भाई के. एस. सिद्धार्थ जी की टिपण्णी एक पूरे लेख की भी हैसियत रखती है और हमें एक नेक नसीहत भी करती है . मैं अपने ब्लॉग पर एक चिन्तनशील आदमी का सम्मान भी करना चाहता हूँ और यह भी चाहता हूँ कि हमारे अन्दर निखार पैदा हो . अच्छी बात हरेक से ली जानी चाहियें .
प्रतिबद्धता दृढ़ता और विश्वास पैदा करती है , कट्टरता घृणा और संकीर्ण श्रेष्ठि भाव । इसलिए कट्टरता को त्यागें और प्रतिबद्धता को अपनाएं ।
हमें जीवन के किसी भी पहलू के अपने तरीके पर प्रतिबद्ध होना चाहिए , क्योंकि प्रतिबद्ध होने का मतलब ही अपनी मान्यताओं व विश्वासों को अच्छी तरह जानकर और हर कसौटी पर खरा उतारकर उसके प्रति गहरी आस्था होना है, साथ ही साथ दूसरों की आस्था का सम्मान करना भी है जबकि कट्टरता अपनी मान्यताओं व विश्वासों के प्रति बिना किसी कसौटी पर जांचे और जाने अन्ध श्रद्धा रखना है और इसमें दूसरों की मान्यताओं व विश्वासों को हेय व घ्रणा की द्रष्टि से देखना है
हमें लोगों की प्रतिबद्धता का सम्मान करना चाहिए तथा कट्टरता का विरोध करना चाहिए भले ही वह अपने ही वर्ग या समाज विशेष में क्यों न हो
यह सांप्रदायिक कट्टरता हिन्दू और मुस्लिम दोनों सम्प्रदायों में देखने को मिलती है जबकि ऐसे तत्व दोनों ही ओर से अपने आप को श्रेष्ठ बताते हैं तथा विपरीत पक्ष की उसे सांप्रदायिक या कट्टर बताकर आलोचना करते हैं
इसके लिए प्रतिबद्धता और कट्टरता में पहले तो अंतर समझें, कुमार अम्बुज की इस कविता से:
देखताहूं कि प्रतिबद्धता को लेकर कुछ लोग इस तरह बात करते हैं मानो प्रतिबद्ध होना, कट्टर होना है ।
जबकि सीधी-सच्ची बात है कि प्रतिबद्धता समझ से पैदा होती है, कट्टरता नासमझी से ।
प्रतिबद्धता वैचारिक गतिशीलता को स्वीकार करती है, कट्टरता एक हदबंदी में अपनी पताका फहराना चाहती है ।
प्रतिबद्धता दृढ़ता और विश्वास पैदा करती है , कट्टरता घृणा और संकीर्ण श्रेष्ठि भाव ।
प्रतिबद्ध होने से आप किसी को व्यक्तिगत शत्रु नहीं मानते हैं,कट्टर होने से व्यक्तिगत शत्रुताएं बनती ही हैं ।
प्रतिबद्धता सामूहिकता में एक सर्जनात्मक औज़ार है और कट्टरता अपनी सामूहिकता में विध्वंसक हथियार ।
प्रतिबद्धता आपको जिम्मेवार नागरिक बनाती है और कट्टरता अराजक ।
जो प्रतिबद्ध नहीं होना चाहते हैं, वे लोग कुतर्कों से प्रतिबद्धता को कट्टरता के समकक्ष रख देना चाहते हैं -- कुमार अंबुज , यह कविता जनपक्ष पर देखी गयी
इसलिए कट्टरता को त्यागें और प्रतिबद्धता को अपनाएं ।
सिद्धार्थ की बात से सहमत !
ReplyDeleteSiddarth Bhai, Bahut khoob!
ReplyDelete"कट्टरता को त्यागें और प्रतिबद्धता को अपनाएं।"
अच्छी पोस्ट
ReplyDeleteसिद्धार्थ जी ने बिल्कुल सही लिखा । सही बात चाहे जो कहे उसे माना जाना चाहिए
ReplyDeleteकट्टरता विरोध की बातें सभी करते है पर छोड़ेगा कौन
ReplyDeleteकट्टरपन छोड़ो और हाथ मिलाओ यही नारा है हमारा देश बचाओ देश बचाओ
ReplyDeleteकट्टरपंथियो के मुँह से कट्टरता छोड़ने की बाते हा हा हा हा;-)
ReplyDeleteप्रतिबद्धता आपको जिम्मेवार नागरिक बनाती है और कट्टरता अराजक ।
ReplyDeleteसिद्धार्थ जी ने बिल्कुल सही लिखा ....
ReplyDeleteसिद्धार्थ जी ने बिल्कुल सही लिखा ....
ReplyDeleteचर्चा-ए-ब्लॉगवाणी
ReplyDeleteचर्चा-ए-ब्लॉगवाणी
बड़ी दूर तक गया।
लगता है जैसे अपना
कोई छूट सा गया।
कल 'ख्वाहिशे ऐसी' ने
ख्वाहिश छीन ली सबकी।
लेख मेरा हॉट होगा
दे दूंगा सबको पटकी।
सपना हमारा आज
फिर यह टूट गया है।
उदास हैं हम
मौका हमसे छूट गया है..........
पूरी हास्य-कविता पढने के लिए निम्न लिंक पर चटका लगाएं:
http://premras.blogspot.com
डॉ अनवर जमाल ,
ReplyDeleteआपने मेरी एक टिप्पणी पर ही एक पोस्ट बना दी और मेरी बात को इतनी तबज्जो दी , इसके लिए मैं आपका तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ और आश्चर्यचकित भी ! आपको पोस्ट में मेरा नाम उद्धृत करने की बजाय कुमार अम्बुज जी का करना चाहिए था ,जिनकी कविता "प्रतिबद्धता और कट्टरता" मैंने अपनी टिप्पणी में उद्धृत की जो मुझेजनपक्ष पर मिली . यह कविता वास्तव में सही अर्थ में प्रतिबद्धता और कट्टरता को परिभाषित करती है और और साथ में उनमें अंतर भी| मैं भी इस पर कोई बड़ी पोस्ट बनाने की सोच रहा था कि उस से पहले आपने ही कमाल कर दिया |
पुन: आपका हार्दिक आभार ! साथ में आभार कुमार अम्बुज और जनपक्ष का भी ऐसी उत्कृष्ट कविता के लिए !
वाक़ई , हम आपके साथ कुमार अम्बुज जी के भी शुक्रगुज़ार हैं .
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