‘भारत में कमज़ोर बच्चों की तादाद सबसे ज़्यादा‘ यह शीर्षक एक समाचार का है जो दैनिक जागरण में दिनांक 13.10.10 को पृ. 24 पर प्रकाशित हुई। ख़बर में बताया गया है कि भुखमरी से लड़ने के मामले में भारत चीन और पाकिस्तान से भी पीछे है। वाशिंगटन स्थित अतंर्राष्ट्रीय खाद्य नीति शोध संस्थान द्वारा भुखमरी से लड़ने के मामले में 84 देशों में भारत का 67वां स्थान है। इस सूची में चीन नौवें और पाकिस्तान 52वें स्थान पर है।
भारत सबल है, सक्षम है और इसकी विकास दर भी पाकिस्तान से बेहतर है जबकि पाकिस्तान बदहाल है, आतंकी शिकंजे में जकड़ा हुआ और विदेशी क़र्ज़ में आकंठ से कुछ ज़्यादा ही डूबा हुआ भी है। अगर चीन की बात जाने दें तो भी यह सवाल खड़ा होता है कि पाकिस्तान और भारत दोनों देशों के नेता-जनता एक जैसे ‘चरित्र‘ के मालिक हैं, तब पाकिस्तान आगे क्यों और भारत पीछे क्यों ?
पाकिस्तान और भारत में आज भी है सांस्कृतिक एकता
विकास कार्यों में भारतीय नेताओं, अफ़सरों और ठेकेदारों की ही तरह पाकिस्तानी नेता, अफ़सर और ठेकेदार भी लेते हैं। विदेश में खाते भी दोनों ही तरफ़ के लोगों के हैं और दोनों ही तरफ़ के लोगों के नाम आज तक ‘डिस्क्लोज़‘ भी नहीं हुए। सरकारी बाबू भी दोनों ही तरफ़ रिश्वत लेते हैं। दीन-धर्म पर दोनों ही तरफ़ के लोग प्रायः नहीं चलते। मात्र कुछ कर्मकांडों को ही धर्म मान लिया गया है या फिर धर्म था भी तो उसे भी मात्र रस्म बना दिया गया।
पाकिस्तान राजनीतिक विभाजन के बावजूद सांस्कृतिक रूप से आज भी भारत का अभिन्न अंग है और बांग्लादेश भी लेकिन बात यहां पाकिस्तान की चल रही है। दोनों देशों की भाषा-संस्कृति आज भी एक है। कुछ लोग बताते हैं कि दोनों देशों में कोई ख़ास फ़र्क़ नहीं है सिवाय इसके कि पाकिस्तान में मुसलमान बहुसंख्यक हैं जबकि भारत में बहुसंख्यक हिन्दू हैं और दोनों के ज़्यादातर लोगों के ‘चरित्र‘ में भी अधिक अंतर नहीं है। अलबत्ता एक अंतर वे भी मानते हैं जो अनेकता में एकता के दर्शन करते हैं। वे कहते हैं कि मुसलमानों की उपासना पद्धति ‘भारतीय उपासना पद्धति‘ से भिन्न है।
1. लेकिन क्या उपासना पद्धति का भूखों की भूख और आत्महत्या से कोई संबंध हो सकता है ?
2. क्या भारत की उपासना पद्धति भारत को पीछे धकेल रही है ?
क्या भूखों की समस्या और उपासना पद्धतियों में कोई संबंध है ?
संयोग से या फिर दैवयोग से इस सवाल का जवाब भी हमें इसी दिन और इसी समय मिल गया और वह भी एक ख़बर के ही माध्यम से। हिन्दी दैनिक हिन्दुस्तान के पृष्ठ 11 पर अयोध्या की एक ख़बर यह भी छपी थी कि ‘हल नहीं होने देना चाहतीं बाहरी ताक़तें : अंसारी‘। साथ में एक फ़ोटो भी छपा है जिसमें रामलला पक्ष के डा. रामविलास वेदान्ती जी के साथ हाशिम अंसारी साहब और गुजरात से आये तीन मुस्लिम धर्मगुरूओं ने एक बाल्टी पकड़े हुए हैं वे सभी सद्भावना की मिसाल पेश करते हुए सरयू नदी में दूध अर्पित कर रहे हैं।
पौराणिक और वेदांती लोग दूध-फल नदियों में बहाएंगे तो देशवासी क्या खाएंगे ?
ऐसे हालात में भारतीयों में भुखमरी और कुपोषण फैलना तो स्वाभाविक ही है।
भारतीय उपासना पद्धतियों के नाना रूप
आग और पानी को ज़्यादातर हिन्दू भाई देवता मानते हैं, नदियों को वे देवी मानते हैं। उनकी कृपा पाने के लिए वे उनकी पूजा करते हैं और उनकी पूजा में वे खाने-पीने की चीज़ें आग-पानी में डालते रहते हैं। ऐसा वे करोड़ों-अरबों वर्षों से करते आ रहे हैं, ऐसा उनका दावा है। इसी को वे भारतीय उपासना पद्धति कहते हैं। देवी-देवताओं को खुश करने के लिए वे सोना-चांदी भी भेंट करते हैं और कभी कभी तो वे बच्चों की बलि भी उन्हें चढ़ा देते हैं बल्कि कोई भक्त तो अपनी जीभ वग़ैरह खुद काटकर भी देवी को चढ़ा बैठता है। औघड़ और तांत्रिक तो देवी उपासना के नाम पर शराब पीकर मैथुन भी करते हैं और चिताओं से हिन्दुओं की जलती लाशें निकालकर भी खा जाते हैं। ये सब भी भारतीय उपासना पद्धति के अन्तर्गत गिनी जाती हैं।
अनेकता में एकता
पौराणिकों और वेदान्तियों की मज़ाक़ उड़ाने वाले वैदिक आर्य भाई भी ‘आग में घी‘ डालते हैं और साथ में नारियल आदि अन्य चीज़ें भी। इसे वे ‘यज्ञ‘ कहते हैं और बताते हैं कि ऐसा लगभग एक अरब सत्तानवें करोड़ साल से भी ज़्यादा समय से करते आ रहे हैं। आजकल ‘यज्ञ‘ करने का रिवाज काफ़ी कम हो गया है लेकिन वे चाहते हैं कि वे विश्व के लगभग 7 करोड़ लोगों में सभी को ‘आर्य‘ बना दें और सभी आर्य बनकर ‘यज्ञ‘ किया करें अर्थात खाने-पीने की चीज़ें खुद न खाकर अग्नि को अर्पित किया करें।
ग़रीब कैसे करे यज्ञ ?
ख़ैर विश्व ने तो उनकी बात सुनी नहीं लेकिन देश में कुछ लोगों ने ज़रूर उनकी बात मान ली। सारा देश उनकी बात मान नहीं सकता क्योंकि हरेक आदमी की प्रति व्यक्ति आय इतनी है नहीं कि वह दिन में दो बार इतना महंगा ‘यज्ञ‘ कर सके। ‘यज्ञ‘ केवल पैसे वाला आदमी ही कर सकता है और वे भी कभी-कभी ही करते हैं। अगर वे रोज़ यज्ञ किया करें तो फिर भारत 67वें स्थान से भी पीछे चला जाएगा, क्या इसमें संदेह की गुंजाइश है ?
धर्मगुरू बदल देते हैं उपासना पद्धति
भारत को विश्व का नेता और नायक बनाना है तो उसे आगे होना चाहिए और सारी दुनिया को उसके पीछे, पाकिस्तान को भी। भारतीय उपासना पद्धतियां उसे आगे आने नहीं दे रही हैं। भारतीय ‘गुरू‘ समय-समय पर उपासना पद्धति बदलते आए हैं। बौद्ध-जैन बंधुओं की मांग पर वे ‘वैदिक यज्ञ‘ बंद कर चुके हैं। अब अगर उन्हें फिर बताया जाए कि आग-पानी में अन्न-दूध बहाने-जलाने से देश में कंगाली और भुखमरी आ रही है तो वे ज़रूर इन कर्मकांडों को भी निरस्त कर देंगे, इसकी मुझे पूरी आशा है।
योग और नमाज़
वैसे भी आजकल योग की डिमांड बढ़ रही है और यह एक वैज्ञानिक पद्धति भी है लेकिन चूंकि पतंजलि ने अपने ग्रंथ में परमेश्वर का ज़िक्र नहीं किया। सो ईश्वर प्राप्ति के लिए इसका प्रयोग वैसा नहीं हो पा रहा है जैसा कि होना चाहिए। कुछ दूसरे ग्रंथों के आधार पर कुछ लोगों ने ईश्वर प्राप्ति के लिए इसका प्रयोग करने की कोशिश की लेकिन उन्हें भी सफलता नहीं मिली क्योंकि उनमें से ज़्यादातर ने सन्यास ले लिया। शंकराचार्य जी ने मां को छोड़ा था और दयानन्द जी ने तो माता-पिता दोनों को ही छोड़ दिया था। ईश्वर प्राप्ति की सीढ़ी होते हैं मां-बाप। जो मां-बाप को छोड़ता है वह ईश्वर तक पहुंचने के माध्यम को ही छोड़ बैठता है। इसके कुफल भी व्यक्ति और समाज के सामने आते हैं। स्वामी दयानन्द जी ने योग्य शिष्य न मिल पाने के पीछे यही कारण बताया है।
नमाज़ से परहेज़ क्यों ?
- जब प्रचलित उपासना पद्धतियां जनकल्याण हेतु निरस्त कर दी जाएंगी तो फिर भारतीय जन क्या करेंगे ?
- क्या वे नमाज़ अदा करेंगे ?
- नमाज़ में क्या कमी है, सिवाय इसके कि उसे मुसलमान अदा करते हैं ?
लेकिन यह तो कोई कमी नहीं है।
‘गायत्री परिवार‘ के संस्थापक श्री राम शर्मा आचार्य जी ने ऐलानिया इस्लाम से ‘बंधुत्व‘ का गुण लिया है। अगर एक गुण लिया जा सकता है तो फिर दूसरा गुण लेने से कैसा परहेज़ और क्यों ?
नमाज़ से भुखमरी का ख़ात्मा मुमकिन है
नमाज़ एक ऐसी उपासना पद्धति है जिसमें अन्न-फल और दूध आदि की खपत बिल्कुल शून्य है। नमाज़ में कुरआन पढ़ा जाता है। जिसमें भूखों को खाना खिलाने की प्रेरणा दी जाती है और जो ऐसा नहीं करता उसे पाखण्डी और दीन का झुठलाने वाला बताया गया है।
क्या तुमने उसको देखा जो इन्साफ़ के दिन को झुठलाता है। बस यह वही है जो यतीम को धक्के देता है। और मिस्कीन को खाना नहीं खिलाता और किसी दूसरे को उसकी तरग़ीब (प्रोत्साहन) भी नहीं देता। (कुरआन, 107, 1-3)इस तरह नमाज़ के माध्यम से न सिर्फ़ अन्नादि की बर्बादी रूकेगी बल्कि लोगों को भूख से लड़ते हुए इनसानों की मदद करने का हुक्म भी मिलेगा।
‘शिर्क‘ हराम है, फिर क्यों किया शिर्क ?
अयोध्या की ख़बर से केवल भारत की भुखमरी के कारण का ही पता नहीं चलता बल्कि भारत के मुसलमानों की दशा का भी पता चलता है। जनाब हाशिम अंसारी साहब की उम्र लगभग 90 साल है और बहुचर्चित बाबरी मस्जिद के मुक़द्दमे के वे पैरोकार भी हैं। उनकी ज़िन्दगी गुज़र गई मुक़द्दमेबाज़ी करते हुए लेकिन उन्हें यह पता न चल पाया कि एक मुसलमान का फ़र्ज़ क्या है ?
कौन से काम मुसलमान के लिए करना जायज़ हैं और कौन से नाजायज़ ?
हाशिम जी को पता नहीं था तो मुस्लिम धर्मगुरूओं को बताना चाहिये था लेकिन ऐसा लगता है कि शायद उन्हें ऐसी बातें बताने में ज़्यादा दिलचस्पी नहीं है कम से कम गुजरात से आने वाले मुस्लिम धर्मगुरूओं को तो बिल्कुल भी नहीं है। तभी तो वेदान्ती जी के साथ खड़े होकर बालकों के हिस्से का दूध नदी में बहा रहे हैं। पौराणिक रीति से सरयू नदी की पूजा कर रहे हैं।
सरयू में ही श्रीरामचन्द्र ने जलसमाधि ली थी। सरयू की पूजा के साथ ही उनकी पूजा भी अपने आप ही हो जाती है।
अयोध्या विवाद के पीछे दीन-धर्म नहीं बल्कि क़ब्ज़े की मानसिकता थी
जब मुसलमान (?) सरयू नदी की पूजा हिन्दुओं के साथ कर सकते हैं तो फिर रामलला की मूर्ति की पूजा क्यों नहीं कर सकते ?
अगर हिन्दू भाई यह सवाल पूछें तो उनका सवाल बिल्कुल जायज़ होगा और तब यही कहना पड़ेगा कि भाई ये लोग केवल ‘मालिकाना हक़‘ के लिए लड़ रहे थे, दीन-धर्म और सत्य-असत्य का मुद्दा था ही नहीं। हिन्दू लड़ रहे थे कि सैकड़ों साल बाद मौक़ा मिला है मुसलमानों को दबाने का, सो दबा लो मौक़ा हाथ से निकलने न पाए और मुसलमान इसलिए लड़ रहे थे कि अगर अब दब गए तो फिर हमेशा के लिए दबकर रह जाएंगे, सो सारी जान लड़ा दो। दोनों लड़े और लड़ते रहे। जब अदालत का फ़ैसला आया तो उसने दोनों को ही एकसाथ दबा दिया। अब दोनों दबे हुए एक साथ बैठे हैं और दबी जुबान में सलाह कर रहे हैं कि कैसे बने मन्दिर और कैसे बने मस्जिद ?
अगर मुसलमानों ने अपनी ज़िम्मेदारी समझी होती और उसे सही ढंग से अदा किया होता तो यह मंदिर-मस्जिद का झगड़ा ही पैदा न होता।
मुसलमान के लिए ईमान के साथ अमल भी लाज़िम है
‘शिर्क‘ हराम है। मुसलमान की ज़िम्मेदारी है कि वह कभी ‘शिर्क‘ न करे अर्थात एक मालिक के अलावा किसी और की उपासना न करे और उसके अलावा किसी और का हुक्म न माने। लोगों को उनका हक़ दे, उनके साथ जुल्म न करे। लोग उसके साथ जुल्म करें तो उसे बर्दाश्त करे, उस पर सब्र करे। अपने सताने वालों के लिए दुआ करे, उनका भला चाहे जैसे कि पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद स. करते थे।
मुसलमान को चाहिए कि खुद भी ‘ज्ञान‘ पर चले और समाज में भी ‘ज्ञान‘ की रौशनी फैलाए। ज्ञान आएगा तो अंधविश्वास खुद-ब-खुद चला जाएगा। मुसलमान के ज़िम्मे है कि जो चीज़ वह अपने लिए पसंद करे, वही अपने भाइ्र के लिए भी पसंद करे। मुसलमान वह है जो समाज के लिए नफ़ाबख्श हो और उसके हाथ और ज़बान से उसके पड़ौसी सुरक्षित हों। चाहे वे किसी भी मत के मानने वाले क्यों न हों। मुसलमान वह है जो सच्चा हो, अमानतदार हो, खुदा को याद रखने वाला और उसके हुक्मों को पूरा करने वाला हो। मुसलमान एक ईश्वर के प्रति समर्पित होकर अपने कर्तव्यों का पालन करने वाले को कहते हैं। कुरआन और हदीस में यही बताया गया है।
एक ईश्वर अल्लाह के सिवा कोई दूजा वंदनीय-उपासनीय नहीं है
‘ला इलाहा इल-लल्लाह‘ का अर्थ भी यही है कि एक परमेश्वर के सिवाय कोई वंदनीय-उपासनीय नहीं है। हरेक मुसलमान इसे जानता-मानता है। सूफ़ी भी इसी को जपते हैं लेकिन अफ़सोस कि हाशिम अंसारी जी के साथ सूफ़ियों जैसे लबादे पहने हुए लोगों ने भी ‘शिर्क‘ से रोकने या खुद बचने की कोई कोशिश नहीं की।
एक ईश्वर के प्रति निष्ठा और समर्पण है भारत की सनातन धरोहर
एकेश्वरवाद भारत की पुरातन और सनातन धरोहर है जिसे वेदान्ती जी चाहे व्यवहार में न लाते हों लेकिन जानते सब हैं। यही वह ज्ञान है जो आदि में विश्व को भारत ने दिया था और बाद में दर्शन और काव्य के तले दबकर रह गया है। अगर मुसलमान हिन्दू भाईयों को याद दिलाते तो वे हरगिज़ इन्कार न करते बल्कि स्वीकार करते क्योंकि एक तो इन्कार का भाव भारतीय मनीषा में है ही नहीं। यहां तो केवल स्वीकार का भाव है लेकिन कोई बताए तो सही। दूसरी बात यह है कि एकेश्वरवाद का जो पाठ उन्हें याद दिलाया जाएगा वह उनके लिए न तो नया है और न ही अपरिचित, बल्कि दरअस्ल वह उनकी दौलत है जो आज हमारे पास बतौर अमानत है। जिसकी अमानत है, उसे आप देंगे तो वह आपका अहसान मानेगा, बुरा हरगिज़ न मानेगा। अगर आपने उनकी अमानत उन तक नहीं पहुंचाई तो फिर खुदा आपसे भी छीन लेगा। यह उसका क़ायदा है। अयोध्या में नदी में मुसलमानों का दूध अर्पित करना इसी बात का प्रतीक है कि वे ‘तौहीद‘ (एकेश्वरवाद) का शऊर खोते जा रहे हैं और इसीलिए वे खुदा की मदद से महरूम भी होते जा रहे हैं।
कुरआन पर ध्यान देंगे तभी होगा कल्याण
आज लोग नमाज़ अदा कर रहे हैं, नमाज़ अदा करते-करते बूढ़े हो रहे हैं लेकिन कभी नमाज़ में सुने जाने वाले कुरआन पर ध्यान नहीं देते कि इसमें हमें हुक्म क्या दिया जा रहा है। सारी समस्याओं के पीछे यही एक वजह है। नदी की पूजा करने वाले भी अपनी फ़िक्र करें और खुदा के सामने सिर झुकाने वाले भी। मालिक के हुक्म को माने बिना उसे राज़ी करना असंभव है और उसे राज़ी किये बिना बदहाली दूर होने वाली नहीं।
अपने दुश्मन आप हैं हम
पहले कभी राजा-महाराजा दुश्मनों पर हमले किया करते थे वे दुश्मनों को कमज़ोर करने के लिए उनकी फ़सलों और उनके भंडारों में आग लगा दिया करते थे। अपनी खाद्य सामग्री में खुद ही बैठकर आग लगाना या उसे पानी में बहाना अपने आप से दुश्मनी करना है। यह एक सामान्य बुद्धि की बात है। दुश्मनों का काम हम खुद अपने साथ क्यों कर रहे हैं ?
वरदान का समय आ पहुंचा है
भारत को सबल और भारतीयों को चरित्रवान बनाना है तो उन्हें आध्यात्मिक मूल्य और ईश्वरीय व्यवस्था देनी ही होगी। आपके पास हो तो उसे अमल में लाओ वर्ना इस्लाम को ग़ौर से देखो। इसके नाम का संस्कृत में अनुवाद करके देखो। नमाज़ शब्द को देखो, इसकी क्रियाओं को देखो। आपको सबकुछ अपना ही लगेगा। पराया कुछ है ही नहीं। ‘चरैवेति-चरैवेति‘ का समय पूरा हुआ, अब मंज़िल क़रीब है। विजय समीप है।
शीश नवाओ केवल एक पालनहार को
धन्य है वह जो जान ले कि सबका मालिक एक है और मनुष्य उसकी सर्वश्रेष्ठ रचना है जिसकी सेवा में उस मालिक ने सारी प्रकृति को लगा रखा है। प्रकृति मानव की सेवक है और मानव ईश्वर की ओर से इसका अधिपति है। धन्यवाद स्वरूप उसके लिए केवल एक परमेश्वर के सामने ही झुकना और उससे ही मांगना वैध और जायज़ है। वेद और कुरआन यही बताते हैं।
हम सब एक मन वाले हों
अयोध्या विवाद ने बता दिया है कि विवाद को केवल आपसी बातचीत से ही सुलझाया जा सकता है। कोई किसी को दबा तो सकता है लेकिन मिटा हरगिज़ नहीं सकता और जिसे दबाया जाएगा वह कसमसाता रहेगा। हम सब भारतीय एक मन हों, एक विचार हों और एक दूसरे की शक्ति बनें। आपस की शक्ति को एक दूसरे पर प्रयोग करके अपने और देश के भविष्य से खिलवाड़ न करें। आज मंदिर-मस्जिद पर बात हो रही है। ज़रूर होनी चाहिए लेकिन जिसके नाम पर मंदिर-मस्जिद बने हैं वह हमसे क्या चाहता है ?, अब इस पर भी बात होनी चाहिए। उसकी योजना और आदेश हमारे लिए क्या हैं ? यह भी पता लगाना चाहिए, तभी हम बनेंगे सच्चे अर्थों में धार्मिक और आध्यात्मिक। यही हमारी कमज़ोरी है लेकिन यही हमारी ताक़त भी बनेगी। जो चीज़ जिसकी कमज़ोरी होती है वही उसकी ताक़त भी होती है। यह एक सनातन सत्य सिद्धांत है।
अच्छा लिखा . सब मिलकर बैठें तो मसले पल भर में हवा हो जायेंगे .
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट . सही कहा आपने -
ReplyDeleteकोई किसी को दबा तो सकता है लेकिन मिटा हरगिज़ नहीं सकता
कोई पोस्ट अब मेरे काम की तुम नहीं लिखते और मैं अब आता भी नहीं .
ReplyDeleteमैं तो बहुत पहले ही जान गया था की यहाँ पर अनवर जमाल एंड पार्टी तर्कों की कसौटी पर हारने पर भी कुतर्को द्वारा सिर्फ अपनी बात सिद्ध करना चाहते है .इन को कई बार आईना दिखाया .पर ये तो बस सकुलर बन कर मूर्ख बनाने की कोसिस कर रहे है .
ReplyDeleteमहक जी . जमाल जी हिन्दुओ को नमाज कायम करने की सलाह दे रहे है .एजाज उल हक़ तो मुझे अपनी ये सलाह पहले ही दे चुके है .अब आप अपने गुरुतुल्य की बात मान कर नमाज़ कायम कर ही ले .
गिरी जी तो मुद्दा ही नही समझ पाते है .बहुत संभव है की वो एक बार फिर बिना समझे इस लेख का भी समर्थन कर दे .
मैं इस अंतहीन बहस से पहले ही बाहर चला गया हू और आप सब हिन्दू भईयो से पुनः आग्रह करता हू की इन को इन के हाल पर छोड़ दीजिये . ये कभी नही सुधरने वाले .
सूअर से कुश्ती नही लड़नी चाहिए . इस के दो कारण है
(१)आप के कपडे गंदे हो जायेंगे .
(२)इस से भी बड़ा कारण यह है की सूअर को मज़ा आएगी
very nice post
ReplyDeleteबड़े अच्छे लेख प्रस्तुत कर रहे हैं डा0 साहिब। बस ज़रूरत है कि हम सब इन पर चिंतन मनन करें। मैं तो जब तक आपका पूरा लेख नहीं पढ़ लेता आपके ब्लौग से नहीं हटता हूं।
अनवर साहब अपनी बात नहीं अपितु मानव-हित की बात करते हैं। काश कि हम समझ सकते।
nice post
ReplyDeleteसारी बातें हमेशा की तरह सच्ची और खरी
ReplyDeletehazaro aurto vo vidhwa banane se to accha hai ye ANN DAN
ReplyDeleteLakho Masumo ka khun Na bahe us se to accha hi hai.
अनवर जमाल साहब, एक अच्छा और सही दिशा देने वाला लेख़. आपने कहा "शिर्क‘ हराम है। मुसलमान की ज़िम्मेदारी है कि वह कभी ‘शिर्क‘ न करे अर्थात एक मालिक के अलावा किसी और की उपासना न करे और उसके अलावा किसी और का हुक्म न माने। "
ReplyDeleteशिर्क‘ यकीनन हराम है, और और एक मालिक के अलावा किसी की उपासना भी शिर्क है. आपने कहा उसके अलावा किसी और का हुक्म नहीं माने. बात सही है लेकिन एक्स वाल पैदा होता है, क्या यह सही है, की उसकी माने जो अल्लाह की बोली बोलता हो? जिसका कहा अल्लाह का कहा होता हो. जिसकी बोली कुरान की बोली से मिलती हो? क्या यह भी शिर्क होगा?
अगर मुसलमानों ने अपनी ज़िम्मेदारी समझी होती और उसे सही ढंग से अदा किया होता तो यह मंदिर-मस्जिद का झगड़ा ही पैदा न होता।
ReplyDeleteअनवर भाई भुकमरी होने के कारणों का आपने बहुत अच्छा विश्लेषण किया है और अच्छी तरह बात को समझाया है
ReplyDeleteभूखे बच्चे चिल्लाते हैं!
ReplyDeleteये नागों को दूध पिलाते हैं!!
भुखमरी का यह कारण अगर है तो केवल ०० .५%. हिन्दुस्तान मैं भ्ख्मारी का कारण है पूंजीपति और सरकार की उनके लिए नरमी. पैसे वाला और अमीर होता जा रहा है. ग़रीब और भी ग़रीब.इस्लामिक लिहाज़ से मुसलमान का सही तरीक़े से इस्लामिक टैक्स का ना देना भी इसका एक कारण है. जीवन में भूल-चूक कर भी अपनी इन्द्रियों के बहाव में मत बहो
ReplyDeleteजो शख्स खुदा के हुक्म को नाफ़िज़ करता है उसकी बात मानना वाजिब है
ReplyDelete@ Masum sahab ! आपको और मुझे यह जानना चाहिए कि जो शख्स खुदा का फर्मंबर्दार है और उसी मालिक कि फर्मंबर्दारी सिखाता है या उसके हुक्म को नाफ़िज़ करता है उसकी बात मानना वाजिब है न कि शिर्क .
@ मिस्टर अभिषेक ! आपकी सलाह हिरण्याक्ष ने नहीं मानी वह लड़ा था सुअर से और हार गया। मैंने बहुत पहले एक लेख लिखा था कि हिन्दू भाई किसी को गाली देने के लिए शब्दहीन हो चुके हैं क्योंकि हरेक शब्द से जो आकृति बनती है उसे वे साक्षात ईश्वर या देवी-देवता या उनकी सवारी मानते हैं । वह लेख आपके आगमन से पहले लिखा था लेकिन आपके पढ़ने योग्य है। वैसे भी उन्हें मना किया गया है गाली बकने से।
@ कुमारम जी उर्फ़ राकेश लाल जी ! आपने आज तक नहीं कि
1- आप बच्चों को मासूम मानते हैं या फिर जन्मजात पापी जैसा कि दीगर ईसाई मानते हैं ?
2-और न ही आपने यह बताया कि जिस बाइबिल से आप उद्धरण देते हैं उसमें कुल कितनी किताबें हैं ?
अनवर जमाल @ जज़ाकल्लाह "जो शख्स खुदा का फर्मंबर्दार है और उसी मालिक कि फर्मंबर्दारी सिखाता है या उसके हुक्म को नाफ़िज़ करता है उसकी बात मानना वाजिब है न कि शिर्क"
ReplyDeleteसाजिद भाई के वालिद साहब का
ReplyDeleteआज इन्तेकाल हो गया है .
इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैहि राजिऊन .
फोटो तो हमने अकेले खिचाई है लेकिन आप जैसे अन्धो को हरा हरा हमेशा दीखता है बाकी पोस्ट में लगी फोटो को देखकर आपने आइना खूब देखा ये बताओ कुकुरकाट क्यों करते हो अल्लाह ने आपको फसादी बना के तो भेजा नहीं फिर फसाद फैला कर कुफ्र क्यों करते हो प्यारे. इसलाम के सच्चे अनुयायी बनो. कुरआन के शुरुआत में सर्वधर्म सम भाव की बात कही गयी है. कम से कम इतनी अलम्ब दारी के बावजूद इतने ज्ञान से वंचित क्यू हो ? यज्ञ हवन के बारे में तुम्हारी सोच सनातन धरम के बारे में बताती है. तुम बकरा काटो तो चलेगा लेकिन कही हवन हो तो नहीं. यह दोहरा मापदंड तुम जैसे भ्रमित लोगो के ही हो सकते है. अरे कुछ सार्थक काम करो तो मुझे हमेशा अपने पास पाओगे. ये पोंगा पंथ चलाना बंद करो तुम इससे अपने लोगो को मध्यकाल में धकेल दोगे. तुमने बकरे को काटने को वाजिब ठहराने क़ा प्रयास किया मै चुप रहा क्युकी के तुम्हारा मसला है. लेकिन दूसरे धर्मो में हस्तक्षेप करने से तुम्हे मानसिक और शारीरिक कष्ट के अलावा कुछ भी नसीब नहीं होगा.
ReplyDeleteमुझे मालूम है कि तुम्हारे पीछे कौन लोग है उनकी क्या मंशा है . आप इन बातो को क्यों नहीं समझ पाते इतने भोले हो लेकिन लगते और खुद को समझदार बताते हो.
अंत में फिर मै कहूगा कि इन सबसे कौम क़ा देश क़ा कोई वास्ता नहीं है ना धरम की प्रगति होगी. कुछ सार्थक करो मै सबसे पहले आपके साथ आउंगा .
बुरा ना मानना भाई मासूमजी से कुछ सीख लो
फोटो तो हमने अकेले खिचाई है लेकिन आप जैसे अन्धो को हरा हरा हमेशा दीखता है बाकी पोस्ट में लगी फोटो को देखकर आपने आइना खूब देखा ये बताओ कुकुरकाट क्यों करते हो अल्लाह ने आपको फसादी बना के तो भेजा नहीं फिर फसाद फैला कर कुफ्र क्यों करते हो प्यारे. इसलाम के सच्चे अनुयायी बनो. कुरआन के शुरुआत में सर्वधर्म सम भाव की बात कही गयी है. कम से कम इतनी अलम्ब दारी के बावजूद इतने ज्ञान से वंचित क्यू हो ? यज्ञ हवन के बारे में तुम्हारी सोच सनातन धरम के बारे में बताती है. तुम बकरा काटो तो चलेगा लेकिन कही हवन हो तो नहीं. यह दोहरा मापदंड तुम जैसे भ्रमित लोगो के ही हो सकते है. अरे कुछ सार्थक काम करो तो मुझे हमेशा अपने पास पाओगे. ये पोंगा पंथ चलाना बंद करो तुम इससे अपने लोगो को मध्यकाल में धकेल दोगे. तुमने बकरे को काटने को वाजिब ठहराने क़ा प्रयास किया मै चुप रहा क्युकी के तुम्हारा मसला है. लेकिन दूसरे धर्मो में हस्तक्षेप करने से तुम्हे मानसिक और शारीरिक कष्ट के अलावा कुछ भी नसीब नहीं होगा.
ReplyDeleteमुझे मालूम है कि तुम्हारे पीछे कौन लोग है उनकी क्या मंशा है . आप इन बातो को क्यों नहीं समझ पाते इतने भोले हो लेकिन लगते और खुद को समझदार बताते हो.
अंत में फिर मै कहूगा कि इन सबसे कौम क़ा देश क़ा कोई वास्ता नहीं है ना धरम की प्रगति होगी. कुछ सार्थक करो मै सबसे पहले आपके साथ आउंगा .
बुरा ना मानना भाई मासूमजी से कुछ सीख लो