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Tuesday, October 22, 2013

हज और क़ुरबानी के विषय में एक ज्ञानवर्धक लेख

आज पत्र-पत्रिकाओं के बारे में कहा जाता है कि उनमें अश्लीलता की भरमार होती है और अधिकतर पत्र-पत्रिकाओं के बारे में यह बात सही भी है। उनमें ग्लैमर के नाम पर अश्लीलता परोसी जाती है या फिर वे किसी न किसी राजनैतिक पार्टी का गुणगान करती रहती हैं। हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं में भी यही सब देखने में आ रहा है। इनके मालिक समाज में अपना क़द ऊंचा करने के लिए और अपने राजनैतिक आक़ाओं को ख़ुश रखने के लिए नैतिक मूल्यों को ध्वस्त करते चले जा रहे हैं।
इनके दरम्यान कुछ हिन्दी पत्र-पत्रिकाएं ऐसी भी देखने में आई हैं। जिन्होंने नीति और मर्यादा की अपने अपने हिसाब से रक्षा करने की कोशि की है।
हम अपने किशोरपने में पंडित श्रीराम आचार्य जी की पत्रिका अखण्ड ज्योति को इसीलिए पढ़ा करते थे कि उससे अच्छे गुणों की प्रेरणा भी मिलती थी और पुराने इतिहास की जानकारी भी।
विश्व एकता संदेश को भी हम इसीलिए पसंद करते थे कि जो बातें आम तौर पर किसी पत्रिका में पढ़ने के लिए नहीं मिलतीं। वे बातें उसमें मिल जाती थीं।
यह लेख उसी पाक्षिक पत्र से लेकर इस ब्लॉग पर पेश किया गया था। जिसे हमारे हिन्दी पाठकों ने बहुत सराहा है। इस लेख पर कुछ भाईयों ने सवाल भी किए हैं। जिनका उत्तर हमें मासिक कान्ति के ताज़ा अंक में हज के संबंध में छपे एक लेख में नज़र आया। यह लेख वास्तव में ही अच्छा और ज्ञानवर्धक आलेख है। आप भी देख सकते हैं।
हमें अपने ब्लॉग पर हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं के बारे में भी जानकारी देते रहना चाहिए ताकि हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं के बारे में हिन्दी पाठकों को जानकारी मिल सके और हिन्दी का प्रचार प्रसार हो सके। इस तरह अलग अलग समुदाय के लोग एक दूसरे की मान्यताओं और संस्कृतियों के बारे में भी जान सकेंगे और वे परस्पर एक दूसरे का सहयोग करते हुए एक मज़बूत भारत का निर्माण कर सकेंगे। आजकल हमारे ब्लॉग ‘बुनियाद’ पर क़ुरबानी और हज के विषय में चर्चा चल रही है। 
कान्ति मासिक हिन्दी साहित्य की एक ज्ञानवर्धक पत्रिका है। जो लोग इसे ऑनलाइन पढ़ना चाहें वे इसे ऑनलाइन पढ़ सकते हैं और पाठक इसकी नमूना प्रति मंगाना चाहें वे पत्रिका के ऑफ़िस में फ़ोन करके या पत्र लिखकर इसकी नमूना प्रति मुफ़्त मंगा सकते हैं। 
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