
हर तरफ़ तेरा चर्चा , हर तरफ़ तेरा चर्चा आखि़रकार वही हुआ जो होना चाहिये था यानि कि बड़े खिलाड़ी ब्लॉगर्स की अर्ध गोपनीय मीटिंग हुई ।
अर्ध गोपनीय मीटिंग ?
इसका क्या मतलब हुआ भाई ?
अर्ध गोपनीय मीटिंग का मतलब यह हुआ कि यह मीटिंग मुझ से गुप्त रखकर की गई थी और मुझसे ही यह गोपनीय न रह सकी ।
...तो फिर यह अर्ध गोपनीय कैसे हुई ?
अरे भाई ! मेरे अलावा ब्लॉगिस्तान में किसी को भी इस मीटिंग की हवा तक नहीं लगी , तो उनसे तो अभी तक भी गोपनीय ही हुई न ?
हां सो तो है । लेकिन यह मीटिंग हुई थी कहां ?
ज़िन्दगी की यूनिवर्सिटी की लायब्रेरी में ।
पर भाई साहब ! यह यूनिवर्सिटी है किस देश में ?
पान के देश मे । अरे भाई बड़ी प्रसिद्ध यूनिवर्सिटी है ।
आपने ‘मे‘ को बिना बिन्दी के क्यों लिखा ?
इस कन्ट्री का नाम ऐसे ही लिखा जाता है । अपने अवध्य बाबू हैं न , उन्होंने ही इस की खोज की तो नाम रखने का हक़ उनका ही बनता था । सो रख दिया । ब्लॉगिस्तान के कोलम्बस माने जाते हैं वे ।लेकिन इसी नाम का तो एक मुलुक और भी चमके है जी ?
उसमें बिन्दी है , ध्यान से देखना । चलो माना । अब बताओ कि क्या ख़ासियत है इस यूनिवर्सिटी की ?इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें केवल शिक्षक है लेकिन कोई कोर्स तय नहीं है ।
...और स्टूडेन्ट्स ?
वे भी तय नहीं हैं । रोज़ घटते , बढ़ते और बदलते रहते हैं ।
ख़ैर अब मेन मुद्दे पर आओ और बताओ कि इस मीटिंग का टॉपिक क्या था ?
टॉपिक तो वही था जो आजकल बिल्कुल हॉट है ।
वह क्या है ?
क्या ब्लागबानी या जगतचिठ्ठा पर नज़र नहीं डालते ?
अरे भाई , उसी आदमी के बारे में बातें हो रही थीं जो खुद लिखता है तो हॉट होता है और जो उसके खि़लाफ़ लिखता है वह भी हॉट हो जाता है ।
अच्छा अच्छा वे डाक्टर साहब ।
हां , ठीक समझे । मीटिंग में कौन कौन था ?
भई , थे तो कम ही लोग लेकिन थे सभी बड़े खिलाड़ी । एक तो ठाकरे जी के हज्जाम थे । दूसरे गेंदालाल जी थे । ईश्वर गिरी थे , महर जी थे , वे भी थे जो परवीन बॉबी के कुछ नहीं लगते लेकिन नाम उनका भी परवीन ही है ।
और अवध्य बाबू ?
वे भी थे ।
बेगाने बाबू का नाम नहीं लिया आपने ?
उनका नाम लेने की क्या ज़रूरत है । न तो उनकी अपनी कोई सोच है और न ही कोई शिनाख्त । वे तो उस हज्जाम के दुमछल्ले हैं । जब दुम है तो छल्ला तो अपने आप होगा न ? प्लीज़ ट्राई टू अन्डरस्टैन्ड यार ।
ओ. के. बाबा ओ. के. इनमें कोई सुलझा हुआ आदमी भी था क्या ?
हां एक वे भी थे ।
उनका नाम नहीं पुछूंगा क्योंकि इनकी मीटिंग में तो सिर्फ़ एक ही माइन्डेड आदमी जा सकता है । और वे हैं अपने वकील साहब ।
बिल्कुल ठीक ।
लेकिन इन्होंने मीटिंग के लिए लायब्रेरी ही क्यों चुनी ?
अरे भाई , बात ये हुई कि अपने गिरी जी पर आजकल जुनून सवार है कुरआन पर रिसर्च करने का और हाल यह है कि अन्दाज़ा के बजाय कल के ब्लॉग में लिख रहे हैं कि इसी से लोग ‘अन्देशा’ लगा लें । ये इतने लोग किताब ढूंढने में उनकी मदद को गये थे । अपने वकील साहब तो क़ाज़ी जी से भी पढ़े हैं न ।
गिरी जी का क्या है वे तो जवाब को भी जबाब लिखते हैं ।
जबाब लिखना भी बाद में सीखा पहले तो वे इतना भी नहीं जानते थे ।
अच्छा ये तो बताइये कि गिरी जी भी इसलाम में कमियां निकाल रहे हैं और तसलीमा भी लेकिन गिरी जी को तसलीमा की तरह नाम पैसा और प्रसिद्धि क्यों नहीं मिल पा रही है ?
तसलीमा तो औरत है और वह भी बिल्कुल अकेली । ऐसे में भला उनकी मदद का मौक़ा कौन गवांएगा ? जबकि अपने गिरी बाबू न तो औरत हैं और न ही अकेले ।
लेकिन रूश्दी भी तो मर्द है और उस बेचारे ने तो इतना कुफ़र भी न बका था जितना उस ठाकरे के हज्जाम ने बका है । वह भी इन्टरनेशनल हीरो नहीं बन पाया , क्यों ?
यह सब वेस्टर्न मीडिया की कॉन्सपिरेसी है । ख़ाली कुफ़र बकने से ही तो काम नहीं चलता । कुफ़र बकने वाले उनके यहां क्या कम हैं ? किस किस को हीरो बनाएंगे । कुफ़र की वैल्यू तब है जब उसे कोई मुसलमान करे । वैल्यू तो अस्ल में मुसलमान की है , चाहे वह शुकर करे या कुफ़र ।
लेकिन अपनी मीडिया भी इन्हें घास आदि कुछ नहीं डालती ।
वह इन्हें घास क्यों डालेगी ? ये आदमी हैं , कोई जानवर थोड़े ही हैं ।
तो फिर इनका उद्धार कैसे होगा ?
उद्धार तो इनके बड़ों तक का न हुआ । इनका क्या होगा ? कल्याण सिंह , उमा भारती और आडवाणी जी आखि़र क्या पा सके ?
तो इससे तो यही साबित हुआ कि नफ़रत फैलाने वाले सदा नामुराद ही रहते हैं ?
बिल्कुल ।
इस मीटिंग के अध्यक्ष कौन बने ?
भई , वकील साहब की मौजूदगी में भला कोई दूसरा कौन बन सकता है ?
क्यों , अपने अवध्य बाबू को भी तो अध्यक्ष बनाया जा सकता है ?
उन्हें कौन अध्यक्ष बनाएगा ? वे तो रिटायर्ड हैं , सर्विस से भी और अक्ल से भी । पियक्कड़ अलग से हैं। उन्हें तो मीटिंग में ही बुला लिया तो बड़ी बात समझो । जहां जाते हैं काम बिगाड़ देते हैं । अब देखो न , अपने देश का नाम रखा और ‘मे‘ पर बिन्दी लगाना भूल गये। men के बजाए me लिख आये।
हुम्म ! कुछ ये भी तो बताइये कि इस मीटिंग में हुआ क्या क्या ? किसने क्या कहा ?
ये अगली क़िस्त में बताऊँगा । लोगों को लम्बे लम्बे ब्लॉग पढ़ने की आदत नहीं है ।
ठीक है भई , आपको भी तड़पाने में मज़ा आता है । तड़पाइये । हमारा क्या है ? क़िस्सा सुनना है तो करना पड़ेगा इन्तेज़ार भी ।
अवधा की कसम हमें नही पता थ आप इस फन में भी माहिर हैं, जमाल तेरे कितने तेरे कमाल देखने कॊ मिलेंगे, तेरे कमालॊं से फुरसत मिले तॊ अवध जाउँ या फिर कब तक कहूं
ReplyDeleteअविधाया चाचा
जॊ कभी अवध न गया
कभी हमारे ब्लाग "धान के देश में" पधारॊ
ReplyDeletedhankedeshmen.blogspot.com
kuch kahate nahi ban raha...kya kahen??
ReplyDeleteKeep it up Janab Anwer Jamal sahab.... We can wait for the next installment (KIST).... Regards Er. Sharik Khan, Deoband
ReplyDeleteI could not understand what's going on, but it looks me your frustration is coming out. kindly describe specifically, otherwise no one could understand what you want to say.
ReplyDeletenice post
ReplyDeleteसुर बदल रहे हॊ या पटरी बदल रहे हॊ ?
ReplyDeletegr8
ReplyDeleteNicê post
ReplyDeleteBahuot accha likha hai
ReplyDeleteMirchi Kuch Jyada Lag Gai hai kya Doctor Babu.
ReplyDeleteApne ne hamare dharmgrantho ko khub tod marod kar ke pesh kiya. Maine To sirf Kuran ka ek hissa logo ke samne rakha hai.
Anwar bhai lage raho giri sab pur poora asar hua hai
ReplyDeleteDr. SAHAB AB KYA LIKHU, LAFZ HI NAHI MIL RAHE,
ReplyDeleteTAFSIL SE BAAD MAIN LIKHTA HOON.
Tarkeshwar Giri जी वह लेख हमारे फायदे में था वर्ना आपको अब तक 10 बार समझा दिया गया होता, भूल गये ब्लागिंग में वाइरस नाम की कोई चीज है, एक बार कह दो वाइरस नहीं जानते फिर तुम्हें दिखाया जायेगा वाइरस क्या होता है
ReplyDeleteकैरान्वी साहेब , मुझे वाइरस दिखाने से अच्छा है की खुद में वाइरस देखो। मैंने तो सिर्फ प्रितिबिम्ब दिखाया है, एक छोटा सा। लेख आपके फायदे मैं था इस लिए आप शांत है । नहीं तो आप क्या समझाते मुझे। समझाना ही है तो समझाइये अपने डॉ अनवर को ।
ReplyDeleteकंहा थे आप जब अनवर साहेब खुले रूप मैं धर्म ग्रंथो के बारे मैं उल्टा पुल्टा लिख रहे थे। मैंने तो सिर्फ आपके पवित्र कुरान की कॉपी दिखाई है।
किसी के धर्म ग्रंथो में से सिर्फ कमिया निकाल कर के लोगो के सामने रखना कंहा की समझदारी थी। तब तो बहुत गुरु जी गुरु जी कह कर के सर पे चढ़ा रखा thaa।
और मैंने फिर भी अपने संस्कारो का परिचय देते हुए लोगो को ये दिखाने की कोशिश की है धर्म ग्रंथो का आधार हजारो साल पहले के समाज के ऊपर आधारित था ना की आज के हिसाब से ।
@ Tarkeshwar Giri
ReplyDeleteतारकेश्वर जी, वैसे तो मैंने अनवर साहब की काफी किताबें पढ़ी हैं, परन्तु ब्लॉग अभी पढना शुरू किए हैं. फिर भी मुझे यकीन है कि किसी भी धर्म को उन्होंने बुरा नहीं कहा होगा, जहाँ तक प्रश्नों का सवाल है, तो अगर किसी ने प्रश्न किये होंगे, तो उत्तर अवश्य ही दिए हो सकते हैं.
वैसे किसी भी धर्म को बुरा कहना गलत है, मैं इसका समर्थक नहीं हूँ. हाँ अगर किसी को भी किसी की आस्था के प्रति कोई प्रश्न है तो अवश्य ही अच्छे शब्दों का प्रयोग करके मालूम किये जा सकते हैं. अगर आपके प्रश्न हैं तो मैं अवश्य प्रयत्न करूँगा कि उनके उत्तर दे सकूँ.
मेरा और तुम्हारा अर्थात दुनिया के हर मनुष्य का कर्तव्य यह है, कि अगर उसे लगता है, कि कोई बात दुनिया के लिए अच्छी है, तो उसे दुनिया के सामने लाया जाय. अब यह लोगों का काम है, कि उसे अच्छा माने अथवा ना माने. इसमें किसी के साथ कोई भी जोर-ज़बरदस्ती नहीं होनी चाहिए.
वैसे आप की यह बात सर्वथा गलत है कि हजारों साल पहले लिखे गए धर्म ग्रन्थ, पहले के समाज के ऊपर आधारित थे. प्रभु का ज्ञान समय का बंधक नहीं होता, वह तो हमेशा के लिए होता है. चाहे वह वेद हों, बाइबल हों अथवा क़ुरान-ए -करीम. हाँ यह अवश्य है कि कुछ लोगो ने स्वार्थ अथवा लोभ की खातिर प्रभु के शब्दों में अपने शब्द मिला दिए, अथवा उनको तोड़-मरोड़ कर पेश कर दिया हो. और इसी लिए क़ुरान-ए -करीम को उतरा गया, कि ना तो इसमें बदलाव हो सकता है और ना ही इसके जैसा ग्रन्थ इसके बाद कोई दूसरा लिखा जा सकता है.
ReplyDeleteआपने जो अपने लेख में प्रश्न लिखे हैं उनके उत्तर भी मैं जल्द ही देने का प्रयास कुरंगा.
आप जो भी लिख रहे हैं वो अधकचरा है....एक तरह से आप ब्लोगिंग की मूलभावना से खिलवाङ कर रहे हैं......इस्लाम मैं मानवाधिकार,महिलाओं के अधिकार ,जिहाद.इस्लाम छोङने पर मृत्यूदंड आदि कुछ विषय और भी हैं जिन पर आप प्रकाश डाल सकते हैं....
ReplyDeleteB.T .BENGAN CHACHAA JEEN TO CHANGE KARVA LIYAA.....AB LING PREVARTAN KARVA LO....MAHSOOS KARKE DEKHO TASLEEMA NASREEN KO?????
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