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Saturday, March 27, 2010

हज़रत मुहम्मद साहब स. ने बताया कि बाप के मुक़ाबले माँ तीन गुना ज़्यादा आदर और सेवा की हक़दार है । Greater than Paradise .

 जो धारणीय है , वह धर्म है । धर्म का स्रोत ईश्वर है । ईश्वर किसी आदर्श मनुष्य के अन्तःकरण में अपनी वाणी का अवतरण करता है और उसे जीवन जीने की विधि सिखाने वाला विधान देता है । कुछ लोग धर्म से हटकर अपने अनुमान से कुछ नियम क़ानून बनाते हैं । यह धर्म नहीं दर्शन कहलाते हैं । ईश्वर सदा से है और उसका धर्म भी सदा से है । समय समय पर ऋषि हुये और उन्होंने लोगों को मूल धर्म का ज्ञान दिया । घटिया परम्पराओं और रूढ़ियों का सफ़ाया किया । अच्छी बातों और परम्पराओं की शिक्षा दी । बड़ों का आदर करना भी एक अच्छी आदत और अच्छी परम्परा है । फिर बड़प्पन के भी दर्जे हैं । हम बड़े भाई का भी आदर करते हैं और अपने पिताजी का भी , लेकिन बाप का आदर ज़्यादा करते हैं और बड़े भाई का उनसे कम । यह स्वाभाविक है । बाप ने हमें जन्म दिया है । हमारी देखरेख की है । हमारी ज़रूरतें पूरी की हैं । उसका हम पर उपकार ज़्यादा है । माँ का उपकार हम पर बाप से भी ज़्यादा है । हमें पैदा करने की ख़ातिर उसने मृत्यु तुल्य कष्ट उठाया है । अपने ख़ून से बना दूध पिलाया , हमें पालने में उसका रूप रंग और समय सभी कुछ बीत गया । उसने अपने बदन की सारी ताक़त हमारे अन्दर उतार दी । खुद ढल गई और हमें परवान चढ़ा दिया । हज़रत मुहम्मद साहब स. ने इसी हक़ीक़त का ऐलान करते हुए बताया कि जन्नत माँ के क़दमों के तले है । बताया कि बाप के मुक़ाबले माँ तीन गुना ज़्यादा आदर और सेवा की हक़दार है । और यह भी बताया कि दूसरे गुनाहों में से अल्लाह जिस गुनाह को चाहे माफ़ कर सकता है या उसकी सज़ा को परलोक के लिए टाल सकता है लेकिन माँ बाप की नाफ़रमानी करना , उनसे बदतमीज़ी करना और उनका दिल दुखाना ऐसा गुनाह है कि इसके करने वाले को अल्लाह तब तक मौत नहीं देता जब तक कि उसे दुनिया में ज़लील व रूसवा न कर दे ।

गुरू भी आदरणीय है । गुरू ही वह आदमी है जो इनसान को सही ग़लत की तमीज़ सिखाता है । इन अर्थां में भी हरेक इनसान का पहला गुरू उसकी मां होती है । वही उसे बोलना चलना और सभ्यता के नियम सिखाती है । बाद के गुरू उस मां की बीज रूप शिक्षा को ही पूर्णता तक पहुंचाते हैं । इनसान पर गुरू का उपकार भी बहुत बड़ा है । ईश्वर का उपकार इनसान पर सबसे ज़्यादा है । उसी ने माँ बाप बनाये । उसी ने उनके माध्यम से इनसान को जन्म दिया । उसी ने गुरू को पैदा किया और गुरू को ज्ञान दिया । उसी ने सारी कायनाती ताक़तों और देवताओं को इनसान की सेवा में लगाया । जीवन के लिए आवश्यक हर चीज़ उसने हमें प्रदान की । उसके किसी एक उपकार को भी कोई आदमी पूरी तरह नहीं जान सकता ।ईश्वर का उपकार मनुष्य पर सबसे ज़्यादा है । इसीलिये सबसे ज़्यादा आदर का हक़दार भी केवल ईश्वर है । वह एक है । वह अनादि , अनन्त , सर्वज्ञ और सर्वशक्तिमान है । जो ज़्यादा जानता है और ज़्यादा ताक़त रखता है उसकी बात कोई नहीं टालता क्योंकि उसकी बात सदा हितकारी होती है । यह एक स्वाभाविक बात है ।शिव नाम ही अपने अन्दर कल्याण का गुण दर्शाता है और पवित्र कुरआन में भी अल्लाह ने अपना परिचय रहमान और रहीम कहकर दिया है अर्थात अनन्त दयावान और कृपाशील ।जैसा वह है और जैसा ऋषियों के माध्यम से उसने अपना परिचय हमें दिया है , वैसा ही उसे जानना मानना सत्य का तक़ाज़ा है और जैसा आदेश वह दे उसका पालन करना उसका सच्चा आदर करना है । आदर के सर्वोच्च दर्जे का हक़दार सिर्फ़ वही अनादि शिव है । आदर दिल की भावना का नाम है जिसे प्रकट करने के लिए इनसान हाथ जोड़ने , चूमने , सर झुकाने और ज़मीन पर घुटने टेकने या ज़मीन पर माथा टेकने आदि क्रियाओं का सहारा लेता है । ज़मीन पर अपने घुटने टेक कर अपनी नाक और अपना माथा रख देना इनसान के पूर्ण समर्पण का प्रतीक और आदर की पराकाष्ठा है । सबसे अधिक आदर और पूर्ण समर्पण को प्रकट करने के लिए इससे ज़्यादा बेहतर क्रिया सम्भव ही नहीं है ।इसीलिए यह केवल परमेश्वर के लिए जायज़ है । दूसरों के लिए इससे कम दर्जे की क्रिया किये जाने का प्रावधान है।दूसरों के प्रति भी जो आदर सम्मान हम दिल में रखते हैं और अपने अल्फ़ाज़ में और अपनी क्रियाओं में उसे प्रकट करते हैं तो वास्तव में वह भी ईश्वर के प्रति ही अपनी अहसानमन्दी जताना है ।

हजरे अस्वद को चूमना जायज़ है लेकिन उसे ईश्वर की भांति सज्दा या साष्टांग करना नाजायज़ और वर्जित है । एक आदमी को किसी कम्पटीशन में कामयाबी मिलती है और उसे आयोजक की तरफ़ से कोई यादगार निशान दिया जाता है तो वह खुशी में बेइखितयार होकर चूम लेता है । दुनिया जानती है कि यह एक स्वाभाविक क्रिया है । कोई भी यह नहीं समझता कि वह उस चिन्ह की पूजा कर रहा है ।हजरे अस्वद भी उस कम्पटीशन के बाद ही तो ईश्वर ने आदि शिव आदिम् अर्थात आदम को दिया था जिसमें देवताओं को आदम की पात्रता पर सन्देह था । तब परमेश्वर ने उनको अपनी योग्यता सिद्ध करने के लिए कहा और आदम ने वे रहस्य प्रकट कर दिये जिन्हें देवता भी न जानते थे। तब सारे देवता आदि शिव के सामने आदरवश झुक गये । यह काला पत्थर धरती के दूसरे पत्थरों की तरह का कोई मामूली सा पत्थर नहीं है  कि चलो चूमना ही तो है । वह न सही यही चूम लो । जब आदम ने इसे चूमा था तब हम उनके जिस्म में सूक्ष्म रूप में मौजूद थे । विजय और उल्लास का वह क्षण केवल एक अकेले आदम की ही उपलब्धि न थी बल्कि वह पूरी मानवजाति की उपलब्धि थी और आदम उस समय उसके प्रतिनिधि थे ।आदि शिव का इस चिन्ह को चूमना एक स्वाभाविक क्रिया थी । हमें अब ‘शरीर मिला है । हम अब चूमते हैं । इस तरह हम अपने आदि पिता के व्यवहार का ही अनुकरण करते हैं । पैतृक गुणों और परम्पराओं के पालन का नाम ही तो धर्म है । जो कुछ धारणीय है उसे हमारे पिता ने धारण करके और उसका पालन करके दिखा दिया है । हमें तो केवल उसका अनुकरण मात्र करना है । और जो कोई अपने पिता के मार्ग से हटकर चला उसने उनकी अवज्ञा की और जिसने उनकी अवज्ञा की । वह तब तक मर नहीं सकता जब तक कि वह दुनिया में ज़िल्लत व रूसवाई की यातना न भोग ले । ज़्यादातर आदमी आज ज़िल्लत व रूसवाई का अज़ाब भोग रहे हैं । कोई सरकार और कोई ओल्ड एज होम उन्हें इस अज़ाब से मुक्ति नहीं दे सकता । सिवाये इसके कि अपने पिता की आज्ञा और उनकी परम्परा के पालन को अपने जीवन का विधान बनाया जाए । हजरे अस्वद यही याद दिलाता है । आओ अपने पिता के धर्म की ओर , आओ ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण की ओर । आओ सफलता की ओर , आओ स्वर्ग की ओर ।

अनादि अनन्त महाशिव की जय जयकार ।

सबके माता पिता की जय , धर्म की जय ।

25 comments:

  1. doctor sahab.please read post of laddoo jee
    http://laddoospeaks.blogspot.com/2010/03/blog-post_27.html

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  2. Kya khoob likha hai Dr. Anwar Ji............

    हज़रत मुहम्मद साहब स. ने इसी हक़ीक़त का ऐलान करते हुए बताया कि जन्नत माँ के क़दमों के तले है.

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  3. Bahoot Khoob....

    गुरू भी आदरणीय है । गुरू ही वह आदमी है जो इनसान को सही ग़लत की तमीज़ सिखाता है ।

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  4. गुरू ही वह आदमी है जो इनसान को सही ग़लत की तमीज़ सिखाता है

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  5. अल्लाह आपको सलामत रखे,

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  6. theek kehte hen aap,जन्नत माँ के क़दमों के तले है। बताया कि बाप के मुक़ाबले माँ तीन गुना ज़्यादा आदर और सेवा की हक़दार है

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  7. agree with brother sahespuriya
    अल्लाह आपको सलामत रखे

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  8. ईश्वर का उपकार मनुष्य पर सबसे ज़्यादा है ।

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  9. आज माता पिता गुरू पर बहतर बातें दी हैं ऐसे ही जानकारी दिया करें तो फिर आपको वैमन्‍य फैलाने वाला न कहा जायेगा

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  10. आपकी बातों ने मज़हबी बना डाला मुझ जैसे क़ाफिर को भी … सच्ची इबादत किसे कहते हैं आप से सीखने को मिला … बातें भले ही सुनी सुनाई हों, लेकिन आज आपकी बात ने ज़ेहन ही नहीं रूह तक को मोतास्सिर किया है..

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  11. B.T. BENGAN BABA SOODHAR GAYE DHIKHTE HO...BHADHIYAA HE...B.T BENGAN KA MATALAB SAMAJH ME NAHI AAYE TO POOCHH LENA??????

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  12. हाँ पता है तभी तो मुस्लिम धर्मगुरु औरतों को बच्चा पैदा करने का मशीन समझते हैं।

    हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा

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  13. आदरणीय गुरू जी बेशक जन्नत माँ के क़दमों के तले है लेकिन कभी आपने यह भी तो बताया था बाप जन्‍नत का दरवाजा है

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  14. @dr. ayaz sahab apki pehli tippani ka shukriya .
    pls keep visiting.

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  15. @ Bharat Mahan ke Mahan Guru Shree , Woh to apko bataya tha . woh advance stage ki bat hai. abhi fundamentals to clear ho jayen inke samne. Shukriya .

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  16. @ Muk ji hum apki aalochna ki qadr karte hai . pehle bhi humne apki khatir apne article ka shirshak change kar diya tha .

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  17. بلبیرسنگھ: سابق صدر، شیو سینا یوتھ ونگ کی اسلام قبول کرکے ماسٹر محمد عامرہونے کی کہانی خود اُن کی زبانی
    http://indiannewmuslims.blogspot.com/2010/03/blog-post.html

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  18. @ MLA bhai , Apko lekh pasand aya aur harek nek aadmi ko pasand ayega lekin kuchh badbakhton ne is article par bhi minus voting ki hai . DEKHA ghor zulm.

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  19. @Sahespuriya ji , Dekha apne SARVE BHAVANTU SUKHINA ka raag alapne walon ko ?

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  20. @ Qasmi sahab ! Ab aise hi chalne wala nahin hai . Aap vote karna bhi sheekh lijiye .
    Shukriya .

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  21. Janab anwer sahab, you wrote a very nice note, keep it up. regular notes are required on the same topic specially for teen agers.. may Allah bless you.

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