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Thursday, October 7, 2010

Utilty of christian rituals for children अगर बच्चा अपनी मासूमियत की वजह से स्वर्ग का अधिकारी है तो फिर उसे ईसा मसीह के नाम का बपतिस्मा लेकर क्या फ़ायदा होता है ? - Anwer Jamal

भाई राकेश लाल जी ! आपने कुरआन पढ़ना शुरू कर दिया है, बेशक यह आपकी एक बड़ी उपलब्धि है। आपके पास एक-दो हिन्दी किताबें भी हैं, जिनमें से आपने ‘पेस्ट‘ करके मेरी पिछली पोस्ट ‘वेस्ट‘ कर दी। आप ईसाईयत के प्रचारक हैं, मैं आपका उत्साह समझ सकता हूं। आप ब्लागिंग में नये हैं। यह भी ठीक है लेकिन उम्र तो आपकी ठीक-ठाक है। मैंने आपसे यह नहीं पूछा था कि कुरआन में ईसा मसीह अलैहिस्सलाम का ज़िक्र कहां-कहां आया है, बल्कि मैंने आपसे यह पूछा था कि
1. जिस कुरआन को मानने की दावत आप मुसलमानों को दे रहे हैं, क्या आप उस कुरआन को खुद भी मानते हैं ?
2. मुसलमान आवागमन को नहीं मानते और सभी बच्चों को पैदायशी तौर पर मासूम मानते हैं, आप बच्चों को क्या मानते हैं, मुसलमानों की तरह मासूम या ‘मूल पाप‘ का बोझ ढोने वाला दोषी ?
3. जिस बाइबिल को आप मानते हैं उसमें रोमन कैथोलिक बाइबिल से कुल कितनी किताबें कम हैं ?
आपसे ज़्यादा सवाल नहीं करूंगा।
पहले आप इन सवालों के जवाब दीजिए। फिर मैं आपको कुरआन पढ़ाऊंगा और आपको आपकी ‘पेस्ट‘ की हुई आयतों के अनुवाद के बारे में सही-सही बताऊंगा। आपने सिर्फ़ अनुवाद ‘पेस्ट‘ कर दिया न उसे पढ़ा और न ही उसे समझा।
आपने खुद पेस्ट किया कि ‘3 : 52 अल्लाह के नजदीक ईसा अ0 का जन्म ऐसा ही है जैसा हजरत आदम का जन्म।'
क- जब कुरआन में साफ़ आया है कि ‘ईसा की मिसाल आदम जैसी है।‘ तो आप खुद सोच लीजिए कि जब आदम खुदा नहीं हैं तो उनकी मिसाल वाला आदमी कैसे खुदा हो जाएगा ?
ख- कुरआन में आया है कि जन्नत में वही आदमी जाएगा जिसने अपनी ख्वाहिशें खुदा के हुक्म के अधीन कर दी होंगी, खुदा के हुक्म का पालन किया होगा, खुद को खुदा के प्रति समर्पित कर दिया होगा। ऐसे ही आदमी को मुस्लिम कहा जाता है, मुसलमान शब्द फ़ारसी में मुस्लिम अर्थात समर्पित के लिए ही बोला जाता है।
आपने कह दिया कि सारे मुसलमान जहन्नम में जाएंगे, ऐसा कुरआन कहता है। आपने एक ऐसी बात कह दी जिसे आज तक पत्रक छापने और बांटने वाले हिन्दुओं में से भी किसी ने न कहा बल्कि उल्टे उन्हें यह शिकायत है कि मुसलमान अपने अलावा किसी को जन्नत में जाने का पात्र क्यों नहीं मानता ?
ग- आप मानते हैं कि हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम मर चुके हैं। जो मर जाए वह खुदा नहीं होता। हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम की दोबारा आमद केवल इसीलिए होगी कि वे लोगों के ज़ुल्म और मारपीट की वजह से बेहोश हो गए थे, दूर से देखने वालों ने उनकी बेहोशी को मौत समझ लिया। वे ज़िन्दा थे जब गुफ़ा में उन्हें चादर लपेटकर रखा गया क्योंकि हज़रत यूनूस भी मछली के पेट में ज़िन्दा थे और हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम ने बताया था कि लोगों को मेरी सच्चाई के तौर पर ‘साइन आफ़ जोनाह‘ यानि कि हज़रत यूनुस का चिन्ह दिया जाएगा।
ये सारी बातें आपको धीरे-धीरे बताई जाएंगी। आप बिल्कुल ठीक जगह पर आ गए हैं। अब आप यहां से पीछा छुड़ाकर जाना भी चाहें तो आपको जाने नहीं दिया जाएगा। मैं बिल्कुल भी नाराज़ नहीं हूं। मैं आपके आने से बहुत खुश हूं। बस आपसे एक विनती करना चाहूंगा कि आप कमेंट करने से पहले यह ज़रूर देख लिया कीजिए कि आपसे पूछा क्या जा रहा है ?
देखो समय क्या कह रहा है ?

        जो समाज ईश्वर के नियमों को  नहीं मानता और जीवन को खेल की तरह गुज़ारता है, धर्म की जगह संस्कृति और राष्ट्र को दे बैठता है उसके राष्ट्र में विदेशी आकर ‘मौज‘ करते हैं और
उसकी ‘मां‘ जैसी धरती पर ऐसी चीज़ें इतनी मात्रा में डाल देते हैं कि टॉयलेट भी अट जाते हैं। इस ज़िल्लत को न तो वे किसी से शेयर कर पाते हैं और न ही उन्हें इस ज़िल्लत से मुक्ति का कोई मार्ग ही नज़र आता है क्योंकि जो मार्ग होता है उसकी मज़ाक़ उड़ाना तो उनका मिशन होता है। समय उनकी मज़ाक़ उड़ाता है और वे फिर भी मालिक की शरण में नहीं आते।
अफ़सोस, हज़ार बार अफ़सोस।

20 comments:

  1. भाई राकेश लाल जी ! आपने कुरआन पढ़ना शुरू कर दिया है, बेशक यह आपकी एक बड़ी उपलब्धि है।

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  2. भाई राकेश लाल जी से जवाब मिलने का बसब्री से इंतज़ार रहेगा ।

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  3. Love wants no wall - जहां मिट गई है मंदिर-मस्जिद के बीच की दीवार मेरे ब्लॉग पर पढ़ें

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  4. मरने से पहले मैं सच दुनिया के सामने रखना चाहता हूं
    @ प्रिय भाई महक ! मानव जाति एक है उसे बांटती हैं उनमें फैली ग़लत मान्यताएं। ग़लत मान्यताओं को त्यागते ही सारी मानव जाति एक हो जाएगी। मैं मानव जाति को एक करने के उद्देश्य से ही समाज में फैली कुरीतियों और ग़लत मान्यताओं का विरोध करता हूं और परवाह नहीं करता कि कौन नाराज़ हो जाएगा ? मैंने बारह वफ़ात के जुलूस निकालने और सड़क पर नमाज़ ए जुमा की अदायगी को नाजायज़ कहा तो कुछ मुसलमान नाराज़ हो गए। मैंने अब आवागमन को ग़लत कहा तो संभव है कि कुछ हिन्दू भाई भी नाराज़ हो जाएं। हिन्दू तो तब भी नाराज़ हुआ करते थे जब राजा राम मोहन राय ने हिन्दू स्त्रियों को शिक्षा देना शुरू किया था। उन्हें हिन्दू कोसते थे, पत्थर मारते थे। समय गुज़र चुका है आज उन्हें सुधारक माना जाता है, उनका उपकार आज सबके सामने है। गांधी जी को गोली मार दी गई लेकिन गांधी जी की हैसियत को उन्हें मारने वाला न मिटा सका।
    सनातनी और आर्य हिन्दू ही नहीं बल्कि बौद्ध और जैन दर्शन भी आवागमन को मानते हैं। आवागमन को मानने से बच्चे की मासूमियत को मानना संभव नहीं रहता। मैं इसका खंडन करता हूं। सुज्ञ जी भी कहते हैं कि अगर कोई कुरीति धर्म का चोला ओढ़ ले तो उसे बख्शा नहीं जा सकता। आपने और सुज्ञ जी ने भी कुरबानी और मांसाहार को राक्षसी कहा और मांसाहारियों को सज़ा ए मौत देने का प्रस्ताव ब्लाग संसद में लाए और उस पर बहस की और कराई। एक बहन ने तो मांस खाने की तुलना शराब पीने से ही कर डाली। क्या तब आपको पता न था कि दुनिया के कई धर्म-मत को मानने वाले करोड़ों लोग मांसाहार करते हैं और यह उनके पवित्र माने जाने वाले धर्मग्रंथों में भी जायज़ कहा गया है ?
    क्या किसी मुसलमान ने आपसे कहा कि आप ऐसी बातें न करें ?
    मुसलमानों ने केवल आपके सामने तथ्य रख दिये , मानना न मानना आपका काम है।
    अभी कुछ दिन पहले एक भाई आकर ‘जन्नत में हूर मिलने‘ पर ऐतराज़ जता रहे थे। क्या जन्नत पर ऐतराज़ करते देखकर आपमें से किसी ने उन्हें टोका कि इस तरह की बातें न करें ?
    जब इसलाम पर ऐतराज़ करने का समय मिलता है तो सभी सुधारक और बुद्धिजीवी होने का अभिनय करने लगते हैं, कोई नहीं बख्शता और जब बताया जाता है कि आवागमन तो होता नहीं है हां स्वर्ग-नर्क ज़रूर होता है और इन्हीं को अरबी में जन्नत-जहन्नम कहा जाता है तो सलाह दी जाती है कि ऐसी बातों से लड़ाई होने का अंदेशा है।
    अरे भाई क्यों होगी लड़ाई ? आप मेरी सही बात को मान लीजिए या फिर मेरी बात ग़लत साबित कर दीजिए मैं आपकी सही बात मान लूंगा। क्यों होगी लड़ाई ?
    लड़ाई तो तब होगी जब आदमी ग़लत बातें समाज में फैलाएगा और समझाने के बावजूद भी अपनी ग़लती पर हठ करेगा।
    आपके सवाल का लघु उत्तर सेवा में प्रस्तुत है और विस्तृत उत्तर दूंगा तो उसमें आवागमन का विषय भी समाहित होगा। अनम जैसे हज़ारों बच्चे दुनिया में आकर चले जाते हैं। किसी ने अनम को कुछ कहा हो या न कहा हो लेकिन इन जैसे बच्चों को आवागमन में विश्वास रखने वाले ‘पापी‘ ही मानते हैं। यह आप भी जानते हैं। मेरा लहजा तल्ख़ हो सकता है लेकिन मेरी बात सही है। लहजे के लिए मैं आप सभी भाइयों से क्षमा प्रार्थी हूं। लेकिन आप तथ्य पर ध्यान दीजिए अगर आप सत्य चाहते हैं तो। हरेक दर्शन की सभी बातें न तो ग़लत हो सकती हैं और न ही सही। नीर-क्षीर विवेक ज़रूरी है, उम्मीद है कि मेरी बात से सुज्ञ जी जैसे अणुव्रतधारी सहमत होंगे।
    @ सुज्ञ जी ! आपके साथ किसी भी विषय पर चर्चा करना एक सौभाग्य की बात है लेकिन मैं यह ज़रूर जानना चाहूंगा कि आप श्वेतांबर हैं, दिगंबर हैं या फिर स्थानकवासी ? आप किन किताबों में विश्वास रखते हैं ? आदि तीर्थंकर ऋषभदेव की शिक्षा में ऐसी क्या कमी रह गई थी कि उनके बाद और भी तीर्थंकरों को आना पड़ा ? सभी तीर्थंकरों में महावीर जी को क्यों प्रधानता दी जाती है ? आपकी मान्य पुस्तकें किस प्रकाशन पर मिलती हैं ?
    @ रवीन्द्र जी ! मैं हिन्दू मान्यताओं पर आघात क्यों करूंगा। मैं मानता हूं कि हिन्दू धर्म की कोई भी बात ग़लत नहीं हो सकती। ऐसा मैं इसलिए कहता हूं कि किसी भी दार्शनिक की ग़लत बात को मैं हिन्दू धर्म की बात मानता ही नहीं। इस तरह मैं हिन्दू धर्म को पुष्ट कर रहा हूं या उस पर आघात कर रहा हूं। आप मेरा ब्लाग बंद कराना चाहते हैं लेकिन मेरी तो किताबे ज़िंदगी ही बहुत जल्द बंद होने वाली है। मरने से पहले मैं वह सच दुनिया के सामने रखना चाहता हूं जो मुझे लगभग 35 वर्ष की मेहनत के बाद केवल मालिक की कृपा से मिला है।

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  5. आप की बातें हमेशा नपीतुली जांची परखी होती हैं
    आपका कोई जवाब नहीं
    लाजवाब हो

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  6. मैं मानता हूं कि हिन्दू धर्म की कोई भी बात ग़लत नहीं हो सकती
    ?
    ?
    ?
    ?

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  7. बहुत अच्छी पोस्ट

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  8. @अनवर साहब आपने इस पोस्ट से कथित राष्ट्रवादियोँ की पोल खोल दी है । इन लोगों की राष्ट्र भक्ति अचानक कहाँ चली गई जो भारत जैसी पवित्र भूमि को गंदा करने वाले लोग भी इन्हे दिखाई नही दे रहें हैं अक्षरधाम जैसे मंदिर के पास स्थित खेलगाँव मे कंडोम से इस तरह टोयलेट अट जाना बड़े शर्म की बात है । क्या इन विदेशी मेहमानों को यहाँ यही सब करने के लिए बुलाया गया ? सबसे बड़ी शर्म की बात तो इन राष्ट्रवादियोँ का रवैया है जो बात बात पर संस्कृति की दुहाई देते हैं । क्या इस तरह के काम राष्ट्र गौरव की बात है ?

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  9. आदरणीय, प्रिय एवं गुरुतुल्य अनवर जी ,

    आपकी बातों का क्रमानुसार ही जवाब देना चाहूँगा ,अगर मेरी किसी बात से बुरा लगे तो उसके लिए क्षमांप्रार्थी हूँ

    मैं मानव जाति को एक करने के उद्देश्य से ही समाज में फैली कुरीतियों और ग़लत मान्यताओं का विरोध करता हूं और परवाह नहीं करता कि कौन नाराज़ हो जाएगा ?मैंने बारह वफ़ात के जुलूस निकालने और सड़क पर नमाज़ ए जुमा की अदायगी को नाजायज़ कहा तो कुछ मुसलमान नाराज़ हो गए। मैंने अब आवागमन को ग़लत कहा तो संभव है कि कुछ हिन्दू भाई भी नाराज़ हो जाएं।


    किसने कहा की आप कुरीतियों के विरुद्ध आवाज़ ना उठाएं ,कम से कम मैंने तो ऐसा नहीं कहा ,बल्कि मैं तो और दो कदम आगे बढकर कहता हूँ की किसी भी कुरीति ( चाहे हिंदू कुरीति हो या मुस्लिम कुरीति ) के खिलाफ आप जब भी आवाज़ उठाएंगे तो मुझे खुद के साथ सबसे पहले खड़ा पायेंगे
    परन्तु महोदय किसी बात या theory को गलत कहने का भी एक तरीका होता है ,आप आवागमन को गलत ठहराने के लिए अपने तर्क प्रस्तुत करें जिनका की सदैव स्वागत है परन्तु एक धर्मविशेष के लिए इस प्रकार के शब्दों का प्रयोग करना की इस धर्म के सभी लोग बच्चों को जन्मजात पापी मानते हैं ,तो ये तो अपातिजंक है ,मैं खुद इस बात को नहीं मानता की अगर आज मेरे साथ अच्छा हो रहा है तो वह मेरे पिछले जन्म में किये गए पुण्यों का फल है और बुरा हो रहा है तो मेरे पिछले जन्म में किये गए पापों का फल है


    सनातनी और आर्य हिन्दू ही नहीं बल्कि बौद्ध और जैन दर्शन भी आवागमन को मानते हैं। आवागमन को मानने से बच्चे की मासूमियत को मानना संभव नहीं रहता। मैं इसका खंडन करता हूं।सुज्ञ जी भी कहते हैं कि अगर कोई कुरीति धर्म का चोला ओढ़ ले तो उसे बख्शा नहीं जा सकता। आपने और सुज्ञ जी ने भी कुरबानी और मांसाहार को राक्षसी कहा और मांसाहारियों को सज़ा ए मौत देने का प्रस्ताव ब्लाग संसद में लाए और उस पर बहस की और कराई। एक बहन ने तो मांस खाने की तुलना शराब पीने से ही कर डाली। क्या तब आपको पता न था कि दुनिया के कई धर्म-मत को मानने वाले करोड़ों लोग मांसाहार करते हैं और यह उनके पवित्र माने जाने वाले धर्मग्रंथों में भी जायज़ कहा गया है ?

    चलिए आपकी ही बात को मान लेते हैं की क्योंकि मांसाहार को उनके पवित्र माने जाने वाले धर्मग्रंथों में जायज़ कहा गया है तो वह सही है और मुझे और सुज्ञ जी को इसके विरुद्ध नहीं बोलना चाहिए लेकिन फिर यही सिद्धांत आप यहाँ क्यों नहीं लागू करते की क्योंकि आवागमन सहित बहुत सी बातें पवित्र ग्रंथों में जायज़ कहीं गई हैं तो फिर हमें और आपको भी उनके विरुद्ध नहीं बोलना चाहिए फिर चाहे वह कोई कुरीति ही क्यों ना हो, एक तरफ तो आपने कहा की आप समाज में फैली हर कुरीति और गलत मान्यता का विरोध करते हैं और दूसरी ओर आप कह रहें हैं की क्योंकि मांसाहार नामक कुरीति को कई धर्मग्रंथों में जायज़ कहा गया है तो इस कारण मुझे और सुज्ञ जी को इसका विरोध नहीं करना चाहिए था ,जायज़ तो आवागमन को भी कहा गया है तो फिर आपके द्वारा इसका विरोध क्यों ??


    क्या किसी मुसलमान ने आपसे कहा कि आप ऐसी बातें न करें ?

    आपकी इस बात का तात्पर्य मैं पूरी तरह से नहीं समझ पाया हूँ ,शायद इसका मतलब यह है की मुझे आपको सभी हिंदुओं को जन्मजात पापी कहे जाने पर टोकना नहीं चाहिए था और आपत्ति नहीं जतानी चाहिए थी, अब मुझे भी ऐसा लग रहा है की मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था ,भई आपकी कलम है ,आपका मन है ,जो मन में आये लिखें मैं कौन होता हूँ आपको टोकने वाला , इसी तरह से जो मेरे मन में आये लिखूं लेकिन हम एक दूसरे को टोकें ना ,शायद यही मतलब है इसका ,आइन्दा से ध्यान रखूँगा


    अभी कुछ दिन पहले एक भाई आकर ‘जन्नत में हूर मिलने‘ पर ऐतराज़ जता रहे थे। क्या जन्नत पर ऐतराज़ करते देखकर आपमें से किसी ने उन्हें टोका कि इस तरह की बातें न करें ?

    शायद आपका इशारा शर्मा जी के ब्लॉग की ओर है तो आप तो जानते ही हैं की मैं उनसे भी निवेदन कर चुका हूँ की तर्क-वितर्क बेशक करें लेकिन उसमें शब्दों का चयन सोच समझकर करें

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  10. जब इसलाम पर ऐतराज़ करने का समय मिलता है तो सभी सुधारक और बुद्धिजीवी होने का अभिनय करने लगते हैं, कोई नहीं बख्शता और जब बताया जाता है कि आवागमन तो होता नहीं है हां स्वर्ग-नर्क ज़रूर होता है और इन्हीं को अरबी में जन्नत-जहन्नम कहा जाता है तो सलाह दी जाती है कि ऐसी बातों से लड़ाई होने का अंदेशा है।

    जनाब जिस बात को कहने के लिए आपने जिन शब्दों का प्रयोग अब किया है क्या बात को पहले ही इन्ही शब्दों के साथ नहीं कहा जा सकता था ?? या फिर दो धर्मों की तुलना करके एक की सोच में बच्चों के प्रति मासूमियत ओर दूसरे की सोच में बच्चों को जन्मजात पापी का स्वयं भू चित्रण किया जाना अति-आवश्यक था ,क्या जैसे आपने बात अब कही है तो क्या पहले इसी प्रकार से बात नहीं कही जा सकती थी ?? या extrimists elements को ये मसाला देना ज़रूरी था की देखो अनवर जमाल हमारे धर्म के बारे में कैसा दुष्प्रचार कर रहें हैं



    अरे भाई क्यों होगी लड़ाई ? आप मेरी सही बात को मान लीजिए या फिर मेरी बात ग़लत साबित कर दीजिए मैं आपकी सही बात मान लूंगा। क्यों होगी लड़ाई ?
    लड़ाई तो तब होगी जब आदमी ग़लत बातें समाज में फैलाएगा और समझाने के बावजूद भी अपनी ग़लती पर हठ करेगा।



    मेरी मूल आपत्ति आपके द्वारा बात को कहने के लिए प्रयोग किये गए शब्दों को लेकर थी जिसे की कट्टरपंथी तत्व दूसरे भाइयों को गुमराह करने में प्रयोग करेंगे की देखो जमाल कैसे हमारे धर्म को बुरा और खुद के धर्म को श्रेष्ठ बता रहा है ,अब मुझे नहीं लगता की इन बातों से दोनों धर्म के लोगों के बीच में प्रेम बढ़ेगा, हाँ लड़ाई होने की संभावना अधिक बनती है


    आपके सवाल का लघु उत्तर सेवा में प्रस्तुत है और विस्तृत उत्तर दूंगा तो उसमें आवागमन का विषय भी समाहित होगा। अनम जैसे हज़ारों बच्चे दुनिया में आकर चले जाते हैं। किसी ने अनम को कुछ कहा हो या न कहा हो लेकिन इन जैसे बच्चों को आवागमन में विश्वास रखने वाले ‘पापी‘ ही मानते हैं। यह आप भी जानते हैं।

    अनवर जी , जो भी लोग इन्हें पापी मानते हैं तो ये कैसे उचित है की आप उन लोगों की सोच को ही सभी हिंदुओं की सोच मान लें ,मैं एक हिंदू हूँ लेकिन मैं इस आवागमन के सिद्धांत में यकीन नहीं रखता और मेरे जैसे ही ना जाने कितने ऐसे लोग हैं जो की इसे नहीं मानते, तब क्या उन लोगों की वजह से सभी हिंदुओं के बारे में ये कह दिया जाए की ये तो बच्चों को जन्मजात पापी मानते हैं ,भई आप यहाँ पर " हिंदुओं की तरह " नामक पंक्ति को " कुछ हिंदुओं की तरह ", इस तरह से कह देते तो मुझे तो आपत्ति ना होती

    ऐसी ही शब्दावली पर मुझे एक दिलचस्प बहस याद आ रही है जो की मेरी प्रिय अयाज़ भाई से आपकी ही एक पोस्ट पर हो गई थी

    http://vedquran.blogspot.com/2010/05/love-fasad-2.html

    Dr. Ayaz ahmad said...

    @प्रिय महक जी आधुनिक युग मे भी गोत्र और जाति हिंदू युवाओ के मिलन मे बाधा बन रही है । अब आप ही बताइए कि इस समस्या के लिए अगर हिंदूओ को सम्बोधित न किया जाए तो क्या ईसाइयो को सम्बोधित किया जाएगा? इसमे सारे हिन्दुओ को खराब बताने वाली बात कहाँ है? डा. साहब तो खुद मानते है कि हिंदु सदगुणो की खान है।
    May 8, 2010 8:39 AM

    Mahak said...

    @ प्रिय अयाज़ भाई
    इसी तरह जो आत्मघाती हमले करते हैं जन्नत पाने के लिए तो आप ही बताइए कि इस समस्या के लिए अगर मुसलामानों को सम्बोधित न किया जाए तो क्या सिखों को सम्बोधित किया जाए ?इसमे सारे मुसलामानों को खराब बताने वाली बात कहाँ है?
    May 8, 2010 11:30 AM



    तो अनवर जी आप खुद ही देख सकते हैं की किस प्रकार से सही शब्दों का चयन ना करकर कैसे ग़लतफहमी पैदा हो सकती है ,मेरी मूल आपत्ति आपके द्वारा बात को कहने के लिए प्रयोग किये गए शब्दों को ही लेकर थी ,बाकी तो आप मुझसे अधिक अनुभवी और ज्ञानवान हैं ,मेरी क्या बिसात की मैं आपको शब्दावली का चयन करना सिखाऊं, मैं तो बस निवेदन ही कर सकता हूँ जो की पहले भी किया अब भी करता हूँ ,आगे आपकी मर्ज़ी ,मेरे द्वारा कही गई किसी भी बात से अगर आपको दुःख पहुंचा हो तो एक बार फिर आपसे क्षमां मांगता हूँ


    ईश्वर आपको दीर्घायु करे और सदा प्रसन्न रखे


    धन्यवाद


    महक

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  11. जमाल न सिर्फ तुम हिन्दु मान्यताओं पर आघात करते हो अपितु समय समय पर अनर्गल आक्षेप भी लगाते हो। यह सब तब है जबकि तुमको हिन्दु धर्म की आधारभूत जानकारी भी नही है, तुम तो नरकासुर और भौमासुर को भी अलग अलग मानते हो।

    अगर तुम सत्य की ही बात रखते हो तो तुम्हारे ब्लोग मे जो तुमने लिखा है "आप बच्चों को क्या मानते हैं, मुसलमानों की तरह मासूम या हिन्दुओं की तरह जन्मजात पापी" इस वाक्य को किस आधार पर लिखा है, किस हिन्दु धर्म मे ऐसा लिखा है? बेहतर होगा कि इस प्रकार की अनर्गल बातें हमारे बारे मे न लिखा जाए, अन्यथा जो तुम बोल रहे हो मैं ईश्वर से प्रार्थना करूंगा कि वो जद सच हो जाए (आप मेरा ब्लाग बंद कराना चाहते हैं लेकिन मेरी तो किताबे ज़िंदगी ही बहुत जल्द बंद होने वाली है।)

    और तुम महक से क्यों कह रहे हो कि या तो वो तुम्हारी बात मान ले या तुमको गलत साबित करे, क्या यह बेहतर नही होगा कि तुम या तो महक की बात मान लो या उसको गलत साबित करने कि जिम्मेदारी तुम्हारे सर।

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  12. @ अनवर साहब,
    @ सनातनी और आर्य हिन्दू ही नहीं बल्कि बौद्ध और जैन दर्शन भी आवागमन को मानते हैं। आवागमन को मानने से बच्चे की मासूमियत को मानना संभव नहीं रहता। मैं इसका खंडन करता हूं। सुज्ञ जी भी कहते हैं कि अगर कोई कुरीति धर्म का चोला ओढ़ ले तो उसे बख्शा नहीं जा सकता। आपने और सुज्ञ जी ने भी कुरबानी और मांसाहार को राक्षसी कहा और मांसाहारियों को सज़ा ए मौत देने का प्रस्ताव ब्लाग संसद में लाए और उस पर बहस की और कराई। एक बहन ने तो मांस खाने की तुलना शराब पीने से ही कर डाली। क्या तब आपको पता न था कि दुनिया के कई धर्म-मत को मानने वाले करोड़ों लोग मांसाहार करते हैं और यह उनके पवित्र माने जाने वाले धर्मग्रंथों में भी जायज़ कहा गया है
    = यह मुद्दा हमारी स्वस्थ चर्चा को वितंडा में डालने के समान है, क्योंकि मुद्दा “हिन्दु एवं इस्लाम में आवागमन क्यों है अथवा क्यों नहिं है” था। हम तो उससे भी बढकर चाह्ते है, मात्र बच्चे ही मासूमियत न पाये ब्ल्की जगत के सभी जीव-मानव, कर्म से मुक्त हो उस मासूमियत को पाकर अपना कल्याण करे।
    यकिन मानिए आज से पहले मै नहिं जानता था, इस्लाम में मांसाहार एक अटूट सम्वेदनशील हिस्सा है, और मांसाहार का विरोध करना,पुरे इस्लामी दर्शन के विरोध समान है,जो आपकी तल्ख प्रतिक्रिया से ज्ञात होता है।
    यह तो जानते थे, इस्लाम में जायज़ है, पर यह भी सच था कि सारी जायज़ वस्तूओं का प्रयोग करो ही ऐसा आदेश नहिं है। कहीं पढा भी था “एक शाकाहारी मुस्लीम भी सच्चा मुस्लीम हो सकता है”। और हमारा उद्देश्य किसी अन्य का आहार निश्चित करना नहिं, बल्कि इस दृष्टिकोण को प्रस्तूत करना था कि कैसे विवेक पूर्वक अक्रूर आहार चुना जाय। और मांसाहार पर लेख श्रंखला भी सलीम मियां की प्रारम्भ की हुई थी।
    मैं अपने मंतव्य में सुधार करता हूं, ‘इस्लाम के लिये मांसाहार प्रमुख सम्वेदनशील, व सैद्धांतिक नियम है’। शाकाहार पर अपनी प्रतिक्रिया करते हुए यदि सामने कोई मुस्लीम हो तो उसकी स्म्वेदना का ध्यान रखा जाना चाहिए।

    @क्या किसी मुसलमान ने आपसे कहा कि आप ऐसी बातें न करें ?
    = हां, आपने एक टीप्पणी के माध्यम से विरोध किया ही था, और अयाज़ साहब ने तो दो तीन पोस्टें ही डाल दी थी।

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  13. @ अनवर साहब,
    @”हरेक दर्शन की सभी बातें न तो ग़लत हो सकती हैं और न ही सही।“ नीर-क्षीर विवेक ज़रूरी है, उम्मीद है कि मेरी बात से सुज्ञ जी जैसे अणुव्रतधारी सहमत होंगे।
    = बिल्कुल अनवर साहब, लेकिन सच को ढूढ लाना, कुछ मोती के लिये समस्त सागर का मंथन करने के लायक है, और हमेशा की तरह असत्य लुभावनी बातों के पिछे छुपा होता है। और नीर-क्षीर विवेक का सामर्थ्य अथाह ज्ञान के बाद प्रकट होता है।

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  14. @ अनवर साहब,
    @ सुज्ञ जी ! आपके साथ किसी भी विषय पर चर्चा करना एक सौभाग्य की बात है लेकिन मैं यह ज़रूर जानना चाहूंगा कि आप श्वेतांबर हैं, दिगंबर हैं या फिर स्थानकवासी ?
    = अनवर साहब, जब मैने अपना उपनाम ‘सुज्ञ’ चुना तो इतना गहन चिंतन किया कि इससे मेरा सम्पूर्ण व्यक्तिव ही प्रकट हो जाय। ‘सुज्ञ’=”सच्चा ज्ञान जो सुगमता से आत्मसात कर ले।“, सुविज्ञ नहिं जिससे विशेष ज्ञान होने का अभिमान ध्वनित पुष्ठ होता हो। मैं सभी दर्शनों का विद्यार्थी हूं, सभी दर्शनों का गुणाभिलाषी हूं, वस्तूतः मैं गुणपूजक हूं।
    ‘सुज्ञ’ जो धार्मिक सत्य वचनो का अनुकरण अवश्य करता है, पर सुज्ञ को किसी सम्प्रदाय परंपरा में खण्डित कर देखना असम्भव है। मैने कभी जैन शब्द प्रयोग नहिं किया, पर मै जानता हूं इस दर्शन में ऐसी जाति या धर्म-वाचक संज्ञा है ही नहिं, शास्त्रों में इस धर्म के लिये ‘मग्गं’ मार्ग शब्द ही आया है। और मार्गानुसरण कोई भी कर सकता है। यह तो कहीं टिप्पणीयों में जैन तत्व दृष्टिकोण से निरूपण हुआ होगा। खैर बिना किसी पूर्वाग्रह के मै सम्यग्दर्शन वान हूं।
    मैं इस सम्यग विचारधारा पर पूर्णरूप से आस्थावान हूं, सम्यग्दृष्टि हूं।
    आप किन किताबों में विश्वास रखते हैं ? आपकी मान्य पुस्तकें किस प्रकाशन पर मिलती हैं ?
    = किताबों को मैं जड मानता हूं, उसमें उल्लेखित ज्ञान ही चेतन-ज्ञान दाता है। इसलिये जब भी मेरे सम्मुख कोई ज्ञान-शास्त्र आये, मेरे विवेक को मै छलनी और सूप बना देता हूं, ‘सार सार को गेहि रहे थोथा देय उडाय’। यह विवेक परिक्षण विधि भी ‘सम्यग्दृष्टि’ की ही देन है। इसलिये मुझे चिंता नहिं, क्या सही लिखा क्या गलत।
    लेकिन मेरे जैन होने, या निर्धारित करनें में इस चर्चा को क्या बल मिलने वाला है? आवागमन पर चर्चा होनी चाहिये, और वह भी इस्लाम और हिंदुत्व के परिपेक्ष में। कहिं ऐसा तो नहिं आपकी धर्म-निंदा अग्नी अब जो भी आये उसे स्वाहा करने पर तुली है। यदि ऐसा है तो मेरे कारण एक निर्दोष-धर्म को निंदित करवाने का दुष्कर्म मेरा दुर्भाग्य होगा।

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  15. Maulan Kaleem siddiqui said:

    आवागमन के तीन विरोधी तर्क (दलीलें)

    इस क्रम मे सबसे बड़ी बात यह है कि सारे संसार के विद्वानों और शोध कार्य करने वाले साइंस दानों का कहना है कि इस धरती पर सबसे पहले वनस्पति जगत ने जन्म लिया। फिर जानवर पैदा हुए और उसके करोड़ों वर्ष बाद इन्सान का जन्म हुआ। अब जबकि इंसान अभी इस धरती पर पैदा ही नही हुए थे और किसी इन्सानी आत्मा ने अभी बुरे कर्म नहीं किए थे तो किन आत्माओं ने वनस्पति और जानवरों के शरीर में जन्म लिया?

    दूसरी बात यह है कि इस धारणा का मान लेने के बाद यह मानना पड़ेगा कि इस धरती पर प्राणियों की संख्या में लगातार कमी होती रहे। जो आत्मायें मोक्ष प्राप्त कर लेंगी। उनकी संख्या कम होती रहनी चाहिये। अब कि यह तथ्य हमारे सागने है कि इस विशाल धरती पर इन्सान जीव जन्तु और वनस्पति हर प्रकार के प्राणियों की जनसंख्या में लगातार वृद्धि हो रही है।

    तीसरी बात यह है कि इस संसार में जन्म लेने वालों और मरने वालों की संख्या में ज़मीन आसमान का अन्तर दिखाई देता है। मरनेवाले मनुष्य की तुलना में जन्म लेने वाले बच्चों की संख्या कहीं अधिक है। कभी-कभी करोड़ो मच्छर पैदा हो जाते है जब कि मरने वाले उससे बहुत कम होते है। कहीं-कहीं कुछ बच्चों के बारे में यह मशहूर हो जाता है कि वह उस जगह को पहचान रहा है जहा वह रहता था, अपना पुराना, नाम बता देता है। और यह भी कि वह दोबारा जन्म ले रहा है। यह सब शैतान और भूत-प्रेत होते हैं जो बच्चों के सिर चढ़ कर बोलते है और इन्सानों के दीन ईमान को खराब करते हैं।

    सच्ची बात यह है कि यह सच्चाई मरने के बाद हर इन्सान के सामने आ जायेगी कि मनुष्य मरने के बाद अपने मालिक के पास जाता है, और इस संसार मे उसने जैसे कर्म किये है उनके हिसाब से सज़ा अथवा बदला पायेगा।
    कर्मो का फल मिलेगा
    यदि वह सतकर्म करेगा भलाई और नेकी की राह पर चलेगा तो वह स्वर्ग में जायेगा। स्वर्ग जहाँ हर आराम की चीज़ है। और ऐसी-ऐसी सुखप्रद और आराम की चीज़ें है जिनकों इस संसार में न किसी आँख ने देखा, न किसी कान ने सुना, और न किसी दिल में उसका ख़्याल गुजारा। और सबसे बड़ी जन्नत (स्वर्ग) की उपलब्धि यह होगी कि स्वर्गवासी लोग वहॉ अपने मालिक के अपनी आँखों से दर्शन कर सकेंगे। जिसके बराबर विनोद और मजे़ कोई चीज नहीं होगी।

    इस प्रकार जो लोग कुकर्म (बुरे काम) करेंगे, पाप करके अपने मालिक की आज्ञा का उल्लंघन करेंगे, वह नरक मे डाले जायेगे, वह वहॉ आग में जलेंगे। वहॉ उन्हें हर पाप की सज़ा और दंड मिलेगा। और सब से बड़ी सजा यह होगी कि वह अपने मालिक के दर्शन से वंचित रह जाऐगे। और उन पर उनके मालिक का अत्यन्त क्रोध होगा।

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  16. धर्म ईश्वर की ओर से होता है
    जनाब सतीशचन्द गुप्ता जी की ओर से किसी ने मेरे कथन को उद्धृत करते हुए उस पर प्रश्नचिन्ह लगाया है। दरअस्ल दुनिया बहुत से दार्शनिकों के दर्शन, कवियों की रचनाओं और लोक परंपराओं के समूह को हिन्दू धर्म के नाम से जानती है। मनुष्य की बातें ग़लत हो सकती हैं बल्कि होती हैं। इसलिए उन्हें मेरे कथन पर ऐतराज़ हुआ लेकिन मैं ईश्वर के उन नियमों को धर्म मानता हूं जो ईश्वर की ओर से मनु आदि सच्चे ऋषियों के अन्तःकरण पर अवतरित हुए। ईश्वर के ज्ञान में कभी ग़लती नहीं होती इसलिए धर्म में भी ग़लत बात नहीं हो सकती। ऋषियों का ताल्लुक़ हिन्दुस्तान से होने के कारण मैं उनके धर्म को हिन्दू धर्म कहता हूं।
    @ धर्म से है मनुष्य का कल्याण
    धर्म नहीं तो कल्याण नहीं। आओ धर्म की ओर, आओ कल्याण की ओर। इसी को अरबी में ‘हय्या अलल फ़लाह‘ कहते हैं। मस्जिदों से यही आवाज़ लगाई जाती है, सिर्फ़ मुसलमानों के लिए नहीं बल्कि सब के लिए लेकिन सब तो वहां क्या जाते, मुसलमान भी कम ही जाते हैं और वहां जाने वाले भी अपने कर्तव्यों का पालन करने में सुस्ती दिखाते हैं।
    @ रविन्द्र जी ! लीजिये हमने आपके कहने के मुताबिक भाई महक की बात मान ली है . हम आपकी लम्बी उम्र की दुआ मालिक से मांगते हैं . लगे रहिये , हमारे साथ बने रहिये .
    @ मेरे अतुल्य और अमूल्य बंधु-ब्रदर ! आपकी टिप्पणी मिली और पता चला कि आपको मेरा शब्द-चयन पसंद नहीं आया। आपकी आपत्ति जायज़ है

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  17. प्रिय भाई अनवर जमाल जी मेरा आशय किसी को अपमानित करने का कतई नही है। आप बहुत बड़े तर्क शास्त्री है। और मेरे भाई बातों का और तर्क या बहस का कभी अन्त नही है।

    मेरे भाई किसी भी वस्तु को जब खाया जाता है तब उसका स्वाद पता चलता है। आपके तर्क करने से पता चलता है कि आपने किसी का भी स्वाद नही चखा है आप किसी के याने कि पूर्वजों के या कि सिर्फ और सिर्फ पढने के अनुसार आप तर्क करते है। जिसका कभी अन्त नही है।


    मेरे कुछ सवाल है मैं आप से जानना चाहूंगा उनका आप मुझे जवाब दें मै आपकी सारी गलतफहमी दूर कर दूंगा।

    1. ईसाई धर्म कब स्थापित हुआ।
    2. आप जिस धर्म को मानते है वो कब स्थापित हुआ।
    3. क्या आप मुहम्मद साहब को मान कर उनके पीछे चलते है।

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