(लक्ष्मण को इल्ज़ाम न दो पार्ट 2)
आदरणीया दीदी अरूणा कपूर जी ! आपने रामायण पर ग़ौर किया और इस पर एक पोस्ट भी लिखी,
‘अपहरण लक्ष्मण का होता, सीता का नहीं‘
यह देखकर अच्छा लगा लेकिन लक्ष्मण जी द्वारा सूपर्नखा के नाक कान काटने वाली बात हमें सही नहीं लगती और हक़ीक़त में उन्होंने काटी भी नहीं होगी।रामायण हमारी भी प्रिय पुस्तकों में से है और इसके कथानक पर थोड़ा बहुत हमने भी विचार किया है और यह कोशिश की है कि हमारे पूवर्जों का निर्दोष चरित्र आम जनता के सामने आए जो कि कवियों की कल्पनाओं और उनके अलंकार के प्रयोग तले दब-छिप ही नहीं बल्कि विकृत भी हो गया है।
आदरणीया दीदी अरूणा कपूर जी ! आपने रामायण पर ग़ौर किया और इस पर एक पोस्ट भी लिखी,
‘अपहरण लक्ष्मण का होता, सीता का नहीं‘
यह देखकर अच्छा लगा लेकिन लक्ष्मण जी द्वारा सूपर्नखा के नाक कान काटने वाली बात हमें सही नहीं लगती और हक़ीक़त में उन्होंने काटी भी नहीं होगी।रामायण हमारी भी प्रिय पुस्तकों में से है और इसके कथानक पर थोड़ा बहुत हमने भी विचार किया है और यह कोशिश की है कि हमारे पूवर्जों का निर्दोष चरित्र आम जनता के सामने आए जो कि कवियों की कल्पनाओं और उनके अलंकार के प्रयोग तले दब-छिप ही नहीं बल्कि विकृत भी हो गया है।
कुछ तर्क निम्न प्रकार हैं -
1. आज जंगल में जंगली पशु न के बराबर ही रह गए हैं। आज भी किसी पार्टी की महिला नेता किसी भी जंगल में अकेले नहीं घूमती, तब सूपर्नखा हिंसक पशुओं से भरे हुए वन में अकेले भला क्यों घूमेगी ?
2. कानों के ज़रिये से मानव शरीर अपने आप को बैलेंस भी करता है। अगर किसी मनुष्य के कान काट दिए जाएं तो चलने में अपना संतुलन नहीं बना सकता और भाग तो बिल्कुल भी नहीं सकता।
3. ख़ून की गंध पाकर हिंसक पशु उसका शिकार करने के लिए आ जाते और वह भाग न पाती।
4. इस तरह पता यह चलता है कि अव्वल तो कोई भी राजकुमारी जंगल में आती नहीं और न ही सूपर्नखा आई होगी और अगर आ जाये तो घायल होकर हिंसक पशुओं के बीच से सही सलामत अपने घर जा नहीं सकती।
5. इससे पता यही चलता है कि सूपर्नखा के नाक कान लक्ष्मण जी ने नहीं काटे थे।
6. हिंदू काल गणना के अनुसार लक्ष्मण जी को सरयू में समाए हुए आज 12 लाख 96 हज़ार साल हो चुके हैं। ऐसे में जिसने भी उनकी कथा लिखी है, अपने अनुमान और अपनी कल्पना से लिखी है और कवियों का काम भी यही है। सूपर्नखा के नाक कान पराक्रमी वीर लक्ष्मण जी कभी काट ही नहीं सकते। यह सब कविराज की कल्पना का करिश्मा है। उन्होंने कथा को मसालेदार बनाने के लिए इस तरह के प्रसंग अपने मन से बना लिए हैं।
7. इसका उदाहरण आप देख सकती हैं कि तुलसीदास जी ने भी इसी परंपरा को आगे बढ़ाया है। बाल्मीकि रामायण में लक्ष्मण जी द्वारा कुटिया के चारों ओर लक्ष्मण रेखा खींचने का वर्णन भी नहीं है लेकिन तुलसीदास जी ने उनसे लक्ष्मण रेखा भी खिंचवा दी और छाया सीता का प्रकरण भी बढ़ा दिया जो कि बाल्मीकि रामायण में है ही नहीं।
8. हरेक रामायण में इसी तरह बहुत से प्रसंग जुदा जुदा हैं।
9. अगर काव्य से अतिश्योक्ति अलंकार को निकाल कर समझा जाय तो यह बात समझ में आ जाती है कि लक्ष्मण जी ऐसा काम नहीं कर सकते जो कि पराक्रमी वीर की शान के खि़लाफ़ हो और इसीलिए महात्मा कहलाए जाने वाले रावण ने भी सीता जी के अपहरण जैसा निंदित कर्म नहीं किया होगा।
10. राजनैतिक कारणों से दो राजाओं के बीच युद्ध अवश्य हुआ होगा और बाक़ी बातें लोगों ने ऐसे ही बढ़ा ली होंगी जैसे कि आजकल अकबर बीरबल के बारे में लोग ऐसे ऐसे क़िस्से सुना देते हैं जो ख़ुद अकबर बीरबल ने भी कभी न सुने होंगे।
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1. आज जंगल में जंगली पशु न के बराबर ही रह गए हैं। आज भी किसी पार्टी की महिला नेता किसी भी जंगल में अकेले नहीं घूमती, तब सूपर्नखा हिंसक पशुओं से भरे हुए वन में अकेले भला क्यों घूमेगी ?
2. कानों के ज़रिये से मानव शरीर अपने आप को बैलेंस भी करता है। अगर किसी मनुष्य के कान काट दिए जाएं तो चलने में अपना संतुलन नहीं बना सकता और भाग तो बिल्कुल भी नहीं सकता।
3. ख़ून की गंध पाकर हिंसक पशु उसका शिकार करने के लिए आ जाते और वह भाग न पाती।
4. इस तरह पता यह चलता है कि अव्वल तो कोई भी राजकुमारी जंगल में आती नहीं और न ही सूपर्नखा आई होगी और अगर आ जाये तो घायल होकर हिंसक पशुओं के बीच से सही सलामत अपने घर जा नहीं सकती।
5. इससे पता यही चलता है कि सूपर्नखा के नाक कान लक्ष्मण जी ने नहीं काटे थे।
6. हिंदू काल गणना के अनुसार लक्ष्मण जी को सरयू में समाए हुए आज 12 लाख 96 हज़ार साल हो चुके हैं। ऐसे में जिसने भी उनकी कथा लिखी है, अपने अनुमान और अपनी कल्पना से लिखी है और कवियों का काम भी यही है। सूपर्नखा के नाक कान पराक्रमी वीर लक्ष्मण जी कभी काट ही नहीं सकते। यह सब कविराज की कल्पना का करिश्मा है। उन्होंने कथा को मसालेदार बनाने के लिए इस तरह के प्रसंग अपने मन से बना लिए हैं।
7. इसका उदाहरण आप देख सकती हैं कि तुलसीदास जी ने भी इसी परंपरा को आगे बढ़ाया है। बाल्मीकि रामायण में लक्ष्मण जी द्वारा कुटिया के चारों ओर लक्ष्मण रेखा खींचने का वर्णन भी नहीं है लेकिन तुलसीदास जी ने उनसे लक्ष्मण रेखा भी खिंचवा दी और छाया सीता का प्रकरण भी बढ़ा दिया जो कि बाल्मीकि रामायण में है ही नहीं।
8. हरेक रामायण में इसी तरह बहुत से प्रसंग जुदा जुदा हैं।
9. अगर काव्य से अतिश्योक्ति अलंकार को निकाल कर समझा जाय तो यह बात समझ में आ जाती है कि लक्ष्मण जी ऐसा काम नहीं कर सकते जो कि पराक्रमी वीर की शान के खि़लाफ़ हो और इसीलिए महात्मा कहलाए जाने वाले रावण ने भी सीता जी के अपहरण जैसा निंदित कर्म नहीं किया होगा।
10. राजनैतिक कारणों से दो राजाओं के बीच युद्ध अवश्य हुआ होगा और बाक़ी बातें लोगों ने ऐसे ही बढ़ा ली होंगी जैसे कि आजकल अकबर बीरबल के बारे में लोग ऐसे ऐसे क़िस्से सुना देते हैं जो ख़ुद अकबर बीरबल ने भी कभी न सुने होंगे।
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धन्यवाद डॉ.अनवर जी!...मेरा लेख आपने ध्यान से पढ़ा!...आप का लेख भी यहाँ मैंने ध्यान से पढ़ा!...इस बात से आप सहमत है ही कि लक्ष्मण द्वारा शूर्पनखा का अपमान किसी भी तरीके से हुआ था!..ऐसे में रावण ने लक्ष्मण की बजाए सीता पर कुठाराघात किया..याने कि सीता का अपहरण किया यह योग्य नहीं है!...रावण का दोषी तो लक्ष्मण था!...और इसमें गलत तो मैंने रावण को ही ठहराया है!...रावण का बुरा होना सर्व विदित है!
ReplyDelete....फिर एक बार धन्यवाद और दीपावली की शुभकामनाएं!
@ अरुणा जी ! हमने साफ़ साफ़ और बार बार कहा है कि श्री लक्ष्मण जी ने रावण की बहन के साथ नाक कान काटने जैसा कुछ भी नहीं किया था क्योंकि कोई भी राजकुमारी जंगल में कभी अकेली नहीं जाती थी और न ही आज जाती है ,
ReplyDeleteधन्यवाद .