
122. और जो लोग ईमान लाये और उन्होंने नेक काम किये उनको हम ऐसे बाग़ों में दाखि़ल करेंगे जिनके नीचे नहरें जारी होंगी, परमेश्वर का वादा सच्चा है और परमेश्वर से बढ़कर कौन अपनी बात में सच्चा होगा ?
123. न तुम्हारी इच्छा पर है और न पूर्व ईशग्रन्थ वालों की इच्छा पर। जो कोई भी बुरा करेगा उसका बदला पायेगा और परमेश्वर के सिवा अपना कोई हिमायती और मददगार न पायेगा।
124. और जो कोई नेक काम करेगा चाहे वह मर्द हो या औरत बशर्ते कि वह विश्वासी हो तो ऐसे लोग स्वर्ग में प्रवेश करेंगे और उनपर ज़रा भी ज़ुल्म न होगा।
125. और उससे बेहतर किस का धर्म है जो अपना चेहरा परमेश्वर की ओर झुका दे और वह नेकी करने वाला हो और वह चले इबराहीम के मार्ग पर जो एकनिष्ठ था और परमेश्वर ने इबराहीम को अपना मित्र बना लिया था।
126. और परमेश्वर का है जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है और परमेश्वर ने सब चीज़ों को अपने घेरे में ले रखा है।
कुरआन मजीद,सूरह ए निसा, 122-126
दुनिया की चीज़ों को मालिक ने इनसान को दिया ताकि वह उन्हें बरतना सीख ले। इसी शिक्षण, प्रशिक्षण और परीक्षण के लिए मालिक ने दुनिया को और इनसान को बनाया है।
जिन लोगों ने मालिक की इस नीति और योजना को जान लिया, उन्होंने एकनिष्ठ होकर पूर्ण समर्पण भाव से मालिक के हरेक हुक्म का पालन किया और लोकहित में अपनी तमाम राहतें और खुशियां कुर्बान कर दीं। यही लोग मानवता के आदर्श और धर्मपथ के मार्गदीप हैं। इन्हीं में एक नाम हज़रत इबराहीम अलैहिस्सलाम का है। स्वर्ग में प्रवेश करने के लिये उनका अनुकरण लाज़िमी है, केवल दावा और इच्छा करना ही काफ़ी नहीं है।
भलाई या बुराई जो कोई भी करेगा वह उसका फल ज़रूर पायेगा चाहे वह औरत हो या मर्द, मुसलमान हो या फिर पहले अवतरित हो चुके ज्ञान पर विश्वास रखने वाला।
इनसान की सफलता इसी में है कि जो कुछ उसे कल नज़र आने वाला है उसे वह अपनी अक्ल से आज ही पहचान ले और खुद को उस मालिक के प्रति पूरी तरह से समर्पित कर दे और लोगों का हक़ और अपना फ़र्ज़ बेहतरीन तरीक़े से अदा करे ताकि वह स्वर्ग में प्रवेश करने का पात्र सिद्ध हो।अफ़सोस इनसान के हाल पर कि वह दुनिया की मामूली चीज़ों को पाने के लिये तो योजनाबद्ध तरीक़े से मेहनत करता है और सदा के स्वर्गिक सुख को पाने के लिये वह केवल इच्छा, दावे और दिखावे की रस्मों को ही काफ़ी समझता है।
great
ReplyDeletebehtar!!!!!!!!!
ReplyDeleteअवश्यमेव भोक्तव्यं कृतकर्म शुभाशुभम् (किये हुए शुभ या अशुभ कर्मों का फल अवश्य मिलना है।)
ReplyDeleteboring
ReplyDelete@ दिनेशराय जी ! मैं आपकी ज़हानत की क़द्र करता हूं लेकिन खुद को आपसे सहमत नहीं पाता । अगर मैं आपको अपनी असहमति से अवगत कराता हूं तो इसमें आपके लिए या किसी अन्य के लिए दुखी होने का कोई पर्याप्त आधार नहीं है। आपको भी मुझसे सहमत अथवा असहमत होने का पूरा अधिकार है और मैं आपके असहमति के अधिकार की भी पूरी क़द्र करता हूं।
ReplyDeleteआपने लिखा कि इसलाम का पहला सबक़ है आंख मूंदकर ईमान लाओ।
आप पढ़े लिखे आदमी हैं, अतः आप इस सबक़ को कहीं लिखा हुआ दिखाएं । मुझे तो 40 साल की उम्र में आज तक यह कहीं लिखा हुआ मिला नहीं।
इसलाम में हनफ़ी, शाफ़ई, मालिकी,हम्बली और जाफ़री आदि जितने भी मसलक बने उनके आलिमों ने इसलामी अक़ाएद ओ आमाल पर खूब खुलकर बहस की है। इसी बहस के नतीजे में इख्तेलाफ़ हुआ और कई मसलक वुजूद में आये।
आपका दावा है कि अब से सैकड़ों साल पहले सांख्य कानों कान ही परी दुनिया में इतना फैल चुका था कि आज भी कोई अनपढ़ सांख्य पर पूरी क्लास ले सकता है।
मुझे आपसे ऐसे दावे की उम्मीद नहीं थी।
उस समय किसी विदेशी म्लेच्छ को तो पण्डित जी क्या सांख्य पढ़ाते तब वे अपने ही देश के शूद्रों और औरतों को पाठशाला में वेद तक पढ़ने के लिए नहीं घुसने देते थे।
मैक्समूलर को वेद एकत्र करने में कितनी दिक़्क़त आयी आप जानते ही हैं। बाबा साहब अम्बेडकर को सामान्य शिक्षा तक ग्रहण करने में कितना कष्ट और अपमान झेलना पड़ा सबके साथ आपको भी पता है।
चलिये तब की बात जाने दीजिए, आप आज किसी अनपढ़ से नहीं मन्दिर के पुजारी से ही सांख्य के सूत्र सुनवा दीजिए।
मैं आपके साथ हरिद्वार आदि किसी धर्म नगरी के मन्दिरों में चलता हूं, आप खुद देख लेंगे और मैं भी।
जिस समय भगत सिंह फांसी के क़रीब थे उस समय उनके अन्दर बार बार प्रार्थना करने का भाव उभरता था लेकिन उन्होंने ज़बरदस्ती उसे कुचल दिया। ईश्वर के प्रति विश्वास आदमी की प्रकृति में है वह उभरता है लेकिन लोग उसे कुचल देते हैं।
दूसरी बात यह कि इस देश को अकेले भगत सिंह ने ही आज़ाद नहीं करवाया है। रामप्रसाद बिस्मिल और अशफ़ाकुल्लाह खां जैसे असंख्य आस्तिक लोग भी थे।
जंग ए आज़ादी की मशाल रौशन करने वाले हैदर अली, टीपू सुल्तान और बहादुर शाह ज़फ़र जैसे आस्तिकों को आपने कैसे भुला दिया ?
ऐसे लोग असंख्य थे और हरेक मत के अनुयायी थे। आज़ाद हिन्द फ़ौज के जनरल शाहनवाज़ जैसे मुसलमान और दीगर हिन्दू भाई भी क्या नास्तिक थे ?
आज आप जिस आज़ादी की हवा में सांस ले रहे हैं, सच पूछिये तो यह हिन्दू मुस्लिम आस्तिकों की कुरबानियों का ही फल है। इसमें नास्तिकों का योगदान तो बहुत ही न्यून है।
ईश्वरीय विधान का इनकार करने के बाद नास्तिकों ने पूरी दुनिया को बाज़ार और इनसान को मात्र उपभोक्ता बनाकर रख दिया है। ऐसे नास्तिकों से देश और दुनिया का भला न तो पहले कभी हुआ है और न ही आज हो सकता है।
इस्लाम शांति का धर्म है लेकिन मानव को शांति तब ही नसीब होगी जबकि वह जीवन के सबसे बड़े सच ‘मौत‘ को सामने रखकर मालिक का बन्दा बनकर जीना सीखे।
सत्य को तर्क से प्राप्त किया जा सकता है।
आप बताइये कि जंग ए आज़ादी में ज़्यादा कुरबानियां आस्तिकों की हैं या फिर नास्तिकों की।
http://hamarianjuman.blogspot.com/2010/05/blog-post_31.html
@ गोदियाल जी कल आप औरतों के बारे में पूछ रहे थे और आज की पोस्ट ऐसा लगता है कि जैसे आपके ही सवाल का जवाब हो । आप आइये और अपने विचार से मुत्तला करायें।
ReplyDeleteमेरे ब्लाग पर भी आपकी नज़रे इनायत हो जाए तो क्या कहने ?
http://vandeishwaram.blogspot.com/
जमाल साहब चतुर वेदी जी तो अर्जी लगा के भाग जाते हैं लोट के आयें तो उन का सम्मान किया जाये उनके ज्ञान के साथ न्याय किया जायेगा, इन्शा अल्लाह
ReplyDeleteNice post Anwar Sahab.
ReplyDeleteBhaktiras me likhi gayi ek uttam post. Ab ap pehle se achha likhne lage hai. Ummid hai aise hi likhte rahenge........
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट
ReplyDeleteदर्द जमाने का सीने में दबाये बैठे हैं
ReplyDeleteरोशनी से हाथ जलाये बैठे हैं
अबकि बरसात में जी भरकर रोउंगा
कितने ही पन्नों को दर्द सुनाये बैठे हैं
chalo kuch to accha likna shooru kiya tumne
ReplyDeletechalo kuch to accha likna shooru kiya tumne
ReplyDeleteइसलाम का पहला सबक़ है आंख मूंदकर ईमान लाओ।
ReplyDeleteआप पढ़े लिखे आदमी हैं, अतः आप इस सबक़ को कहीं लिखा हुआ दिखाएं । मुझे तो 40 साल की उम्र में आज तक यह कहीं लिखा हुआ मिला नहीं।
इसलाम में हनफ़ी, शाफ़ई, मालिकी,हम्बली और जाफ़री आदि जितने भी मसलक बने उनके आलिमों ने इसलामी अक़ाएद ओ आमाल पर खूब खुलकर बहस की है। इसी बहस के नतीजे में इख्तेलाफ़ हुआ और कई मसलक वुजूद में आये।
GOOD + NICE
ReplyDelete+1 VOTE FOR U ALWAYS
ReplyDeleteज्ञानवर्धक !!!
ReplyDeleteJeewan jine ka sar har dharm main milta hai, Swarg aur nark ki bate har dharm main ki gai hai. antar hai to sirf samaj ka.
ReplyDeleteAnkhe band karke jo log iman laye hain, unme se abhi tak bahuto ne apnni ankhe abhi tak band hi rakhi hai.
@ गिरी जी , ऑंखें किसकी बंद हैं ? आप की या हमारी ?
ReplyDelete@ Dr. Anwar jamal: इसलाम में हनफ़ी, शाफ़ई, मालिकी,हम्बली और जाफ़री आदि जितने भी मसलक बने उनके आलिमों ने इसलामी अक़ाएद ओ आमाल पर खूब खुलकर बहस की है। इसी बहस के नतीजे में इख्तेलाफ़ हुआ और कई मसलक वुजूद में आये।
ReplyDelete1st Comment - आप की रीत को देखकर जो भी गुमराह होगा उसका पाप भी आप पर ही पड़ेगा। दुनिया में भी आप आदमी को 120 बी (दुष्प्रेरणा)का मुल्ज़िम ठहराते हैं । परलोक में आप पर दूसरी धाराओं के साथ यह धारा भी लगेगी , अब इस का नम्बर वहां चाहे दूसरा ही क्यों न हो?
क्या यह स्पष्ट करने का कष्ट करेंगे की आप बहस को बढ़ावा दे रहे हैं या बहस रोकने के लिए धमकी?
जिस समय भगत सिंह फांसी के क़रीब थे उस समय उनके अन्दर बार बार प्रार्थना करने का भाव उभरता था लेकिन उन्होंने ज़बरदस्ती उसे कुचल दिया।
जानकारी के लिए धन्यवाद, मैंने तो भगत सिंह की अनेक जीवनियाँ पढ़ी कई उनके साथियों द्वारा लिखी, पर कहीं भी यह जानकारी उपलब्ध नहीं थी, कहाँ से पाई आपने यह जानकारी, स्रोत हमसे भी share कीजिये|
मंगलवार, १ जून २०१० ११:०४:०० PM IST
@ Chatuvedi ji !
ReplyDeleteफानूस बनके जिसकी हिफाज़त खुदा करे
वो शमा क्या बुझे जिसे रौशन ख़ुदा करे
आप भगत सिंह की जेल में लिखी चिठियाँ पढ़िए तो आपको उनके विचार पता चल जायेंगे .
जो कोई नेक काम करेगा चाहे वह मर्द हो या औरत बशर्ते कि वह विश्वासी हो तो ऐसे लोग स्वर्ग में प्रवेश करेंगे और उनपर ज़रा भी ज़ुल्म न होगा।
ReplyDeletenice post. इनसान की सफलता इसी में है कि जो कुछ उसे कल नज़र आने वाला है उसे वह अपनी अक्ल से आज ही पहचान ले और खुद को उस मालिक के प्रति पूरी तरह से समर्पित कर दे और लोगों का हक़ और अपना फ़र्ज़ बेहतरीन तरीक़े से अदा करे ताकि वह स्वर्ग में प्रवेश करने का पात्र सिद्ध हो।अफ़सोस इनसान के हाल पर कि वह दुनिया की मामूली चीज़ों को पाने के लिये तो योजनाबद्ध तरीक़े से मेहनत करता है और सदा के स्वर्गिक सुख को पाने के लिये वह केवल इच्छा, दावे और दिखावे की रस्मों को ही काफ़ी समझता है।
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ReplyDelete@ तालिब रेक्स,
ReplyDeleteमैंने उनकी जेल में लिखे गए पत्र पढ़े है, बताईये कहाँ ऐसा लिखा है कि वे फांसी के दिनों में विश्वासी हो गए थे?
@ Manuj भाई जी हम कब बोले कि वे विश्वासी हो गए थे ?
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