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Thursday, May 27, 2010

Countless blessings of God हे मानव! दयालु दाता को छोड़कर तू किसके सामने अपनी झोली फैला रहा है और किसे शीश नवा रहा है ?

आरम्भ अल्लाह के नाम से जो अत्यन्त दयालु सदा कृपाशील है ।
आ गया परमेश्वर का आदेश, सो उस (प्रलय और प्रकोप) की जल्दी न करो। वह पवित्र और महान है उससे जिसको वे साझीदार ठहराते हैं।
वह फ़रिश्तों को रूह के साथ अपने हुक्म से अपने बन्दों में से जिस पर चाहता है उतारता है कि लोगों को ख़बरदार कर दो कि मेरे सिवा कोई ‘इलाह‘ (उपास्य,सृष्टा,विधाता) नहीं, सो तुम मुझसे डरो।
उसने आसमानों और ज़मीन को सत्य के साथ पैदा किया है, वह महान है उस साझेदारी से जो वे कर रहे हैं।
उसने इनसान को वीर्य से उत्पन्न किया। फिर वह (उपकार भुलाकर धर्म प्रचारक से) खुल्लम खुल्लम झगड़ने लगा।
और उसने चौपायों को बनाया उनमें तुम्हारे लिए लिबास भी है और खुराक भी और दूसरे फ़ायदे भी, और उनमें से खाते भी हो। और उनमें तुम्हारे लिए रौनक़ है जबकि शाम के समय उनको लाते हो और सुबह के समय छोड़ते हो। और वे तुम्हारे बोझ ऐसी जगहों तक पहुंचाते हैं जहां तुम सख्त मेहनत के बिना नहीं पहुंच सकते थे। निस्संदेह तुम्हारा पालनहार बड़ा प्रजा वत्सल, दयालु है।
और उसने घोड़े,ख़च्चर और गधे पैदा किये ताकि तुम उनपर सवार हो और शोभा के लिए भी और वह ऐसी चीज़ें पैदा करता है जिन्हें तुम नहीं जानते।
और परमेश्वर तक पहुंचती है सीधी राह और कुछ राहें टेढ़ी भी हैं और अगर परमेश्वर चाहता तो तुम सबको (एक ही मार्ग की) प्रेरणा दे देता।वही है जिसने ऊपर से पानी उतारा तुम उसमें से पीते हो और उसी से पेड़ होते हैं जिनमें तुम चराते हो। वह उसी से तुम्हारे लिए खेती और ज़ैतून और खजूर और अंगूर और हर क़िस्म के फल उगाता है।
और उसने तुम्हारे काम में लगा दिया रात को और दिन को और सूरज को और चांद को और सितारे भी उसके हुक्म से वशीभूत हैं, निस्संदेह इसमें निशानियां हैं बुद्धिजीवियों के लिए। और ज़मीन में जो चीज़ें मुख्तलिफ़ क़िस्म की तुम्हारे लिए फैलाईं, निस्संदेह इसमें निशानी है उन लोगों के लिए जो (घटनाओं को देखकर) सबक़ हासिल करें।
और वही है जिसने समुद्र को तुम्हारी सेवा में लगा दिया ताकि तुम उसमें से (मछली आदि का) ताज़ा मांस खाओ और उससे आभूषण निकालो जिसको तुम पहनते हो और तुम नौकाओं को देखते हो कि उसमें चीरती हुई चलती हैं और ताकि तुम उसका फ़ज़्ल तलाश करो और ताकि तुम शुक्र करो।
और उसने ज़मीन में पहाड़ रख दिये ताकि वह तुमको लेकर डगमगाने न लगे और उसने नहरें और रास्ते बनाए ताकि तुम राह पाओ। और दूसरे बहुत से चिन्ह भी हैं और लोग तारों से भी रास्ता मालूम कर लेते हैं।
फिर क्या जो पैदा करता है वह उसके बराबर है जो कुछ भी पैदा नहीं कर सकता, क्या तुम सोचते-विचारते नहीं ?
अगर तुम परमेश्वर की भेंट-उपहारों को गिनो तो तुम उनको गिन न सकोगे। निस्संदेह परमेश्वर क्षमाशील दयावान है।
-पवित्र कुरआन, सूरह ए नहल,1-18

25 comments:

  1. JUST TWO SENTENCE

    RELEGION IS THE OPIUM OF MASS

    no religion is higher than Truth

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  2. This is a nice post

    Thanx for this post

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  3. Concept of no religion is better concept.

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  4. फिर क्या जो पैदा करता है वह उसके बराबर है जो कुछ भी पैदा नहीं कर सकता, क्या तुम सोचते-विचारते नहीं ? अगर तुम परमेश्वर की भेंट-उपहारों को गिनो तो तुम उनको गिन न सकोगे। निस्संदेह परमेश्वर क्षमाशील दयावान है।

    http://www.turntoislam.com/

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  5. इन्सान खामोश सितारों को देख कर रास्ता मालूम कर लेता है लेकिन जब प्रमेश्वर स्वयं मार्ग बताता है तो इन्सान उसे ग्रहण नहीं करता क्यों?

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  6. Countless blessings of God हे मानव! दयालु दाता को छोड़कर तू किसके सामने अपनी झोली फैला रहा है और किसे शीश नवा रहा है ?
    आरम्भ अल्लाह के नाम से जो अत्यन्त दयालु सदा कृपाशील है ।
    आ गया परमेश्वर का आदेश, सो उस (प्रलय और प्रकोप) की जल्दी न करो। वह पवित्र और महान है उससे जिसको वे साझीदार ठहराते हैं।
    वह फ़रिश्तों को रूह के साथ अपने हुक्म से अपने बन्दों में से जिस पर चाहता है उतारता है कि लोगों को ख़बरदार कर दो कि मेरे सिवा कोई ‘इलाह‘ (उपास्य,सृष्टा,विधाता) नहीं, सो तुम मुझसे डरो

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  7. abe nitin tayagi tujhe aaj tak pata hi nahi chala ki duniya mai kaya ho raha hai

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  8. इश्वर दयालू हे

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  9. This comment has been removed by the author.

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  10. ब्रह्मसूत्र :- एकम् ब्रह्म द्वितियो नास्ति । नीहा न नास्ति किँचिन्॥ अर्थात् : ईश्वर एक ही है , दूसरा नही है । नही है, नही है, ज़रा भी नही ॥

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  11. डॉ.अयाज अहमद से सहमत

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  12. मेरी यह टिप्पणी जमाल साहब की पिछली पोस्ट से संबंधित है , कृपया सन्दर्भ के लिए इनकी पिछली पोस्ट के कॉमेट बॉक्स को देखें |

    पवित्र पिताजी , पवित्र माताजी , पवित्र महाभारत , पवित्र रामायण इस तरह के शब्दों का उच्चारण कभी नहीं किया जाता है| जी शब्द आदर सूचक शब्द है , पवित्र शब्द गुणवत्ता सूचक है| भाई जी , पिताजी ,माताजी , बहनजी सामान्य आदर सूचक शब्द हैं| पवित्र शब्द आदर सूचक नहीं है यह शब्द गुणवत्ता का सूचक है हमने तो कभी भी पवित्र गीता , पवित्र रामायण नहीं कहा | जमाल साहब कृपा करके पिता माता की तुलना किताब से मत करो| अपने नाम से पहले लगे डॉ शब्द की सार्थकता को बनाए रखे| आपके तर्कों और शब्दों के संतुलन से ऐसा लगना चाहिए की आप अनवर जमाल नहीं हैं डॉक्टर अनवर जमाल हैं |
    वैसे आपकी जानकारी के लिए स्पष्ट कर दूं की क़ुरआन एक अच्छी पुस्तक है , एक पवित्र पुस्तक है , आप उसे पवित्र कहेंगे तो भी नहीं कहेंगे तो भी ,,,,, बल्कि जितना ज़्यादा आप उसे पवित्र पवित्र पवित्र कहेंगे उतना ही ज़्यादा उसके अपवित्र हो सकने की संभावना भी आप स्वयं ही खड़ी करेंगे|

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  13. इश्वर दयालू हे

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  14. @Shivlok Ji,
    ऐसा कुछ नहीं है. हम बार कहते हैं कि ईश्वर महान है. इसका ये मतलब तो नहीं कि हम उसकी महानता में संदेह कर रहे हैं!

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  15. बहुत ही ज़बरदस्त जानकारी. बहुत खूब!

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  16. This comment has been removed by the author.

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  17. मैं, मुसलमानों के विरोधाभासी रवैये को देखकर अक्सर यह समझता था कि यह व्यवहार इस्लाम का नहीं उसके मानने वालो ने बिगाड़ किया है.
    लेकिन किसी कोने में यह आभास था कि इस्लाम भी तार्किक तथ्यपूर्ण सिद्धांतो पर आधारित होगा.
    जिज्ञासु था, व जानकारियों का इच्छुक भी सो सभी इस्लामिक ब्लॉग पढ़े.(जाकिर नाइक को भी सुना )
    अल्लाह-ईश्वर पर ईमान-आस्था को और दृढ करने का भाव था. कदाचित उसके रचयिता एवं सर्वशक्तिमान होने का विश्वास जग जाए.
    लेकिन यह सारे प्रचारक ब्लॉग पढ़ कर यकीन हो गया कि इस्लाम में न तत्त्व है,न तथ्यपूर्ण सिद्धांत है, न तर्कपूर्ण सन्देश.
    सर्वशक्तिमान ईश्वर इतना लाचार कैसे हो सकता है कि वो स्वयं को मनवाने के लिए स्वयं की कसमें खाए,स्वयं के होने के लिए चेलेंज फेके,
    न मानने वालो को दोज़ख कि आग से डराए. यह सब तो मानवीय कमजोरियां है.दैवीय गुण नहिं.
    कुर-आन ईशवानी नहीं हो सकती, उसे ईशवानी कहना अल्लाह की नाफ़रमानी होगी.

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  18. @Anonymous
    सृष्टि के सृजक के बारे में कृपया मेरा लेख यहाँ पढ़ें !

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  19. Nice article & very good information. Mashallah.

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  20. Good dispatch and this mail helped me alot in my college assignement. Thank you on your information.

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