Pages

Tuesday, March 16, 2010

वेद आर्य नारी को बेवफ़ा क्यों बताते हैं ? The heart of an Aryan lady .


समन्दर ए हक़ीक़त के ग़व्वास , जनाब ए मोहतरम द्विवेदी जी !
आपने मेरे लेख ‘‘वेदों में कहाँ आया है कि इन्द्र ने कृष्ण की गर्भवती स्त्रियों की हत्या की ?‘‘ के अनुवाद पर आपत्ति उठाई है ।

इंद्र ने ऋजिश्वा राजा के साथ मिलकर कृष्ण नाम के असुर की गर्भवती स्त्रियों को मारा था। { ऋगवेद 1/101/1 }

यो वर्चिनःशतमिंद्रः सहस्रमपावपद्

अर्थात इंद्र ने वर्ची के सौ हज़ार पुत्रों को भूमि पर सुला दिया अर्थात मार दिया । { ऋगवेद 2/14/6 }

मैंने पहले भी अर्ज़ किया था कि मैं न तो अनुवाद करता हूं और न उसके साथ छेड़छाड़ ही करता हूं । प्रस्तुत दोनों हवाले लफ़्ज़ ब लफ़्ज़ श्री सुरेन्द्र कुमार ‘शर्मा अज्ञात जी के ग्रन्थ से साभार उद्धृत हैं । यदि आप किसी अन्य सनातनी विद्वान के अर्थ को सही मानते हैं तो मैं भी आपके आदरवश उसे ही स्वीकार लंूगा और अपनी पोस्ट को एडिट करके वही अनुवाद लगा दूंगा ।पोस्ट की हैडिंग भी उसी के मुताबिक़ चेंज कर दूंगा ।

वेदों में मानवजाति का प्राचीन इतिहास है । तब की परम्पराओं और मान्यताओं को जानना आज डायनासोर्स के जीवाश्म ढंूढने से भी ज़्यादा ज़रूरी है । अतीत का बोध होना ज्ञानी समाज का प्रमुख लक्षण होता है।

आपने दीन दुखियों की सेवा का परामर्श दिया । मैं आपसे सहमत हूं । अपने संपर्क में आने वाले ज़रूरतमन्दों की मैं हदभर मदद करता हूं । कुदरती क़हर के शिकार लोगों के लिए भी हमने अपने दोस्तों की मदद से कई ट्रक सहायता सामग्री भेजी है । जल्दी ही उनके फ़ोटो भी नेट पर आपको उपलब्ध करा दूंगा । भविष्य में भी दीन दुखियों की सेवा करता रहूंगा और अब तो आप जैसे समान विचार वाले बुज़ुर्ग भी मिल गये हैं तो आप से भी सहयोग लिया जाता रहेगा बल्कि आप अपनी सुविधानुसार अंशदान कर सकें , आपकी सुविधा की ख़ातिर मैं अपने ब्लॉग पर ही नेट बैंकिंग की सुविधा भी उपलब्ध करा दूंगा ।

आपकी इच्छा को तो मैं आदेश का दर्जा देता हूं । आपकी इच्छा का सम्मान करना हमारा फ़र्ज़ है । दीन दुखियों की सेवा के लिए परलोक के इनकार की नहीं बल्कि उसके स्वीकार की ज़रूरत है । हर आदमी अपनी मेहनत का अच्छा फल चाहता है ।

प्रायः दुनिया में नेक आदमी को नेकी का अच्छा बदला मिलने के बजाए तिरस्कार और कष्ट ही मिलते हैं ।

बताइये सीता माता ने तो अपने दर पर एक भिखारी देखा और उसकी भूख मिटाने के लिए फल दिए लेकिन उस भिखारी ने उन्हें क्या दिया ?

उन्हें एक दीन दुखी की सेवा करके क्या मिला ?

दुनिया में उन्हें कुछ मिला नहीं और परलोक का स्वर्ग नर्क कुछ होता नहीं तो फिर भला कोई किसी को अपना माल और वक्त क्यों देगा ?

सीमा पर एक सिपाही अपनी जान भला क्यों देगा ?

परलोक का इनकार करके आप तो उस प्रेरणा का ही नाश कर रहे हैं जिसके भरोसे आदमी नेकी करता है ।यह ठीक है कि वर्णवादियों ने लोगों को स्वर्ग नर्क के नाम पर ख़ूब ठगा है । यह उनका पाप था । सिर्फ़ इसी वजह से परलोक असत्य नहीं माना जा सकता । लोग तो नक़ली करेंसी देकर भी ठग रहे हैं लेकिन इससे असली करेंसी का यक़ीन तो ख़त्म नहीं हो जाता ।

आप कहते हैं कि परलोक को किसने देखा है ?

आप वकील हैं । आप जानते हैं कि चश्मदीद गवाहों के अलावा अदालत परिस्तिथिजन्य साक्ष्यों को भी अहमियत देती है ।आंख से नज़र न आने वाली चीज़ों को आदमी अपनी अक्ल से देख सकता है । इनसान ने जब अपनी आंख से परमाणु को देखा भी नहीं था तब भी उसने परमाणु का पता लगा लिया था ।

इनसान को दर्द होता है जिसे डाक्टर नहीं देख सकता लेकिन कोई डाक्टर मरीज़ को झूठा नहीं मानता बल्कि हरेक पैथी में पेन किलर दवाएं भी ठीक उसी तरह बनाई गई हैं जैसे कि नज़र आने वाले फोड़े फुन्सियों की । आंख से नज़र न आना किसी हक़ीक़त के इनकार के लिए पर्याप्त नहीं है ।

सूरज का नियत समय पर निकलना खुद इस बात का सुबूत है कि कोई है जो इस निज़ाम को कन्ट्रोल कर रहा है ।

देखी तो आपने अपनी आत्मा को भी नहीं है । क्या आप मान लेंगे कि आप में आत्मा ही नहीं है ?

और अब मैं कहता हूं कि आप ईश्वर और परलोक को देख भी सकते हैं लेकिन हरेक चीज़ के लिए प्रयास और अभ्यास ज़रूरी है । आप भी जो चाहे देख सकते हैं।

मुसलिम सूफ़ी इसी राह के तो एक्सपर्ट हैं ।वैदिक साहित्य भी योग और अध्यात्म का का़यल है । अपने अनुभव के आधार पर मैं रूहानियत और अध्यात्म की सत्यता की गवाही देता हूं । अति से बचते हुए इसका इस्तेमाल मुफ़ीद है ।

क्या आप मुझसे सहमत हैं ?

अगर नहीं हैं तो क्यों ?

कुछ शिक्षित महिलाओं ने भी आपत्ति दुख और नाराज़गी प्रकट की है । मैं समझ नहीं पाया कि उन की आपत्ति धर्म ग्रन्थों की बात बताने को लेकर है

या इस बात पर है कि एक मुसलमान ये बातें क्यों बता रहा है

या उनका ये विश्वास है कि उनके धर्मग्रन्थों में तो कोई कमी नहीं है लेकिन मैं जबरन उनमें कमी निकाल रहा हूं ।

लीजिये उनकी पेश ए खिदमत है उनकी प्रशंसा (?) खुद वेदों की ज़ुबानी ।

न वै स्त्रैणानि सख्यानि संति सालावृकाणां हृदयान्येता

स्त्रियों और वृकों का हृदय एकसा होता है , उनकी मित्रता कभी अटूट नहीं होती ।ऋग्वेद 10:95:15 अनुवाद पं. श्री राम ‘शर्मा आचार्य

1- वृक का अर्थ क्या होता है ?

2- पवित्र वेद पुरूषों को आर्य नारी से क्यों सावधान कर रहा है ?

3- आर्य नारी का दिल वृक जैसा ख़तरनाक क्यों बताया गया है ?

4-क्या सचमुच आर्य नारी वफ़ादार नहीं होती ?

उपरोक्त मन्त्र पढ़कर ऐसे ही कुछ स्वाभाविक प्रश्न खड़े हो जाते हैं । जिनका जवाब मैं दे सकता हूं परन्तु हो सकता है कि मेरे ब्लॉग के पाठकों में से कोई इनका जवाब दे सकता हो । मैं चाहूंगा कि इनका जवाब वही दें । वर्ना यहां माननीय द्विवेदी जी , मधुर वाणी के स्वामी ज़िन्दगी की पाठशाला के शिक्षक महोदय और अवधिया जी जैसे विद्वान भी मौजूद हैं । वे तो आपको बता ही देंगे ।

इस तरह कोई ये भी नहीं कहेगा कि मैं वेद मन्त्र का अर्थ क्यों बता रहा हूं ?

देखते हैं कि कौन देता है इन सवालों का जवाब ?

55 comments:

  1. समन्दर ए हक़ीक़त के ग़व्वास , जनाब ए मोहतरम द्विवेदी जी !
    देखी तो आपने अपनी आत्मा को भी नहीं है । क्या आप मान लेंगे कि आप में आत्मा ही नहीं है ?

    ReplyDelete
  2. dr sahab dwivedi jee ko lagta hai purwagrh kii aadat ho gayee hai

    ReplyDelete
  3. परलोक का इनकार करके आप तो उस प्रेरणा का ही नाश कर रहे हैं जिसके भरोसे आदमी नेकी करता है ।यह ठीक है कि वर्णवादियों ने लोगों को स्वर्ग नर्क के नाम पर ख़ूब ठगा है । यह उनका पाप था । सिर्फ़ इसी वजह से परलोक असत्य नहीं माना जा सकता । लोग तो नक़ली करेंसी देकर भी ठग रहे हैं लेकिन इससे असली करेंसी का यक़ीन तो ख़त्म नहीं हो जाता ।

    ReplyDelete
  4. Rajendra Jigyasu ji aur Rajveer ji is anwar jahil ki bolti band karva chuke hain press media par, to ab yah yahan aakar net par apna astitva talashta firta hai.ullu kahin ka.akal se iski poori dushmani hai.

    ReplyDelete
  5. @ Ejaz Bhai Please
    Main apne kisi buzurg ke liye koi tippani pasand nahin karte.
    Aap Shaksiyat ke bajay article par apna comment den.
    Diwedi JIS maqam par hain wahan bahut kum log hi pahunch pate hain.
    Internet ne bade logo ke saath hamare liye sampark asan bana diya hai to hamen apne chhotepan ko bhulana nahin chahiyye.
    Buzurgon ka Aqida aur amal kuchh bhi ho unka ahatraam hum par wajib hai.
    bahut si hadison men ye takid aayee hai.
    hum baat bhale hi dusron se karen lekin apne sudhar nikhar se kabhi ghafil nahin hona chahiyye.
    Sir Diwediji
    Iam very sorry for thin unfair comment.

    ReplyDelete
  6. आप उस धर्म के लिये क्या कहेंगे जो बुर्के पर कार्टून बनने में खतरे में आ जाता है... जिसके धर्मगुरु महिलाओं को बच्चे पैदा करने की मशीन समझते हैं... जिसके अनुयायी आतंकवाद को बढावा देते हैं.. जो दूसरों के पूजा स्थलों को तोड़ते हैं... जो बुतपरस्ती के खिलाफ हैं, लेकिन दफनाये हुये शरीर को पूजते हैं.. जो परलोक में विश्वास नहीं करते लेकिन जन्नत में हूर मिलने का यकीन करते हैं.. मेरा उद्देश्य कभी किसी की आस्था पर चोट करना नहीं रहा लेकिन आपकी इस पोस्ट को पढ़ने के बाद मुझे लगा कि आप इन प्रश्नों का सवाल देने में सक्षम हैं इसलिये सादर.

    ReplyDelete
  7. आप उस धर्म के लिये क्या कहेंगे जो बुर्के पर कार्टून बनने में खतरे में आ जाता है... जिसके धर्मगुरु महिलाओं को बच्चे पैदा करने की मशीन समझते हैं... जिसके अनुयायी आतंकवाद को बढावा देते हैं.. जो दूसरों के पूजा स्थलों को तोड़ते हैं... जो बुतपरस्ती के खिलाफ हैं, लेकिन दफनाये हुये शरीर को पूजते हैं.. जो परलोक में विश्वास नहीं करते लेकिन जन्नत में हूर मिलने का यकीन करते हैं.. मेरा उद्देश्य कभी किसी की आस्था पर चोट करना नहीं रहा लेकिन आपकी इस पोस्ट को पढ़ने के बाद मुझे लगा कि आप इन प्रश्नों का सवाल देने में सक्षम हैं इसलिये सादर.

    ReplyDelete
  8. आप उस धर्म के लिये क्या कहेंगे जो बुर्के पर कार्टून बनने में खतरे में आ जाता है... जिसके धर्मगुरु महिलाओं को बच्चे पैदा करने की मशीन समझते हैं... जिसके अनुयायी आतंकवाद को बढावा देते हैं.. जो दूसरों के पूजा स्थलों को तोड़ते हैं... जो बुतपरस्ती के खिलाफ हैं, लेकिन दफनाये हुये शरीर को पूजते हैं.. जो परलोक में विश्वास नहीं करते लेकिन जन्नत में हूर मिलने का यकीन करते हैं.. मेरा उद्देश्य कभी किसी की आस्था पर चोट करना नहीं रहा लेकिन आपकी इस पोस्ट को पढ़ने के बाद मुझे लगा कि आप इन प्रश्नों का सवाल देने में सक्षम हैं इसलिये सादर.

    ReplyDelete
  9. @Mohatram buzurg Indian citizen ji
    ise main to molvi sahiban ki aur muslim awam ki nadani aur nasamjhi hi kahunga.
    kya aap mujhse sahmat hain?
    bataiyye.

    ReplyDelete
  10. @ Mr. Anyone aapke liye bhi upar wali tippani hi kaafi hai.
    Hindu Naw warsh aapko shubh ho.

    ReplyDelete
  11. DR. Sahab aaj kafi din bad aapko padha, achcha laga.

    ReplyDelete
  12. नंदू गुजरातीMarch 16, 2010 at 10:39 PM

    आज विज़िटर २८०---अभी गयरा बजे हें -- ऑनलाइन 12-- बात में दम है

    ReplyDelete
  13. barsat men jab aayega sawan ka maheena sawan ko bana loongi angoothee ka nageena

    ReplyDelete
  14. @Nandu ji
    YE baat men dum bhi apke pyar se hi aata hai.
    Pls keep visiting.
    Thanks.

    ReplyDelete
  15. @Barsati lal ji
    kaisi behki behki baten kar rahe hain aap?
    Post se mutalliq kuchh kahiyye.
    Yahan log waise hin jasusi kar rahe hain .

    ReplyDelete
  16. गुरू जी कैसे महान बाबा हैं इधर,जब इनको आपके सवालों के जवाब देने थे ऐसे समय में यह दो और दो पांच बता रहे हैं, खेर आज आपने 300 से अधिक विजिटर पाये मुबारक हो, एक दिन में तीन पोस्‍ट की कमाल कर दिया,

    यह मुकद्दर की बात है वह किसे पढने को मिलेंगी

    ReplyDelete
  17. मैं मानती हूँ की हिन्दू धर्मग्रंथों में बहुत सी कमियां हैं.
    इनमें कई घोर अश्लील प्रसंग आते हैं. कहीं कहीं तो इन्सेस्ट का भी वर्णन है.
    मैं यह भी मानती हूँ की प्राचीन काल, मध्य काल, और आज भी हिन्दू धर्म ग्रंथों में महिलाओं की स्तिथि बहुत अच्छी नहीं है.
    लेकिन हिन्दुओं ने अपने ग्रंथों को 'अंतिम सन्देश' जान के नहीं पकड़ा हुआ है और वे उससे जो अच्छी बात लेना चाहते हैं वह लेते हैं और जो कुछ उनमें उचित या प्रासंगिक नहीं है उसे नकार भी चुके हैं.
    क्या यही बात आप इस्लाम के बारे में कह सकते हैं?
    अपनी नीचता छोडिये और ऐसा काम करिए जिससे व्यापक जनहित हो.
    आज इस्लाम की छीछालेदर नाहक ही नहीं हो रही है.
    'फलां-फलां ने इस्लाम कबूल कर लिया' यह लिख देने से कुछ साबित नहीं हो जाता.
    इतने ही बड़े आलिम हो तो कुछ इस्लाम में महिलाओं की बुरी हालत पर लिखकर बताओ.
    आप सलीम खान के पिता हो क्या?

    ReplyDelete
  18. बाइबिल में सैंकड़ों कमियां और गलतियाँ हैं.
    हिन्दू ग्रंथों में हजारों कमियां और गलतियाँ हैं.
    लेकिन कुरआन में एक भी कमी या गलती नहीं है.

    होगी भी कैसे, कमी या गलती बताने पर जान से हाथ जो धोना पड़ेगा.

    ReplyDelete
  19. @Jyotsna ji
    pls see
    http://www.islamdharma.org/

    ReplyDelete
  20. @ mohatram kairanvi ji
    Aapki nazar hai -

    Krishan sam sarathi mere saath hai.
    mere sar pe malik ka haath hai.
    phir mujhe dhara sakta hai kaun?
    is maqam se mujhe hata sakta hai kaun?

    ReplyDelete
  21. @Mr. anyone
    kai blog holy quran ke saath khilwad karte hain. aap bhi dekhte hain.
    kya unke sar ka kuchh bigada kisi ne .
    afwah na phelayen.
    pls baat ka jawab den .

    ReplyDelete
  22. dr. sahaab 'my name is khaan' waale tante apnaa rahe ho kya paathako ki ginti badhaane ke liye?

    ek dum sahi hai...
    lge rahiyega..

    ReplyDelete
  23. चलनी दूसे सूप को जिसमें बहत्तर छेद :)

    ReplyDelete
  24. भारतवर्ष में सदा से स्त्रियों का समुचित मान रहा है। उन्हें पुरुषों की अपेक्षा अधिक पवित्र माना जाता रहा है। स्त्रियों को बहुधा ‘देवी’ संबोधन से संबोधित किया जाता है। नाम के पीछे उनकी जन्म-जात उपाधि ‘देवी’ प्रायः जुडी रहती है। शांति देवी, गंगादेवी, दया देवी आदि ‘देवी’ शब्द पर कन्याओं के नाम रखे जाते हैं। जैसे पुरुष बी.ए. शास्त्री, साहित्यरत्न आदि उपाधियाँ उत्तीर्ण करने पर अपने नाम के पीछे उस पदवी को लिखते हैं वैसे ही कन्याएँ अपने जन्मजात ईश्वर की प्रदत्त दैवी गुणों, दैवी विचारों, दिव्य विशेषताओं के कारण अलंकृत होती हैं।

    देवताओं और महापुरुषों के साथ उनकी अर्धांगिनियों के नाम भी जुड़े हैं सीताराम, राधेश्याम, गौरीशंकर, लक्ष्मीनारायण, उमामहेश, मायाब्रह्म, सावित्री सत्यवान आदि नामों में नारी का पहला और नर का दूसरा स्थान है। पतिव्रता, दया, करुणा, सेवा, सहानुभूति, स्नेह, वात्सल्य, उदारता, भक्ति-भावना, आदि गुणों में नर की अपेक्षा नारी को सभी विचारवानों ने बढ़ा-चढ़ा माना है।

    इसलिए धार्मिक, आध्यात्मिक और ईश्वर-प्राप्ति संबंधी कार्यों में नारी का सर्वत्र स्वागत किया गया है और उसे उनकी महानता के अनुकूल प्रतिष्ठा दी गई है। वेदों पर दृष्टिपात करने से स्पष्ट हो जाता है कि वेदों के मंत्रदृष्टा जिस प्रकार अनेक ऋषि हैं वैसे ही अनेक ऋषिकाएँ भी हैं। ईश्वरीय-ज्ञान वेद, महान आत्मा वाले व्यक्तियों पर प्रकट हुआ है और उनने उन मंत्रों को प्रकट किया। इस प्रकार जिन पर वेद प्रकट हुए उन मंत्रों को दृष्टाओं को ‘ऋषि’ कहते हैं। ऋषि केवल पुरुष ही नहीं हुए हैं, ऋषि अनेक नारियाँ भी हुई हैं। ईश्वर ने नारियों के अंतःकरण में उसी प्रकार वेद-ज्ञान प्रकाशित किया जैसे कि पुरुष के अंतःकरण में, क्योंकि प्रभु के लिए दोनों ही संतान समान हैं। महान् दयालु, न्यायकारी और निष्पक्ष प्रभु भला अपनी ही संतान में नर-नारी का पक्षपात करके अनुचित भेद-भाव कैसे कर सकते हैं ?

    ReplyDelete
  25. ऋग्वेद 10।85 के संपूर्ण मंत्रों की ऋषिकाएँ ‘‘सूर्या सावित्री’’ है। ऋषि का अर्थ निरुत्तर में इस प्रकार किया है ‘‘ऋषिदर्शनात् स्तोमान् ददर्शेति ऋषियो मन्त्र दृष्टारः।’’ अर्थात् मंत्रों का दृष्टा उनके रहस्यों को समझकर प्रचार करने वाला ऋषि होता है।
    ऋग्वेद की ऋषिकाओं की सूची ब्रह्म देवता के 24 अध्याय में इस प्रकार है—

    घोषा गोधा विश्ववारा अपालोपनिषन्नित्।
    ब्रह्म जाया जहुर्नाम अगस्त्यस्य स्वसादिति।।84।।
    इन्द्राणी चेन्द्र माता चा सरमा रोमशोर्वशी।
    लोपामुद्रा च नद्यश्च यमी नारी च शाश्वती।।85।।
    श्रीलछमीः सार्पराज्ञी वाकश्रद्धा मेधाचदक्षिण।
    रात्रि सूर्या च सावित्री ब्रह्मवादिन्य ईरितः।।86।।

    अर्थात्—घोषा, गोधा, विश्ववारा, अपाला, उपनिषद्, जुहू, आदिति, इन्द्राणी, सरमा, रोमशा, उर्वशी, लोपामुद्रा, यमी, शाश्वती, सूर्या, सावित्री आदि ब्रह्मवादिनी हैं।
    ऋग्वेद के 10-134, 10-39, 19-40, 8-91, 10-5, 10-107, 10-109, 10-154, 10-159, 10-189, 5-28, 9-91 आदि सूक्तों की मंत्र दृष्टा यह ऋषिकाएँ हैं।
    ऐसे अनेक प्रमाण मिलते हैं, जिनसे स्पष्ट होता है कि स्त्रियाँ भी पुरुषों की तरह यज्ञ करती और कराती थीं। वे यज्ञ-विद्या, ब्रह्म-विद्या में पारंगत थीं। कई नारियाँ तो इस संबंध में अपने पिता तथा पति का मार्ग दर्शन करती थीं।
    तैत्तिरीय ब्राह्मण में सोम द्वारा ‘सीता सावित्री’ ऋषिका को तीन वेद देने का वर्ण विस्तारपूर्वक आता है।

    ......तं त्रयो वेदा अन्य सृज्यन्त अथह सीतां सावित्री सोम राजान चक्रमे....तस्या उहत्रीन वेदान प्रददौ।

    -तैत्तिराय. 2।3।10

    इस मंत्र में बताया गया है कि किस प्रकार सोम ने सीता सावित्री को तीन वेद दिए।
    मनु की पुत्री ‘इडा’ का वर्णन करते हुए तैत्तिरीय 1-1-4 में उसे ‘यज्ञान्काशिनी’ बताया है यज्ञान्काशीनी का अर्थ सायणाचार्य ने ‘यज्ञ तत्त्व प्रकाशन समर्था’ किया है। इडा ने अपने पिता को यज्ञा संबंधी सलाह देते हुए कहा—

    साऽब्रवीदिड़ा मनुम्। तथावाऽएं तवाग्नि माधास्यामि यथा प्रजथा पशुभिर्मिथुनैजनिष्यसे। प्रत्यस्मिंलोकेस्थास्यासि। असि स्वर्ग लोके जेष्यसोति।

    -तैत्तिरीय ब्रा।1।4

    ReplyDelete
  26. इडा ने मनु से कहा-तुम्हारी अग्नि का ऐसा अवधान करूँगी जिससे तुम्हें भोग, प्रतिष्ठा और स्वर्ग प्राप्त हो। प्राचीन समय में स्त्रियाँ गृहस्थाश्रम चलाने वाली भी थीं और ब्रह्मपरायण भी। वे दोनों ही अपने–अपने कार्य-क्षेत्र में कार्य करती थीं। जो गृहस्थ संचालन करती थीं उन्हें ‘सद्योबधू’ कहते थे और जो वेदाध्ययन, ब्रह्म-उपासना आदि के पारमार्थिक कार्यों में प्रवृत्त रहती थीं उन्हें ‘ब्रह्मवादिनी’ कहते थे। ब्रह्मवादिनी और सद्योवधु के कार्यक्रम तो अलग-अलग थे, पर उनके मौलिक धर्माधिकारियों में कोई अंतर न था, देखिए—

    द्विविधा स्त्रियो ब्रह्मवादिन्यः सद्योवध्वश्च। तत्र ब्रह्मवादिनी नामुण्यानाम अग्नोन्धनं स्वगृहे भिक्षाचर्या च। सद्योवधूनां तूपस्थते विवाहकाले विदुपनयन कृत्वा विवाह कार्यः।

    -हरीत धर्मसूत्र 21।20।24

    ब्रह्मवादिनी और सद्योवधू ये दो स्त्रियाँ होती हैं। इनमें से ब्रह्मवादिनी यज्ञोपवीत, अग्निहोत्र, वेदाध्ययन तथा स्वगृह में भिक्षा करती हैं। सद्योवधुओं भी यज्ञोपवीत आवश्यक है। वह विवाह काल उपस्थित होने पर करा देते हैं।
    शतपथ ब्राह्मण में याज्ञवल्क्य ऋषि की धर्मपत्नि मैत्रेयी को ब्रह्मवादिनी कहा है।

    तयोर्हू मैत्रेयी ब्रह्वादिनी बभूवः।

    अर्थात्—मैत्रेयी ब्रह्मवादिनी थी। ब्रह्मवादिनी का अर्थ बृहदारण्यक उपनिषद् का भाष्य करते हुए श्री शंकराचार्य जी ने ‘ब्रह्मवादन शीला’ किया है। ब्रह्म का अर्थ है—वेद ब्रह्मवादन शील अर्थात् वेद का प्रवचन करने वाली।

    यदि ब्रह्म का अर्थ ईश्वर लिया जाए तो भी ब्रह्म प्राप्ति, बिना वेद ज्ञान के नहीं हो सकती। इसलिए ब्रह्म को वही जान सकता है जो वेद पढ़ता है देखिए—

    ना वेद विन्मनुते तं वृहन्तम्। तैत्तिरीय.
    एतं वेदानुवचनेन ब्राह्मणा विवदिषन्ति यज्ञेन दानेन तपसाऽनाशकेन।

    -वृहदारण्यक 4।4।2

    ReplyDelete
  27. जिस प्रकार पुरुष ब्रह्मचारी रहकर तप, स्वाध्याय, योग द्वारा ब्रह्म को प्राप्त करते थे, वैसे ही कितनी ही स्त्रियाँ ब्रह्मचारिणी रहकर आत्म-निर्माण एवं परमार्थ का संपादन करती थीं।
    पूर्वकाल में अनेक सुप्रसिद्ध ब्रह्मचारिणी हुई हैं, जिनकी प्रतिभा और विद्वता की चारों ओर कीर्ति फैली हुई थी। महाभारत में ऐसी अनेक ब्रह्यचारिणियों का वर्णन आया है।

    भरद्वाजस्य दुहिता रूपेण प्रतिमा भुवि।
    श्रुतावती नाम विभोकुमारी ब्रह्मचारिणी।।

    -महाभारत शल्य पर्व 47।2

    भारद्वाज की श्रुतावती नामक कन्या थी, जो ब्रह्मचारिणी थी। कुमारी के साथ-साथ ब्रह्मचारिणी शब्द लगाने का तात्पर्य यह है कि वह अविवाहित और वेदाध्ययन करने वाली थी।

    अत्रैव ब्राह्माणी सिद्धा कौमार ब्रह्मचारिणी।
    योग युक्तादिव भाता, तपः सिद्धा तपस्विनी।।

    महाभारत शल्य पर्व 54।6

    योग सिद्धि को प्राप्त कुमार आस्था से ही वेदाध्ययन करने वाली तपस्विनी, सिद्धा नाम की ब्रह्मणी मुक्ति को प्राप्त हुई।

    वभूव श्रीमती राजन् शांडिल्यस्य महात्मनः।
    सुता धृतव्रता साध्वी, नियता ब्रह्मचारिणी।।
    साधु तप्त्वा तपो घोरे दुश्चरं स्त्री जनेन ह।
    गता स्वर्ग महाभागा देव ब्राह्मण पूजिता।।

    -महाभारत शल्य पर्व 54।9

    ReplyDelete
  28. Yeh Saari Jankari Iss Add. Pe Dekh sakte Hai-
    http://pustak.org/bs/home.php?bookid=4127

    ReplyDelete
  29. भारतीय संस्कृति व दर्शन में नारी क़ा सदैव गौरवपूर्ण व पुरुष से श्रेष्ठतर स्थान रहा है। ‘अर्धनारीश्वर ‘ की कल्पना अन्यंत्र कहाँ है। भारतीय दर्शन में सृष्टि क़ा मूल कारण , अखंड मातृसत्ता – अदिति भी नारी है। वेद माता गायत्री है। प्राचीन काल में स्त्री ऋषिका भी थी , पुरोहित भी। व गृह स्वामिनी , अर्धांगिनी ,श्री ,समृद्धि आदि रूपों से सुशोभित थी। कोइ भी पूजा, यग्य, अनुष्ठान उसके बिना पूरा नहीं होता था। ऋग्वेद की ऋषिका -शची पोलोमी कहती है–
    “” अहं केतुरहं मूर्धाहमुग्रा विवाचानी । ममेदनु क्रतुपति: सेहनाया उपाचरेत ॥ “”—ऋग्वेद -१०/१५९/२
    अर्थात -मैं ध्वजारूप (गृह स्वामिनी ),तीब्र बुद्धि वाली एवं प्रत्येक विषय पर परामर्श देने में समर्थ हूँ । मेरे कार्यों क़ा मेरे पतिदेव सदा समर्थन करते हैं । हाँ , मध्ययुगीन अन्धकार के काल में बर्बर व असभ्य विदेशी आक्रान्ताओं की लम्बी पराधीनता से उत्पन्न विषम सामाजिक स्थिति के घुटन भरे माहौल के कारण भारतीय नारी की चेतना भी अज्ञानता के अन्धकार में खोगई थी।
    वैदिक ऋषि घोषणा करता है कि-”….स्त्री हि ब्रह्मा विभूविथ :” उचित आचरण, ज्ञान से नारी तुम निश्चय ही ब्रह्मा की पदवी पाने योग्य हो सकती हो। ( ऋ.८/३३/१६ )।

    ReplyDelete
  30. कुरान में नारी महिमा

    मुहम्मद का ज़ाहिर और बातिन अर्थात कथनी और करनी मुलाहिज़ा हो - - -

    मुहम्मद कालीन एक सहाबी अकबा अपने भाई साद को वसीअत करता है कि ज़िमा की लौंडी का बच्चा मेरे नुत्फे का है, जब वह पैदा हो तो तुम उसको लेलेना. फतह मक्का के बाद साद ने इस पर अपने भाई के वसीअत के मुताबिक दावा पेश किया मगर ज़िमा ने बच्चे को ये कहकर देने से इंकार कर दिया कि ये मेरे बाप की मातहती में पैदा हुआ है इस लिए ये मेरा भाई है. अल ग़रज़ मुआमला मुहम्मद तक पहुँचा. मुहम्मद ने फैसला दिया ''ज़िमा बच्चा तुम्हारा है क्यूंकि बच्चा उसी का होता है जिसके तहत अक़्द या मुल्क यमेन में पैदा हो, ज़ानी (दुराचारी) के लिए तो पत्थर हैं, गोकि बच्चे में अकबा की मुशाबेहत (हम शक्ल) ज़यादा थी. मुहम्मद ने अपनी दूसरी बीवी सौदा को इस बच्चे से परदा करने का हुक्म जारी कर दिया (जोकि रिश्ते में शायद उनका कुछ लगता रहा हो) जिस पर वह मरते दम तक कायम रहीं.
    (हदीस सही बुखारी नंबर ९४० मार्फ़त आयशा)
    इस बात से बज़ाहिर साबित होता है कि मुहम्मद कितने पाक बाज़ और चरित्रवान रहे होंगे। हालाँ कि साथ साथ इस हदीस में उनकी जेहालत साफ़ साफ़ अयाँ है कि एक मासूम से अपनी उम्र दराज़ बीवी की परदे दारी, ज़ाहिर है बच्चे को हराम मानते होंगे या उनकी अकली मेयार जो भी साबित करता हो. ऐसी ही हदीसों का गुणगान आलिमाने दीन आम मुसलामानों के सामने मुहम्मद की अजमतों की मीनार बना कर बयान किया करते हैं. इसे मुहम्मद अपने गढे हुए अल्लाह का कानून बतलाते हैं देखिए- - -
    अल्लाह का कानून फरमाते हुए उसके खुद साख्ता रसूल कहते हैं ''जब कोई बक्र (कुँवारा) ज़िना करे बाक्रह (कुँवारी) के साथ तो उन दोनों को सौ सौ कोडे लगाओ और मुल्क बदर कर दो, इसके बाद अगर सय्यब (शादी शुदा) ज़िना करे सय्यबह (शादी शुदा) के साथ तो उन दोनों को सौ सौ कोडे लगा कर उन पर पत्थराव करके मार दो.''
    ''सही मुस्लिम किताबुल हुदूद''

    पूरा पढें - http://harf-e-galat.blogspot.com/2009/11/blog-post_07.html

    ReplyDelete
  31. अब देखी यह ज़हरीली आयत
    -----------------------
    " निकाह मत करो काफिर औरतों के साथ जब तक कि वह मुसलमान न हो जाएँ और मुस्लमान चाहे लौंडी क्यूं न हो वह हजार दर्जा बेहतर है काफिर औरत से, गो वह तुम को अच्छी मालूम हो और औरतों को काफिर मर्दों के निकाह में मत दो, जब तक की वह मुसलमान न हो जाए, इस से बेहतर मुस्लमान गुलाम है"

    (सूरह अल्बक्र २ दूसरा पर आयत 221)

    हमारे मुल्क में फिरका परस्ती का जो माहौल बन गया है उसको देखते हुए दोनों क़ौमों को ज़हरीले फ़रमान की डट कर खिलाफ वर्जी करना चाहिए। हिदुस्तान में आपसी नफ़रत दूर करने की यही एक सूरत है कि दोनों फिरके आपस में शादी ब्याह करें ताकि नई नस्लें इस झगडे का खात्मा कर सकें. कितनी झूटी बात है - - - मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना. हम देखते हैं कि कुरआन की हर दूसरी आयत नफ़रत और बैर सिखला रही है.

    " और लोग आप से हैज़ (मासिक-धर्म) का हुक्म पूछते हैं, आप फरमा दीजिए की गन्दी चीज़ है, तो हैज़ में तुम ओरतों से अलाह्दा रहा करो और इनसे कुर्बत मत किया करो, जब तक की वह पाक न हो जाएँ"

    (सूरह अल्बक्र २ दूसरा पर आयत २२२)

    देखिए कि अल्लाह कहाँ था, कहाँ आ गया? कौमी मसाइल समझा रहा था कि हैज़ (मासिक धर्म)की गन्दगी में घुस गया. कुरआन में देखेंगे यह अल्लाह की बकसरत आदत है ऐसे बेहूदा सवाल भी कुरआन ने मुहम्मद के हवाले किए हैं. हदीसें भी इसी क़िस्म की गलीज़ बातों से भरी पडी हैं. हैज़, उचलता हुवा पानी, तुर्श और शीरीं दरयाओं का मिलन, मनी, खून का लोथडा और दाखिल ओ खुरूज कि हिकमत से लबरेज़ अल्लाह की बातें जिसको मुसलमान निजामे हयात कहते हैं. अफ़सोस कि यही गंदगी इबारतें नमाजों में पढाई जाती है.

    * औरतों के हुकूक का ढोल पीटने वाला इसलाम क्या औरत को इंसान भी मानता है? या मर्दों के मुकाबले में उसकी क्या औकात है, आधी? चौथाई? या कोई मॉल ओ मता, जायदाद और शय ? इस्लामी या कुरानी शरा और कानून ज्यादा तर कबीलाई जेहालत के तहत हैं. इन्हें जदीद रौशनी की सख्त ज़रुरत है ताकि औरतें ज़ुल्म ओ सितम से नजात पा सकें. इनकी कुरानी जिल्लत का एक नमूना देखें - - -

    थू थू करें

    " तुम्हारी बीवियां तुम्हारी खेतियाँ हैं, सो अपनी खेतियों में जिस तरफ से होकर चाहो जाओ, और आइन्दा के लिए अपने लिए कुछ करते रहो और यकीन रक्खो कि तुम अल्लाह के सामने पेश होने वाले हो। और ऐसे ईमान वालों को खुश खबरी सुना दो"
    (सूरह अल्बक्र २ दूसरा पर आयत २२३)

    तुम्हारी बीवियां तुम्हारी खेतियाँ हैं, सो अपनी खेतियों में जिस तरफ से होकर चाहो जाओ, अल्लाह बे शर्मी पर उतर आया है तो बात साफ़ करना पड़ रही है कि यायूदियों में ऐसा भरम था कि औरत को औंधा कर जिमा (सम्भोग) करने में तानासुल (लिंग) योनि के बजाय बहक जाता है और नतीजे में बच्चा भेंगा पैदा होता है. इस लिए सीधा लिटा कर जिमा करना चाहिए. मुहम्मद इस यहूदी अकीदत को खारिज करते हैं और अल्लाह के मार्फ़त यह जिंसी आयत नाज़िल करते हैं कि औरत का पूरा जिस्म मानिन्द खेत है जैसे चाहो जोतो बोवो. *मुसलमानों में अवाम से ले कर बडे बड़े मौलाना तक कसमें बहुत खाते हैं। खुद अल्लाह क़ुरआन में बिला वजे कसमे खाता दिखाई देता है, हो सकता है अरब में रिवाज हो कि बगैर क़सम के बात ही न पूरी होती हो। अल्लाह कहता है वह तुम को कभी नहीं पकडेगा तुम्हारी उस बेहूदा कसमों पर जो तुम रवा रवी में खा लेते हो मगर हाँ जिसे दिल से खा लेते हो, इस पर जवाब तलबी होगी (इसे इरादी कसमें भी कहा गया है) फिर भी फ़िक्र की बात नहीं, वह गफूर रुर रहीम है. इस सिलसिले में नीचे दोनों आयतें हैं-

    आयत २२६ के मुताबिक औरत से चार माह तक जिंसी राबता न रखने की अगर क़सम खा लो और उसपर कायम रहो तो तलाक यक लख्त फैसल होगा और इस बीच अगर मन बदल जाए या जिंसी बे क़रारी में वस्ल की नोबत आ जाए तो अल्लाह इस क़सम की जवाब तलबी नहीं करेगा. ये आयत का मुसबत पहलू है.

    (सूरह अल्बक्र २ दूसरा पर आयत २२६ )

    पूरा पढें - http://harf-e-galat.blogspot.com/2009/11/blog-post_14.html

    ReplyDelete
  32. @ सूरज का नियत समय पर निकलना खुद इस बात का सुबूत है कि कोई है जो इस निज़ाम को कन्ट्रोल कर रहा है ।

    Kya "सूरज का नियत समय पर निकलना" aapne aap me Vigyan Virudh baat nahi h,,

    mujhe pata h yeh sirf kahne ke liye hi hoti h, or isi tarah se kha jata h. fir aap VEDO or dusre GRANTHO ka arth ka anarth kyo kar rahe ho.

    ReplyDelete
  33. waah dost anwer, achha kaam kar rahe ho,, meri zaroorat pade to batana

    ReplyDelete
  34. इन साहबान की पूरी पोल "हर्फ़-ए-गलत" ने खोल रखी है पहले से… वहीं जाकर पढ़ें…। सुना है कि बड़ा तगड़ा माल रंगीला रसूल में दिया हुआ है… (काश कहीं से "रंगीला रसूल" की एक कॉपी पढ़ने मिल जाती)…

    ReplyDelete
  35. @ SANJEEV RANA JI
    HOSLA BADHANE KE LIYE SHUKRIYA .

    ReplyDelete
  36. @ Indian citizen ji urf Mr. Amit
    Satyarth Prakash se readymade aitraaz utha laye. aap aur ja bhi kahan sakte the?
    Surya par swami ji ke vichaar padhen-
    आप सूरज चांद तारों पर भी वैदिक लोगों का होना मानते हो । क्या आप आधुनिक वैज्ञानिकों के कथन को स्वीकार करते हुए दयानन्द जी की मान्यता को ग़लत स्वीकार कर लेंगे ? वैदिक सम्पत्ति के लेखक के गुरू का वेदार्थ ही हमारी समझ से बाहर है । आपके पधारने से हमें अपनी जिज्ञासा “शांत करने का दर्लुभ योग मिला है । सो आप से पूछता हूं -


    गुदा से सांप ले जाना


    ‘ हे मनुष्‍यों , तुम मांगने से पुष्टि करने वाले को स्थूल गुदा इंद्रियों के साथ वर्तमान अंधे सांपों को गुदा इंद्रियों के साथ वर्तमान विशेष कुटिल सर्पों को आंतों से , जलों को नाभि के भाग से , अण्डकोश को आंड़ों से , घोड़ों को लिंग और वीर्य से , संतान को पित्त से , भोजनों को पेट के अंगों को गुदा इंद्रिय से और “व्‍यक्तियों से शिखावटों को निरन्तर लेओ । ’{ यजुर्वेद 25 ः 7 , दयानन्द भाष्‍य पृष्‍ठ 876 }


    इस मन्त्र का क्या अर्थ समझ में आता है?


    ये कौन सा विज्ञान है जिसपर मनुष्‍य की उन्नति टिकी हुई है ।


    ऐसी बातों को देखकर ही पश्चिमी वेदिक स्कॉलर्स ने वेदों को गडरियों के गीत समझ लिया तो क्या ताज्जुब है ?


    हो सकता है इसका कुछ और अच्छा सा अर्थ हो जो दयानन्द जी को न सूझा हो लेकिन वैदिक सम्पत्ति आदि किसी अन्य साहित्य में दिया गया हो । यदि आपकी नज़र में हो तो हमारी जिज्ञासा अवय “शांत करें । और अगर कोई भी इसका सही अर्थ और इस्तेमाल न जानता हो तब भी कोई बात नहीं । इसके बावजूद हम वेदों का आदर करते रहेंगे । करोड़ों साल पुरानी किसी किताब की सारी बातें समझ में आना मुमकिन भी नहीं है। इसकी कुछ बातें तो समझ में आ रही हैं , ये भी कुछ कम नहीं है ।

    ReplyDelete
  37. @ Indian citizen ji
    Aurat ko vedic sahitya men kheti kaha gaya hai . is par apko puri post samarpit karunga .

    ReplyDelete
  38. @ Dr. Aslam Qasmi sb . offer ke liye shukriya lekin apko nahi bulaunga.
    Aap aakar batoge ki cow ka goo moot kaun khata hai ?
    fil hal to inhe ye dekhne do, gyan badhega -

    http://cpsglobal.org/content/all-men-are-equal

    ReplyDelete
  39. @ Naam na liye jane layaq aur uske khwahishmand mere pyare bhai
    aap fikar na karen woh bhi apko isi blog par koi shamat ka mara jald hi padhwa dega.
    uske baad jo hamne tayyar kar rakha hai Woh bhi apko zurur pasand ayega .
    ye hamara wada hai.
    koi shamat ka mara us rangili kitab ko laye to sahi.
    agar apke chero ke bache khuche rang bhi na ud jayen to jo chaho hum par jurmana kar dena .

    ReplyDelete
  40. @ @ Indian citizen ji urf Mr. Amit

    Dr.Jmal Ji m koi urf nahi hun Mere asli VAIDIK DHARM ki bhanti asli
    Amit Sharma
    (Jaipur,Rajasthan-302013)
    hi hun. rahi baat matter copy/paste karne ki toh aap ko bata dun, shrimaan m ek kaamkaaji aadmi hun or march ka mahina alag chal raha h,accounts ka kaam dekhta hun, isliye itna time nahi h ki apne vicharo ki post likhne baithu, isliye jo matter mere vicharo se male khata h use post kar deta hun.

    ReplyDelete
  41. वर्ण व्यवस्था के अत्याचार से त्रस्त बहूत से लोगों ने राहत पाने के लिए हिन्दू संस्कृति का त्याग किया और जिसको जहां ख़ैरियत नज़र आयी वहीं चला गया । गोरखपुर के राजा ने भी जैन मत अपना लिया था क्योंकि वेदवादी पण्डों ने उससे यज्ञ कराया और यज्ञ के नाम पर उसकी रानी का सहवास घोड़े से करवा दिया । बेचारी कोमल रानी इतना बड़ा पुण्य झेल न सकी और मर गयी । राजा ने वैदिक धर्म को त्याग दिया । इस घटना को दयानन्द जी ने सत्यार्थ प्रकाश में बयान किया है ।
    बहरहाल बहुत से कारणों से लोगों ने अन्य मत ग्रहण किये । इन्हीं लोगों में इसलाम ग्रहण करने वाले भी थे । यह भारत में भी हुआ और भारत से बाहर भी हुआ ।
    @ Amit ji malik apko sehat aut daulat se malamal kare.
    lekin jo sawal apne kiya hai uska jawab apko lena to padega aur mere sawalon ke jawab apko dene padenge.
    ab aapoot patang copy paste na karen.
    post men pooche gaye sawalon ke aur tippani men uthaye gaye prashno ke jawab den.
    warna man len ki apke paas waqt ke saat gyan bhi kum hai.
    best wishes
    happy hindu new year.

    ReplyDelete
  42. Waah Amit Ji,
    Thanks Greate Article. Aapne to Dr Anvwar Paint Phaad dii.

    Dr Anvar , ye asli islam hain , tumko sarm nahii aati kii tum musalmaan ho.
    Kyaa Yehi Allah ke vichaar hain, hi..hi..hi.hiiiiiii
    Kitne ghatiyaa vichaar hain allah ke. Muslin Aurate kewal bachhaa paidaa karene kii machine hain. Cholu Bhar paani mein doob maro musalmaano.

    @
    " तुम्हारी बीवियां तुम्हारी खेतियाँ हैं, सो अपनी खेतियों में जिस तरफ से होकर चाहो जाओ, और आइन्दा के लिए अपने लिए कुछ करते रहो और यकीन रक्खो कि तुम अल्लाह के सामने पेश होने वाले हो। और ऐसे ईमान वालों को खुश खबरी सुना दो"
    (सूरह अल्बक्र २ दूसरा पर आयत २२३)


    Lekin Dr Anvar nahii maanegaa. Kal Phir nayee post se jahar uglegaa.
    Dr Anvar kii baato se mujhe yahi lagta hain ki.
    1. Kute ke dum seedhii nahi ho saktii

    2. Laato ke bhoot baton se nahii mante

    Dr Anvar Kal Koi bhi Hindu Dharm Ke baro mein Galat Post nahii aani chaahiye.

    Khabardaar. Warning

    ReplyDelete
  43. डॉ.साहब मुझे नहीं पता के आपका उद्देश्य क्या रहा होगा ब्लॉग को इस तरह से पेश करने का!

    परन्तु यहाँ अमित जी जो जानकारी दे रहे है वो अपने आप में अद्भुत है मुझ अज्ञानी के लिए तो!

    अमित जी का तो मै शुक्रगुजार हूँ ही साथ में आपका भी जो आप इतनी अच्छी जानकारी के सामने आने में कारण बनते जा रहे हो!परमात्मा करे आप और अधिक प्रश्न करे ओए आपको और अधिक संतुष्ट करने वाले उत्तर मिलते रहे!हम सब का चित विकारों से रहित रहे!



    कुंवर जी,

    ReplyDelete
  44. मुसलमानों में एक गाली है ,सूअर की ओलाद अपनी अम्मी से पूछना. तो तुझे सच्चाई का पता जरूर लग जाएगा. एक बात और पूछना की गुदा से सांप कितनी बार लिया था.

    ReplyDelete
  45. @ warna man len ki apke paas waqt ke saat gyan bhi kum hai.

    har baat ka nyay karne wala sirf woh parmeshver hi h,ab aap kyon us nyay karne wale ki jagh lekar apna faisla suns rahe h ki mujh me gyaan ki bhi kami h. or aap log har baat ka ant karte huye yahi baat kyo dohrate h-"WARNA MAAN LEN"
    gyan to atha(unlimited) h koi kaise purn(full) ho sakta h.
    PURNA to woh PURNBRAHM hi h.
    "ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्य्ते॥"

    ReplyDelete
  46. or mane aap se koi tark-vitark toh kiye hi nahi the aap ne likha-कृपया पाठक वर्ग भी हमें अपने ख़याल से आगाह करे ।

    Check your spiritual G.K.

    गायत्री मन्त्र चारों वेदों में केवल ऋग्वेद दो जगह में पाया जाता है ।
    लेकिन कहां कहां पाया जाता है ?
    और दोनों के अक्षरों में क्या अन्तर है ?

    मैं चाहूंगा कि ये जानकारी यहां पधारने वाले ब्लॉगर्स बन्धु दें ताकि सार्थक संवाद की एक मिसाल क़ायम हो ।
    जिसे जिस ज्ञानी का अनुवाद पसन्द हो लाए और सबको दिखाए ।
    maine bataya. kya galat kiya.

    aapne likha-"सूरज का नियत समय पर निकलना खुद इस बात का सुबूत है कि कोई है जो इस निज़ाम को कन्ट्रोल कर रहा है ।"
    jabki suraj nikalta nahi h. is line ko batane ka matlab sirf itna tha ki kahne wale ke bhavo ko agar hum nahi samajh paye toh isne kahne wale ki galti nahih.
    aap apna aapa kyo kho jaate h,jabki GYAAN TO SAGAR KI GAHRAYEYON KI TARAH SHANT HOTA H, OR AAP TOH MAHAGYAANI H.

    ReplyDelete
  47. वेदों को अपौरुषेय कहा गया है। भारतीय धर्म संस्कृति एवं सभ्यता का भव्य प्रसाद जिस दृढ़ आधारसिला पर प्रतिष्ठित है, उसे वेद के नाम से जाना जाता है। भारतीय आचार-विचार, रहन-सहन तथा धर्म-कर्म को भली-भाँति समझने के लिए वेदों का ज्ञान बहुत आवश्यक है। सम्पूर्ण धर्म-कर्म का मूल तथा यथार्थ कर्त्तव्य-धर्म की जिज्ञासा वाले लोगों के लिए ‘वेद’ सर्वश्रेष्ठ प्रमाण हैं। ‘वेदोंऽखिलो धर्ममूलम्’, ‘धर्मं जिज्ञासमानानां प्रमाणं परमं श्रुतिः’ (मनु. 2.6, 13) जैसे शास्त्रवचन इसी रहस्य का उद्घाटन करते हैं। वस्तुतः ‘वेद’ शाश्वत-यथार्थ ज्ञान राशि के समुच्चय हैं, जिसे साक्षात्कृतधर्मा ऋषियों ने अपने प्रातिभ चक्षु से देखा है—अनुभव किया है।

    ऋषियों ने अपने मन या बुद्धि से कोई कल्पना न करके एक शाश्वत अपौरुषेय सत्य की, अपनी चेतना के उच्चतम स्तर पर अनुभूति की और उसे मंत्रों का रूप दिया। वे चेतना क्षेत्र की रहस्यमयी गुत्थियों को अपनी आत्मसत्ता रूपा प्रयोगशाला में सुलझाकर सत्य का अनुशीलन करके उसे शक्तिशाली काव्य के रूप में अभिव्यक्त करते रहे हैं। वेद स्वयं इनके बारे में कहता है—‘सत्यश्रुतः कवयः’’ (ऋ.5.57.8) अर्थात् ‘‘दिव्य शाश्वत सत्य का श्रवण करने वाले द्रष्टा महापुरुष।’’

    इसी आधार पर वेदों को ‘श्रुति’ कहकर पुकारा गया। यदि श्रुति का भावात्मक अर्थ लिया जाय, तो वह है स्वयं साक्षात्कार किये गये ज्ञान का भाण्डागार। इस तरह समस्त धर्मों के मूल के रूप में माने जाने वाले, देवसंस्कृति के रत्न-वेद हमारे समक्ष ज्ञान के एक पवित्र कोष के रूप में आते हैं। ईश्वरीय प्रेरणा से अन्तःस्फुरण (इलहाम) के रूप में ‘‘आत्मवत् सर्वभूतेषु’’ की भावना से सराबोर ऋषियों द्वारा उनका अवतरण सृष्टि के आदिकाल में हुआ।

    वेदों की ऋचाओं में निहित ज्ञान अनन्त है तथा उनकी शिक्षाओं में मानव-मात्र ही नहीं, वरन् समस्त सृष्टि के जीवधारियों-घटकों के कल्याण एवं सुख की भावना निहित है। उसी का वे उपदेश करते हैं। इस प्रकार वे किसी धर्म या सम्प्रदाय विशेष को दृष्टिगत रख अपनी बात नहीं कहते। उनकी शिक्षा में छपे मूल तत्त्व अपरिवर्तनीय हैं, हर काल-समय-परिस्थिति में वे लागू होते हैं तथा आज की परिस्थितियों में भी पूर्णतः व्यावहारिक एवं विशुद्ध विज्ञान सम्मत हैं।

    भारतीय परम्परा ‘वेद’ के सर्व ज्ञानमय होने की घोषणा करती है—‘भूतं भव्यं भविष्यञ्च सर्वं वेदात् प्रसिध्यति।’ (मनु.12.97) अर्थात् भूत, वर्तमान और भविष्यत सम्बन्धी सम्पूर्ण ज्ञान का आधार वेद है। आचार्य सायण ने कृष्ण यजुर्वेद की तैत्ति. सं. के उपोद्घात में स्वयमेव लिखा है—


    प्रत्क्षेणानुमित्या वा यस्तूपायो न बुध्यते।
    एनं विदन्ति वेदेन तस्माद् वेदस्य वेदता।।


    अर्थात्-प्रत्यक्ष अथवा अनुमान प्रमाण से जिस तत्त्व (विषय) का ज्ञान प्राप्त नहीं हो रहा हो, उसका ज्ञान भी वेदों के द्वारा हो जाता है। यही वेदों का वेदत्व है।

    दृष्टाओं का मत है कि वेद श्रेठतम ज्ञान–पराचेतना के गर्भ में सदैव से स्थित रहते हैं। परिष्कृत-चेतना-सम्पन्न ऋषियों के माध्यम से वे प्रत्येक कल्प में प्रकट होते हैं। कल्पान्त में पुनः वहीं समा जाते हैं।

    ReplyDelete
  48. आचार्य शंकर ने अपने ‘शारीरिक –भाष्य’ में वेदान्त सूत्र —‘अतएव च नित्यत्वम्’ की व्याख्या में महाभारत का यह श्लोक उद्धृत किया है—युगान्तेऽन्तर्हितान् वेदान् सेतिहासान् महर्षयः। लेभिरे तपसा पूर्वमनुज्ञाताः स्वयंभुवा।। ‘युग के अन्त में वेदों का अन्तर्धान हो जाता है। सृष्टि के आदि में स्वयंभू के द्वारा महर्षि लोगों ने उन्हीं वेदों को इतिहास के साथ अपनी तपस्या के बल से प्राप्त किया।’

    ऐसा भी प्रसिद्धि है कि परमात्मा ने सृष्टि के प्रारम्भ में ही ‘वेद’ के रूप में अपेक्षित ज्ञान का प्रकाश कर दिया। महाभारत में ही महर्षि वेदव्यास ने इस सत्य का उद्घाटन करते हुए लिखा है—अनादि निधना नित्या वागुत्सृष्टा स्वयम्भुवा। आदौ वेदमयी दिव्या यतः सर्वाः प्रवृत्तयः (महा. शा. प. 232, 24)। अर्थात्—सृष्टि के प्रारम्भ में स्वयंभू परमात्मा से ऐसी दिव्य वाणी (वेद) का प्रादुर्भाव हुआ, जो नित्य है और जिससे संसार की गतिविधियाँ चलीं। स्थूल बुद्धि से यह अवधारणा अटपटी सी-कल्पित सी लगती है, किन्तु है सत्य। आज के विकसित विज्ञान के सन्दर्भ से उसे समझने का प्रयास करें, तो बात कुछ स्पष्ट हो सकती है। कम्प्यूटर तंत्र के अंतर्गत मास्टर के साथ माइक्रोवेव टावर्स (सूक्ष्म तरंग प्रणाली) द्वारा विभिन्न कम्प्यूटर केन्द्र जुड़े रहते हैं। रेलवे टिकिट बुकिंग से लेकर अन्तर्राष्ट्रीय आँकड़ों के तन्त्रों में आज यह प्रणाली प्रयुक्त है। प्रत्यक्ष में कम्प्यूटरों के पर्दे पर इच्छित आँकड़े या सूत्र उभरते रहते हैं। यदि कोई कम्प्यूटर केन्द्र बिगड़ जाए अथवा नष्ट हो जाए तो उस अंकित आँकड़े नष्ट या लुप्त हो गये से लगते तो हैं, किंतु वास्तव में वे मास्टर कम्प्यूटर में समा जाते हैं, वहाँ सुरक्षित रहते हैं। कालान्तर में कम्प्यूटर केन्द्र पुनः स्थापित होने पर वे ही सूत्र पुनः पर्दों पर आने लगते हैं।

    उक्त विधा के अनुरूप ही पराचेतना में मास्टर कम्प्यूटर की तरह समस्त ज्ञान स्थित है। विभिन्न लोकों और विभिन्न कालों में वहाँ विकसित उच्च-परिष्कृत मानस कम्प्यूटर केन्द्रों की भूमिका निभाते रहते हैं। कभी भूलोक आदि किसी लोक का तन्त्र नष्ट या अस्त-व्स्त हो जाने से वह ज्ञान नष्ट नहीं होता। यह अवधारणा चेतना-विज्ञान का क, ख, ग समझने वालों को भी अटपटी नहीं लगनी चाहिए।


    7

    ReplyDelete
  49. नेति-नेति


    उपनिषद् की यह अवधारणा कि वह पूर्ण है और यह भी पूर्ण है। पूर्ण से ही पूर्ण का उदय-विकास होता है। उस पूर्ण में से यह पूर्ण प्राप्त कर लेने पर भी वह पूर्ण ही रहता है—

    पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।
    पूर्णस्य पूर्णमादाय, पूर्णमेवावशिष्यते।।


    अस्तु वेद का वह सनातन भाण्डागार पूर्ण है। उससे प्रकट यह वेद भी पूर्ण हैं, क्योंकि समकालीन सृष्टि तन्त्र का पूर्ण ज्ञान इसमें रहता है। सनातन वेद में से प्रत्यक्ष वेद के प्रकट होने या न होने से उस सनातन की पूर्णता में कोई अन्तर नहीं पड़ता। पदार्थ से उत्पन्न ज्ञान (पाश्चात्य-विज्ञान) पदार्थ के साथ नष्ट हो सकता है, किन्तु चेतना अनश्वर है, इसलिए चेतना से उद्भूत ज्ञान को भी अनश्वर कहा गया है।। ऋषियों ने यह ज्ञान समाधि द्वारा परमात्म तत्त्व से एकाकार होकर पाया था। ऋषियों का ज्ञान ‘साक्षात्कार का ज्ञान’ नॉलेज बाय आयडेन्टिटी (Knowledge by Identity) है। देख-पढ़कर, बैद्धिकता, तार्किक विश्लेषण द्वारा अथवा बाह्य प्रेरणा द्वारा ऐसा ज्ञान उपलब्ध नहीं होता। यह हमारी संस्कृति की ही अनादिकालीन परम्परा रही है कि ज्ञान-प्राप्ति हेतु ऋषि-गण आत्मसत्ता की प्रयोगशाला में जाकर अन्तर्मुखी हो मनन, निदिध्यासन तथा फिर समाधि की स्थिति में जाकर चेतना जगत् के सूत्रों को खोज लाते थे। उन ज्ञान सूत्रों का क्रमबद्ध संकलन हमें वेद मंत्रों के रूप में उपलब्ध है। ऋषियों ने वेद को पूर्ण तो कहा, किन्तु उसी के साथ नेति-नेति (यही अंतिम नहीं है) भी कहा ‘पूर्णमिदं’ के साथ नेति-नेति कहना उनके तत्त्व द्रष्टा और स्पष्ट वक्ता होने का प्रमाण है। अंतर्दृष्टि की परिपक्वता के बिना कोई व्यक्ति ऐसी उक्ति कह नहीं सकता। ऋषियों ने लोक एवं काल की आवश्यकता के अनुरूप चेतना के समग्र सूत्र प्रकट कर दिये। इसलिए उन्हें पूर्ण तो कहा, किन्तु वे देख रहे थे कि यह पूर्ण ज्ञान भी इस दिव्य ज्ञान भाण्डागार का एक अंश मात्र है। इसलिए उन्होंने नेति (यही अंतिम नहीं) कह दिया। आवश्यकता के अनुरूप जिस ज्ञान का बोध उन्होंने किया, उसे जन-जन तक पहुँचाने के लिए उसे भाषा में व्यक्त करना आवश्यक हुआ। अनुभूति को व्यक्त करने में भाषा सामान्य व्यवहार में भी अक्षम सिद्ध होती है, सो वेदानुभूति को व्यक्त करने में तो वह समर्थ हो ही कैसे सकती थी ? अस्तु ऋषियों ने स्पष्टता से कह दिया जितना कुछ व्यक्त किया जा सका, तथ्य केवल उतना ही नहीं है। उसे पूर्णतया समझने के लिए तो स्वानुभूति की क्षमता ही विकसित करनी होती है।

    देवसंस्कृति के मर्मज्ञ ऋषियों ने इसी कारण से वेदाध्ययन करने वालों के लिए दो तत्व अनिवार्य बताए हैं—श्रद्धा एवं साधना। श्रद्धा की आवश्यकता इसलिए पड़ी कि आलंकारिक भाषा में कहे गए रूपकों के प्रतिमान—शाश्वत सत्यों को पढ़कर बुद्धि भ्रमित न हो जाय। साधना इस कारण आवश्यक है कि श्रवण-मनन-निदिध्यासन की परिधि से भू ऊपर उठकर मन ‘‘अनन्तं निर्विकल्पम्’’ की विकसित स्थिति में जाकर इन सत्यों का स्वयं साक्षात्कार कर सके। मंत्रों का गुह्यार्थ तभी जाना जा सकता है।

    http://pustak.org/bs/home.php?bookid=35

    ReplyDelete
  50. amit ji mai aapke blog tak nahi pahoonch paa raha hoon,
    kripya kar maargdarshan kare...

    ReplyDelete
  51. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  52. anonymous ne chaccha ko okaat dekha dee ..chachha aap ne kuran me jo aurat ke bare me jo jikar kiya heuska jawab kyo nahee diya ?????/kya kooran anonymous ne likhi he??/....kesaa ghatiya garanth he ye kuran????//chachha aap se mene pahale bhi sawal kiyaa tha thoda behooda laga hoga lakin sawal tha to toomahre riti niti ke bare me hitha naa... chachha koi aapke ghatiya kuraan ke baareme likhe to aapko mirchi lagtee hogee chacha jawab de...akhir aap ne varsho varsh kisi hindu ashram me tapsyaa karke gyan parpat kiya hoga aap gyani jo thare....

    ReplyDelete
  53. मैंने इसके अभी कई लेख देखे. इसकी बातों पर कोई ना जाये क्योंकि ये आदमी पक्का झूठा है.
    इसका खंडन मैंने सौरभ आत्रेय द्वारा छोड़ी गयी टिप्पणी से पढ़ा जिसमें इसने गुदा से सांप लेने का जिक्र किया है. ये आदमी कुछ भी बक-२ करे जा रहा है
    http://vedquran.blogspot.com/2010/03/blog-post_02.html
    अगर मैं ये कहूँ कि मेरे पास एक अली हसन द्वारा लिखित कुरान की कॉपी है और उसमें लिखा है मोहम्मद साहब को अल्लाह ने अपनी गांड मरवाने के लिए लिखा हुआ है तो क्या वो सच हो जायेगी. इसी तरह से ये आदमी वेदों को बदनाम करने के लिए दिन-रात लगा हुआ है.

    ReplyDelete
  54. मेरे पास तो इसी सुरेन्द्र कुमार शर्मा की ही लिखित कुरान की पुस्तक है जिसमें इन्होने लिखा है कुरआन में अल्लाह का आदेश है 'सभी मुसलामानों को अपनी-२ ग**ड मरवानी चाहिए' अनवर जी क्या ये भी सच है. यदि है तो अपना पता दे देना मैं आ जाऊँगा बड़ी इच्छा है तेरी ग**ड मा*ने की.

    ReplyDelete