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Friday, March 12, 2010

गायत्री को वेदमाता क्यों कहा जाता है ? क्या वह कोई औरत है जो ...Gayatri mantra is great but how? Know .


क्या गायत्री नाम की सचमुच कोई देवी है ? वेद माता कहलाने का गौरव इस अकेले मन्त्र को ही क्यों मिला ?
रिलैक्स द्विवेदी जी रिलैक्स !
हक़ीक़त आगाह जनाब वकील साहब , सादर प्रणाम
अल्लाह का अरबी में एक गुणवाचक नाम है वकील अर्थात कारसाज़ । यही नाम आपका भी है । आप ज्ञान परम्परा से समृद्ध एक गौरवशाली वंश का अंश भी हैं । आप मेरे बुजुर्ग हैं । आपका मैं सम्मान करता हूं और इन्शा अल्लाह सदा करता रहूंगा ।
मेरे ब्लॉग पर आकर आपने मेरा मान बढ़ाया है। मैं आपका तहे दिल से आभारी हूं । जैसे कि आप दूसरों से काफ़ी अलग हैं तो मेरा भी फ़र्ज़ है कि आपके सामने अपने दिल रूपी सीप में बन्द वह अनमोल विचार रूपी मोती रखंू जिसे मैंने आज तक किसी को नहीं दिखाया । आज पहली बार आपके सामने प्रकट कर रहा हूं ।

आप क़द्रदान हैं उम्मीद है कि क़द्र करेंगे ।

मनुष्य ने जब कभी ईश्वर को या उसके किसी गुण को या किसी मन्त्र की कल्पना मानवरूप में की तो उसे प्रकट करने के लिए उसने अलंकार का प्रयोग किया जो कालान्तर में जनमानस में एक स्वतन्त्र देवी या देवता के रूप में रूढ़ हो गयी । गायत्री मन्त्र के साथ भी यही हुआ।

क्यों सर मैं कुछ ग़लत तो नहीं कह रहा हूं ?

गायत्री मन्त्र वास्तव में एक महान मन्त्र है । इसकी महानता इतनी स्पष्ट है कि उसे समझने के लिए केवल इस पर एक दृष्टि डालना ही काफ़ी है ।


गायत्री मन्त्र


ओं भूर्भुव स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।


अलग अलग वेदविदों ने इस मन्त्र का अर्थ अलग अलग तरह किया है । उनकी समीक्षा करके उनमें से किसी के ठीक और किसी के ग़लत होने का निश्चय करना हमारा आज का विषय नहीं है ।

आज का विषय है ‘ गायत्री के महात्म्य ‘ के वास्तविक कारण को आत्मसात करना ।

छंद के कुल 7 में से एक प्रकार का नाम है गायत्री । इस मन्त्र की रचना इसी छंद में हुई है ।

ऋग्वेद में कुल 2450 मन्त्रों की रचना इस छंद में हुई है तो भी प्रायः यह छंद जाना इसी मन्त्र की वजह से जाना जाता है । हालाँकि यह निचृद छंद ( लंगड़ा छंद ) कहलाता है । लेकिन इसके मात्रात्मक गुण दोष की विवेचना करना भी आज हमारा अभीष्ट नहीं है ।हमारा मक़सद यह भी नहीं है कि हम यह तय करें कि वास्तव में सविता का अर्थ परमात्मा है या कि सूरज ?

इस मन्त्र की महत्ता जानने के लिए आप इसके ‘ धियो यो नः प्रचोदयात ‘ पर ध्यान दीजिये ।

इसमें आप क्या पाते हैं ?

यह एक ऐसे आदमी की वाणी है जो ‘ बुद्धि ‘ से युक्त है । यह स्वर एक ऐसी प्रज्ञा से उद्भूत है जो जीवन को निरूद्देश्य बिताने और व्यर्थ गंवाने के लिए तैयार नहीं है । सारी ‘शक्तियां जिस ‘ बुद्धि ‘ के अधीन हैं । वह उस बुद्धि को दिव्य चेतना से आप्लावित कर देना चाहता है ताकि वह उस महान कर्म को सम्पन्न कर सके जो कि वास्तव में उसकी उत्पत्ति से सृष्टिकत्र्ता को वांछित है ।

सविता का अर्थ चाहे सूर्य हो या फिर परमात्मा , यह विषय आज गौण है । मुख्य चीज़ वह तड़प ,वह दर्द है जो इस मन्त्रकत्र्ता के दिल को व्यथित कर रहा है ।

गायत्री छंद में रचे गये इस मन्त्र का सबसे बड़ा सरमाया मेरी नज़र में यही दर्द है । यही दर्द एक मनुष्य के हृदय में ज्ञान के आलोक को जन्म देता है और तभी मनुष्य को वह मार्ग स्पष्ट दिखाई देता है जो वास्तव में मानवता का मार्ग है । इसी मार्ग को धर्म के नाम से भी जाना जाता है ।

धर्म से ही मनुष्य को अपने गुण रूचि स्वभाव और योग्यता के अनुसार कर्म करने की प्रेरणा मिलती है । मनुष्य की रचना ईश्वर ने कर्म के लिए ही तो की है । पर कौन सा कर्म ?

कर्म की संज्ञा मनुष्य की हरेक क्रिया को नहीं दी जा सकती ।जब तक मनुष्य की बुद्धि ईश्वरीय प्रेरणा से संपन्न नहीं होती है तब तक उसे कर्म का भी ज्ञान नहीं होता । कर्म का तात्पर्य सत्कर्म से है । एक सत्कर्मी व्यक्ति कभी कुकर्म नहीं कर सकता और हालात के दबाव में या अल्पज्ञता के कारण यदि वह कुछ ग़लत कर भी गुज़रता है तो भी वह उसे अपना मार्ग बनाने वाला नहीं है । क्योंकि जो ज्ञान उसने पाया है उसने उसे पाने के लिए असह्य कष्ट उठाया है ।

अपने बच्चे के लिए एक मां को कुर्बान होने तक के लिए जो चीज़ तैयार करती है वह एक दर्द ही तो है । यही दर्दमन्द दिल हक़ीक़त में दरकार है । इससे निकलने वाली हर पुकार मालिक को स्वीकार है । ऐसा दर्द आपके और मेरे दिल में जाग जाए । गायत्री मन्त्र के कत्र्ता का हेतु यही है । यदि हम इस भाव से रिक्त होकर मात्र इसका जाप करते रहे तो हमारा अभीष्ट कभी सिद्ध होने वाला नहीं है । न ही मन्त्रकत्र्ता ने कभी ऐसा किया है और न ही कहीं किसी को करने के लिए कहा है ।
सवाल यह नहीं है कि हम गायत्री को कितना जपते हैं ?

बल्कि सवाल यह है कि हम गायत्री को कितना जी पाते हैं ?
मैं गायत्री को जपता भी हूं और जीता भी हूं और आप ...?
यही भावना हमें अज्ञान से और भारत को पतन से मुक्ति दिलाएगी । यही मन्त्र भाव हमें मार्ग दिखाएगा । लोक परलोक की सफलता इससे सिद्ध हो सकती है । क्या इसमें किसी को कोई ‘शक है ?
जिसे मार्ग मिल जाए उसे मंज़िल ज़रूर मिलती है ।

मानवता आज अपनी मंज़िल को तलाश रही है । वह अपनी मंज़िल पा सकती है बशर्ते कि वह गायत्री पर विचार करे और उसके उस दर्द को उस तड़प को अपने दिल में जगा सके जो कि ज्ञान को जन्म देता है। ज्ञान को वेद कहते हैं ।

सर्वसमाधानकारी सर्वहितकारी ब्रह्म निज ज्ञान वेद को भी परमेश्वर ने जब कभी प्रकट किया तो किसी नेक पाक और इनसानियत के दर्दमन्द दिल पर ही प्रकट किया । आज भी वेद रहस्य को केवल वही समझ सकता है जिसके दिल में मानवता का दर्द है ।

गायत्री मन्त्र उस वेदना भाव को जगाता है जिससे वेद प्रसूत होता है । इसी कारण इसे वेदमाता कहते हैं ।

मैंने कुछ ग़लत तो नहीं कहा वकील साहब ?

कृपया पाठक वर्ग भी हमें अपने ख़याल से आगाह करे ।

Check your spiritual G.K.

गायत्री मन्त्र चारों वेदों में केवल ऋग्वेद दो जगह में पाया जाता है ।
लेकिन कहां कहां पाया जाता है ?
और दोनों के अक्षरों में क्या अन्तर है ?

मैं चाहूंगा कि ये जानकारी यहां पधारने वाले ब्लॉगर्स बन्धु दें ताकि सार्थक संवाद की एक मिसाल क़ायम हो ।
जिसे जिस ज्ञानी का अनुवाद पसन्द हो लाए और सबको दिखाए ।
गायत्री मन्त्र की अज़्मत को देखते हुए इसे एक दिन से ज़्यादा दिन दिया जाना उचित है ।

कितने दिन ?

यह आप तय करेंगे ।

जब आपकी टिप्पणियां मिलनी बन्द हो जाएंगी । तभी मैं इस ब्लॉग पर नई पोस्ट क्रिएट करूंगा ।

मैं गायत्री का जी भर कर आनन्द लेना चाहता हंू ।


आज मैं न तो किसी अन्य का नाम लूंगा और न ही कोई विषय ही छेड़ूंगा ।

हे परम प्रधान प्रभु पालनहार हमें सन्मार्ग दिखा ।


ग़ज़ल

आदमी आदमी को क्या देगा

जो भी देगा ख़ुदा देगा ।

मेरा क़ातिल ही मेरा मुंसिफ़ है

क्या मेरे हक़ में फ़ैसला देगा ।

ज़िन्दगी को क़रीब से देखो

इसका चेहरा तुम्हें रूला देगा ।

हमसे पूछो दोस्त क्या सिला देगा

दुश्मनों का भी दिल हिला देगा ।

इश्क़ का ज़हर पी लिया ‘फ़ाक़िर‘

अब मसीहा भी क्या दवा देगा ।


सुदर्शन फ़ाक़िर

57 comments:

  1. मैं गायत्री का जी भर कर आनन्द लेना चाहता हंू ।
    I want to feel spiritual calm and tranquillitythrough Gayatri the great .
    आज मैं न तो किसी अन्य का नाम लूंगा और न ही कोई विषय ही छेड़ूंगा ।
    हे परम प्रधान प्रभु पालनहार हमें सन्मार्ग दिखा ।

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  2. वन्दे ईश्वरम्
    डाक्टर साहब पत्रिका आपके लेख के कारण अभी तक रोक रखी है । अपना लेख जल्दी भेजिये ।

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  3. ठीक है साहिब जैसा हुक्म ।
    मलिक का नाम लेकर कुछ कोशिश करता हूं। थोड़ा यहां मसरूफ़ियत बढ़ गयी है ।
    खै़र आपका काम भी करता हूं।

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  4. बेटा किसी दिन हमारे ब्लाग पे तो पधार ।
    हमारी टिप्प की कोई कीमत न है क्या?

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  5. श्रीमान जी
    क्या मैं आपकी दो पोस्ट अपने ब्लाग के लिये साभार ले सकता हूं ?

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  6. क्यों नहीं कामदर्शी जी
    बिल्कुल आप दो नहीं बल्कि सब ले सकते हैं लेकिन पहले ये बताइये कि आज की पोस्ट कैसी लगी ?

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  7. हज़रत आपके ब्लाग को आपकी इजाज़त से कॉपी करके ही हमने अपने ब्लाग का इफ़तताह किया है । थोड़ा टाइप क़ब्ज़े में नही आ पा रही है ।

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  8. हज़रत आपके ब्लाग को आपकी इजाज़त से कॉपी करके ही हमने अपने ब्लाग का इफ़तताह किया है । थोड़ा टाइप क़ब्ज़े में नही आ पा रही है ।

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  9. who are u sir ?
    But
    कोई बात नहीं , हकीम साहब। प्रैक्टिस जारी रखिये ।आज की पोस्ट पर आपके विचार ?

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  10. डा. साहब
    न तो आपकी सलाहियत पर कोई सन्देह है और न ही आज के मज़मून के लाजवाब होने में । सब तरह की तबियतों का ध्यान रखकर चलिये । अच्छा रहेगा ।
    mohammed shafeeq

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  11. अरे मुल्ला कल तो वेद विरोधी बन रहा था और आज गायत्री की महिमा गा रहा है ।
    भय्या तू कौन है?
    और क्या खिचड़ी पका रहा है?

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  12. भाई अज्ञात जी
    कोई खिचड़ी नहीं पका रहा हूं केवल सत्य की सराहना और असत्य का विरोध कर रहा हूं

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  13. abe
    dekh li apni auqat .
    jin mahashay ke liye tune puri post banai
    wo vakeel sab to padhne ke liye b na aye .

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  14. मैंने कुछ ग़लत तो नहीं कहा वकील साहब ?

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  15. babri masjid todne wale ne kya kiya? is link par dekh lo .
    http://www.starwebmedia.in/2010/03/demolition-of-babri-mosque-miracle-that.html#comment-form

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  16. गुरू जी आज तो अन्‍दाज़ ही अलग है, यह तो बताओ चित्र में आपके साथ दायें कौन बायें कौन? आज तो गायत्री मन्‍त्र पर आपका प्रवचन पढकर आप महागुरू लग रहे हो, अल्‍लाह बुरी नज़र से बचाये

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  17. ओं भूर्भुव स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् |

    पहले मंत्र तो सही लिखना सीख लीजिए डॉक्टर, फिर उसकी व्याख्या कीजिए।
    अल्ला मियाँ से भरोसा उठ बैठा है क्या आजकल, जो सलाम कहीं और ठोंका जा रहा है ? हा हा।
    खै़र हैं तो दोनों हीं ऊपरवाले और हमने सुना है के ऊपरवाले की हर मज़हब में एक ही गंदी आदत होती है, और वो ये कि वो हमेशा एक ही होता है।
    फ़ीअमानल्लाह

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  18. डॉ अनवर जमाल !
    शायद आपको मैंने पहली बार पढ़ा है मगर कहीं पढी एक टिप्पणी से आपके बारे में सही विचार नहीं बना पाया , आगे आपको समझाने का प्रयत्न करूंगा ! इस खूबसूरत लेख के लिए और आपके दिल की खूबसूरती ( जैसा कि इस लेख से लग रहा है ) शुभकामनायें !

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  19. Respected Anwer Jamal Sb.
    I am really surprized by your knowledge of Sanatan Dharam. You are spending a lot of your time & resources for this noble cause of bringing everyone from the darkness of 'Andh vishwas' to the light of truth & wisdom.
    By best wishes goes to you and everyone doing the job of Samaj Sudharak.
    Iqbal Zafar

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  20. जनाब उमर कैरानवी साहब अससलामुअलैकुम !
    आप मुझे गुरू कहें या महागुरू लेकिन इस मक़ाम तक मेरे रथ को हांक कर लाने वाला कौन है ?
    वेबजगत के इस पथ पर मेरे रथ के सारथि आप ही तो हैं । इस वेबजगत के मायावी संसार में आप कितने रूपों में विराजमान हैं । विष्णु जी की अवतार परम्परा का श्रीगणेश इस आभासी मिथ्या संसार में तो चाहे आपने न किया हो परन्तु प्राणपण से निभाने वाले तो आप हैं ।
    आप भी कूटनीति कुशल विराटरूधारी श्रीकृष्ण जी की भांति विजय हेतु नियम भंग करने से भला कहां बाज़ आते हैं ?
    जब भी आप कोई पोस्ट क्रिएट करते होंगे तो निश्चय ही त्रिदेव सहित सभी देवगण हर्षित होकर आकाश से आप पर कुसुमवर्षा अवश्य करते हांेगे ।
    बदनीयत लोगों के अलावा दीगर सभी आपके प्रति कृतज्ञतायुक्त टिप्पणी भी अवश्य करंेगे ।
    आभार

    ReplyDelete
  21. जनाब उमर कैरानवी साहब अससलामुअलैकुम !
    आप मुझे गुरू कहें या महागुरू लेकिन इस मक़ाम तक मेरे रथ को हांक कर लाने वाला कौन है ?
    वेबजगत के इस पथ पर मेरे रथ के सारथि आप ही तो हैं । इस वेबजगत के मायावी संसार में आप कितने रूपों में विराजमान हैं । विष्णु जी की अवतार परम्परा का श्रीगणेश इस आभासी मिथ्या संसार में तो चाहे आपने न किया हो परन्तु प्राणपण से निभाने वाले तो आप हैं ।
    आप भी कूटनीति कुशल विराटरूधारी श्रीकृष्ण जी की भांति विजय हेतु नियम भंग करने से भला कहां बाज़ आते हैं ?
    जब भी आप कोई पोस्ट क्रिएट करते होंगे तो निश्चय ही त्रिदेव सहित सभी देवगण हर्षित होकर आकाश से आप पर कुसुमवर्षा अवश्य करते हांेगे ।
    बदनीयत लोगों के अलावा दीगर सभी आपके प्रति कृतज्ञतायुक्त टिप्पणी भी अवश्य करंेगे ।
    आभार

    ReplyDelete
  22. जनाब उमर कैरानवी साहब अससलामुअलैकुम !
    आप मुझे गुरू कहें या महागुरू लेकिन इस मक़ाम तक मेरे रथ को हांक कर लाने वाला कौन है ?
    वेबजगत के इस पथ पर मेरे रथ के सारथि आप ही तो हैं । इस वेबजगत के मायावी संसार में आप कितने रूपों में विराजमान हैं । विष्णु जी की अवतार परम्परा का श्रीगणेश इस आभासी मिथ्या संसार में तो चाहे आपने न किया हो परन्तु प्राणपण से निभाने वाले तो आप हैं ।
    आप भी कूटनीति कुशल विराटरूधारी श्रीकृष्ण जी की भांति विजय हेतु नियम भंग करने से भला कहां बाज़ आते हैं ?
    जब भी आप कोई पोस्ट क्रिएट करते होंगे तो निश्चय ही त्रिदेव सहित सभी देवगण हर्षित होकर आकाश से आप पर कुसुमवर्षा अवश्य करते हांेगे ।
    बदनीयत लोगों के अलावा दीगर सभी आपके प्रति कृतज्ञतायुक्त टिप्पणी भी अवश्य करंेगे ।
    आभार

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  23. @ Baval ji
    sadharan logo ki tarah calender par chhape mantra par mat jaiyye.
    old manuscript dekh lijiye.
    kai to net par hi hain.
    kisi gyani se bhi puchh lijiye.
    mujhe likhte samay bhi iska abhas tha ki koi ye sawal zurur puchhega .
    khayr apka sawagat hai.
    phir bhi mujhe apke pyar aur margdarshan ki zururat hai .

    ओं भूर्भुव स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् |

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  24. @Iqbal zafar ji
    apne meri email ko layaq e tawajjo samajh kar meri post dekhi .
    shukriya.
    chahunga ki aap bhi apna blog banayen.

    ReplyDelete
  25. @Iqbal zafar ji
    apne meri email ko layaq e tawajjo samajh kar meri post dekhi .
    shukriya.
    chahunga ki aap bhi apna blog banayen.

    ReplyDelete
  26. @ DIWEDI ji
    main apki pratiksha kar raha hun .

    ReplyDelete
  27. @ mere dil men uncha maqam rakhne wale bhai SATISH SAXENA JI
    meri asl soch to yahi hai lekin islam par aarop lagane wale mujhe itihas ka sach likhne par majbur kar dete hain.
    zulm haram hai .
    chahe hindu kare ya muslim.
    chahe aaj kare ya pehle kabhi kiya ho.
    hamen uski ninda karni chahiyye.
    use mahimamandit karke adarsh nahi banan chahiye.
    aapka bahut bahut shukriya .

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  28. Anwar Bhai lagta hai ki milna hi padega aap se.

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  29. मैं गायत्री को जपता भी हूं और जीता भी हूं और आप ...?
    यही भावना हमें अज्ञान से और भारत को पतन से मुक्ति दिलाएगी । यही मन्त्र भाव हमें मार्ग दिखाएगा । लोक परलोक की सफलता इससे सिद्ध हो सकती है । क्या इसमें किसी को कोई ‘शक है ?
    जिसे मार्ग मिल जाए उसे मंज़िल ज़रूर मिलती है

    ReplyDelete
  30. मैं गायत्री को जपता भी हूं और जीता भी हूं और आप ...?
    यही भावना हमें अज्ञान से और भारत को पतन से मुक्ति दिलाएगी । यही मन्त्र भाव हमें मार्ग दिखाएगा । लोक परलोक की सफलता इससे सिद्ध हो सकती है । क्या इसमें किसी को कोई ‘शक है ?
    जिसे मार्ग मिल जाए उसे मंज़िल ज़रूर मिलती है

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  31. गायत्री मन्त्र चारों वेदों में केवल ऋग्वेद दो जगह में पाया जाता है ।
    लेकिन कहां कहां पाया जाता है ?
    और दोनों के अक्षरों में क्या अन्तर है ?


    great!!!!!!

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  32. Jazakallah.

    Aapke agle article ka besabri se intezar rahega.

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  33. YE LO HAMARE SLEEM BHAI KYA KAH RAHE HAIN.



    13, 2010 2:40 PM
    सलीम ख़ान said...

    मैं गायत्री को जपता भी हूं और जीता भी हूं और आप ...?
    यही भावना हमें अज्ञान से और भारत को पतन से मुक्ति दिलाएगी । यही मन्त्र भाव हमें मार्ग दिखाएगा । लोक परलोक की सफलता इससे सिद्ध हो सकती है । क्या इसमें किसी को कोई ‘शक है ?
    जिसे मार्ग मिल जाए उसे मंज़िल ज़रूर मिलती है
    March 13, 2010 2:40 PM

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  34. मैं सभी पाठकवृन्द का आभारी हूं । बेशक आपका यह आना जाना बेकार न जाएगा ।
    but where is divedi ji ?

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  35. मैं सभी पाठकवृन्द का आभारी हूं । बेशक आपका यह आना जाना बेकार न जाएगा ।
    but where are you sir ?
    It is not good of you .

    ReplyDelete
  36. ॐ र्भूभुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।

    आर्शग्रंथों मे गयत्रि मन्त्र
    यह महामन्त्र वेदों में कई-कई बार आया है ।
    ऋग्वेद में ६ ।६२ ।१०,
    ‍सामवेद में २ ।८ ।१२,
    यर्जुवेद वा० सं० में ३ ।३५-२२ ।९ -३० । २-३६ ।३,
    अथर्व वेद में १९ । ७१ ।१
    में गायत्री की महिमा विस्तार पूर्वक गाई गई है ।

    ब्राह्मण ग्रन्थों में गायत्री मन्त्र का उल्लेख अनेक स्थानोंपर है । यथा-
    ऐतरेय ब्राह्मण ४ ।३२ ।२-५ ।५ ।६-१३ ।८, १९ ।८,
    ‍कौशीतकी ब्राह्मण २२ ।३-२६ ।१०,
    गोपथ ब्राह्मण १ ।१ ।३४,
    दैवत ब्राह्मण ३ ।२५,
    शतपथ ब्राह्मण २ ।३ ।४ ।३९-२३ ।६ ।२ ।९-१४ ।९ ।३ ।११,
    तैतरीय सं० १ ।५ ।६ ।४-४ ।१ ।१,
    मैत्रायणी सं० ४ ।१० ।३-१४९ ।१४

    आरण्यकों में गायत्री का उल्लेख इन स्थानों पर है-
    तैत्तरीय आरण्यक १ ।१ ।२१० ।२७ ।१,
    वृहदारण्यक ६ ।३ ।११ ।४ ।८,

    उपनिषदों में इस महामन्त्र की चर्चा निम्न प्रकरणों में है-
    नारायण उपनिषद् १५-२,
    मैत्रेय उपनिषद् ६ ।७ ।३४,
    जैमिनी उपनिषद् ४ । २८ ।१,
    श्वेताश्वतर उपनिषद् ४ ।१८ ।

    सूत्र ग्रंथों में गायत्री का विवेचन निम्न प्रसंगों में आया है-
    आश्वालायन श्रोैत सूत्र ७ । ६ । ६-८ । १ । १८,
    शांखायन श्रौत सूत्र २ । १० ।२-१२ ।७-५ ।५ ।२-१० ।६ ।१०-९ ।१६,
    आपस्तम्भ श्रौत सूत्र ६ । १८ । १,
    शांखायन गृह्य सूत्र २ । ५ ।१२,७ । १९,६ । ४ । ८,
    कौशीतकी सूत्र ९१ । ६,
    खगटा गृह्य सूत्र २ । ४ । २१,
    आपस्तम्भ गृह्य सूत्र २ । ४ । २१,
    बोधायन ध० शा० २ । १० । १७ । १४,
    मान०ध०शा० २ ।७७,
    ऋग्विधान १ । १२ । ५
    मान० गृ० सू० १ । २ । ३-४ । ४ ।८-५ ।२ ।

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  37. गायत्री का शीर्ष भाग : ॐ र्भूभुवः स्वः
    गायत्री, वैदिक संस्कृत का एक छन्द है जिसमें आठ-आठ अक्षरों के तीन चरण-कुल २४ अक्षर होते हैं । गायत्री शब्द का अर्थ है- प्राण-रक्षक । गय कहते हैं प्राण को, त्री कहते हैं त्राण-संरक्षण करने वाली को । जिस शक्ति का आश्रय लेने पर प्राण का, प्रतिभा का, जीवन का संरक्षण होता है उसे गायत्री कहा जाता है । और भी कितने अर्थ शास्त्रकारों ने किये हैं । इन सब अर्थों पर विचार करने पर यह कहा जा सकता है कि यह छोटा-सा मन्त्र भारतीय संस्कृति, धर्म एवं तत्वज्ञान का बीज है । इसी के थोड़े से अक्षरों में सन्निहित प्रेरणाओं की व्याख्या स्वरूप चारों वेद बने ।

    'ॐ र्भूभुवः स्वः' यह गायत्री का शीर्ष कहलाता है । शेष आठ-आठ अक्षरों के तीन चरण हैं जिनके कारण उसे त्रिपदा कहा गया है । एक शीर्ष , तीन चरण, इस प्रकार उसके चार भाग हो गये, इन चारों का रहस्य एवं अर्थ चारों वेदों में है । कहा जाता है कि ब्रह्माजी ने अपने चार मुखों से गायत्री के इन चारों भागों का व्याख्यान चार वेदों के रूप में दिया । इस प्रकार उनका नाम वेदमाता पड़ा । 'गायत्री तत्वबोध'-श्लोक ४-७ में कहा गया है-

    ॐकारस्तु परंब्रह्म व्याप्तो ब्रह्माण्डमण्डले ।
    यः स एवोच्यते शब्द ब्रह्माथो नादब्रह्म च ॥
    र्सवेषां वेदमन्त्राणां पूर्वं चोच्चारणादयम् ।
    ॐकारः कथ्यते सर्वैः पाठान्तेऽपि च सर्वदा॥
    अर्थात्-ॐकार परब्रह्म है । वह निखिल ब्रह्माण्ड में व्याप्त है, उसे शब्द ब्रह्म और नाद ब्रह्म के नाम से भी जाना जाता है । प्रत्येक वेदमन्त्र के उच्चारण के पूर्व तथा पाठ-सामाप्ति के बाद इसे लगाया जाता है ।

    ॐकारस्यैव वर्णेभ्यस्त्रिभ्यस्तु व्याहृतित्रयम् ।
    उत्पन्नं यच्च गायत्र्यामोङ्कारान्ते प्रयुज्यते॥
    भूर्भुवः स्वरयं शीर्षो भागो मन्त्रस्य विद्यते ।
    पृथक्त्वैऽप्यस्य मन्त्रस्य प्रारम्भेऽस्ति नियोजनम्॥
    अर्थात्-ॐकार के तीन अक्षरों (अ,उ,म्) से तीन व्याहृतियाँ उत्पन्न हुई ।
    उन्हें भी गायत्री महामंत्र के साथ ॐ के उपरान्त जोड़ा जाता है । 'ॐ र्भूभुवः स्वः' यह गायत्री-मंत्र का शीर्ष भाग है । पृथक होते हुए भी इसका मंत्र के आदि में नियोजन होता है ।

    शब्दों की दृष्टि से गायत्री महामन्त्र का भावार्थ सरल है-
    ॐ (परमात्मा) भूः (प्राण स्वरूप) भुवः (दुःख नाशक) स्वः (सुख स्वरूप) तत् (उस) सवितुः (तेजस्वी) वरेण्यं (श्रेष्ठ) भर्गः (पाप नाशक) देवस्य (दिव्य) धीमहि (धारण करें) धियो (बुद्धि) यः (जो) नः (हमारी) प्रचोदयात् (प्रेरित करें) ।
    उस सुख स्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पाप नाशक, प्राण स्वरूप ब्रह्म को हम धारण करते हैं, जो हमारी बुद्धि को (सन्मार्ग की ओर) प्रेरणा देता है ।

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  38. ॐ - प्रणव
    ॐकार को ब्रह्म कहा गया है । वह परमात्मा का स्वयं सिद्ध नाम है । योग विद्या के आचार्य समाधि अवस्था में पहुँच कर जब ब्रह्म का साक्षात्कार करते हैं, तो उन्हें प्रकृति के उच्च अन्तराल में ध्वनि होती हुई परिलक्षित होती है । जैसे घड़ियाल पर चोट मार देने से वह बहुत देर तक झनझनाती रहती है, इसी प्रकार बार-बार एक ही कम्पन उन्हें सुनाई देते हैं । यह नाद 'ॐ' ध्वनि से मिलता-जुलता होता है । उसे ही ऋषियों ने ईश्वर का स्वयंसिद्ध नाम बताया है और उसे 'शब्द' कहा है ।

    इस शब्द ब्रह्म से रूप बनता है । इस शब्द के कम्पन सीधे चलकर दाहिनी ओर मुड़ जाते हैं । शब्द अपने केन्द्र की धुरी पर भी घूमता है, इस प्रकार वह चारों तरफ घूमता रहता है । इस भ्रमण, कम्पन, गति और मोड़ के आधार पर स्वस्तिक बनता है, यह स्वस्तिक ॐकार का रूप है ।

    ॐकार को प्रणव भी कहते हैं । यह सब मंत्रों का सेतु है, क्योंकि इसी से समस्त शब्द और मंत्र बनते हैं । प्रणव से व्याहृतियाँ उत्पन्न हुई और व्याहृतियों में से वेदों का आविर्भाव हुआ ।
    प्रणव की श्रेष्ठता को ध्यान में रखते हुए आचार्यों ने समस्त श्रेष्ठ कर्मों में ओंकार को प्राथमिकता देने का विचार किया है । यह मंत्रों का सेतु है, इस पुल पर चढ़कर मंत्र मार्ग को पार किया जा सकता है । बिना आधार के, नाव - पुल आदि अवलम्बन के किसी बड़े जलाशय को पार करना जिस प्रकार संभव नहीं, उसी प्रकार मंत्रों की सफलता के लिए ,बिना प्रणव के सफलता मिलना दुस्तर है । इसलिए आमतौर से सब मंत्रों में और विशेष रूप से गायत्री मंत्र में सर्वप्रथम प्रणव का उच्चारण आवश्यक बताया गया है ।

    क्षारन्ति सर्वा चैव यो जुहोति यजति क्रियाः ।
    अक्षरमक्षयं ज्ञेयं ब्रह्म चैव प्रजापतिः॥
    अर्थात् बिना ॐ के समस्त कर्म, यज्ञ, जप आदि निष्फल होते हैं । ॐ को अविनाशी, प्रजापति ब्रह्म जानना चाहिये ।

    प्रणवं मंत्राणां सेतुः । -व्यास
    प्रणव मंत्रों का पुल है अर्थात् मंत्र पार करने के लिए प्रणव की आवश्यकता अपरित्याज्य है ।
    यदोंकारमकृत्वा किंचिदारभ्यते तद्वज्रो भवति ।
    तस्माद्वज्रभयाद्भीतओंकारं पूर्वमारंभेदिति॥
    अर्थात्-बिना ओंकार का उच्चारण किये, सभी कार्य वज्रवत् अर्थात् निष्फल हो जाते हैं । अतः वज्र-भय से डर कर प्रथम ॐ का उच्चारण करें ।

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  39. गायत्री मंत्र में सबसे प्रथम ॐ को इसलिए नियोजित किया है कि इस शक्ति की धारा को इस पुल पर चढ़कर पार किया जा सके । ॐ जिन अर्थों का बोधक है उन अर्थों की, गुणों की, आदर्शों की स्फुरणा साधक की अन्र्तभूमि में होती है, फलस्वरूप आध्यात्मिक साधना का मार्ग सुगम हो जाता है । ॐ की शिक्षायें यदि साधक के मन पर जम जावें तो उसका कल्याण होने में देर नहीं लगती है ।

    ॐ शब्द ब्रह्म है । गायत्री ब्रह्म की ही महाशक्ति ब्रह्म है । नाद, बिन्दु और कला की त्रिपुटी प्रणव में सन्निहित है । त्रिपदा गायत्री के तीन चरणों में उस त्रिपुटी का जब सम्मिलन होता है तो अपार आनन्द की अनुभूति होती है । दक्षिणमार्गी और वाममार्गी अपने-अपने ढंग से इन आनन्दों का आस्वादन करते हैं

    तीन व्याहृतियाँ (भूः भुवः स्वः)
    गायत्री में ॐकार के पश्चात् 'भूः भुवः स्वः' यह तीन व्याहृतियाँ आती हैं । इन तीनों व्याहृतियों का त्रिक् अनेकार्थ बोधक हैं, वे अनेकों भावनाओं का, अनेकों दिशाओं का संकेत करती हैं, अनेकों की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करती हैं ।

    ब्रह्मा, विष्णु, महेश, इन तीन उत्पादक, पोषक, संहारक शक्तियों का नाम भूः भुवः स्वः है । सत्, रज, तम, इन तीनों गुणों को भी त्रिविध गायत्री कहा गया है । भूः को ब्रह्म, भुवः को प्रकृति और स्वः को जीव भी कहा जाता है । अग्नि, वायु और सूर्य, इन प्रधान देवताओं का प्रतिनिधित्व तीन व्याहृतियाँ करती हैं । तीनों लोकों का भी इनमें संकेत है । इस प्रकार के अनेकों संकेत व्याहृतियों के त्रिक् में भरे हुए हैं ।
    यह तीन व्याहृतियाँ जिन तीन क्षेत्रों पर प्रकाश डालती हैं वे तीनों ही अत्यन्त विचारणीय एवं ग्रहणीय हैं । ईश्वर, जीव, प्रकृति के गुंथन की गुत्थी को व्याहृतियाँ ही सुलझाती हैं । भूः लोक, भुवःलोक और स्वः लोक यद्यपि लोक विशेष भी हैं, पर अध्यात्म प्रयोजनों में 'भूः' स्थूल शरीर के लिए, 'भुवः' सूक्ष्म शरीर के लिए और 'स्वः' कारण शरीर के लिए प्रयुक्त होता है ।' बाह्य जगत् और अन्तर्जगत् के तीनोें लोकों में ॐकार अर्थात् परमेश्वर सर्वव्याप्त है । व्याहृतियों में इसी तथ्य का प्रतिपादन है । इसमें विशाल विश्व को विराट् ब्रह्म के रूप में देखने की वही मान्यता है, जिसे भगवान् ने अर्जुन को अपना विराट् रूप दिखाते हुए हृदयंगम कराया था । ॐ व्याहृतियों का समन्वित शीर्ष भाग इसी अर्थ और इसी प्रकाश को प्रकट करता है ।

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  40. एक ॐ की तीन संतान हैं-(१)भूः (२) भुवः (३) स्वः । इन व्याहृतियों से त्रिपदा गायत्री का एक-एक चरण बना है । उसके एक-एक चरण में तीन पद हैं । इस प्रकार यह त्रिगुणित सूक्ष्म परम्पराएँ चलती हैं । इनके रहस्यों को जानकार तत्वज्ञानी लोग निर्वाण के अधिकारी बनते हैं । ॐ र्भूभुवः स्वः-इस शीर्ष भाग के पश्चात् गायत्री मंत्र प्रारंभ होता है । गायत्री तत्त्वबोध में स्पष्ट उल्लेख है ।
    अस्यानन्तरमेषोऽस्ति प्रारब्धो मंत्र उत्तमः ।
    विद्यन्ते यत्र वर्णास्तु चतुवशतिसंख्यकाः॥
    अर्थात्- इसके उपरान्त उत्तम गायत्री मंत्र प्रारंभ होता है ।


    गायत्री के चौबीस अक्षर हैं । गायत्री महामंत्र में अक्षरों की गणना इस प्रकार की जाती है-
    तदादिवर्णगानर्धान् वर्णानगण्यस्तु तान् ।
    'ण्यं' वर्णस्य च द्वौ भागौ 'णि' 'यं' कर्तु च छान्दसे॥
    इयादिपूरणे सूत्रे ध्वनिभेदतया पुनः ।
    चतुर्विशतिरेवं च वर्णा मंत्रे भवन्त्यतः॥
    अर्थात्- गणना में 'तत्' आदि वर्णों में अर्धाक्षरों को नगण्य मानकर, उन्हें एक ही अक्षर गिना जाता है । ऐसी स्थिति में ध्वनि भेद के आधार पर छन्दः प्रयोग में 'इयादिपूरणे' सूत्रानुसार 'ण्यं' वर्ण को 'णि' और 'यं' इन दो भागों में बाँट लिया जाता है । इस प्रकार चौबीस की संख्या पूरी हो जाती हैं-
    १-तत्, २-स, ३-वि, ४-तु, ५-र्व, ६-रे, ७-णि, ८-यं, ९-भ, १०-र्गो, ११-दे, १२-व, १३-स्य, १४-धी, १५-म, १६-हि, १७-धि, १८-यो, १९-यो, २०-नः, २१-प्र, २२-चो, २३-द, २४-यात् ।

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  41. Yeh Saari Jankari niche likhe add. pe uplabdh h. -

    http://hindi.awgp.org/?gayatri/sanskritik_dharohar/gayatri_mahavidya/gayatri_mantra_tatvagyan/tatwika_vivechan.

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  42. गायत्री को वेदमाता इसलिए कहा गया कि उसके २४ अक्षरों की व्याख्या के लिए चारों वेद बने । ब्रह्माजी को आकाशवाणी द्वारा गायत्री मन्त्र की ब्रह्म दीक्षा मिली । उन्हें अपना उद्देश्य पूरा करने के लिए सामर्थ्य, ज्ञान और विज्ञान की शक्ति और साधनों की आवश्यकता पड़ी । इसके लिए अभीष्ट क्षमता प्राप्त करने के लिए उन्होंने गायत्री का तप किया । तप-बल से सृष्टि बनाई । सृष्टि के सम्पर्क, उपयोग एवं रहस्य से लाभान्वित होने की एक सुनियोजित विधि-व्यवस्था बनाई । उसका नाम वेद रखा । वेद की संरचना की मनःस्थिति और परिस्थिति उत्पन्न्ा करना गायत्री महाशक्ति के सहारे ही उपलब्ध हो सका । इसलिए उस आद्यशक्ति का नाम 'वेदमाता' रखा गया ।

    वेद सुविस्तृत हैं । उसे जन साधारण के लिए समझने योग्य बनाने के लिए और भी अधिक विस्तार की आवश्यकता पड़ी । पुराण-कथा के अनुसार ब्रह्मा जी ने चार मुखों से गायत्री के चार चरणों की व्याख्या करके चार वेद बनाये ।

    ''ॐ भूभुर्वः'' के शीर्ष भाग की व्याख्या से 'ऋग्वेद' बना । ''तत्सवितुवर् रेण्यं'' का रहस्योद्घाटन यजुवेर्द में है । 'भर्गो देवस्य धीमहि' का तत्त्वज्ञान विमर्श 'सामवेद में है ।' 'धियो योनः प्रचोदयात्' की प्रेरणाओं और शक्तियों का रहस्य 'अथवर्वेद' में भरा पड़ा है ।

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  43. तत्त्वज्ञानियों ने गायत्री मंत्र में अनेकानेक तथ्यों को ढूँढ़ निकाला है और यह समझने-समझाने का प्रयतन किया है कि गायत्री मंत्र के २४ अक्षर में किन रहस्यों का समावेश है । उनके शोध निष्कर्षों में से कुछ इस प्रकार हैं-

    (१) ब्रह्म-विज्ञान के २४ महाग्रंथ हैं । ४ वेद, ४ उपवेद, ४ ब्राह्मण, ६ दर्शन, ६ वेदाङ्ग । यह सब मिलाकर २४ होते हैं । तत्त्वज्ञों का ऐसा मत है कि गायत्री के २४ अक्षरों की व्याख्या के लिए उनका विस्तृत रहस्य समझाने के लिए इन शास्रों का निर्माण हुआ है ।

    (२) हृदय को जीव का और ब्रह्मरंध्र को ईश्वर का स्थान माना गया है । हृदय से ब्रह्मरंध्र की दूरी २४ अंगुल है । इस दूरी को पार करने के लिए २४ कदम उठाने पड़ते हैं । २४ सद्गुण अपनाने पड़ते हैं- इन्हीं को २४ योग कहा गया है ।

    (३) विराट् ब्रह्म का शरीर २४ अवयवों वाला है । मनुष्य शरीर के भी प्रधान अंग २४ ही हैं ।

    (४) सूक्ष्म शरीर की शक्ति प्रवाहिकी नाड़ियों में २४ प्रधान हैं । ग्रीवा में ७, पीठ में १२, कमर में ५ इन सबको मेरुदण्ड के सुषुम्ना परिवार का अंग माना गया है ।

    (५) गायत्री को अष्टसिद्धि और नवनिद्धियों की अधिष्ठात्री माना गया है । इन दोनों के समन्वय से शुभ गतियाँ प्राप्त होती हैं । यह २४ महान् लाभ गायत्री परिवार के अन्तर्गत आते हैं ।

    (६) सांख्य दर्शन के अनुसार यह सारा सृष्टिक्रम २४ तत्त्वों के सहारे चलता है । उनका प्रतिनिधित्व गायत्री के २४ अक्षर करते हैं ।

    'योगी याज्ञवल्क्य' नामक ग्रंथ में गायत्री की अक्षरों का विवरण दूसरी तरह लिखा है-

    र्कम्मेन्दि्रयाणि पंचैव पंच बुद्धीन्दि्रयाणि च ।
    पंच पंचेन्दि्रयार्थश्च भूतानाम् चैव पंचकम्॥
    मनोबुद्धिस्तथात्याच अव्यक्तं च यदुत्तमम् ।
    चतुर्विंशत्यथैतानि गायत्र्या अक्षराणितु॥
    प्रणवं पुरुषं बिद्धि र्सव्वगं पंचविशकम्॥

    अर्थात्-(१) पाँच ज्ञानेन्दि्रयाँ (२)पाँच कर्मेन्दि्रयाँ (३) पाँच तत्त्व (४) पाँच तन्मात्राएँ । शब्द, रूप, रस, गंध, स्पर्श । यह बीस हुए । इनके अतिरिक्त अन्तःकरण चतुष्टय (मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार) यह चौबीस हो गये । परमात्म पुरुष इन सबसे ऊपर पच्चीसवाँ हैं ।

    ऐसे-ऐसे अनेक कारण और आधार है, जिनसे गायत्री में २४ ही अक्षर क्यों हैं, इसका समाधान भी मिलता है । विश्व की महान् विशिष्टताओं के मिलते ही परिकर ऐसे हैं, जिनका जोड़ २४ बैठ जाता है । गायत्री मंत्र में उन परिकरों का प्रतिनिधित्व रहने की बात, इस महामंत्र में २४ की ही संख्या होने से, समाधान करने वाली प्रतीत हो सकती है ।

    'महाभारत' का विशुद्ध स्वरूप प्राचीन काल में 'भारत-संहिता' के नाम से प्रख्यात था । उसमें २४००० श्लोक थे-''चतुर्विंशाति साहस्रीं चक्रे भारतम्'' में उसी का उल्लेख है । इस प्रकार महत्त्वपूर्ण ग्रंथ रचियताओं ने किसी न किसी रूप में गायत्री के महत्त्व को स्वीकार करते हुए उसके प्रति किसी न किसी रूप में अपनी श्रद्धा व्यक्त की है ।

    वाल्मीकि रामायण में हर एक हजार श्लोकों के बाद गायत्री के एक अक्षर का सम्पुट है । श्रीमद् भागवत के बारे में भी यही बात है

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  44. http://hindi.awgp.org/?gayatri/sanskritik_dharohar/gayatri_mahavidya/gayatri_mantra_tatvagyan/chaubis_rahasya/

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  45. Greate Amit...

    Thank for this kind infomation. Aaj samaj ko Gayatri matra ki jaroorat. Ishi se manav kalyan hoga, chaahe wah, hindu ho ,muslim ho ya anay kishi bhi dahrm ke ho. SALEEM Bhai ne bhi sahi kaha, ki unko kewal Gayatri Mantra se hi "MARG " mila hai.

    Hindu or muslim sare log . es matra ka roj subah jape or apna marg banaaye, or Bharat ko aage badhaye

    Raj Singh....

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  46. Dr Anvar Sahab,

    @ मैं गायत्री का जी भर कर आनन्द लेना चाहता हंू ।......

    Roj Subah aap gayatri matra ka Jap karen, Tabhi Aapko iska asli Anand Milegaa.
    Kya aap Gayatri matra ka Jap karte hain. Agar nahi to kal se karoge kya?????

    Please answer...

    Thanks

    Raj Singh

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  47. @ Mr. Raj mbd.
    apne shayad dhyan se nahin padha .
    मैं गायत्री को जपता भी हूं और जीता भी हूं और आप ...?

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  48. Janaab aap likhte h ki-जब आपकी टिप्पणियां मिलनी बन्द हो जाएंगी । तभी मैं इस ब्लॉग पर नई पोस्ट क्रिएट करूंगा ।
    Paar main aap se सार्थक संवाद की एक मिसाल
    kaayam karna chata hun or aap us post ko chod ke naa jane kha nikal jate hain,

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  49. Gayatri Mantra hi namaz hai 0m =alla ho akbar. bhu = jaminpar matha rakho buva = aakash ki or ishvar ko dhundo swa = kudke rudaya/ heart me dekho ishwar hai kya ? tat = us savitru = aalah varenyam = ham jisaka swikar karate hai. bhargo devasya dhimahi.

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  50. Acha prayas hai
    Parantu or gehrai se smjha ja skta hai or samazaya bhi ja sakta hai

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