सारी मानवजाति एक परिवार है . उसका पैदा करने वाला भी एक है और उसके माता पिता भी एक ही हैं . ऊंच नीच का आधार रंग नस्ल भाषा और देश नहीं बल्कि तक़वा है. जो इन्सान जितना ज्यादा
ईश्वरीय अनुशासन का पाबंद है और लोकहितकारी है वो उतना ही ऊंचा है और जो इसके जितना ज़्यादा खिलाफ अमल
करता है वो उतना ही ज़्यादा नीच है .
samarthan 100%%%%%%%%%%%%%%%%%%%!!!!!!!!!
ReplyDeletenice post.
ReplyDeleteसारी मानवजाति एक परिवार है .
ReplyDeleteसर्वोत्तम विचार ,कास सब समझ पाते /
ReplyDeleteसर्वोत्तम विचार ,कास सब समझ पाते /
ReplyDeleteGOOD POST
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteआपने बहुत अच्छी बात कही है सारी मानव जाति एक परिवार है।
ReplyDeleteकुरान की शिक्षा सामने लाने के लिए धन्यवाद . समय की जरुरत है , आपके लिए भी और हमारे लिए भी . उत्तम विचार कहीं से भी लिया जा सकता है . पालन भी जरुरी है .
ReplyDeleteसारी मानवजाति एक परिवार है . उसका पैदा करने वाला भी एक है और उसके माता पिता भी एक ही हैं . ऊंच नीच का आधार रंग नस्ल भाषा और देश नहीं बल्कि तक़वा है. जो इन्सान जितना ज्यादा ईश्वरीय अनुशासन का पाबंद है और लोकहितकारी है वो उतना ही ऊंचा है और जो इसके जितना ज़्यादा खिलाफ अमल करता है वो उतना ही ज़्यादा नीच है .
ReplyDeletemanav , who are u ?
ReplyDeleteसारे मानव एक ही माँ बाप की संतान है इसलिए सभी इंसान एक दूसरे के खूनी रिश्ते भाई है
ReplyDeleteयाहू आ गए न मानवता पर
ReplyDeleteक्यूँ रे चूतिये कैसा है? मैंने ही तेरी और सुरेश जी के नकली प्रोफाइल बनाये थे. अब बोल क्या बोलेगा. क्या उखाड़ लेगा मेरा साले. तुझ जैसे कीड़े तो मेरी झांटों में अटके रहते हैं साले एड्स के मरीज़.....
ReplyDeleteसालो तुम सब को पोटा में ऐसा गायब करूंगा, कि पप्पा पूरी कंट्री में ढूंढते फिरेंगे, सालो आस्तीनों के साँपों...
ReplyDeleteद्रोपदियों का गांव
ReplyDeleteभूख का दर्द कैसा होता है,आप में से कुछ समझेंगे कुछ नहीं!समझेगा वही जो भूख को चबाया होगा!भूख चबाना दो दिन,चार दिन तक तो संभव है,उसके आगे तो जीने की जुगत लगानी ही होगी क्यूंकि भूख जीत जाती है, तमाम सिधान्तों पर, विचारों पर और बुनियादी चीज जो नजर आती है, वो सिर्फ और सिर्फ भूख होतीहै!लद्दाख से तिब्बत तक के इलाके में ज़िन्दगी बहुत मुश्किल है!यहाँ सर्दी इन्सान तो क्या ज़मीन को सिकोड़ देती है,इस सिकुडन में रोटी की दिक्कत है,ऊपर से समतल ज़मीन का ना होना!ना घर के लिए जगह होती है ना दाना-पानी उगाने की जगह!खैर वहां के लोगो ने ऐसे में ही अनुकूलन बना लिया है!इस अनुकूलन के भी कुछ निहितार्थ हैं!दरअसल लोग यहाँ रोटी, ज़मीन और परिवार के लिए घर में एक द्रोपदी रखते हैं!कोई भी द्रोपदी हो वो मजबूरी की ही प्रतीक है!तब मां के वचन का पालन करना था पर तब वचन की विवशता थी आज ये अलग है!आज द्रोपदी किसी वचन को विवश नहीं है!ये द्रोपदी परम्परा का निर्वहन कर रही है! लद्दाख-तिब्बत पट्टी में समतल नहीं, पहाड़ है! यहाँ खेती-बाड़ी की बात तो दूर झोपड़ी डालने तक की जगह नहीं होती, ऐसे में यहाँ लोगों ने कालांतर से ही जीवन की एक नई शैली विकसित कर ली!शैली है एक परिवार के सभी भाइयों की एक पत्नी!इसका कारण ये है की अगर पत्नी एक होगी तो बंटवारे की समस्या नहीं आयेगी!चूँकि सबकी पत्नी एक तो सबके बच्चे एक, ऐसे में बंटवारे का प्रश्न नहीं आयेगा!बंटवारा तो तब होगा ना जब सबका अलग घर-परिवार होगा!अब यहाँ तो समस्त भाइयों की पत्नी एक तो बाप में फर्क कौन करे और एसा करना मुमकिन भी नहीं!ऐसे में बंटवारे का गणित खुद ब खुद दम तोड़ देता है और ज़िन्दगी पहले से ही खींचे ढर्रे पर चलती रहती है,चलती रहती है!
http://manishmasoom.blogspot.com/2010/05/blog-post_28.html