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Saturday, October 2, 2010

Power comes through Innocent children परेशानियों का एकमात्र हल क्या है ? - Anwer Jamal

बच्चे में झलकता है ईश्वरीय स्वरूप

कठिन तपस्याओं से सिद्धि मिल सकती है, शक्ति मिल सकती है लेकिन सत्य का बोध नहीं मिलता, अपने मूल स्वरूप का बोध नहीं होता। सत्य का, अपने मूल स्वरूप का बोध होता है केवल ईश्वर की कृपा से और उसकी ओर से यह कृपा इनसान हर पल बरसती रहती है लेकिन इनसान उसकी कृपा को समेट नहीं पाता। बच्चा ईश्वर की कृपा है, उसका वरदान और उसका उपहार है, उसकी कुदरत का निशान है, मानव जाति के नाम उसका एक पैग़ाम है। बच्चा मानवता का आदर्श है क्योंकि बच्चा निर्दोष, निष्कलंक और निष्पाप होता है। ये वे गुण हैं जो ईश्वरीय गुण हैं। हम समझ ही नहीं पाते कि ईश्वर ने अपने स्वरूप पर इनसान की रचना की, उसने इनसान को पवित्र और पापमुक्त पैदा किया, उसे कितना बड़ा रूतबा दिया ?
ध्यान और स्मृति की सहज रीति
हरेक रचना में रचनाकार का ‘थॉट‘ ज़रूर शामिल होता है। रचनाएं अपने रचनाकर की योग्यता का भी प्रमाण होती हैं। रचनाओं में संदेश भी छिपे होते हैं। रचनाकार के ‘थॉट‘ और उसके संदेश को समझने के लिए रचनाओं पर ‘ध्यान‘ देने और उनपर ‘विचार‘ करने की ज़रूरत होती है। सृष्टि ईश्वर की रचना है। हर चीज़ पर ‘ध्यान‘ दीजिए, विचार कीजिए। ईश्वर की स्मृति सहज ही बनी रहेगी।
विश्वास से मांगिए, आपको मिलेगा
बच्चे पर विशेष ध्यान देंगे तो आपको अपने मूल स्वरूप का बोध भी सहज ही हो जाएगा। जो उग्र तपस्याओं से नहीं मिलता, वह आपको सहज ही मिल जाएगा। बच्चा मासूम है, कमज़ोर है, अपने मां-बाप पर निर्भर है। उसे विश्वास है कि मां-बाप उसे प्यार करते हैं, उसका भला चाहते हैं। वह मां-बाप का कहना मानता है और तब उसे जो चाहिए होता है, वह उनसे मांगता है और उसे मिलता है। जो विश्वास बच्चा अपने मां-बाप पर रखता है और जैसे उनकी उंगली पकड़कर चलता है, क्या हम भी ऐसा ही विश्वास अपने पालनहार पर रखते हैं ? क्या हम उसके सहारे उसके बताए हुए रास्ते पर चलते हैं ?
परेशानियों का एकमात्र हल क्या है ?
यह बात खुद से पूछने की ज़रूरत है। अगर हम ऐसा करते तो खुद को पापमुक्त रख सकते थे, हम अपनी मासूमियत को बचा सकते थे। हमने अपने मूल स्वरूप को खो दिया है इसीलिए अशांत और परेशान हैं। अपने मूल स्वरूप पर लौट आइये, आपकी सारी परेशानियां दूर हो जाएंगी, आपको सच्ची शांति मिल जाएगी।
समस्या जटिल है लेकिन हल सरल है। इनसान जानता है लेकिन टालता है। सादा सी बात को सादे अंदाज़ में नहीं कहा। नतीजा यह हुआ कि एक के बाद एक दर्शनों की भीड़ लगती चली गई और लोगों को अमल करना तो दूर बात समझना ही दुश्वार हो गया। दर्शन को समझना भी ‘ज्ञानियों‘ के लिए छोड़ दिया गया। ‘ज्ञानी लोग‘ ईश्वर के गुणों पर तर्क-वितर्क करते रहे। निर्गुण-सगुण, निराकार-साकार के भेद खड़े हुए, मत बने, मठ बने। सब कुछ हुआ लेकिन हरेक भारतीय को ‘ईमान‘ नसीब नहीं हुआ। आज भी विश्व के भ्रष्ट देशों की सूची में भारत का नाम दर्ज है।
इनसान का कर्तव्य और उसकी परीक्षा क्या है ?
हम भ्रष्ट हैं, यही हमारी समस्या है और यह खुद भी बहुत सी समस्याओं का मूल है। हम ‘ईमानदार‘
बनें हमारी समस्याएं ख़त्म हो जाएंगी लेकिन यह ईमानदारी सामूहिक रूप से आये सारे समाज में तब होंगी समस्याएं ख़त्म वर्ना तो समस्याएं और बढ़ जाएंगी। ईमानदार बनने का अर्थ यही है कि बेईमानी न की जाए। केवल समाज के लोगों से ही नहीं बल्कि अपने रचनाकार से भी बेईमानी न की जाए। उसने जैसा निष्पाप हमें पैदा करके इस जग में भेजा था वैसा ही निष्पाप हम खुद को इस जग से ले जाएं। यही इनसान का कर्तव्य है, यही उसकी परीक्षा है।
खुद को बदलिए, दशा खुद बदल जाएगी
हम ध्यान ही नहीं देते। नतीजा यह है कि हम अपने कर्तव्य से ग़ाफ़िल हैं और परीक्षा में फ़ेल हैं। जिस हालत में हम जी रहे हैं, उसी में हम मरेंगे। हम फ़ेल होकर जी रहे हैं और फ़ेल होकर मर रहे हैं। हमारी दशा बदल सकती है, बशर्ते कि हम खुद को बदल दें।
खुद को बदलकर कैसा बनाएं ?
खुद को बदलकर बच्चों जैसा बनाएं। हम अस्ल में बच्चे ही हैं। हमारे अंदर हमेशा एक बच्चा रहता है। बुढ़ापे में तो हमारा बाहरी वजूद भी बच्चों जैसा ही हो जाता है। हमारे घर में बूढ़े मां-बाप भी होते हैं। जब तक वे हमारे सिर पर रहते हैं। हम खुद को बच्चा ही फ़ील करते हैं, चाहे हम कितने ही बड़े हो जाएं। वे भी हमें बच्चा ही समझते हैं चाहे खुद हमारे ही कई बच्चे क्यों न हो चुके हों, तब भी।
बच्चों को बिगाड़ते हैं उनके बड़े
ईश्वर की यह योजना क्यों है ?
ताकि इनसान को उसके मूल स्वरूप का बोध बना रहे, ताकि इनसान इनसान बना रहे। जो बच्चों की परवरिश और बड़े-बूढ़ों की सेवा करता है वह खुद अपना ही भला करता है। जिनके साथ हम ज़्यादा से ज़्यादा रहते हैं, हम खुद वैसे ही बन जाते हैं लेकिन इसके लिए नीयत और कोशिश होना लाज़िमी है वर्ना इसका उल्टा भी हो जाता है यानि ऐसा भी हो सकता है कि हम तो बच्चों जैसे न बन पाएं बल्कि बच्चों को अपने जैसा बना दें। आज हो भी यही रहा है। बच्चों को झूठ बोलना खुद उनके बड़े ही सिखाते हैं। जैसे हम खुद हैं अपने बच्चों को भी वैसा ही बनाते हैं।
ये हम क्या कर रहे हैं ?
कुफ़्र क्या है और काफ़िर किसे कहते हैं ?
हम वर्तमान हैं और बच्चे हमारा भविष्य हैं। हम तो खुद को तबाह कर ही चुके हैं अब अपने बच्चों को पाप में धकेलकर मानव जाति का भविष्य भी चैपट कर रहे हैं। बालश्रम भी बच्चों से उनका बचपन छीन रहा है, बच्चों का यौन शोषण भी आज एक समस्या है और बच्चों के साथ क्रूर व्यवहार तो हर घर में आम बात है। यह हमारा बर्ताव है ईश्वर की रचना के साथ, उसकी कृपा के साथ। नाशुक्री किसे कहते हैं ? नास्तिकता क्या होती है ? इसी को अरबी में कुफ़्र कहते हैं और कुफ़्र करने वाले को काफ़िर कहते हैं। यह कोई गाली नहीं है बल्कि एक हालत है इंसान की, जिससे बचने की ज़रूरत है, न सिर्फ़ व्यक्तिगत रूप से बल्कि सामूहिक रूप से।
ईमान किसे कहते हैं ?
बचने का तरीक़ा बस यही है कि एक बच्चे की तरह हम उस मालिक पर पूरा भरोसा करें, उसकी बात को मानें और उसके बताए हुए सीधे मार्ग पर चलें। हम विश्वास रखें कि इसी में हमारा कल्याण और हमारी सफलता है। विश्वास को ही अरबी में ‘ईमान‘ कहते हैं। दूसरे देश एटम बम बनाकर खुद को शक्तिशाली बना रहे हैं लेकिन उनके दिल ईमान से खाली हैं, वे अंदर से खोखले हो चुके हैं।
हम अपने देश के नागरिकों में ईमान की चेतना जगाएं, विश्वास की शक्ति बढ़ाएं और तब हथियार वाले देश हमसे कहेंगे कि
 यह तकनीक हमें भी सिखा दीजिए, तब हमारा देश बनेगा ‘विश्वगुरू‘।हम देंगे दुनिया को ‘शांति का विधान‘
बच्चों को बच्चा ही रहने दीजिए, खुद को उन जैसा बनाइये और यही ज्ञान दुनिया में फैलाइये। दुनिया में शांति लाईये क्योंकि आज सारी दुनिया को शांति चाहिए। हम दे सकते हैं दुनिया को वह जो कि उसे चाहिए क्योंकि ‘शांति का विधान‘ हमारे पास है। दुनिया में सबसे ज़्यादा बच्चे हमारे पास हैं। यही एक बात ऐसी है जिसमें हम विश्व में नम्बर वन हैं। बच्चों की ही बदौलत आने वाला समय हमारा है। बच्चे सचमुच ही ईश्वर का वरदान होते हैं। यह अब सिद्ध होने जा रहा है।

26 comments:

  1. वैदिक ऋषियों ने तो अनुक्रमणिका में ‘शिव‘ नाम लिखा नहीं
    @ युवा चिंतक भाई आलोक जी ! यजुर्वेद के 16 वें अध्याय को पढ़ा। इसके शुरू में ही जो अनुक्रमणिका दी गई है। उसमें इसके देवता के नाम आये हैं, देवता-रूद्राः, एकरूद्राः, बहुरूद्राः।
    1. इससे एक बात तो यह पता चलती है कि यह अध्याय सारा का सारा शिव जी की महिमा से ही भरा हुआ नहीं है जैसा कि आपने कहा है बल्कि अन्य बहुत से रूद्रों की प्रशंसा से भी भरा हुआ है।
    2. दूसरी बात यह है कि अगर शिव नाम की महिमा वैसी ही होती जैसी कि आपने समझ ली है तो इसे वैदिक ऋषि ज़रूर जानते और तब वे कम महत्व के नाम ‘रूद्र‘ के बजाय ‘शिव‘ नाम को अनुक्रमणिका में दर्ज करते।
    3. इस अध्याय में शिव शब्द 3-4 बार रूद्र के गुण के तौर पर आया है लेकिन ‘रूद्र‘ शब्द नाम के तौर पर आया है और देवता को रूद्र कहकर ऋषियों ने दर्जनों बार संबोधित किया है। इससे शिव शब्द गौण और रूद्र नाम प्रधान नज़र आता है।
    4.आप शिव पुराण आदि में सत्य नहीं मानते। यदि आपकी बात को मान लिया जाए तो फिर हम यजुर्वेद 16, 7 ‘नमोस्तु नीलग्रीवाय‘ अर्थात ‘इन रूद्र की ग्रीवा विष धारण से नीली पड़ गई थी।‘ को कभी नहीं जान पाएंगे कि इसका वास्तविक अर्थ क्या है ? किन परिस्थितियों में रूद्र को विषपान करना पड़ा था ?
    5. मैं तो मालिक के सभी नाम अच्छे मानता हूं चाहे वे किसी भी भाषा में क्यों न हों लेकिन इस अध्याय में रूद्र अजन्मे परमेश्वर का नाम मालूम नहीं होता क्योंकि इसमें एक नहीं बल्कि बहुत से रूद्रों की चर्चा हो रही है और परमेश्वर कई होते नहीं।
    दिल से आती है आवाज़ सचमुच
    6. आपने शरीर के सूक्ष्म चक्रों पर ‘शिव‘ नाम का सबसे अधिक प्रभाव होना बताया है। शरीर के सूक्ष्म चक्र आपके लिए केवल एक सुनी हुई बात है जबकि मेरे लिए एक नित्य व्यवहार। चिश्तिया और नक़्शबंदिया जैसे सूफ़ी सिलसिलों में ये सभी चक्र केवल ‘अल्लाह‘ के ज़िक्र से जागृत कर लिये जाते हैं। यह एक अभ्यास है। इसे किसी भी नाम के साथ किया जा सकता है। इस अभ्यास के बाद पहले दिल और बाद में पूरे बदन का हरेक कण ‘अल्लाह-अल्लाह‘ कहता रहता है जिसे भौतिक कान से सुना जा सकता है। जिसे शक हो वह मेरे पास चला आए। यदि कोई साधक ‘राम-राम‘ या ‘हरि-हरि‘ का अभ्यास करता है तो उसे अपने दिल से यही नाम सुनाई देगा और यह उसका वहम न होगा। यह एक अभ्यास है जो तभी फलदायी होता है जबकि साधक का जीवन ईश्वरीय विधान के अनुसार गुज़र रहा हो वर्ना वह एक मानसिक एक्सरसाईज़ मात्र बनकर रह जाता है। ईश्वरीय व्यवस्था के उल्लंघन के बाद आदमी केवल ईश्वर के दण्ड का पात्र होता है न कि परम पद का।
    मालिक का प्यारा बंदा कौन ?
    7. जैसे इनसान को शारीरिक अनुभूतियां नित्य होती हैं लेकिन केवल उन अनुभूतियों के कारण ही लोगों को मालिक का प्यारा नहीं मान लिया जाता बल्कि उसका आचरण देखा जाता है कि वह रब की मर्ज़ी पर चल रहा है या मनमर्ज़ी पर ? ऐसे ही ध्यान-स्मरण आदि के ज़रिए आदमी को आत्मिक अनुभूतियां होती हैं लेकिन केवल उन अनुभूतियों के आधार पर ही आदमी को मालिक का प्यारा नहीं माना जा सकता बल्कि उसके जीवन-व्यवहार को देखा जाएगा कि वह ईश्वरीय व्यवस्था का उसके ऋषि-पैग़म्बर के आदर्श के अनुसार पालन कर रहा है या खुद ही जो चाहता है करता रहता है ?

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  2. नेकी की तालीम में नरम लहजा होना बहुत ज़रूरी है , आप इसका ख़ास ध्यान रखा करें . पोस्ट अच्छी है .

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  3. सच्ची बात कही आपने , अब मानी जाये तो बात बने .

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  4. मुहब्बत बढ़ाने वाली बात है आपकी बात . हिन्दुस्तान की ज़मीन मुहब्बत की ज़मीन है और फ़सादियों की अब चलनी मुश्किल है .

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  5. बच्चों को बच्चा ही रहने दीजिए, खुद को उन जैसा बनाइये और यही ज्ञान दुनिया में फैलाइये। दुनिया में शांति लाईये क्योंकि आज सारी दुनिया को शांति चाहिए। हम दे सकते हैं दुनिया को वह जो कि उसे चाहिए क्योंकि ‘शांति का विधान‘ हमारे पास है।

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  6. हम भ्रष्ट हैं, यही हमारी समस्या है और यह खुद भी बहुत सी समस्याओं का मूल है। हम ‘ईमानदार‘
    बनें हमारी समस्याएं ख़त्म हो जाएंगी लेकिन यह ईमानदारी सामूहिक रूप से आये सारे समाज में तब होंगी समस्याएं ख़त्म वर्ना तो समस्याएं और बढ़ जाएंगी। ईमानदार बनने का अर्थ यही है कि बेईमानी न की जाए। केवल समाज के लोगों से ही नहीं बल्कि अपने रचनाकार से भी बेईमानी न की जाए। उसने जैसा निष्पाप हमें पैदा करके इस जग में भेजा था वैसा ही निष्पाप हम खुद को इस जग से ले जाएं। यही इनसान का कर्तव्य है, यही उसकी परीक्षा है।

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  7. एक बेहतरीन लेख़ अन्वेर जमाल साहब. बहुत ख़ूबसूरती से आप ने यह समझया कि कुफ्र क्या है. बच्चा जब पैदा होता है, तो फ़रिश्ते जैसा कहा जाता है. बाद मैं हम उसे अपने जैसा बना देते हैं.

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  8. @ आज भी विश्व के भ्रष्ट देशों की सूची में भारत का नाम दर्ज है।
    शब्दों की आड़ में प्रोपगैंडा करना खूब सीख गएँ है आप. भ्रष्टाचार शब्द लेकर वाहवाही ले लो की देखिये कैसे उन्नति की बात करतें है. भ्रष्ट से आपका आशय इस पोस्ट में नैतिक सामाजिक व्यावसायिक इमानदारी तो कतई नहीं है. भ्रष्टाचार से आपका आशय भारतीय उपासना पद्दति से है और इमानदारी का आशय इस्लाम का अनुगमन. तो अपनी बात को स्पष्ट कहने का साहस भी क्यों नहीं जुटा पाते आप जो शब्दों का हेरफेर करतें है. और जब स्पष्ट कहतें है तो स्तर काफी नीचा होता जाता है :)

    @ बच्चों का यौन शोषण भी आज एक समस्या है और बच्चों के साथ क्रूर व्यवहार तो हर घर में आम बात है।
    यहाँ मैं आपकी राय से सौ फीसीदी इत्तेफाक रखता हूँ. पर यह सब भी इमानदारों के गढ़ अरबदेशों में ही सबसे ज्यादा होता है. हिन्दुस्थान में भी नवाबी किस्से काफी मशहूर है.

    @ ‘शांति का विधान‘ हमारे पास है।

    वास्तव में है, लेकिन शांति जबरिया नहीं होती

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  9. @ अमित शर्मा जी !
    मेरे बंधू , मेरे मित्र महान
    जब शरियत की हद से निकलता है इन्सान
    उसे उचक लेता है कलि-शैतान
    देश कोई हो अरब या हिंदुस्तान
    आपने इतनी सुन्दर पोस्ट पर भी जो कमियां ( ? ) पकड़ी हैं, उनसे आपकी गिद्ध दृष्टी का पता चलता है । आप की आलोचना पर मर चुके नवाबों को समुचित विचार करना चाहिए था । ख़ैर वे न कर पाए तो अब हम ही कर लें तो क्या बुरा है ?

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  10. मैंने आप से हार मान ली क्योकि किसी ज्ञानी को समझना खुद में बेवकूफी है
    इसलिए राम , कृष्ण, कबीर ,शंकराचार्य आदि जैसे बेवकूफ संत शिव रुपी परमात्मा को पूजने का सन्देश दे गए है

    आप पता नही कौन से ऋषियों को पड़ते है जिसने शिव नाम को नही माना ??
    शायद काबा में भी ये बेवकूफी किसी दिखाई

    वेद और सारा हिन्दू धार्मिक ज्ञान "कुरान" जैसे महान ज्ञान के आगे बेकार है


    आप जैसा राम भक्त ने शायद ये भी नही पड़ा
    बिप जेवाहि देहि दिन दाना
    शिव अभिषेक करहि विधि नाना|
    राम बचपन से ही वेद आधारित मार्ग पर ही चलते थे ....
    विद्वानों को दान देने के बाद बहुत प्रकार(फूल ,सुगंध आदि ) से भगवान शिव का अभिषेक करते थे

    लिंग थप कर बिधिवत पूजा
    शिव समान प्रिय मोहि ना दूजा||
    जब राम को लंका के राजा रावण पर विजय पानी थी .इसके लिये उन्हनों भगवान शिव के मंदिर रामेश्वर नाथ की स्थापना व् स्तुति की ,और कहा शिव के समान कोई दूसरा प्रिय है ही नही ..वही है जो सबका कल्याण करने वाले है

    शिव दोही मम भगत कहावा
    सो न्र मोहि सपने न पावा
    जो नर शिव का द्रोही है अर्थात उनकी पूजा नही करता करता, वो मुझे सपने में भी नही पा सकता ..अर्थ मेरे जैसे नही बन सकता


    संकर बिमुखी भगती चह मोरी
    सो नारकी मूड मती थोरी
    राम जी कहते है कि जो नर भगवान शिव से विमुख होकर मेरी भगती करता है ..वो मुर्ख है .वो नरक को जायेगा

    आप का ज्ञान महान है

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  11. @Ejaz Ul Haq ji
    अब इस बात के लिए कोई क्या करे
    अमित शर्मा जी को आप की तरह "हा में हा" मिलाने की कला नही आती
    कौन समझाए अमित शर्मा को


    अमित जी कुछ सीखिए इनसे

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  12. जीव का कल्याण है एक ईश्वर की अनन्य भक्ति में
    प्रिय मोहक मुस्कान स्वामी ! आप आए बहार आई, आप मुस्कुराए रौशनी सी जगमगाई। आप एक ब्राह्मण हैं और
    ब्राह्मणों का श्री कृष्ण जी की नज़र में विशेष महत्व है। श्री कृष्ण जी स्वयं कहते हैं कि
    ‘इसलिए मेरे आत्मीयो ! यदि ब्राह्मण अपराध करे तो भी उससे द्वेष मत करो। वह मार ही क्यों न बैठे या बहुत-सी गालियां या शाप क्यों न दे, उसे तुम लोग सदा नमस्कार ही करो।। 41 ।। जिस प्रकार मैं बड़ी सावधानी से तीनों समय ब्राह्मणों को प्रणाम करता हूं, वैसे ही तुम लोग भी किया करो। जो मेरी इस आज्ञा का उल्लंघन करेगा, उसे मैं क्षमा नहीं करूंगा, दंड दूंगा।। 42।।‘ -(श्रीमद्भागवत महापुराण, 10, 64)
    हालांकि मैं श्री कृष्ण जी को ईश्वर नहीं मानता तब भी उन्हें एक महापुरूष मानता हूं और न ही मैं ब्राह्मणों के विषय में भागवत का अनुसरण करता हूं तब भी मैं वास्तविक ब्राह्मणों का आदर सदा करता हूं। आपका भी करता आया हूं। मैं आपसे सादर यह कहना चाहूंगा कि एक ईश्वर की अनन्य भक्ति को ‘संकीर्णता‘ नहीं कहा जाता। मुक्ति के लिए यह एकमात्र ‘सन्मार्ग‘ है।
    लुप्त हो चुके सनातन योग की वापसी ‘नमाज‘ के रूप में
    नमाज का सूक्ष्म वर्णन गीता 6,10-14 में मिलता है और करोड़ों भारतीय इस रीति से ‘सनातन ईश्वर‘ की उपासना करते हैं अतः नमाज़ एक भारतीय उपासना पद्धति है। अब आप सोचिए कि मैं सभी भारतीय उपासना पद्धतियों का विरोध कैसे कर सकता हूं ?
    हां, मैं यह ज़रूर मानता हूं कि उपासना की वही रीति अंगीकार की जानी चाहिए जिसे ईश्वर ने प्रकट किया हो और ऋषियों ने अपने आचरण से ‘अमीर-ग़रीब सबके कल्याण के लिए‘ उसे प्रत्यक्ष किया हो। ईश्वर की उपासना के लिए नमाज़ से बेहतर कोई अन्य रीति आपको ज्ञात हो तो आप हमें बता दीजिए, हम उस पर विचार कर लेंगे।
    हम वास्तव में नमाज़ के रूप में भारत की ही सनातन योग रीति का पालन करते हैं लेकिन यह लुप्त हो गई थी। गीता मे श्री कृष्ण जी ने योग के लुप्त होने का ज़िक्र किया भी है।
    ‘स कालेनेह महता योगो नष्टः परंतप।‘ अर्थात किन्तु कालक्रम में यह परम्परा नष्ट हो गई, अतः यह विज्ञान यथारूप में लुप्त हो गया लगता है। -गीता 4, 2
    अरब के माध्यम से लौटकर भारत आने वाली नमाज़ को विदेशी उपासना पद्धति समझने वालों ने इस पर कभी ‘तत्व‘ की दृष्टि से ग़ौर ही नहीं किया। इसमें कुछ ग़लत हो तो आप मुझे बताएं, सुधार के लिए मैं सदा तैयार हूं।
    वेद मूर्तिपूजा से रोकते हैं
    @ आलोक मोहन जी ! आपको किसी के भी मान्य महापुरुष के लिए "मूर्ख" शब्द नहीं बोलना चाहिए , यह अशिष्टता है . आप केवल अपनी असहमति जताएं . तुलसी जी के मानस को मैं बाल्मीकि जी की रामायण के सामने प्रमाण नहीं मानता तब भी यह सही है कि श्री रामचंद्र जी वैदिक रीति से उपासना करते थे और वेद मूर्तिपूजा से रोकते हैं , भाई एजाज़ कि टिप्पणी में आप सपष्ट देख सकते हैं . अपना व्यवहार संयत रखें और तर्क दें , जो कि विचारवानों का तरीका है .
    दोनों ज्ञानी बंधुओं का सादर धन्यवाद

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  13. मैंने किसको क्या कहा वो पड़ने वाला समझ गया अनवर जी
    रही बात वेद की ज्ञान की बात ,ज्ञान सदेव बढता है ,वो घटता नही है

    भारत भूमि कभी संतो से खाली नही रही
    विवेकानंद ने उसे जब दुनिया के सामने रखा तो उसे सभी ने माना

    शंकराचार्य ने उसे ४ धमो के रूप में पुरे भारत को एक सूत्र में बाधा
    स्वामी दयानद ने फिर उसको नयी ऊर्जा दी

    आप कुरान को वेद की बराबर की दर्जा दे रहे है
    मेरी न सही बड़े संतो की बात ही सुन लो
    दयानद जैसे संतो ने क्या कहा आप १४वे चप्टर में क्या कहा आप खुद पड़ लो
    "अब आप शायद ये कहेगे स्वामी दयानद को कुछ नही आता था और
    सत्यार्थ प्रकाश पूरी बकवास है"

    सबसे पहले आप ये तय कर लो किसको प्रमाड मानते हो
    "विरोध करने का सबसे अच्छा तरीका --जा मै तेरी बात ही नही मानता "

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  14. सूर्य पर रहते हैं वेदों के मानने वाले
    @ अलोक मोहन जी !
    इस ब्लॉग का नाम है वेद कुरआन, इसका मतलब यह है कि वेद और कुरआन को यहाँ प्रमाण की हैसियत से माना जायेगा, वेद मूर्ति पूजा से रोकते हैं और स्वामी दयानंद ने भी शिव लिंग की पूजा छोड़ दी थी हालाँकि उनके पिता ने उन्हें डांटा भी और मारा भी लेकिन फिर भी उन्होंने शिव लिंग की पूजा नहीं की, हम दयानंद जी को संत नहीं मानते लेकिन फिर भी शिव लिंग पूजा नहीं करते, आप दयानद जी को संत मानते हो लेकिन शिव लिंग पूजा करते हो कितनी अजीब बात है ? और धर्म का मूल वेद भी साफ़ ही कहते हैं कि जो असम्भूति अर्थात प्रकृति रूप जड़ पदार्थ ( अग्नि , मिट्टी , वायु आदि ) की उपासना करते हैं , वे अज्ञान अंधकार मे प्रविष्ट होते है और जो 'सम्भूति' अर्थात इन प्रकृति पदार्थों के परिणाम स्वरूप सृष्टि ( पेड़ , पौधे , मूर्तियाँ आदि ) मे रमण करते हैं वे उससे भी अंधकार में पड़ते हैं । (यजुर्वेद : 40 : 9)
    अनुवाद श्रीराम शर्मा आचार्य ।
    सत्यार्थ प्रकाश में 13वें और 14वें सम्मुल्लास उनकी मौत के बाद किसी ने जोड़ दिया उनके जीवन काल में तो कुरआन का हिंदी अनुवाद उपलब्ध था ही नहीं. उन्होंने ख़ुद को वेदों का विशेषज्ञ समझ लिया था, यह उनकी ग़लती थी . 8वें समुल्लास के अंत में उन्होंने कहा है कि सूर्य, चंद्रमा और तारों पर मनुष्य आदि रहते हैं और वे वेद भी पढ़ते हैं, उनका यह दावा बता रहा है कि वे वेद का और विज्ञानं का कितना ज्ञान रखते थे. जिनकी बात वेदों के बारे में ही मान्य न हो तो अन्य भाषा के धर्मग्रंथो को वह कितना समझ पाए होगें ?
    यह स्पष्ट है.

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  15. आलोक , आप तो तुलसी को समाज को भटकाने वाला मानते हो , फिर उनका उदाहरण क्यों देते हो ?

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  16. इन्जील को मोहम्मद साहब ने सत्य स्वीकार किया है। कुरान मे आया है हमने मरियम के बेटे ईसा को भेजा और हमने उसे इंन्जील प्रदान की सूरा 56ः26, 3ः48 ।
    इन्जील ’नया नियम’ अल्लाह की किताब है जो कि मसीह पर उतरी है इन्जील वास्तविक मे हजरत मसीह के अन्तिम समय के तीन साढ़े तीन वर्षों के उन कथनों उपदेशों का संग्रह है जो उन्होंने अल्लाह की ओर से दिये थे। हजरत मोहम्म्द ने कहा कि उनकी किताब ईश्वर की ओर से दी गयी है। सुरा 32ः23, 17ः56, 5ः,11ः48।
    इनके पीछे भेजा हमने इब्न मरियम की तस्दीक करने वाले तौरेत को जो उसके सामने थी और हमने उनको इन्जील दी जिसमे नूर वहिदायत है और तौरेत की तसदीक करती है जो उसके सामने थी जो हिदायत और नसीहत है मुतकिन के लिये बस चाहिये कि हुक्मन करें इन्जील के अहकाम से और उन अहकाम से हुक्म ना करे वह फासिक है। सूरे माएदःरुकू -7
    मुसलमान दोस्तों की कुरान स्पष्ट करती है कि बाइबल में नूर है ज्योति है। अन्धकार मे पड़े लोंगों को नूर मिलता है। बाइबल पढ़ें और ज्योति पायें। आप अपना जीवन मसीह को देवें और नूर पायें।
    कुरान की झलक आपके सामने रखी जा रही है जो ख्ुादावन्द यीशु मसीह के विषय कुरान कहती है आप अवश्य ही कुरान से मिलान कर लें।

    कुरान शरीफ में मसीह का परिचय सूचि

    कुरान के अन्दर प्रभु ईसा मसीह के विषय में बहुत ही महत्वपूर्ण बातें लिखा है। जिसको हर एक मुसलमान नही जानता है। अतः आप लोंगों की जानकारी के लिये कुरान से छांटकर पेश किया जा रहा है। इसे पढ़ें और इमानदार बनें।
    हजरत ईशा अ 0

    2ः87,256 अल्लाह ने हजरत ईसा को खुली निशानियां दी और रुहुल्कुदुस पवित्र आत्मा से उनकी मदद दी।
    3ः42,47 अल्लाह ने हजरत मरियम को तमाम दुनिया की औरतों में चुना और उन्हे हजरत ईसा के जन्म की शुभ सूचना दी।
    3ः48,51 हजरत ईसा के कुछ चमत्कार और आपकी दी हुई शिक्षाएं।
    3ः52-57 हवारियों ने हजरत ईसा का साथ दिया और अल्लाह ने हजरत ईसा के दर्जे उूंचे किये।
    3ः52 अल्लाह के नजदीक ईसा अ0 का जन्म ऐसा ही है जैसा हजरत आदम का जन्म।
    4ः156,159 बनी इसराइल का यह दावा कि उन्होंने हजरत मसीह को कत्ल कर दिया और इस दावे का खण्डन।
    7ः171 ईसा मरियम बेटे अल्लाह के रसूल और उसी का कलमा थे।
    4ः172 ईसा के लिये अल्लाह का बन्दा होने मे कोई लज्जा की बात नही।
    5ः46-47 हजरत ईसा ने तौरेत की पुष्टी की और इन्जील में प्रकाश और मार्ग दर्शन है।
    5ः57 ईसा अल्लाह के रसूल थे,उनकी मां पुण्यवती थीं और दोनो मनुष्य थे।
    5ः110 हजरत ईसा ने पालने झूले में बातचीत की। वह मुर्दे को जिन्दा कर देते थे और अल्लाह ने उन्हे कितनी ही निशानियां दीं।
    5ः112-115 हजरत ईसा के हवारियों नें मांग की कि आसमान से दस्तरखान उतरे।
    19ः16-26 हजरत मरियम का अल्लाह के हुक्म से गर्भवती होना और ईसा का जन्म।
    19ः27-23 हजरत ईसा ने गोद का बच्चा होते हुए लोंगों के आरोंपों का खण्डन किया।
    19ः34-37 हजरत ईसा का संदेश।
    23ः50 अल्लाह ने हजरत ईसा और उनकी माता को अपनी निशानी बताया।
    57ः27 हजरत ईसा को अल्लाह ने इन्जील दी और उनके मानने वालों के दिलों में नम्रता और स्नेह डाल दिया। अल्लाहताला ने खुदावन्द यीशू मसीह के विषय में इतनी बड़ी बड़ी बातें कही हैं। काष हमारे भाई अल्लहताला की बातों पर ईमान लायें और सच्चाई को ग्रहण कर लें।

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  17. इन्जील को मोहम्मद साहब ने सत्य स्वीकार किया है। कुरान मे आया है हमने मरियम के बेटे ईसा को भेजा और हमने उसे इंन्जील प्रदान की सूरा 56ः26, 3ः48 ।
    इन्जील ’नया नियम’ अल्लाह की किताब है जो कि मसीह पर उतरी है इन्जील वास्तविक मे हजरत मसीह के अन्तिम समय के तीन साढ़े तीन वर्षों के उन कथनों उपदेशों का संग्रह है जो उन्होंने अल्लाह की ओर से दिये थे। हजरत मोहम्म्द ने कहा कि उनकी किताब ईश्वर की ओर से दी गयी है। सुरा 32ः23, 17ः56, 5ः,11ः48।
    इनके पीछे भेजा हमने इब्न मरियम की तस्दीक करने वाले तौरेत को जो उसके सामने थी और हमने उनको इन्जील दी जिसमे नूर वहिदायत है और तौरेत की तसदीक करती है जो उसके सामने थी जो हिदायत और नसीहत है मुतकिन के लिये बस चाहिये कि हुक्मन करें इन्जील के अहकाम से और उन अहकाम से हुक्म ना करे वह फासिक है। सूरे माएदःरुकू -7
    मुसलमान दोस्तों की कुरान स्पष्ट करती है कि बाइबल में नूर है ज्योति है। अन्धकार मे पड़े लोंगों को नूर मिलता है। बाइबल पढ़ें और ज्योति पायें। आप अपना जीवन मसीह को देवें और नूर पायें।
    कुरान की झलक आपके सामने रखी जा रही है जो ख्ुादावन्द यीशु मसीह के विषय कुरान कहती है आप अवश्य ही कुरान से मिलान कर लें।

    कुरान शरीफ में मसीह का परिचय सूचि

    कुरान के अन्दर प्रभु ईसा मसीह के विषय में बहुत ही महत्वपूर्ण बातें लिखा है। जिसको हर एक मुसलमान नही जानता है। अतः आप लोंगों की जानकारी के लिये कुरान से छांटकर पेश किया जा रहा है। इसे पढ़ें और इमानदार बनें।
    हजरत ईशा अ 0

    2ः87,256 अल्लाह ने हजरत ईसा को खुली निशानियां दी और रुहुल्कुदुस पवित्र आत्मा से उनकी मदद दी।
    3ः42,47 अल्लाह ने हजरत मरियम को तमाम दुनिया की औरतों में चुना और उन्हे हजरत ईसा के जन्म की शुभ सूचना दी।
    3ः48,51 हजरत ईसा के कुछ चमत्कार और आपकी दी हुई शिक्षाएं।
    3ः52-57 हवारियों ने हजरत ईसा का साथ दिया और अल्लाह ने हजरत ईसा के दर्जे उूंचे किये।
    3ः52 अल्लाह के नजदीक ईसा अ0 का जन्म ऐसा ही है जैसा हजरत आदम का जन्म।
    4ः156,159 बनी इसराइल का यह दावा कि उन्होंने हजरत मसीह को कत्ल कर दिया और इस दावे का खण्डन।
    7ः171 ईसा मरियम बेटे अल्लाह के रसूल और उसी का कलमा थे।
    4ः172 ईसा के लिये अल्लाह का बन्दा होने मे कोई लज्जा की बात नही।
    5ः46-47 हजरत ईसा ने तौरेत की पुष्टी की और इन्जील में प्रकाश और मार्ग दर्शन है।
    5ः57 ईसा अल्लाह के रसूल थे,उनकी मां पुण्यवती थीं और दोनो मनुष्य थे।
    5ः110 हजरत ईसा ने पालने झूले में बातचीत की। वह मुर्दे को जिन्दा कर देते थे और अल्लाह ने उन्हे कितनी ही निशानियां दीं।
    5ः112-115 हजरत ईसा के हवारियों नें मांग की कि आसमान से दस्तरखान उतरे।
    19ः16-26 हजरत मरियम का अल्लाह के हुक्म से गर्भवती होना और ईसा का जन्म।
    19ः27-23 हजरत ईसा ने गोद का बच्चा होते हुए लोंगों के आरोंपों का खण्डन किया।
    19ः34-37 हजरत ईसा का संदेश।
    23ः50 अल्लाह ने हजरत ईसा और उनकी माता को अपनी निशानी बताया।
    57ः27 हजरत ईसा को अल्लाह ने इन्जील दी और उनके मानने वालों के दिलों में नम्रता और स्नेह डाल दिया। अल्लाहताला ने खुदावन्द यीशू मसीह के विषय में इतनी बड़ी बड़ी बातें कही हैं। काष हमारे भाई अल्लहताला की बातों पर ईमान लायें और सच्चाई को ग्रहण कर लें।

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  18. @Ejaz Ul Haq sahab

    मीठा मीठा मम मम और खारा आक थू?
    स्वामी दयानंद जी अमूर्तीपूजा का उपदेश दिया,साथ ही यह भी स्पष्ठ करते इस्लाम के बारे में उन्होने क्या कहा?

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  19. अनवर साहब,
    भारत के पास विश्वगुरू बनने के प्रयाप्त साधन मौजुद है, मात्र शांति का विधान ही नहिं समता,क्षमावीरता,व अहिंसा के विधान भी है। बिना अहिंसा के मात्र शांति का विधान टीक नहिं सकता।
    पहले अहिंसा आती है और उसी पर शांति स्थापित होती है।

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  20. किसी की सही बातों को नकारा नहीं जायेगा
    @ आदरणीय सुज्ञ जी ! पुनरागमन पर आपको मुबारकबाद , आपकी कमी बहुत खली, सच .
    जैन धर्म के बारे में
    जो कुछ स्वामी दयानंद जी ने जीते जी खुद कहा था वैसी ही बातें उनके चेलों ने उनके मरने के बाद "सत्यार्थप्रकाश" के द्वितीय संस्करण में बढ़ा दीं . उनकी गलतियों की वजह से उनकी सही बातों को नकारा नहीं जायेगा. उनके साहस और संघर्ष की बहरहाल तारीफ़ की जाएगी, इस्लाम यही सिखाता है.
    @ राकेश लाल जी ! मैंने आपसे पूछा था कि प्रोटेस्टेंट मत वालों ने बाईबिल से ७ किताबें जाली कहकर क्यों निकाल दीं ? आपने इस सवाल का जवाब क्यों नहीं दिया अब तक ?
    खैर , अब आप आने लगे हैं तो आपसे भी चर्चा करूँगा और आपको बताऊंगा कि मेरी फ़ादर राकेश चार्ली और एम. लौरेंस से क्या बातें हुई थी रमज़ान में ?

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  21. आप तो चारो दिशायो में चलते हो
    एक तो आप स्वामी दयानद को संत मानने से इंकार करते हो,
    फिर तुरंत उनका ही उदाहरण देते हो ||
    वो भी किसका सहारा लेकर श्री राम शर्मा का जो की खुद शिव भक्त थे
    औए शिवलिंग मंदिर की स्थापना की
    इस बात से प्रभावित नही हुए

    आप दयानंद को संत नही मानते इससे उनकी महानता कम नही हो जाती
    एक दो कारण भी बता देते आखिर क्यों संत नही मानते ||

    १४व चप्टर मुझे तो यही मालूम है की उन्होंने ही लिखा क्योकि संदर्भ में यही लिखा है
    हो सकता हो ये जानकारी गलत हो ,,पर इस बात के लिए आप "आर्यसमाज" वालो से बात करिये और कहिये की वो पजे
    निकल कर दोबारा "सत्यार्थप्रकाश" को प्रकाशित करे वो भी "भूलचूक के साथ "

    आप वेद ,उपनिषद .गीता,राम चरित मानस को सही नही मानते ,पर जब हिन्दू विरोधी बयां देना हो
    तो यही से उदाहरण लेते है
    आप को स्रिफ अपना उल्लू सीधा करना है और कुछ नही

    रही बात "शिवलिंग" को मेरे पूजने की तो मुझसे जयादा आप मुसलमानों की चिंता करे
    जो मक्का में जाकर "शिवलिंग" के आगे शीश झुकाते है
    मुझे मेरे कुछ मुस्लिम मित्र ने बताया वह जाना कुरान का आदेश है तभी जीवन सफल होता है
    अब मुझे तो पता नही .आप सही हो या सारे मुसलमान
    अब ये मत कहने लगना की सारे मुस्लिम बेवकूफ है

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  22. जिसे पूजा जाता है उससे प्रार्थना भी की जाती है , इस्लाम धर्म की दस हज़ार से ज्यादा दुआओं में एक भी दुआ ऐसी नहीं है जिसमें काले पत्थर से दुआ की गई हो . जो लोग दयानंद जी को या हिन्दू धर्म के जिस ग्रन्थ को मानते हैं मैं उसी की सही बात को उसके मानने वालों के सामने पेश करता हूँ और जो गलत समझता हूँ उसे भी साफ़ बता देता हूँ . किसी भी हिन्दू धर्म ग्रन्थ की सारी बातें ग़लत नहीं है , थोड़ी अतिश्योक्ति हो गयी है , बस . इसी से अर्थ का अनर्थ हो गया है . आपने शरीर में सूक्ष्म चक्र बताये मैंने तुरंत मान लिया हालाँकि उनका ज़िक्र वेद में नहीं है . अभारतीयों ने भी उनकी अनुभूति की है और मैंने भी . आपकी सही बात ज़रूर मानी जाएगी चाहे वह वेद में भी न हो और कुरान में भी न हो .
    आप तो यह बताएं कि आप पूरण को नहीं मानते तो कैसे बताएँगे कि रूद्र जी को विष किन हालात में पीना पड़ा ?

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  23. आप तो यह बताएं कि आप पुराण को नहीं मानते तो कैसे बताएँगे कि रूद्र जी को विष किन हालात में पीना पड़ा ?

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  24. ये तेरा ये मेरा। मेरा ठीक तेरा गलत। कौन किसे मानता है। कौन किसे नही। ईस तर्क मे पड़ना मुझे लगता है हम अल्लाह से परमपिता से कोसों दूर चले जाते हैं। वो तो भाव का भूखा है उसे बस दिल से मुहब्बत चाहिए। तर्क नही तर्क उलझाता है प्रेम मारफत नजंदीक लाते हैं। वेद और कुरान मालिक से प्रेम बताते हैं ना कि ये कहते हैं मनुष्य तू ये कह कि मेरा वेद सही है या मेरा कुरान सही है। इन दोनो की अगर एक बात जो कि मुहब्बत मालिक से अपना लें तो ये महसूस होगा कि सब उसी का है और जब सब उसी का है तो हम मेरा मेरा कर वक्त ज़ाया कर रहै है।

    ये ब्लॉग जानकारीयां शेयर करे तो आप सभी विद्वानों से काफी कुछ सीखा जा सकता है
    आप सभी बड़ों को मेरा नमस्कार

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