परमेश्वर दूर नहीं है बल्कि क़रीब है, सामने है, साथ है लेकिन हमें बोध नहीं है। हम परमेश्वर के स्वरूप को नहीं पहचानते लेकिन हम दुनिया पर यह ज़ाहिर करते हैं कि हम जानते हैं। अज्ञान और अहंकार हमें सत्य को स्वीकार करने नहीं देता। मस्जिदों से मालिक के दरबार में हाज़िर होकर ज्ञान पाने के लिए पुकारा जाता है लेकिन अक्सर लोग सुनकर भी अनसुना कर देते हैं। मालिक अजन्मा है लेकिन लोग उसे एवॉइड करके उनकी पूजा में लगे रहते हैं जिन्होंने जन्म लिया और मर गये।
नम + अज = नमाज अर्थात अजन्मे को नमन करना।
नमाज़ में बन्दा अपने रब के सामने झुक जाता है, अपने अहंकार का त्याग करता है। वह अपने मालिक का हुक्म अर्थात कुरआन सुनता है जो उसके अज्ञान का अन्त कर देता है। नमाज़ से इनसान को वह सब कुछ मिलता है जो बन्दे को रब तक पहुंचाने के लिए ज़रूरी है। नमाज़ को उसकी सम्पूर्णता में अदा करना ही इनसान को उसकी मन्ज़िल तक पहुंचाने का एकमात्र मार्ग है।
khatri jee par tippani kii aapne achchha laga!!!!!
ReplyDeleteबहुत कम अल्फ़ाज़ों में काफ़ी बडी बात कह दी है आपने....
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Nice post. परमेश्वर दूर नहीं है बल्कि क़रीब है, सामने है, साथ है
ReplyDeleteNice post. परमेश्वर दूर नहीं है बल्कि क़रीब है, सामने है, साथ है
ReplyDeletegood post
ReplyDeleteनमाज़ में लोग एक जगह इकठ्ठा होते हैं , एक दूसरे का दुःख दर्द सुनते हैं और मिलकर मालिक के सामने मदद के लिए हाथ फैलते हैं . सब आपस में भाई बनकर एक दूसरे की मदद करते हैं . सारी दुनिया एक कुनबा बन जाती है. नमाज़ इन्सान को इन्सान बनती है और फिर उसके रब से मिलाती है .
ReplyDeleteनमाज़ दीन का सतून ( आधार स्तंभ) है
ReplyDeleteनमाज़ में लोग एक जगह इकठ्ठा होते हैं , एक दूसरे का दुःख दर्द सुनते हैं और मिलकर मालिक के सामने मदद के लिए हाथ फैलते हैं . सब आपस में भाई बनकर एक दूसरे की मदद करते हैं . सारी दुनिया एक कुनबा बन जाती है. नमाज़ इन्सान को इन्सान बनाती है और फिर उसके रब से मिलाती है . जब तक आदमी मालिक के हुक्म के सामने सर नहीं झुकाएगा उसे हकीक़त का इल्म नहीं हो सकता . पिछली किताबें भी यही बताती हैं . मूर्ति पूजा से मालिक ने सदा रोका है , बोलो मैं सही हूँ या नहीं ?
ReplyDeleteमूर्ति पूजा से मालिक ने सदा रोका है , बोलो मैं सही हूँ या नहीं ?नमाज़ में लोग एक जगह इकठ्ठा होते हैं , एक दूसरे का दुःख दर्द सुनते हैं और मिलकर मालिक के सामने मदद के लिए हाथ फैलते हैं . सब आपस में भाई बनकर एक दूसरे की मदद करते हैं . सारी दुनिया एक कुनबा बन जाती है. नमाज़ इन्सान को इन्सान बनाती है और फिर उसके रब से मिलाती है . जब तक आदमी मालिक के हुक्म के सामने सर नहीं झुकाएगा उसे हकीक़त का इल्म नहीं हो सकता . पिछली किताबें भी यही बताती हैं .
ReplyDeleteनमाज़ मोमिन की मेराज है ( हदीस)
ReplyDeleteवाकेई नमाज़ इस्लाम का बहुत अहम् फरिज़ा है, जो इसे अदा नहीं करता वो मुस्लमान नहीं हो सकता |
ReplyDeleteअनवर साहब आपके सर पर टोपी और माथे पर सजदे का निसान नहीं है ,आप कैसे मुस्लमान है ?
ReplyDeleteअनवर साहब आपके सर पर टोपी और माथे पर सजदे का निसान नहीं है ,आप कैसे मुस्लमान है ?
ReplyDeleteapki ab tak ki sabse badhiya post.
ReplyDeleteअनवर साहब लगता है गिरी जी ने आज पढकर कमेंटस किया है
ReplyDeleteओ अल्लाह तुम तो हमें अकेले में चीखने दो और जोर जोर से रोने दो । कहीं एकान्त में हमारा दम ही न निकल जाए । बुरके की घुटन में लोक जीवन की चारदीवारी में हमें इतना जी भर के रो लेने दो कि हमारी आखों में एक भी आंसू बाकी न बचे । हमें इतना रोने दो कि उसके बाद रोने की ताकत ही न रहे । क्यों केवल एक ही अधिकार तुमने मुसलमान महिलाओं के लिए छोड़ा है । पूरे मुस्लिम संसार में उलट पुलट हो रहे हैं पर हम मुसलमान तो वही पुराने ढर्रे पुराने संस्कारों की बेड़ियों में जकड़े हुएहैं ।
ReplyDeletehttp://www.satyarthved.blogspot.com/
Hakeem Saud Anwar Saheb, Namaj ek acchata tarika hai, ham is per sahmat hai, lekin iska matlab ye nahi ki aap murti puja ka virodh kare.
ReplyDeleteमाशाअल्लाह ज़बरदस्त पोस्ट है अनवर भाई.
ReplyDeleteमाशाअल्लाह ज़बरदस्त पोस्ट है अनवर भाई.
ReplyDeleteदयानंद जी ने समझाया था तभी समझ जाते तो देश बच जाता अब बहुत देर हो चुकी है, मुल्ला हर तरफ कब्जा जमा चुके हैं. अब मुक्ति केवल सपना है.
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