15 अगस्त 1947 ई0 को भारत आज़ाद हुआ। उससे पहले अंगे्रजों ने पाकिस्तान को अलग देश बनाया और फिर कुछ समय बाद ही बांग्लादेश भी बन गया। तीनों देशों के नेताओं ने दशकों शासन किया लेकिन ग़रीबी, भूख और अपराध का खात्मा न कर सके बल्कि सत्ता की कुर्सियों पर अपराधी तत्व ही क़ाबिज़ हो गए।
धर्म सिखाता है क्षमा, प्रेम, दया और उपकार, मतभेद के बबावजूद एक दूसरे के मानवाधिकारों का सम्मान और सुरक्षा करना। तीनों देशों के नेताओं ने इसे उलट दिया। इनका ज़िक्र और उपदेश तो कहीं पीछे छूट गया। उन्होंने लोगों की धार्मिक भावनाओं को भड़काया, उनके विवेक को सुलाया और एक दूसरे से टकरा दिया। अक्सर धर्म गुरू भी उनके साथ ही रहे या फिर अलोकप्रिय हो जाने के डर से ख़ामोश रहे।
आज हालत यह है कि देश ‘यह’ हो या ‘वह’ लेकिन मंदिर-मस्जिद-दरगाह और इमामबाड़ों में बम धमाके आम बात हो गए हैं। इस तरह की समस्याएं लोगों का ध्यान शिक्षा, रोज़गार और विकास के मुद्दों से हटा देती हैं। देश की समस्याएं नेताओं की समस्या हल करती हैं।
कश्मीर काफ़ी हद तक शांत था। शांतिकाल में वहां शिक्षा, रोज़गार और विकास के लिए जो काम किये जाने चाहियें थे, नहीं किये गये। नतीजा यह हुआ कि आज कश्मीरी जवान पत्थर मार रहा है और गोली खा रहा है। कश्मीर के विकास के लिये दिये गये ‘आर्थिक पैकेजेज़’ का करोड़ों रूपया कोई अकेले ही डकार गया या उसे मिल-बांटकर खाया गया ?, इसे न कोई पूछता है और न ही कोई बताता है। नक्सलवाद के मूल में भी यही कारण है। ग़लत हैं नीतियां नेताओं की ओर मारे जाते है फ़ौजी और आम लोग।
स्वतन्त्रता दिवस कल आने वाला है और माह-ए-रमज़ान चल ही रहा है। माह-ए-रमज़ान के रोजे़ इंसान को उसकी ज़िम्मेदारी का अहसास दिलाते हैं उसमें गुनाह से बचने का भाव जगाते हैं, उसे नेकी और भलाई के कामों पर उभारते हैं। यह दुनिया ही सब कुछ नहीं है। मौत के बाद भी जीवन है और प्रलय के बाद भी सृष्टि है परलोक है जहां हरेक जीव को अपने कर्मो का ‘पूरा फल’ भोगना ही है।
नेताओं में जब तक ‘तक़वा’ अर्थात ज़ुल्म-ज़्यादती और पाप से बचने का भाव नहीं जगेगा तब तक लोगों की कोई समस्या हल न हो सकेगी, देश चाहे ‘यह’ हो या ‘वह’ या फिर कोई तीसरा।
ईश्वर एक है और मानव जाति को भी एक हो जाना चाहिये। अलगाववाद और हिंसा किसी समस्या का समाधान नहीं है। एक परमेश्वर की वंदना और उसके आदेशों का पालन ही हरेक समस्या का सच्चा और स्थायी समाधान है।
वंदे ईश्वरम्
स्वतन्त्रता दिवस कल आने वाला है और माह-ए-रमज़ान चल ही रहा है। माह-ए-रमज़ान के रोजे़ इंसान को उसकी ज़िम्मेदारी का अहसास दिलाते हैं उसमें गुनाह से बचने का भाव जगाते हैं, उसे नेकी और भलाई के कामों पर उभारते हैं। यह दुनिया ही सब कुछ नहीं है। मौत के बाद भी जीवन है और प्रलय के बाद भी सृष्टि है परलोक है जहां हरेक जीव को अपने कर्मो का ‘पूरा फल’ भोगना ही है।
ReplyDeleteआज हालत यह है कि देश ‘यह’ हो या ‘वह’ लेकिन मंदिर-मस्जिद-दरगाह और इमामबाड़ों में बम धमाके आम बात हो गए हैं। इस तरह की समस्याएं लोगों का ध्यान शिक्षा, रोज़गार और विकास के मुद्दों से हटा देती हैं। देश की समस्याएं नेताओं की समस्या हल करती हैं।
ReplyDeletenice post
ReplyDeleteधर्म सिखाता है क्षमा, प्रेम, दया और उपकार, मतभेद के बबावजूद एक दूसरे के मानवाधिकारों का सम्मान और सुरक्षा करना।
ReplyDeleteएक परमेश्वर की वंदना और उसके आदेशों का पालन ही हरेक समस्या का सच्चा और स्थायी समाधान है।
ReplyDeleteLajawaab Batt
मनुष्य जिस पल भी उस परमपिता को भूल जाता है पाप कर ही बैठता है ! फिर उनका क्या कहना जो उसे मानते ही नहीं या मानते भी हैं तो सिर्फ उपरी मन से और भौतिक पदार्थों की सत्ता के लिए
अच्छी पोस्ट
ReplyDeleteबिल्कुल सही बात कही है. राष्ट्रप्रेम में अंधे होकर मूल समस्या से नज़रे चुराना ...?
ReplyDeleteहर समस्या के लिए दूसरे के सर पर ठीकरा फोड़ना...
ReplyDeleteबहरहाल सबको आज़ादी मुबारक.
सबको आज़ादी मुबारक.
ReplyDeleteकश्मीर काफ़ी हद तक शांत था। शांतिकाल में वहां शिक्षा, रोज़गार और विकास के लिए जो काम किये जाने चाहियें थे, नहीं किये गये। नतीजा यह हुआ कि आज कश्मीरी जवान पत्थर मार रहा है और गोली खा रहा है। कश्मीर के विकास के लिये दिये गये ‘आर्थिक पैकेजेज़’ का करोड़ों रूपया कोई अकेले ही डकार गया या उसे मिल-बांटकर खाया गया ?, इसे न कोई पूछता है और न ही कोई बताता है। नक्सलवाद के मूल में भी यही कारण है। ग़लत हैं नीतियां नेताओं की ओर मारे जाते है फ़ौजी और आम लोग।
ReplyDeleteacchi tahreer
ReplyDeleteaazadi ki mubarakbad
‘तक़वा’ अर्थात ज़ुल्म-ज़्यादती और पाप से बचने का भाव नहीं जगेगा तब तक लोगों की कोई समस्या हल न हो सकेगी, देश चाहे ‘यह’ हो या ‘वह’ या फिर कोई तीसरा।
ReplyDeleteईश्वर एक है और मानव जाति को भी एक हो जाना चाहिये। अलगाववाद और हिंसा किसी समस्या का समाधान नहीं है। एक परमेश्वर की वंदना और उसके आदेशों का पालन ही हरेक समस्या का सच्चा और स्थायी समाधान है।
स्वतन्त्रता दिवस है और माह-ए-रमज़ान चल ही रहा है। माह-ए-रमज़ान के रोजे़ इंसान को उसकी ज़िम्मेदारी का अहसास दिलाते हैं उसमें गुनाह से बचने का भाव जगाते हैं, उसे नेकी और भलाई के कामों पर उभारते हैं। यह दुनिया ही सब कुछ नहीं है। मौत के बाद भी जीवन है और प्रलय के बाद भी सृष्टि है परलोक है जहां हरेक जीव को अपने कर्मो का ‘पूरा फल’ भोगना ही है।
ReplyDeleteWell said!
ReplyDeleteYe aam muslim mahilaa kii peeda hai, Dr Jamaal
ReplyDeleteShariyat ek aloktantrk kanoon hain
शाहबानो प्रकरण तुष्टिकरण की सबसे बड़ी मिसाल है कि किस तरह एक विशेष संप्रदाय को ख़ुश करने के लिए तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश तक को पलट दिया था। वर्ष 1978 में 62 वर्षीय शाहबानो को उसके पति ने तलाक़ दे दिया था। पांच बच्चों की मां शाहबानो ने इंसाफ़ के लिए अदालत का दरवाज़ा खटखटाया। सात साल की लंबी क़ानूनी लड़ाई के बाद वह सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गई। कोर्ट ने अपराध दंड संहिता की धारा-125 के तहत फ़ैसला सुनाया कि शाहबानो को गुज़ारा भत्ता दिया जाए। यह धारा देश के सभी नागरिकों पर लागू होती है, भले ही वे किसी भी धर्म के क्यों न हों। कोर्ट के इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ मुस्लिम नेता लामबंद हो गए और उन्होंने इस फ़ैसले को शरीयत में हस्तक्षेप क़रार दे दिया। सैयद शाहबुद्दीन व अन्य मुस्लिम नेताओं ने ‘ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड’ बनाकर आंदोलन की धमकी दी। इस पर केंद्र की तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने उनकी तमाम मांगें मान लीं। इसके बाद 1986 में कांग्रेस (आई) ने शाहबानो मामले में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को पलटने के लिए मुस्लिम महिला (तलाक़ अधिकार संरक्षण)-1986 क़ानून पास किया। इस क़ानून के तहत जब एक तलाक़शुदा महिला इद्दत के बाद अपना गुज़ारा नहीं कर सकती तो अदालत उन रिश्तेदारों को उसे गुज़ारा भत्ता देने का आदेश दे सकती है, जो उसकी जायदाद के उत्तराधिकारी हैं। अगर ऐसे रिश्तेदार नहीं हैं या वे गुज़ारा भत्ता देने की हालत में नहीं हैं तो अदालत उस प्रदेश के वक्फ़ बोर्ड को गुज़ारा भत्ता देने का आदेश देगी, जिस राज्य में महिला रहती है। इस क़ानून से जहां मुस्लिम पुरुषों को फ़ायदा हुआ, वहीं महिलाओं की हालत और भी बदतर हो गई, क्योंकि शरीयत के मुताबिक़ पुरुष चार-चार विवाह करने और अपनी पत्नियों को कभी भी तलाक़ देने के लिए स्वतंत्र हैं। इतना ही नहीं, उन पर अपनी तलाक़शुदा पत्नियों के प्रति कोई ज़िम्मेदारी भी नहीं है।
अगर देश में ‘समान नागरिक संहिता’ लागू होती तो शाहबानो के साथ इतनी बड़ी नाइंसाफ़ी नहीं होती। भाजपा देश में समान नागरिक संहिता लागू करने के पक्ष में है, जबकि अन्य सियासी दल यह नहीं चाहते, क्योंकि उन्हें आशंका है कि ऐसा करने से उनके मुस्लिम मतदाता खिसक जाएंगे। जब 23 जुलाई 2004 को सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति वीएन खरे, न्यायमूर्ति बीएस सिन्हा और न्यायमूर्ति एआर लक्ष्मण की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने एक पादरी की याचिका पर टिप्पणी की कि आज़ादी के 50 वर्षों बाद भी भारतीय संविधान का अनुच्छेद-44 लागू नहीं हो पाया है तो उस वक्त देश की सियासत में बवाच मच गया था। मौक़े की नज़ाकत को समझते हुए कांग्रेस ने इस पर टिप्पणी करने की असर्मथता जताते हुए अदालत से कुछ मोहलत मांग ली थी। मगर मुस्लिम संगठनों के नेताओं ने अदालत की टिप्पणी के ख़िलाफ़
बयानबाज़ी शुरू कर दी
फ़िरदौस ख़ान
http://www.pravakta.com/?p=12292
आज कश्मीरी जवान पत्थर मार रहा है और गोली खा रहा है। ...
ReplyDeleteKashmir se artical 370 hathaa deni chahiye, kashmir ke log pakistaan ka jhanda lekar ghoomte hain,
anya rajyon kii tulnaa mein kashmir ka vikas jyada ho rakha hain(कश्मीर घाटी के मुक़ाबले जम्मू की आबादी ज्यादा होने के बावजूद प्रदेश में तैनात 4.5 लाख सरकारी कर्मचारियों में से 3.3 लाख कश्मीर घाटी के हैं। विधानसभा में कश्मीर से 46 और जम्मू से 37 सदस्य चुने जाते हैैं लद्दाख़ से महज़ चार ही सदस्य चुने जाते हैं। जहां तक विकास की बात है, इस मामले में भी जम्मू और लद्दाख़ से भेदभाव किया जाता
है।) phir ye pathar baazi kyon? kashmeeri panditon ko kashmiir se bhaga diya gaya kyon? kya ye vikas ke liye???
Agar kashmir mein musalman nahii ho te to , ye naubat aati kya, Huriya Conference ke neta pakistaan se apni salary lete hain aur islam ke naam per musalmaano ke saath khilwaad karte hain aur India ke saath desh drohi kaa kaam karte hain. Muslim Aatankvadiyon ne na jaane kitne be gunaah logo ko maar diyaa, uske liye koi PATHAR baaji nahii kartaa, Saale army ko gaalee deten hain
Huriya conference ko kya Kashmir ke vikas kii chinta? Nahii, Saale sab pakistaan ke tattoo hain,
...........धारा-370 जम्मू-कश्मीर को ‘विशेष राज्य’ का दर्जा प्रदान करती है। 1947 में देश के बंटवारे के वक्त ज़म्मू-कश्मीर के राजा हरि सिंह पहले आज़ादी चाहते थे, मगर बाद में उन्होंने अपने राज्य को भारत में शामिल होने की मंज़ूरी दे दी। जम्मू-कश्मीर में अंतरिम सरकार बनाने वाले नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता शेख़ अब्दुल्ला ने राज्य को भारतीय संविधान से बाहर रखने का प्रस्ताव रखा। इसके चलते भारतीय संविधान में धारा-370 का प्रावधान किया गया। इसके बाद 1951 में संविधान सभा अलग से बुलाने को मंज़ूरी दी गई और नवंबर 1956 में इसका काम पूरा हुआ। आख़िरकार 26 जनवरी 1957 को जम्मू-कश्मीर को ‘विशेष राज्य’ का दर्जा हासिल हो गया। इस धारा के तहत संसद जम्मू-कश्मीर के लिए रक्षा, विदेश और संचार संबंधी क़ानून तो बना सकती है, लेकिन इससे अलग कोई और क़ानून बनाने के लिए उसे प्रदेश की अनुमति लेनी होगी। जम्मू-कश्मीर पर भारतीय संविधान की धारा-356 लागू नहीं होती, जिसके कारण राष्ट्रपति के पास प्रदेश के संविधान को बर्ख़ास्त करने का अधिकार नहीं है। साथ ही 1956 का शहरी भूमि क़ानून भी यहां लागू नहीं होता। इसके भारतीय नागरिकों को विशेषाधिकार प्राप्त प्रदेशों के अलावा देश में कहीं भी ज़मीन ख़रीदने का अधिकार है। इसी तरह भारतीय संविधान की धारा 360 भी यहां लागू नहीं होती, जिसमें देश में वित्तीय आपातकाल लगाने का प्रावधान है।
My Name is "Vande Matram"
@ अरे भाई बेनामी ! जहां सारे कानून और सारी धाराएं लागू हैं देश में , वहाँ लोग कितने अमन और शांति में हैं ? धाराओं की कमी-बेशी से नहीं शांति आयेगी मालिक को साक्षी मानकर पाप से बचने के बाद , वरना देश होता रहेगा यूं ही बर्बाद .
ReplyDeleteNice Post,
ReplyDeleteNo law, police or court can stop its people from commiting crimes.
That is only fear of Almighty and the day of judgement which can change the direction of thinking of people and thus preventing them from commiting any crime either hidden or open.