सनातन धर्म के अध्‍ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अ‍ाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to

जिस पुस्‍तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्‍दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजबूर कर दिया था उसका यह हिन्‍दी रूपान्‍तर है, महान सन्‍त एवं आचार्य मौलाना शम्‍स नवेद उस्‍मानी के ध‍ार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन पर आधारति पुस्‍तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्‍त के प्रिय शिष्‍य एस. अब्‍दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक शिष्‍य जावेद अन्‍जुम (प्रवक्‍ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्‍तक के असल भाव का प्रतिबिम्‍ब उतर आए इस्लाम की ज्‍योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकने का सार्थक प्रयास हिन्‍दी प्रेमियों के लिए प्रस्‍तुत है, More More More



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Friday, August 27, 2010

About Namaz on road सड़क पर नमाज़ पढ़कर लोगों को तकलीफ़ न दें -Anwer Jamal

अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया- ‘‘ तुम रास्ते में बैठने से बचो।‘‘
लोगों ने पूछा , ‘‘ऐ अल्लाह के रसूल ! यह तो हमारे लिए ज़रूरी है।‘‘
आपने फ़रमाया, ‘‘ अगर तुम्हारे लिए यह ज़रूरी है तो रास्ते को उसका हक़ दो।‘‘
उन्होंने मालूम किया कि ‘‘रास्ते का क्या हक़ है ?‘‘
आप स. ने फ़रमाया, ‘‘निगाहें नीची रखना, तकलीफ़ देने वाली चीज़ों को रास्ते से हटा देना, सलाम का जवाब देना, नेकी का हुक्म देना और बुराई से मना करना।‘‘  -बुख़ारी, मुस्लिम
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आज एक इलैक्ट्रिक उपकरण सही कराने के लिए रेलवे क्रासिंग पार जाना हुआ तो देखा कि सड़क किनारे बनी हुई एक छोटी सी मस्जिद के बाहर दो लेन वाली सड़कों में से एक को स्टूल वग़ैरह लगाकर ब्लॉक कर दिया है। यह देखते ही मेरे दिल पर एक घुटन सी छा गई। सड़क चलने वालों के लिए बनाई गई है या नमाज़ पढ़ने के लिए ?
क्या सरकारी सड़क पर क़ब्ज़ा करना एक ग़ैर-इस्लामी और हराम काम नहीं है ?
क्या नाजायज़ क़ब्ज़े वाली ज़मीन पर नमाज़ पढ़ना भी नाजायज़ नहीं है ?
आज जुमा का दिन है और रमज़ान का महीना है यानि हराम काम से बचने की प्रैक्टिस का महीना है। आज तो हरेक गुनाह से बहुत ही ज़्यादा बचने की कोशिश करनी चाहिए न कि अपनी इबादत को ही गुनाह से आलूदा कर लिया जाए।
अल्लाह के रसूल स. ने तो आम हालात में लोगों का सड़कों पर बैठना पसंद नहीं फ़रमाया और लोगों को तिजारत वग़ैरह जायज़ ज़रूरतों की वजह से वहां बैठने की इजाज़त दी भी तो कुछ शर्तों के साथ कि वे रास्ता चलने वालों का हक़ न मारें, उनके लिए परेशानी खड़ी न करें बल्कि अगर उन्हें परेशान करने वाली कोई झाड़ी वग़ैरह वहां पड़ी हो तो उसे हटा दें।
आज उल्टा हो रहा है कि सड़क पर जहां कुछ भी पड़ा हुआ नहीं है वहां स्टूल वग़ैरह डालकर उसे ब्लॉक किया जा रहा है। परेशान राहगीर मुसलमानों के साथ-साथ उनकी नमाज़ और उनके दीन को भी कोसेंगे। इबादतख़ाने के बाहर दीन के खि़लाफ़ अमल हो रहा है और कर कौन रहे हैं ?, जिनपर लोगों को दीन का सही शऊर देने की ज़िम्मेदारी है। यानि कि वे खुद दीन के सही शऊर से कोरे हैं।
ऐसे मौक़े पर प्रशासन मात्र इस वजह से ख़ामोश रहता है कि उसके हस्तक्षेप से बात सुधरने के बजाय और ज़्यादा बिगड़ जाएगी। उसकी ख़ामोशी से यह मतलब निकाल लिया जाता है कि प्रशासन के दख़लअंदाज़ी न करने का मतलब यह है कि उनके काम पर प्रशासन को कोई आपत्ति नहीं है।
शहर में बड़ी-बड़ी मस्जिदें हैं, उनमें जाईये। थोड़ा पहले निकलिये, अपने वक्त की कुरबानी दीजिये या फिर अपने माल की कुरबानी दीजिए और संभव हो तो आस-पास की जगह ख़रीदकर अपने पास की मस्जिद को ही अपनी ज़रूरत के मुताबिक़ बड़ी बना लीजिए।
जो लोग न अपने माल की कुरबानी देना चाहते हैं और न ही अपने वक्त की, उन्हें अपनी सुविधा के लिए शहर के दूसरे तमाम राहगीरों को तकलीफ़ देने और दीन को कलंकित करने का कोई हक़ नहीं है।
2-कोई कह सकता है कि जागरण और कांवड़ जैसे धार्मिक कार्यों के लिए भी तो सड़कें ब्लॉक कर दी जाती हैं ?
इस बारे में यह कहा जाएगा कि नबी स. का फ़रमान आपके सामने हैं और एक मुस्लिम की हैसियत से आप उसे मानने के लिए पाबंद हैं। आप खुद को समाज के लिए नफ़ाबख्श बनाईये, अच्छी मिसाल क़ायम कीजिये, दूसरों तक आपकी अच्छाई का असर पहुंचेगा तो हो सकता है कि वे भी अपने व्यवहार पर विचार करें।
रमज़ान के महीने में विभिन्न दीनी संस्थाएं लोगों को रोज़े के क़ायदे-क़ानून समझाने और उनसे चन्दे की अपील करने के लिए कैलेंडर आदि छापते-बांटते हैं। इन संस्थाओं को रमज़ान के महीने में ‘सड़क पर नमाज़ की अदायगी‘ जैसे सामाजिक मुद्दों पर भी दीनी हुक्म प्रकाशित और प्रचारित करना चाहिये। मस्जिदों के इमाम साहिबान को भी अपने खुत्बों में इस पर लोगों को सही जानकारी देनी चाहिये।
3-इसी मस्जिद से दस क़दम की दूरी पर शहर का एक बेहद महंगा होटल है। वापस लौटते हुए देखा कि होटल के सामने सड़क के डिवाइडर पर रखकर आतिशबाज़ी की जा रही है और उसकी भयानक आवाज़ से मैं लगातार दहलता रहा और सोचता रहा कि अगर किसी वजह से आतिशबाज़ी के यंत्र की दिशा बदल गई तो उसकी चपेट में आकर कोई भी घायल हो सकता है। खुशियों के अवसर पर होने वाली आतिशबाज़ी और फ़ायरिंग से होने वाली मौत की ख़बरें आये दिन अख़बारों में छपती रहती हैं लेकिन लोग फिर भी झूठे दिखावे से बाज़ नहीं आते।
शर्म की बात है कि इसी देश में लोग रोटी और दवाओं जैसी बुनियादी ज़रूरतों को तरस रहे हैं और कुछ लोग दिखावे की ख़ातिर दौलत में आग लगा रहे हैं। यह बेशऊरी आम है पूरे देश में, हर इलाक़े में। खुद आतिशबाज़ के कपड़े उसकी ग़ुरबत का ऐलान कर रहे थे। मासूम बच्चों के सिरों पर रौशनी के हण्डे रखकर बारात निकालने वाले और बारात में शराब पीकर नाचने वाले सिर्फ़ यह दिखा रहे हैं कि उन्हें किसी के दुख से कोई मतलब नहीं है। फिर ऐसे लोगों का समाज अपने नेताओं से यह अपेक्षा क्यों रखता है कि वे उनकी परेशानियों पर समुचित ध्यान दें ?
बेशऊरी आम है हर तरफ़ और रमज़ान का मुक़द्दस महीना चल ही रहा है। मुसलमानों की ज़िम्मेदारी है कि वे रमज़ान का हक़ अदा करें और अपने अन्दर दीन का सही शऊर जगायें। भूखों-प्यासों के दर्द को समझने के लिये रोज़ा बेहतरीन ज़रिया है। खुदा की रहमत पाने के लिए खुद लोगों के साथ रहम का बर्ताव कीजिये। सड़क रोककर नमाज़ न पढ़ना भी लोगों के साथ रहम के बर्ताव में से ही एक अमल है। शुरूआत इसी से कीजिये।