
तत्व दर्शन
ईश्वर हर चीज़ का सृष्टा है। ईश्वर ने सृष्टि की रचना अपनी संकल्प शक्ति से की है,
ईश्वर हर चीज़ का सृष्टा है। ईश्वर ने सृष्टि की रचना अपनी संकल्प शक्ति से की है,
सृष्टि में उसके उत्कृष्ट गुणों का प्रतिबिम्ब है, उसका अंश नहीं और न ही सृष्टि उसका वंश और परिवार ऐसे हैं जैसे कि जीवधारियों का होता है। सारी सृष्टि ईश्वर पर ही आश्रित है, वही सबकी पुकार सुनने वाला और उनकी ज़रूरत पूरी करने वाला है। कोई भी ऋषि-मुनि, पैगम्बर-वली, देवी-देवता या गरू लोगो की प्रार्थनाएं सुनने और उन्हें पूरी करने की शक्ति नहीं रखता बल्कि ये सब तो खुद ईश्वर से ही अपने मंगल की प्रार्थना करते हैं।
प्रार्थना उससे करो जो उन्हें पूरी करने की शक्ति रखता है। उपासना उसकी करो जो वास्तव में मार्ग दिखाकर कल्याण कर सकता है। वह केवल एक ईश्वर है। अरबी भाषा में उसी का निज नाम अल्लाह है। अन्तर केवल भाषा का है न भाव का है और न ही तथ्य का।
प्रार्थना उससे करो जो उन्हें पूरी करने की शक्ति रखता है। उपासना उसकी करो जो वास्तव में मार्ग दिखाकर कल्याण कर सकता है। वह केवल एक ईश्वर है। अरबी भाषा में उसी का निज नाम अल्लाह है। अन्तर केवल भाषा का है न भाव का है और न ही तथ्य का।
तत्व को जानो ताकि सत्य का बोध और दिव्य आनन्द की प्राप्ति हो।
आओ अब मिल के एक कम करें
खुल्क़ ओ महर ओ वफ़ा आम करें
ख़त्म हो जाएँ आपसी झगड़े
मिल के कुछ ऐसा एहतमाम करें
हो के क़ुरबान हक़ की राहों में
आओ यह ज़िंदगी तमाम करें
VANDE ISHWARAM
ReplyDeleteआओ अब मिल के एक कम करें
ReplyDeleteखुल्क़ ओ महर ओ वफ़ा आम करें
ख़त्म हो जाएँ आपसी झगड़े
मिल के कुछ ऐसा एहतमाम करें
हो के क़ुरबान हक़ की राहों में
आओ यह ज़िंदगी तमाम करें
अन्तर केवल भाषा का है न भाव का है और न ही तथ्य का। आपने जज़्बात का ख़याल रखा है ।
ReplyDeletegoood or best may be .
ReplyDeleteमानो अक्ल पर बिल्कुल ही ज़ोर न डालने की क़सम खा रखी है
ReplyDeleteअनवर जमाल ली लब आप हमारे भगवान को भगवान नही कह सक ते तो हम आप के अल्लाह को अल्लाह केसे कहें
ReplyDeleteप्रार्थना उससे करो जो उन्हें पूरी करने की शक्ति रखता है। उपासना उसकी करो जो वास्तव में मार्ग दिखाकर कल्याण कर सकता है।
ReplyDelete.
ReplyDelete.
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आदरणीय डॉ० अनवर जमाल साहब,
यह हुई न बात, आप ज्ञानी हैं और मैं महज एक संशयवादी, आप ने एक 'स्वीपिंग स्टेटमेंट' दे दिया है यहाँ पर कि:-
ईश्वर हर चीज़ का सृष्टा है। ईश्वर ने सृष्टि की रचना अपनी संकल्प शक्ति से की है।
सृष्टि में उसके उत्कृष्ट गुणों का प्रतिबिम्ब है, उसका अंश नहीं और न ही सृष्टि उसका वंश और परिवार ऐसे हैं जैसे कि जीवधारियों का होता है। सारी सृष्टि ईश्वर पर ही आश्रित है, वही सबकी पुकार सुनने वाला और उनकी ज़रूरत पूरी करने वाला है।"
मेरा आज का सवाल है कि यह सब मानने का आधार क्या है ? यदि आप यह तर्क देंगे कि खुद ईश्वर ने यह सब कहा है तो मैं मानूँगा नहीं, क्योंकि कहने के लिये एक ध्वनि उत्पादक यंत्र व इस कथन को सोचने के लिये एक दिमाग की जरूरत है जबकि उस अजन्मे, अविनाशी, आकारहीन (आपके शब्दों में) के पास यह सब कुछ तो है नहीं, यह तो जैवीय गुण हैं और वह कोई जीव तो है नहीं!
"The concept of a Supreme Being who childishly demands to be constantly placated by prayers and sacrifice and dispenses justice like some corrupt petty judge whose decisions may be swayed by a bit of well-timed flattery should be relegated to the trash bin of history, along with the belief in a flat earth and the notion that diseases are caused by demonic possession. Ironically, the case for the involuntary retirement of God may have been best stated by one Saul or Paul of Tarsus, a first-century tentmaker and Pharisee of the tribe of Benjamin, who wrote, 'When I was a child, I spake as a child, I understood as a child, I thought as a child: but when I became a man, I put away childish things' (I Corinthians 13:11). Those words are no less relevant today than they were two thousand years ago."
John J. Dunphy.
ye hui na baat.. achchha likha.
ReplyDeleteशाह जी आपने भी पूरा पूरा अपने दिमाग़ के स्ट्र से सवाल उठाया हे अरे भाई क्या दिमाग़ को सोचने के लिए क्सि अलग दिमाग़की ज़रूरत होती हे ? क्या किसी आँख को देखने के लिए अलग से किसी आँख की ज़रूरत होती हे?
ReplyDeleteKAASH
ReplyDeleteख़त्म हो जाएँ आपसी झगड़े
good thought
ReplyDeleteिहन्दु धरम ही सबसे समावेशक धरम है।
ReplyDeleteअनवर भाई आपके लेख से हमेशा ग़लतफहमियाँ खत्म होती है सच्चा धरम कौनसा है आपके लेख पढ़ कर स्पष्ट हो जाता है
ReplyDeleteप्रवीण जी,
ReplyDeleteयदि ईश्वर मनुष्य में ध्वनि श्रवण यंत्र निर्मित कर सकता है तो अपनी बात पहुंचाने के लिए वह ध्वनि उत्पादक यंत्र बना भी सकता है. वह ऐसे नमूने भी बना सकता है जिससे कुछ हद तक उसे समझा जा सके. आपने कहा की सोचने के लिए दिमाग की ज़रुरत होती है, लेकिन मनुष्य के अलावा धरती पर जितने भी जीव हैं वह दिमाग होते हुए भी सोचते नहीं, इसका मतलब सोच का दिमाग से अलग अस्तित्व संभव है. यदि शरीर गतिशील है तो इसका मतलब उसमें ऊर्जा है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं की शरीर से अलग ऊर्जा का अस्तित्व ही नहीं.
ईश्वर ने अपने को पहचानने के लिए दो रास्ते मनुष्य को दिए,
पहला यह की उसने पैगम्बरों या ईशदूतों के द्वारा 'एक परमेश्वर' का पैगाम दिया.
और दूसरा यह की उसने सृष्टि में अपने वजूद की निशानियाँ छोडीं. आज बहुत से वैज्ञानिक सृष्टि की इंटेलिजेंट डिजाइन की बात स्वीकार करते हैं. और अगर इंटेलिजेंट डिजाइन है तो डिज़ाईनर भी होना ही चाहिए. इस बारे में मेरी एक श्रृंखला यहाँ ( भाग १, भाग २, भाग ३, भाग ४) प्रकाशित हो रही है.
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ReplyDelete.
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zeashan zaidi,
फिर वही अतार्किक बात, 'है' तो निशानी क्यों छोड़ी, 'पैगाम' क्यों भेजा, इतना समर्थ है तो क्यों नहीं एक साथ पूरी मानवता को दर्शन दे दिये... हमेशा के लिये खत्म हो जाती यह बहस!
दूसरी बात यदि वही स्वामी या रचयिता है पूरे 'बृह्मांड' का... और न्याय करता है 'आदमियों' का... तो, बुरा न मानिये यह तो वही बात हो जायेगी कि १५ लाख की हमारी फौज का सेनाध्यक्ष एक अदना से सिपाही के सिर में पायी गई जूँ के पेट में पाये गये किसी बेनाम बैक्टीरिया के अंदर पाये जाने वाले किसी गुमनाम Bacteriophage Virus का कोर्ट मार्शल कर रहा है (आखिर इस बृह्माँड में आदमी औेर आदम की कौम की हैसियत इस से भी छोटी है)...
है यह पचने लायक बात ?
आभार!
गुरूजी आपकी टिप्पड्डी के लिए धन्यवाद !!
ReplyDeleteवैसे तो वन्दे-मातरम ना गाने का फतवा भी दारुल-उलूम ने जारी किया, परन्तु स्वामी रामदेव जी ने तो अगले ही दिन कई मुसलमानों से वन्दे-मातरम गवा दिया !!
बातों से हकीकत कोसों दूर है !! आप ज्ञानी हैं आशा करता हूँ स्पष्टिकरण की जरूरत नहीं होगी ><
गौमाता को मारना मुसलमानों के लिए आवश्यक है @
ReplyDeletePosted by मेरा देश मेरा धर्म | Posted on ४:४० AM
Category: सर्वदेवमयी गऊमाता की पुकार (GAUMATA KI PUKAR)
http://meradeshmeradharm.blogspot.com/2010/04/blog-post_10.html?
http://meradeshmeradharm.blogspot.com
!!! बस एक ही धुन जय-जय भारत !!!!!!!
behtareen
ReplyDeleteजिस परम्परा में ऋषि-मुनि शब्द और उनकी विशेषताए बखानी गयी है. उस परम्परा में तो कहीं भी ऋषि-मुनि या सतगुरु को कही भी प्रार्थना सुनकर मनोकामना पूर्ति करने वाला नहीं बताया गया है.अलबत्ता सतगुरु की आवश्यकता उस परमेश्वर की प्रार्थना करने की सीख,तरीका समझने की विवेक बुद्धि विकसित करने तक ही है. इसके ठीक उलट कई पंथों में जरूर एक व्यक्ति को उस परमात्मा की कृपा प्राप्ति के लिए आवश्यक दलाल के रूप में चित्रित किया गया है.यह पंथ मनुष्य और सृष्टि कर्ता के बीच एक पारदर्शी शरीर प्रस्तुत करतें है, जिसे यह उद्धारक कहते है".
ReplyDeleteईसाइयत में जीसस को और इस्लाम में हजरत मोहम्मद साहब को एक पारदर्शी शरीर की तरह खड़ा किया गया है. इन दोनों में मुक्ति की प्राप्ति के लिए क्राइस्ट और हजरत साहब अनिवार्य है.
http://27amit.blogspot.com/
pigmber keval markaat karne ke liye hi aaya kya dharti per
ReplyDeleteBina Haridwar gaye itna gyan. chalo ab kuch to sudhar aa ya.
ReplyDeleteHaridwar kab chalna hai.
गुरूजी (http://vedquran.blogspot.com/) पिछली पोस्ट में कहकर निकल गए मुरीद द्वारा लिखे गए विचारों पर गौर करें "दया करके"
ReplyDeleteअब इतिहास की सुनिये -
रावण स्वर्ग पर हमला करके इन्द्र और कुबेर को पकड़ लाया । रावण किसका पुजारी था ?
वह किस जाति का था ?
please visit once = http://meradeshmeradharm.blogspot.com/2010/04/blog-post_12.html
ReplyDeleteआपके पोस्ट के माध्यम से ईश्वर को समझने की कोशिश कर रहे हैं।
ReplyDeleteप्रार्थना उससे करो जो उन्हें पूरी करने की शक्ति रखता है। उपासना उसकी करो जो वास्तव में मार्ग दिखाकर कल्याण कर सकता है।
ReplyDeleteKya zabardast baat kahi hai Anwar Sahab.
ReplyDeleteMaaf kijiyega aajkal thoda busy hun. Kyon busy hoon jaanne ke liye meri post zaroor padhe.
आखिर संवेदनशीलता क्यों समाप्त हो रही है?
http://premras.blogspot.com
Sabhi sathiyon se Nivedan hai ki avashy ismein sahyog karen.
ReplyDeleteआखिर संवेदनशीलता क्यों समाप्त हो रही है?
http://premras.blogspot.com
प्रवीण शाह जी हमे तो एसा लगता हे की यह अनवर आलूल जलूल हमे मुसलमान कर के ही छोड़ेगा
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