पना सबसे पहले छांदोग्य उपनिषद में पेश की गई थी। उससे पहले यह कल्पना भारतीय साहित्य में मौजूद नहीं थी।
वेदों में पुनर्जन्म का वर्णन है लेकिन आवागमन का नहीं है। आवागमन का शब्द तक वेदों में नहीं है। जो शब्द वेदों में मौजूद ही नहीं है, वह एक पूरी अवधारणा बनकर भारतीय जनमानस में समा चुकी है केवल प्रचार के कारण।
पुनर्जन्म और आवागमन में अंतर यह है कि
पुनर्जन्म परलोक में प्रलय के बाद होता है, इसी दुनिया में नहीं।
पुनर्जन्म दो शब्दों का योग है
पुनः और जन्म
जिसका अर्थ है दोबारा जन्म
दोबारा जन्म की बात हरेक धर्म-मत में मौजूद है।
स्वर्ग-नरक की बात भी हरेक धर्म-मत में मौजूद है।
इसी संसार में बार बार जन्म लेना आवागमन कहलाता है.
पुनर्जन्म एक हक़ीक़त है जिसकी पुष्टि सारी दुनिया करती है और आवागमन एक कल्पना है जिसके बारे में उसे मानने वाले तक एकमत नहीं हैं। कोई कहता है कि मनुष्य की आत्मा पशु और वनस्पति दोनों में जाती है और कोई कहता है कि नहीं केवल मुनष्य योनि में ही जाती है औ कोई कहता है कि मनुष्य की आत्मा मानव योनिऔर पशु योनि दोनों में जाती है . आवागमन में विश्वास रखने वाले कुछ ऐसे भी हैं जो कहते हैं कि आत्मा का वुजूद ही नहीं होता . गर्ज़ यह कि हरेक अपनी अटकल से बोल रहा है .
84 लाख योनियों में जन्म-मरण के चक्र से छुटकारे को मोक्ष कहा जाता है।
ईश्वर ने यह चक्र बनाया ही नहीं है, सो मोक्ष तो वह दे चुका है,
बस आपको इसका बोध हो जाए।
बोध करना आपका काम है।
अपना काम आपको करना है।
आप अपना काम करके तो देखिए आपको कितनी शांति मिलेगी ?
वह सबको बुलाता है ताकि वह हक़ीक़त का ज्ञान दे लेकिन केवल उसे शीश नवाने वाले और उसकी वाणी सुनने वाले कम ही हैं।
जीवन की सफलता और जीवन में शांति हक़ीक़त जान लेने पर ही निर्भर है।
शांति हमारी आत्मा का स्वभाव और हमारा धर्म है।
शांति ईश्वर-अल्लाह के आज्ञापालन से आती है।
नमाज़ इंसान को ईश्वर-अल्लाह का आज्ञाकारी बनाती है।
नमाज़ इंसान को शांति देती है, जिसे इंसान तुरंत महसूस कर सकता है।
जो चाहे इसे आज़मा सकता है और जब चाहे तब आज़मा सकता है।
उस रब का दर सबके लिए सदा खुला हुआ है। जिसे शांति की तलाश है, वह चला आए अपने मालिक की तरफ़ और झुका दे ख़ुद को नमाज़ में।
जो मस्जिद तक नहीं आ सकता, वह अपने घर में ही नमाज़ क़ायम करके आज़मा ले।
पहले आज़मा लो और फिर विश्वास कर लो।
पहले आज़मा लो और फिर विश्वास कर लो।
पुनर्जन्म परलोक में प्रलय के बाद होता है, इसी दुनिया में नहीं।
पुनर्जन्म दो शब्दों का योग है
पुनः और जन्म
जिसका अर्थ है दोबारा जन्म
दोबारा जन्म की बात हरेक धर्म-मत में मौजूद है।
स्वर्ग-नरक की बात भी हरेक धर्म-मत में मौजूद है।
इसी संसार में बार बार जन्म लेना आवागमन कहलाता है.
पुनर्जन्म एक हक़ीक़त है जिसकी पुष्टि सारी दुनिया करती है और आवागमन एक कल्पना है जिसके बारे में उसे मानने वाले तक एकमत नहीं हैं। कोई कहता है कि मनुष्य की आत्मा पशु और वनस्पति दोनों में जाती है और कोई कहता है कि नहीं केवल मुनष्य योनि में ही जाती है औ कोई कहता है कि मनुष्य की आत्मा मानव योनिऔर पशु योनि दोनों में जाती है . आवागमन में विश्वास रखने वाले कुछ ऐसे भी हैं जो कहते हैं कि आत्मा का वुजूद ही नहीं होता . गर्ज़ यह कि हरेक अपनी अटकल से बोल रहा है .
84 लाख योनियों में जन्म-मरण के चक्र से छुटकारे को मोक्ष कहा जाता है।
ईश्वर ने यह चक्र बनाया ही नहीं है, सो मोक्ष तो वह दे चुका है,
बस आपको इसका बोध हो जाए।
बोध करना आपका काम है।
अपना काम आपको करना है।
आप अपना काम करके तो देखिए आपको कितनी शांति मिलेगी ?
वह सबको बुलाता है ताकि वह हक़ीक़त का ज्ञान दे लेकिन केवल उसे शीश नवाने वाले और उसकी वाणी सुनने वाले कम ही हैं।
जीवन की सफलता और जीवन में शांति हक़ीक़त जान लेने पर ही निर्भर है।
शांति हमारी आत्मा का स्वभाव और हमारा धर्म है।
शांति ईश्वर-अल्लाह के आज्ञापालन से आती है।
नमाज़ इंसान को ईश्वर-अल्लाह का आज्ञाकारी बनाती है।
नमाज़ इंसान को शांति देती है, जिसे इंसान तुरंत महसूस कर सकता है।
जो चाहे इसे आज़मा सकता है और जब चाहे तब आज़मा सकता है।
उस रब का दर सबके लिए सदा खुला हुआ है। जिसे शांति की तलाश है, वह चला आए अपने मालिक की तरफ़ और झुका दे ख़ुद को नमाज़ में।
जो मस्जिद तक नहीं आ सकता, वह अपने घर में ही नमाज़ क़ायम करके आज़मा ले।
पहले आज़मा लो और फिर विश्वास कर लो।
पहले आज़मा लो और फिर विश्वास कर लो।