सनातन धर्म के अध्‍ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अ‍ाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to

जिस पुस्‍तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्‍दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्‍दी रूपान्‍तर है, महान सन्‍त एवं आचार्य मौलाना शम्‍स नवेद उस्‍मानी के ध‍ार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन पर आधारति पुस्‍तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्‍त के प्रिय शिष्‍य एस. अब्‍दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्‍य जावेद अन्‍जुम (प्रवक्‍ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्‍तक के असल भाव का प्रतिबिम्‍ब उतर आए इस्लाम की ज्‍योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्‍दी प्रेमियों के लिए प्रस्‍तुत है, More More More



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Saturday, August 14, 2010

Only 'He' can save us एक ईश्वर की वंदना : हरेक समस्या का सच्चा समाधान - Anwer Jamal

15 अगस्त 1947 ई0 को भारत आज़ाद हुआ। उससे पहले अंगे्रजों ने पाकिस्तान को अलग देश बनाया और फिर कुछ समय बाद ही बांग्लादेश भी बन गया। तीनों देशों के नेताओं ने दशकों शासन किया लेकिन ग़रीबी, भूख और अपराध का खात्मा न कर सके बल्कि सत्ता की कुर्सियों पर अपराधी तत्व ही क़ाबिज़ हो गए।
धर्म सिखाता है क्षमा, प्रेम, दया और उपकार, मतभेद के बबावजूद एक दूसरे के मानवाधिकारों का सम्मान और सुरक्षा करना। तीनों देशों के नेताओं ने इसे उलट दिया। इनका ज़िक्र और उपदेश तो कहीं पीछे छूट गया। उन्होंने लोगों की धार्मिक भावनाओं को भड़काया, उनके विवेक को सुलाया और एक दूसरे से टकरा दिया। अक्सर धर्म गुरू भी उनके साथ ही रहे या फिर अलोकप्रिय हो जाने के डर से ख़ामोश रहे।
आज हालत यह है कि देश ‘यह’ हो या ‘वह’ लेकिन मंदिर-मस्जिद-दरगाह और इमामबाड़ों में बम धमाके आम बात हो गए हैं। इस तरह की समस्याएं लोगों का ध्यान शिक्षा, रोज़गार और विकास के मुद्दों से हटा देती हैं। देश की समस्याएं नेताओं की समस्या हल करती हैं।
कश्मीर काफ़ी हद तक शांत था। शांतिकाल में वहां शिक्षा, रोज़गार और विकास के लिए जो काम किये जाने चाहियें थे, नहीं किये गये। नतीजा यह हुआ कि आज कश्मीरी जवान पत्थर मार रहा है और गोली खा रहा है। कश्मीर के विकास के लिये दिये गये ‘आर्थिक पैकेजेज़’ का करोड़ों रूपया कोई अकेले ही डकार गया या उसे मिल-बांटकर खाया गया ?, इसे न कोई पूछता है और न ही कोई बताता है। नक्सलवाद के मूल में भी यही कारण है। ग़लत हैं नीतियां नेताओं की ओर मारे जाते है फ़ौजी और आम लोग।
स्वतन्त्रता दिवस कल आने वाला है और माह-ए-रमज़ान चल ही रहा है। माह-ए-रमज़ान के रोजे़ इंसान को उसकी ज़िम्मेदारी का अहसास दिलाते हैं उसमें गुनाह से बचने का भाव जगाते हैं, उसे नेकी और भलाई के कामों पर उभारते हैं। यह दुनिया ही सब कुछ नहीं है। मौत के बाद भी जीवन है और प्रलय के बाद भी सृष्टि है परलोक है जहां हरेक जीव को अपने कर्मो का ‘पूरा फल’ भोगना ही है।
नेताओं में जब तक ‘तक़वा’ अर्थात ज़ुल्म-ज़्यादती और पाप से बचने का भाव नहीं जगेगा तब तक लोगों की कोई समस्या हल न हो सकेगी, देश चाहे ‘यह’ हो या ‘वह’ या फिर कोई तीसरा।
ईश्वर एक है और मानव जाति को भी एक हो जाना चाहिये। अलगाववाद और हिंसा किसी समस्या का समाधान नहीं है। एक परमेश्वर की वंदना और उसके आदेशों का पालन ही हरेक समस्या का सच्चा और स्थायी समाधान है।

वंदे ईश्वरम्