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Wednesday, March 14, 2012

काबा से वैदिक धर्मियों का संबंध हमेशा से है Kaba & Vedic People










  • धर्म वेदों में है और वेदों में शिवलिंग की पूजा का विधान कहीं भी नहीं है। वैदिक काल में प्रतिमा पूजन का चलन नहीं था। यह एक सर्वमान्य तथ्य है। जब वैदिक काल में मूर्ति पूजा नहीं थी तो फिर काबा में वैदिक देवताओं की मूर्तियां भी नहीं थीं। काबा से भारत के हिंदुओं का संबंध है, यह साबित करने के लिए मूर्तियों की ज़रूरत भी नहीं है।
    काबा का संबंध वेदों से और हिंदुओं से साबित करने के लिए ‘सेअरूल ओकुल‘ जैसी किसी फ़र्ज़ी किताब की ज़रूरत ही नहीं है, जिसे न तो हिंदू इतिहासकार मानते हैं और न ही मुसलमान और ईसाई। इसके बजाय इस संबंध को वेद, बाइबिल और क़ुरआन व हदीस की बुनियाद पर साबित करने की ज़रूरत है।
    क़बीला बनू जिरहम को बेदख़ल करके जबरन अम्र बिन लहयी काबा का सेवादार बना। तब तक काबा में मूर्ति पूजा नहीं होती थी। यह एक ऐतिहासिक तथ्य है। अम्र बिन लहयी एक बार मुल्क शाम गया तो उसने वहां के लोगों को मूर्ति पूजा करते देखा। तब वह वहां पूजी जा रही कुछ मूर्तियां ले आया लेकिन मक्का के लोगों ने उन्हें काबा में रखने नहीं दिया। तब तक वे मूर्तियां उसके घर में ही रखी रहीं। उसने मक्का के प्रतिष्ठित लोगों की शराब की दावत करके उन्हें बहकाया कि ये देवी देवता बारिश करते हैं इससे हमारी फ़सल अच्छी होगी और हम भुखमरी के शिकार नहीं होंगे। तब उसके घर से बहुत अर्सा बाद उठाकर ये मूर्तियां काबा में रखी गईं। काबा का पुनर्निमाण इब्राहीम अलै. ने किया था और वह मूर्तिपूजक नहीं थे। उनकी संतान में बहुत से नबी और संत हुए हैं। उनकी वाणियां बाइबिल में संगृहीत हैं। उनमें मूर्ति पूजा की निंदा मौजूद है। लिहाज़ा मूर्ति पूजा से काबा का और भारतीय ऋषियों का संबंध जोड़ना इतिहास के भी विरूद्ध है और ऐसा करना वैदिक धर्म और भारतीय ऋषियों की प्रखर मेधा का अपमान करना भी है।
    ‘न तस्य प्रतिमा अस्ति‘ कहकर ऋषियों ने विश्व को यही संदेश दिया है कि हम तो उस ईश्वर की उपासना करते हैं जिसकी कोई प्रतिमा नहीं है। इसी अप्रतिम ईश्वर की उपासना का स्थान काबा है। इस स्थान पर उपासना के लिए सबसे पहले घर का निर्माण स्वयंभू मनु ने किया था। बाइबिल और क़ुरआन व हदीस स्वयंभू मनु की महानता की गाथा से भरे पड़े हैं। स्वयंभू मनु बिना माता पिता के स्वयं से ही हुए थे। इन महान महर्षि को बाइबिल और क़ुरआन में आदम कहा गया है। आदम शब्द ‘आद्य‘ धातु से बना है।
    अरब के लोग आज भी भारत को अपनी पितृ भूमि कहते हैं क्योंकि परमेश्वर ने स्वर्ग से स्वयंभू मनु को भारत में और उनकी पत्नी आद्या को जददा में उतारा था। इस हिसाब से अरब भारतवासियों की माता की भूमि होने के नाते उनकी मातृभूमि होती है।
    लोग स्वयंभू मनु से जोड़कर ख़ुद को मनुज कहते हैं और इसी तरह इंग्लिश में लोग ख़ुद को ‘मैन‘ कहते हैं। अरबी में इब्ने आदम कहते हैं और फ़ारसी व उर्दू में ‘आदमी‘ बोलते हैं।
    पैग़ंबर मुहम्मद साहब स. ने स्वयंभू मनु को सदैव सम्मान दिया है और ख़ुद को इब्ने आदम कहकर ही अपना परिचय दिया है। यही नहीं बल्कि क़ुरआन में सबसे पहले जिस महर्षि का वर्णन हमें मिलता है वह भी स्वयंभू मनु ही हैं। क़ुरआन में स्वयंभू मनु की जो स्मृति हमें मिलती है, उसमें उनकी जो पावन शिक्षाएं हमें मिलती हैं, उन पर दुनिया का कोई भी आदमी ऐतराज़ नहीं कर सकता। इसीलिए हमें बड़े आध्यात्मिक विश्वास के साथ हमेशा से कहते आए हैं कि हम मनुवादी हैं।
    इसके अलावा यह भी एक तथ्य है कि काबा के पास जो ज़मज़म का ताल है वह ब्रह्मा जी का पुष्कर सरोवर है। यहीं पर विश्वामित्र के अंतःकरण में गायत्री मंत्र की स्फुरणा हुई थी। इतनी दूर सब लोग नहीं जा सकते, यह सोचकर सब लोगों को उस स्थान की आध्यात्मिक अनुभूति कराने के लिए भारत में राजस्थान में ठीक वैसी ही जलवायु में पुष्कर सरोवर बना लिया गया। जैसे कि भारत में दिल्ली, मुंबई और लखनऊ में करबला मौजूद है। ये करबला उस असल करबला की याद में बनाई गई हैं जो कि इराक़ में है। मक्का का एक नाम आदि पुष्कर तीर्थ है।
    बहरहाल भारत और अरब के रिश्ते बहुत गहरे हैं और ‘तत्व‘ को जानने वाले इसे जानते भी हैं।

    14 comments:

    1. एक दफा आपसे बात हुई थी , तो मैंने कहा था ..कि धर्म से इतर बाते लिखें, या अपने इस्लाम की व्याख्या करें , उसकी अच्छाई को सबके सामने लाये.
      आप हमसे तुलनात्मक अध्ययन क्यूँ करते रहते हैं. जिस धर्म को आप जानते नहीं , मानते नहीं .. उसके बारे में नहीं लिखे तो बेहतर.. इसे मेरा मित्रवत सुझाव माने. क्यूंकि इसके लिये प्रतिक्रियात्मक तौर पर कुछ हिंदू नासमझ भी ऐसी ही लेखनी करने लगे हैं.
      अंतरजाल को धार्मिक लड़ाई का स्थान न बनायें , और धार्मिक अतिक्रमण ना करें.

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    2. इतने शोधपूर्ण आलेख से न सिर्फ़ हमारी जानकारी में दिनोंदिन बढ़ोत्तरी हो रही है बल्कि साथ ही एक स्वच्छ और सौहार्द्रपूर्ण समाज के निर्माण में आपका योगदान अतुलनीय और वंदनीय है।

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    3. ये भाई साहब 'संगे असवद 'पवित्र पत्थर क्या है ?क्या वृहद् आकारीय शिवलिंग नहीं है यह ?कृपया प्रकाश डालें .शोध पूर्ण आलेख के लिए बधाई .

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    4. कौन से ज़माने में जी रहें हैं डॉ अनवर ज़माल साहब .गधे घोड़े सब एक पांत में बिठा दिए.लीन मीट और रेड मीट में आपके लिए कोई फर्क ही नहीं है .तब से लेकर अब तक (संहिता काल से अबतक )गंगा जमुना में कितना पानी बह चुका है रहनी सहनी खान पान कितना बदला है ?सुश्रुत के दौर में तो निश्चेतक की जगह एक तार को गर्म करके अंग विच्छेदन किया जाता था किया जाता था ?क्या आज भी ऐसे ही कीजिएगा ? जब की यह बारहा प्रमाणित और पुष्ट हुआ है ,जीवन शैली रोगों की नव्ज़ हमारे गलत खान पान से जुडी है .रेड मीट भक्षण का सम्बन्ध साफ़ तौर पर कोलन कैंसर रोग समूह से जोड़ा जा चुका है .

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    5. वीरू भाई ! आप ख़ुद ही बता रहे हैं कि इसका नाम ‘संगे अस्वद‘ है। जब आप जानते हैं कि यह संगे अस्वद है तो फिर आप यह क्यों पूछ रहे हैं कि क्या यह शिवलिंग है ?
      ‘लिंग‘ शब्द एक से ज़्यादा अर्थ देता है और शिव भी एक से ज़्यादा हस्तियों के लिए प्रयुक्त है।
      यहां इस शब्द से क्या अर्थ लिया जाना उचित है, इसका पता इससे चलेगा कि आप ‘शिव‘ शब्द का प्रयोग किस अर्थ में कर रहे हैं ?
      कृप्या आप बताएं कि आप किस शिव की बात कर रहे हैं ?
      वह शिव अजन्मा है या उसने कभी जन्म लिया है और अगर जन्म लिया है तो उसने किस तरह जन्म लिया है ?

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      1. Shiv koi manushya nhi hai...
        Hai na bhagwan...
        Shiv ek urja rupi shakti hai
        Jiski na kabhi surwat huee hai aur na ant hoga...
        Na janm na mrutyu

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    6. अनवर ज़माल साहब आप रेड मीट से सेक्स की फ्रिक्युवेंसी पर पहुच गए यह विषय अंतरण है .रेड मीट की ओर लौटतें हैं .

      आपने शरीर से हटके आत्मा की बात की है ,बहुत अच्छा किया है .यह सारा मंडल एक ही है .सृष्टि में एक ही तत्व व्याप्त है वह है ऊर्जा .आत्मा कह लो इसे या सचेतन ऊर्जा.अल्लाह कह लो या ब्रहम तत्व .सभी आत्माएं एक हैं .जड़ चेतन में सभी में वही ऊर्जा (आत्मा )का वास है .एक तत्व की ही pradhaantaa kaho इसे जड़ या चेतन पशु पक्षी भी इसका अपवाद नहीं है वह सिर्फ 'रेड' और 'वाईट ',लीन ,मीट से आगे एक आत्मा भी हैं .शिकारी जब शिकार का पीछा करता है तो शिकार जान बचाके भागता है या फिर सामर्थ्य होने पर मुकाबला भी करता है .इस फ्लाईट और फाईट सिंड्रोम में एड्रीनेलिन का स्राव होता है .सारा सारे शरीर में इसका सैलाब होने लगता है .शिकार मारा जाता है .भय से पैदा हुई है यह रिनात्मक ऊर्जा जो सारे शरीर को संदूषित कर देती है .खून के थक्के बनतें हैं .अश्थी मज़ा संदूषित हो जाती है .मनुष्य इसी गोष्ट को खाता है .उसी अल्लाह या ब्रह्म को निवाला बनाता है .

      जिसे आप हलाल करतें है फिर खाते हैं रिनात्मक ऊर्जा से वह भी नहीं बचता है .उसका गोष्ट भी संदूषित होता है एड्रीनेलिन से बहले खून का थक्का न भी बने .

      बकर ईद पर वह कसाई भी बकरे के कान में यही कहता है -यह हरामी मुझसे जिबह करवा रहा है मैं तो अपना कर्म कर रहा हूँ अल्लाह मुझे ,यह जीव आत्मा मुझे मुआफ करे .सवाल इस्लाम या सनातन धर्म का नहीं है .चेतन तत्व का है अल्लाह का है ,उस तत्व का है जो मुझमे तुझमे,जड़ में चेतन में , सबमे व्याप्त है .

      बतलादूं आपको यही शिव तत्व है .

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    7. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
      आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 19-03-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ

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    8. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
      आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 19-03-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ

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    9. मिथकों के भ्रम जल में पड़ने से सर्वाधिक महत्त्व पूर्ण यह है की मनुष्यता को नए आयामों से देखा जाये इसके लिए अब किसी प्रतिमान कोआदर्श बनाने की नहीं प्रतिमान बनाए की आवश्यकता है .... अछे विचारों के साथ नए विचारों को जोड़ने का सार्थक प्रयास ही नए युग का निर्माण करता है .अच्छा प्रतिदर्श ,साधुवाद जी /

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    10. सराहनीय कार्य ।।

      आभार ।।

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    11. शिव और वेदो को समझने के लिए शिवमय एवं वेदमय होना आवश्यक है अगर सिर्फ धर्म के नाम पर ही अपनी टांग ऊपर रखते रहोगे तो सिर्फ धर्म ही दिखायी देगा चाहे वो सही तालीम देता हो या गलत सनातन धर्म एक खोया हुआ और अच्छी तरह से ना समझा हुआ धर्म है ये अत्यंत गूढ़ है कम से कम इस्लाम से तो बोहोत गूढ़ है इस धर्म को समझने के लिए इस्लामिक सोच नहीं मन आत्मा और संसार के बाहर कि सोच होनी चाहिए भविष्य पुराण पढ़ कर देखो सब कुछ लिखा है जो कि आज के युग में हो रहा है। हैम सभी बच्चे है जो अलग अलग धर्म बना बैठे सब से बड़ा धर्म तो सनातन ही है जिसको तोड़ मरोड़ कर आज के सभी धर्म बनाये गए है। यहाँ तक कि हिन्दू धर्म भी पूर्ण सनातन धर्म नहीं है। मैं सनातन और हिन्दू धर्म को अलग अलग परिभाषित कर सकता हु।

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    12. काबा में कब से और किस तरह की पूजा अर्चना हुआ करती थी इस बाबत कुछ जानकारी दी जाए तो काफी भ्रम दुर हो सकते है

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    13. अगर किताब उपलब्ध हो सके तो अच्छा होगा

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