
आज का दिन भी प्यार की ख़ातिर जान देने वालों की ख़बरें पढ़कर शुरू हुआ । शामली की जनता धर्मशाला के एक कमरे का दरवाज़ा जब मैनेजर ने खुलवाया तो युवती पूजा , मुज़फ़्फ़रनगर ने दरवाज़ा खोला । उसके मुंह से सल्फ़ास की गंध आ रही थी । बेड पर उसका पति अनुज , हरिद्वार अचेत पड़ा था । दोनों को अस्पताल पहुंचाया गया तो चिकित्सकों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया । दोनों 3 दिन पहले घर से फ़रार चल रहे थे और किसी मन्दिर में विवाह भी कर चुके थे लेकिन उन्हें जुदाई का डर सता रहा था ।
दूसरा केस गांव नैनसोब का है । मंदिर परिसर में 19 वर्षीय विनीत ने फांसी लगाकर इसलिए जान दे दी क्योंकि उसके परिजन उस युवती से उसके विवाह के लिए तैयार नहीं थे जिसके साथ उसका प्रेम प्रसंग चल रहा था । कहीं तो जाति का अलग होना इन प्रेमियों के रास्ते की दीवार बनता है और कहीं उनके गोत्र या गांव का एक होना ।
इस समस्या का सच्चा समाधान केवल इसलामी व्यवस्था है क्योंकि इसलामी व्यवस्था में केवल सगी बहन या दूध शरीक बहन , मौसी , बुआ आदि निहायत क़रीबी रिश्तेदारों के साथ ही वैवाहिक संबंध वर्जित हैं ।जो लोग आज इसलाम की व्यवहारिक व्यवस्था को आज केवल पूर्वाग्रह के कारण नहीं मान रहे हैं , वे जल्द ही अपनी परम्पराओं को टूटता और मिटता हुआ देखने के लिए अभिशिप्त होंगे । तब उनके बच्चों के पास कोई भी नैतिक मूल्य शेष न बचेगा क्योंकि इसलामी मूल्य उन्हें दिए नहीं गए होंगे और प्राचीन रूढ़ियों को वे रास्ते की दीवार मानकर ध्वस्त कर चुके होंगे ।
अपनी औलाद की हिफ़ाज़त और बेहतरी की ख़ातिर इसलामी मूल्यों को अपनाइये । ये व्यवहारिक भी हैं और वर्तमान समस्याओं का समाधान भी ।
अपनी औलाद की हिफ़ाज़त और बेहतरी की ख़ातिर इसलामी मूल्यों को अपनाइये । ये व्यवहारिक भी हैं और वर्तमान समस्याओं का समाधान भी ।
भाई ज़ीशान ज़ैदी जी से विनती है कि वे विषय को और अधिक स्पष्ट करें , ख़ासकर प्रश्न करने वालों को ज़रूर जवाब दें क्योंकि मेरे पास नेट की फे़सिलिटि घर पर नहीं है ।
भाई शाहनवाज़ का और जनाब उमर कैरानवी और डा. अयाज़ साहब समेत सभी भाईयों का दिल से आभारी हूं । महक और मान का भी शुक्रगुज़ार हूं और पुष्पेन्द्र और नवरत्न जी का भी ।
भाई अमित तो चुपके से पढ़कर निकल जाते हैं ।
भाई तारकेश्वर गिरी जी की कोई कोई बात तो बादाम गिरी से भी ज़्यादा दिमाग़ को ताज़गी देती है । युवा होते ही लड़के और लड़की का विवाह कर देने का उनका विचार एकदम सही है । मैं उनसे ऐलानिया सहमत होता हूं । जो उनसे असहमत हो वह कारण बताए ।
@अनुनाद सिंह जी ! ‘नाम बड़े और दर्शन छोटे‘ की कहावत को आपने आज चरितार्थ कर दिखाया , इसके लिए धन्यवाद । आपके लिए मेरे ये चन्द शब्द काफ़ी होंगे ।
ReplyDelete@सतीश जी और अविनाश वाचस्पति जी ! देख लीजिये आपके सद्भावना प्रयास में पलीता लगाने वाले बड़े आदमी के छोटे से हाथ लेकिन अपुन भी कुछ कुछ ऐसे लोगों के कमेन्ट्स का आदी हो गएला है ।
http://vedquran.blogspot.com/2010/05/blog-post.html
डॉक्ट्र साहब, आप तो झोला-छाप निकले। पाकिस्तान और सोमालिया के लिये भी आपके झोले में कोई नुस्खा है?
ReplyDeleteमनोविज्ञान यह है कि आप पूरी किताब पढ जाएं मगर दिमाग में वही-वही घूमता रहता है,जो अंडरलाइन या हाईलाइटेड था। संभव है,आप उन्हीं बातों पर जोर भी देना चाहते हों। मेरा आग्रह है कि पोस्ट का रंग एक-सा बनाए रखें ताकि पाठक स्वयं तय कर सकें कि लिखे गए में क्या ज्यादा महत्वपूर्ण है।
ReplyDeleteThere are certain blood relations, which are considered Haraam as far as marriage is concerned. (As a general rule, anyone who is your Mahram is forbidden to you for marriage.) The list of such relatives is given in the Holy Qur'an as follows:
ReplyDeleteFor Man: mother, daughter, paternal aunt, maternal aunt, niece, foster-mother, foster-sister, mother-in-law, stepdaughter, daughter-in-law, all married women, sister-in-law (as a 2nd wife) (See Holy Qur'an, ch. 4, verse 23-24)
For Woman: father, son, paternal uncle, maternal uncle, nephew, foster-mother's husband, foster-brother, father-in-law, stepson, son-in-law.
Anybody can marriage with any relative except above list.
ReplyDeleteअनजान जगह अपनी ही जाती का रिश्ता ढूंढना अँधेरे में सुई ढूँढने जितना मुश्किल होता है. और अक्सर ऐसी शादी का परिणाम भयंकर होता है.
ReplyDelete@अनुनाद सिंह,
ReplyDeleteनुस्खा हर चीज़ का है, लेकिन देश दूसरे का है.
अनवर भाई आज आपने फिर इस्लामी नियमो को सही सिद्ध कर दिया है आप वाकई जिनीयस है आप छोटी छोटी बातो मे सब कुछ कह जाते है
ReplyDeleteबुद्दिमान मुस्लिमों को अपने मजहबी पुस्तकों के बारे में आत्ममंथन करने की अत्यधिक आवश्यकता है। कितना ही वो अपने को शांति का दूत बताने का कुतर्क देलें किन्तु यह उनका जेहाद सर्वविदित और प्रत्यक्ष है उसको कोई कैसे नकार सकता है कि उनको यह प्रेरणा कहाँ से मिलती है। इसीलिए मिथ्या प्रलापों को छोड़ कर अपनी पुस्तकों का निष्पक्ष हो कर बुद्धिमत्ता से विवेचन करें और तथ्य को समझें और अपने वर्ग को समझाएं।
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आदरणीय डॉ० अनवर जमाल साहब,
स्वधर्म प्रचार का आपका यत्न तो समझ आता है परंतु रक्त संबंधियों में विवाह को भी सही और अनुकरणीय बताना तो हद है!
देखिये लेबनान की यह स्टडी...
कहती है...
Parental consanguinity has been associated with increased risk of pediatric disorders including:
Stillbirths and perinatal mortality10, Congenital birth defects, Malformations, and mental retardation11, Blood diseases (hemophilia, â-thalassemia)12, cystic fibrosis13, Chronic renal failure14 and Neonatal diabetes mellitus15.
देखिये इसीलिये दुनिया के कई मुल्कों में इस तरह की शादियों पर पाबंदी है ।
धर्म कुछ भी कहे, सभी दोस्तों से प्रार्थना है कि अपनी औलाद और आदमजात की बेहतरी चाहते हैं तो ऐसे रिश्तों से बचें।
आभार!
समस्या का सच्चा समाधान केवल इसलामी व्यवस्था ही है वेसे भी इसलाम की बहुत सी बातें (कासमी साहब के मुताबिक 80 प्रतिशत) अपना चुके अब यह भी अपना लें तो बहतर है
ReplyDeleteaslamqasmi.blogspot.com
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ReplyDeleteजिहाद और इस्लाम को जो समझना चाहे पढे स्वामी जी की पुस्तक
ReplyDeleteइस्लाम आतंक? या आदर्श जो कानपुर के स्वामी लक्ष्मीशंकराचार्य जी ने लिखी है। इस पुस्तक में स्वामी लक्ष्मी शंकराचार्य ने इस्लाम के अपने अध्ययन को बखूबी पेश किया है।
स्वामी लक्ष्मी शंकराचार्य के साथ दिलचस्प वाकिया जुड़ा हुआ है। वे अपनी इस पुस्तक की भूमिका में लिखते हैं-
मेरे मन में यह गलत धारणा बन गई थी कि इतिहास में हिन्दु राजाओं और मुस्लिम बादशाहों के बीच जंग में हुई मारकाट तथा आज के दंगों और आतंकवाद का कारण इस्लाम है। मेरा दिमाग भ्रमित हो चुका था। इस भ्रमित दिमाग से हर आतंकवादी घटना मुझ इस्लाम से जुड़ती दिखाई देने लगी।
इस्लाम,इतिहास और आज की घटनाओं को जोड़ते हुए मैंने एक पुस्तक लिख डाली-'इस्लामिक आंतकवाद का इतिहास' जिसका अंग्रेजी में भी अनुवाद हुआ।
पुस्तक में स्वामी लक्ष्मीशंकराचार्य आगे लिखते हैं-
जब दुबारा से मैंने सबसे पहले मुहम्मद साहब की जीवनी पढ़ी। जीवनी पढऩे के बाद इसी नजरिए से जब मन की शुद्धता के साथ कुरआन मजीद शुरू से अंत तक पढ़ी,तो मुझो कुरआन मजीद के आयतों का सही मतलब और मकसद समझाने में आने लगा।
सत्य सामने आने के बाद मुझ अपनी भूल का अहसास हुआ कि मैं अनजाने में भ्रमित था और इस कारण ही मैंने अपनी उक्त किताब-'इस्लामिक आतंकवाद का इतिहास' में आतंकवाद को इस्लाम से जोड़ा है जिसका मुझो हार्दिक खेद है
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लेबनान की स्टडी का लिंक यह है।
आज का दिन भी प्यार की ख़ातिर जान देने वालों की ख़बरें पढ़कर शुरू हुआ । शामली की जनता धर्मशाला के एक कमरे का दरवाज़ा जब मैनेजर ने खुलवाया तो युवती पूजा , मुज़फ़्फ़रनगर ने दरवाज़ा खोला । उसके मुंह से सल्फ़ास की गंध आ रही थी । बेड पर उसका पति अनुज , हरिद्वार अचेत पड़ा था । दोनों को अस्पताल पहुंचाया गया तो चिकित्सकों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया । दोनों 3 दिन पहले घर से फ़रार चल रहे थे और किसी मन्दिर में विवाह भी कर चुके थे लेकिन उन्हें जुदाई का डर सता रहा था ।
ReplyDeleteआज का दिन भी प्यार की ख़ातिर जान देने वालों की ख़बरें पढ़कर शुरू हुआ । शामली की जनता धर्मशाला के एक कमरे का दरवाज़ा जब मैनेजर ने खुलवाया तो युवती पूजा , मुज़फ़्फ़रनगर ने दरवाज़ा खोला । उसके मुंह से सल्फ़ास की गंध आ रही थी । बेड पर उसका पति अनुज , हरिद्वार अचेत पड़ा था । दोनों को अस्पताल पहुंचाया गया तो चिकित्सकों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया । दोनों 3 दिन पहले घर से फ़रार चल रहे थे और किसी मन्दिर में विवाह भी कर चुके थे लेकिन उन्हें जुदाई का डर सता रहा था ।
हमारे विवाह विधान में कोई कमी नहीं वह सर्वोत्तम है लो पढो
ReplyDeleteहर जाति के लिए विवाह का रूप भी अलगअलग हो, ऐसा धर्मशास्त्रीय आदेश है, कहा है (मनु. 3/21, 23-24)
ब्राह्मो दैवस्तथैवार्ष प्राजापत्यस्तथा सुरः
गांधर्वो राक्षश्चैव पैशाचश्चस्टामे धम.........राक्षसं क्षत्रियस्यैकमासुरं वैश्यशुर्दयोः
अर्थात
आठ प्रकार के विवाह हैं
1. ब्राह्मा
2. दैव,
3. आर्ष,
4. प्राजापत्य,
5. आसुर (धन से लडकी खरीदना),
6. गांधर्व(अपने तौर पर छिप कर यौन संबंध स्थापित करना),
7. राक्षस(लडकी के घर वालों पर हमला कर के लडकी उठा लाना)
और
8. पैशाच(सोई हुई या बेहोश लडकी से मैथुन करना) -
ब्राह्मण के लिये पहले छ हैं
क्षत्रिय के लिये अन्तिम चार
वैश्य और शूद्र के लिये तीन विवाहों का विधान है
उनमें श्रैष्ठ विवाह ब्राह्मण के लिये छ मे पहले चार
क्षत्रिय के लिय 'राक्षस'
वैश्य और शुद्र के लिए 'आसुर' विवाह श्रेष्ठ हैं
इनसान ने आज जितनी भी तरक्क़ी की है वह सब नियमों की खोज और उनके पालन के बाद ही संभव हो सका है । नियमों का नाम ही धर्म है । ये वे नियम होते हैं जो व्यक्ति और समाज को जीना और मरना सिखाते हैं । प्राकृतिक नियमों की तरह ये नियम भी शाश्वत होते हैंइनसान ने आज जितनी भी तरक्क़ी की है वह सब नियमों की खोज और उनके पालन के बाद ही संभव हो सका है । नियमों का नाम ही धर्म है । ये वे नियम होते हैं जो व्यक्ति और समाज को जीना और मरना सिखाते हैं । प्राकृतिक नियमों की तरह ये नियम भी शाश्वत होते हैं
ReplyDeleteईश्वर ने एक जगह पवित्र क़ुरआन मे कहा "अगर माँ बाप मे से कोई एक या दोनो तुम्हारे सामने बुढ़ापे को पहुँच तो उन्हे कोई अप्रिय बात न कहो और न उन्हे झिड़को।" मतलब उन्हे मारना पीटना, भला बुरा कहना, तकलीफ देना तो दूर की बात है, उन्हे कोई ऐसी बात भी कही नही जा सकती,जिसे वे बुरा समझे।अगर वे ऐसी बातें करें जो तुम्हे नापसंद हो तो उन्हे बरदाश्त और गवारा करो और उन्हे झिड़को मत,उनको हर समय खुश रखो ईश्वर ने एक जगह पवित्र क़ुरआन मे कहा "अगर माँ बाप मे से कोई एक या दोनो तुम्हारे सामने बुढ़ापे को पहुँच तो उन्हे कोई अप्रिय बात न कहो और न उन्हे झिड़को।" मतलब उन्हे मारना पीटना, भला बुरा कहना, तकलीफ देना तो दूर की बात है, उन्हे कोई ऐसी बात भी कही नही जा सकती,जिसे वे बुरा समझे।अगर वे ऐसी बातें करें जो तुम्हे नापसंद हो तो उन्हे बरदाश्त और गवारा करो और उन्हे झिड़को मत,उनको हर समय खुश रखो ईश्वर ने एक जगह पवित्र क़ुरआन मे कहा "अगर माँ बाप मे से कोई एक या दोनो तुम्हारे सामने बुढ़ापे को पहुँच तो उन्हे कोई अप्रिय बात न कहो और न उन्हे झिड़को।" मतलब उन्हे मारना पीटना, भला बुरा कहना, तकलीफ देना तो दूर की बात है, उन्हे कोई ऐसी बात भी कही नही जा सकती,जिसे वे बुरा समझे।अगर वे ऐसी बातें करें जो तुम्हे नापसंद हो तो उन्हे बरदाश्त और गवारा करो और उन्हे झिड़को मत,उनको हर समय खुश रखो
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ReplyDeleteKOOL
ReplyDelete@प्रवीण जी इस्लाम करीबी रिश्तेदारो मे एक जाति व एक गोत्र मे विवाह की अनुमति देता है, लाज़िमी नही ठहराता हिंदु परंपरा मे यह अनुमति न मिलने के कारण भारत मे प्रेमी युगल पंचायती फरमान से मौत के घाट उतारे जा रहे है इनकी जान बचाने का कोई तरीका बताए?
ReplyDelete.
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@ Dr. Ayaz ahmad,
आदरणीय डॉ० अयाज अहमद साहब, मध्ययुगीण खाप पंचायतों द्वारा तथाकथित स्वगोत्र विवाहों व ग्राम वासी जोड़े से विवाह के विरूद्ध जो फरमान दिये जा रहे हैं, ऐसे हर मामले में हमारे कानून ने पीड़ित को संरक्षण दिया है...कोई नये तरीके की जरूरत नहीं...हमारा वर्तमान कानून पर्याप्त है...जरूरत है तो केवल उसका पालन करवा पाने की राजनीतिक व प्रशासनिक इच्छाशक्ति की...मेरा यह भी मानना है कि तर्क, तथ्य और स्वनिर्मित संविधान प्रदत्त कानूनों का पालन करने की बजाय हम लोग जो यह अपनी-अपनी आस्था व विश्वासों के Non negotiable व Non Debatable होने का जो यह हल्ला सा मचाते हैं यह कानून का राज कायम करवाने की राजनीतिक व प्रशासनिक इच्छाशक्ति की कमी का एक बहुत बड़ा कारण है... मेरा यह भी मानना है कि न चाहते हुए भी आप व डॉ अनवर जमाल साहब जैसे विद्वान भी स्वधर्मप्रचार के मोह के चलते धार्मिक कट्टरता व व्यक्तिगत आस्था-विश्वास को देश के नियम-कानून से ऊपर रखने की प्रवृत्ति को बढ़ावा ही दे रहे हैं... हमारे देश के भविष्य के लिये घातक होगा यह...
प्रवीण शाह जी,
ReplyDeleteये स्टडी हालांकि बहुत ज्यादा reliable नहीं है, और इसमें consanguinity के अलावा और भी फैक्टर्स शामिल हैं, जिन्हें अगर हटा दिया जाए तो बस इतना सिद्ध हो सकता है की non -consanguinity शादी consanguinity शादी से कुछ हद तक बेहतर होती है. और ये बात इस्लाम भी मानता है. आपने तो आज की स्टडी का हवाला दिया, मैं खलीफा हारून रशीद के ज़माने का किस्सा बताता हूँ. उसके दो बेटे थे मामून और अमीन. मामून की माँ एक पर्शियन गुलाम थी जबकि अमीन की माँ खलीफा की कजिन थी. बुद्धिमता में मामून अमीन से कई गुना बढ़कर था. जब उस समय के इस्लामी विद्वान हज़रत बहलोल से इसका कारण पुछा गया तो उन्होंने बताया की चूंकि बाहरी रिश्ते में मियाँ बीवी के बीच प्यार ज्यादा गहरा होता है इसलिए जो औलाद होती है वह ज्यादा बुद्धिमान होती है.
इसलिए इस्लाम non -consanguinity शादी को consanguinity शादी पर preference देता है. लेकिन इसका ये मतलब नहीं की consanguinity शादी पर सिरे से रोक लगा दी जाए.
एक बात और शादियों में अनुवांशिक गुणों की काफी अहमियत होती है. इसलिए अगर कोई जाती अनुवांशिक दृष्टि से दूसरी जातियों से श्रेष्ठ है तो उसके लिए consanguinity शादी ही ज्यादा श्रेष्ठ होगी.
ReplyDelete.
ReplyDelete.
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@ जीशान जैदी जी,
आनुवांशिक दॄष्टि से Consanguineous विवाह सही नहीं है यही तो मैं कह रहा हूँ।
"अगर कोई जाती अनुवांशिक दृष्टि से दूसरी जातियों से श्रेष्ठ है तो उसके लिए consanguinity शादी ही ज्यादा श्रेष्ठ होगी."
किस दुनिया में रहते हैं जनाब ?
जातिगत श्रेष्ठता (Racial Supremacy) तो हिटलर का विचार था... इस दावे की तो धज्जियाँ उड़ चुकी हैं बहुत पहले ही... और क्या आप यहाँ यह भी कहना चाह रहे हैं कि आपके धर्म के अनुयायी और आप स्वयं भी अनुवांशिक दृष्टि से दूसरी जातियों से श्रेष्ठ हैं...इसिलिये Consanguineous विवाह आपके लिये सही है...पर बाकी दुनिया के लिये गलत...अगर ऐसा है तो मैं आपकी इस कथित आनुवांशिक श्रेष्ठता को मानने के लिये कतई तैयार नहीं...:)
@प्रवीण जी इसराइल मे करीबी विवाह बहुत होते है फिर भी वहाँ बड़े बड़े साईँसटिस्ट पैदा होते है और सबसे ज्यादा नोबेल पुरुस्कार पाते है
ReplyDeleteजीशान भाई हमारा देश बल्कि सारी दुनिया मर्द से मर्द और औरत से औरत की शादी की इजाजत देने को मजबूर हो रही है और उस बारे में बहुत अच्छे तर्क पेश किय जा रहे हैं इतने अच्छे के हमारी कोर्ट कानून सबको बदलने पर मजबूर होना पडा तुम हो कि खून और गौत्र की बहस में उलझे हो
ReplyDeleteप्रवीण शाह जी,
ReplyDeleteअगर आप शादियों में अनुवांशिकता को महत्व दे रहे हैं तो इसका मतलब है की अलग अलग जातियां श्रेष्ठता में अलग अलग हो सकती हैं.
हिटलर का विचार ये था की केवल उसी की जाति सर्वश्रेष्ठ है, जबकि मेरा विचार यह है की कुछ जातियां एक क्षेत्र में दूसरों से श्रेष्ठ हो सकती है जबकि दूसरी जातियां दूसरे क्षेत्र में औरों से श्रेष्ठ हो सकती हैं. भारत में बौद्धिक क्षेत्रों में आम तौर पर कोई मिश्रा या चतुर्वेदी ही दिखाई देता है जबकि सेना में कोई राठोर या सिंह. अब अपने बच्चों में आप कौन सी श्रेष्ठता चाहते हैं इसके लिए रिश्ते की जाति का चुनाव अहमियत रखता है.
हज़रत अली (अ.स.) अपने वंश में एक बहादुर बेटा चाहते थे तो उन्होंने एक ऐसी कबीले में शादी की जो उस समय पूरे अरब में अपनी बहादुरी के लिए जाना जाता था.
@मुकेश प्रजापति जी manusmriti मे कहाँ लिखा है कि करीबी संबंधियो मे विवाह न करो ?
ReplyDeleteमहक भाई आजकल लगता है छुट्टी पर हैं. उन्होंने कुछ दिनों पहले मौत के बाद के जीवन पर कुछ सवाल किये थे, और मैंने उनसे जवाब देने का वादा किया था. महक भाई, जवाब के रूप में एक पोस्ट यहाँ प्रस्तुत है.
ReplyDeleteunhooo
ReplyDeletehindu samaj badal raha hai lekin yeh badlao western tariqe se ha raha hai jo ki ghatak hai .
ReplyDeletesab jagahon par hindu riti riwaj bhi ek nahin hai balki ek hi jagah ki alag alag jatiyon ke riwaj bhi alag hain .
ReplyDeleteहम सबके माता पिता आदम हव्वा हैं इस लिये हमारा खून और जाती एक है
ReplyDeleteवैश्य जाति की उत्पत्ति भी महाराजा अग्रसेन से होना बताई जाती है । सिंघल , मित्तल , जिंदल और गर्ग वगैरह उनके 18 पुत्र थे और आज भी सिंघल के बेटे का विवाह जिंदल की बेटी से हो जाता है । क्या यह भी क्लोज़ ब्लड रिलेशन में विवाह होना नहीं कहलाएगा ?
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDelete@ अरे अनुनाद बाबा ! आप ढंग से अपनी झोली तो फैलाइये फिर देखिये हम अपने झोले में से आपको क्या अता करते हैं ?
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