tag:blogger.com,1999:blog-4259576974473302844.post6416668311148203570..comments2023-10-18T23:46:43.430+05:30Comments on Ved Quran: Ramazan जिस्म और रूह की बेहतरी है रोज़े में - Anwer JamalDR. ANWER JAMALhttp://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.comBlogger39125tag:blogger.com,1999:blog-4259576974473302844.post-54404973450899987972010-08-17T17:55:25.854+05:302010-08-17T17:55:25.854+05:30डाक्टर साहब,
आपकी टिप्पणी के पहले पेरे को भ्रांत प...डाक्टर साहब,<br />आपकी टिप्पणी के पहले पेरे को भ्रांत प्रचार न मानकर, मंतव्य तो मेरा भी यही आपका अंतिम वाक्य है,<br />"यहाँ मेरा उद्देश्य मात्र इतना है कि हम सब कोई ऐसे भ्रामक प्रचार न करें जिसका हमारे समाज पर निकट भविष्य में बुरा और प्रतिकूल प्रभाव पड़े ।"<br />दूरगामी भी…॥<br />ज़ीशान ज़ैदी से सहमत होते हुए कि"कोढ़ मगजों को कोई नहीं समझा सकता. वो अपनी ही बके जायेंगे."<br />इस दुष्कर कार्य वाली चर्चा को यहीं समाप्त समझता हूं।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4259576974473302844.post-49753059520545907782010-08-17T17:17:35.694+05:302010-08-17T17:17:35.694+05:30कोढ़ मगजों को कोई नहीं समझा सकता. वो अपनी ही बके ज...कोढ़ मगजों को कोई नहीं समझा सकता. वो अपनी ही बके जायेंगे.zeashan haider zaidihttps://www.blogger.com/profile/16283045525932472056noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4259576974473302844.post-48141228788083054442010-08-16T17:42:48.615+05:302010-08-16T17:42:48.615+05:30shayad isliye allah aap ke baccho ko mar ker kha g...shayad isliye allah aap ke baccho ko mar ker kha gaye <br />aap unke bacho ko maar ker khayo.wo aap ke<br /><br />maine jitna pada hai duniya ke liye bahut jayda haiAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4259576974473302844.post-70962747591069509332010-08-15T15:36:22.920+05:302010-08-15T15:36:22.920+05:30आज विज्ञानं के युग में जबकि हमें प्रत्येक जीव और व...आज विज्ञानं के युग में जबकि हमें प्रत्येक जीव और वनस्पति की हिस्ट्री और कैमिस्ट्री मालूम है फिर भी आज हमारे तथाकथित गुरु अपने अपने धर्मशास्त्रों, वैज्ञानिक सत्यों और प्राकृतिक व्यवस्था का विरोध न जाने क्यों कर रहे हैं? आज हम सम्पूर्ण वनस्पति जगत, प्राणी जगत, और विशाल समुंदरी जगत की वास्तविकता घर बैठे देख रहे हैं इसलिए यह बात आसानी से समझ सकते हैं कि अगर विश्व में मांसाहार पर 100 प्रतिशत प्रतिबन्ध लगा दिया जाए तो क्या हम 700 करोड़ लोगों कि आहार पूर्ती केवल अनाज से कर पाएंगे? हमारी सम्पूर्ण पृथ्वी का 30 प्रतिशत थल और लगभग 70 प्रतिशत समुन्द्र है । 30 प्रतिशत थल में भी पहाड़ हैं , रेगिस्तान है, वन खंड है, बंजर है, नदी-नाले है आवास है , जो कृषि योग्य भूमि है वह अत्यंत कम है । इस कृषि योग्य भूमि से मानव जाती कि आहार पूर्ति संभव नहीं है।फिर आखिर यह बात हमारी समझ में क्यों नही आती कि मांस भक्षण मानव जाति कि आहार पूर्ति कि लिए अपरिहार्य है । इसका हमारे पास अन्य कोई विकल्प नहीं । अगर मांस भक्षण पर प्रतिबन्ध लगा दिया जाए तो अंदाज़ा लगाइए कि एक रोटी कि कीमत क्या होगी? मांस एक प्राकृतिक आहार है । मांस भक्षण का विरोध करना प्राकृतिक व्यवस्था के खिलाफ है । शाकाहारवाद एक अप्राकृतिक धारणा है, इसे कभी पूर्णतया लागू ही नहीं किया जा सकता । आने वाले समय में तो कुछ ऐसे लगता है कि मनुष्य कि आहार पूर्ति केवल समुन्द्र ( Sea Food ) से होगी और सच भी यही है कि अति विशाल समुन्द्र ही हमारी आहार पूर्ति का मूल स्रोत है । जो शाकाहारवादी ( Extremist Vegetarianism ) मंशार का पुरजोर विरोध कर रही हैं, उन्हें अपनी रूढ़वादी और मिथ्या धारणा पर पुनर्विचार करना चाहिए । प्राकृतिक सत्यों को झुठलाना स्वयं को अज्ञानी और अन्धविश्वासी साबित करना है ।<br />यहाँ मेरा उद्देश्य मांसाहार को प्रोत्साहित करना हरगिज़ नहीं है , जो खाना है खाये । यह समाज , राष्ट्र और विश्व कि कोई ज्वलंत समस्या नहीं है । यहाँ मेरा उद्देश्य मात्र इतना है कि हम सब कोई ऐसे भ्रामक प्रचार न करें जिसका हमारे समाज पर निकट भविष्य में बुरा और प्रतिकूल प्रभाव पड़े ।DR. ANWER JAMALhttps://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4259576974473302844.post-85867440579307775692010-08-15T01:48:20.116+05:302010-08-15T01:48:20.116+05:30अयाज़ साहब,
वस्तुतःआपका सारा ध्यान विषय पर विश्लेषण...अयाज़ साहब,<br />वस्तुतःआपका सारा ध्यान विषय पर विश्लेषण करने की जगह अपनी बात सही साबित करने में ही लगा रहता है।<br />इस तरह के पूर्वाग्रह से ही हम सत्य-तथ्य पर पहूंचने से वंचित रह जाते है।<br />क्या आप स्वीकार करेंगे कि आप लोग मुर्दाखोर हैं?<br />तर्क से तो बिना जान निकले शरीर मांस में परिणित हो ही नहिं सकता। लाजिक से तो कोई भी मांस मुर्दे का ही होगा। और वह तुक्का ही है कि काटो तो वह मुर्दा नहिं। खेर यह हमारी चर्चा का विषय नहिं।<br />मेरी पूर्व टिप्पणी में सजीव और निर्जीव का उल्लेख किया था। यहां एक बात जान लो कि हम वनस्पति जीवों के मुर्दाखोर है। यह बहुत ही गम्भीर विषय है,और पुरे पश्च्याताप से यह मानते भी है कि निरीह वनस्पति को जीव रहित कर खाना निर्दयता है। पर "अपनी जान बचाने के लिए कुछ संघर्ष कर ही लेते है" उन संघर्षरत पशुओं को मात्र स्वाद के लिये मार खाना कैसी पराकाष्ठा है,जिन गंदी चीज़ों को दूर करने के लिये आप वज़ू करते हो,और यह मांस उन्ही गंदे पदार्थों से निर्मित होता है।<br />और आप लोग कहते भी हो कि "शाकाहारी होकर भी एक अच्छा मुसलमान हो सकता है" फ़िर इतनी ज़िद्द क्यों?,जिन देशों में शाकाहार उपलब्ध न था कारण हो सकता है। पर यहां जब सात्विक आहार की प्रचूरता है तो क्यों नहिं दे देते जीवों को करूणा दान। पैगम्बर मोहम्म्द साहब के जीवनवृत में कई किस्से आते है जब उन्होने जीवों पर दया दिखाई। उनका मक़सद साफ़ था गैरजरूरी हिंसा न करो। अच्छा भोजन मिलते हुए भी जीभ के स्वाद (वासनाओं इच्छाओं)की पूर्ती के लिये अलग से हिंसा करना कहां तक जायज़ है?<br />चलो जीव जंतु और पोधों दोनों में निर्दयता की पराकाष्ठा है, पर आप तो अनावश्यक दोनो उपयोग करते हो, शाकाहारीओं ने एक निर्दयता तो छोड रखी है। शाकाहारी होनें में मज़हब भी आडे नहीं आता। न शिर्क होगा न कुफ़्र,और न शाकाहारी बनने से हिंदु बन जाओगे। फ़िर क्यों न स्वाद की कुर्बानी देकर परहेज़गार बनो।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4259576974473302844.post-51343189778078684422010-08-14T23:57:22.301+05:302010-08-14T23:57:22.301+05:30@SUGH जी ऐसा सुना है कि रिश्ते तो सात जन्मों के या...@SUGH जी ऐसा सुना है कि रिश्ते तो सात जन्मों के या उससे भी ज्यादा के लिए होते है! गाजर का जूस का रंग लाल उसके शरीर के कारण ही होता है जीव जंतु तो फिर भी अपनी जान बचाने के लिए कुछ संघर्ष कर ही लेते है मगर निरीह पौधों को काट कर खाना निर्दयता की पराकाष्ठा नही हैAyaz ahmadhttps://www.blogger.com/profile/09126296717424072173noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4259576974473302844.post-34866207734015863112010-08-14T23:56:39.899+05:302010-08-14T23:56:39.899+05:30This comment has been removed by the author.Ayaz ahmadhttps://www.blogger.com/profile/09126296717424072173noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4259576974473302844.post-20179707150797301992010-08-14T17:56:21.181+05:302010-08-14T17:56:21.181+05:30रिश्ते तो एक जीवन तक के ही होते है, इसी लिये तो सभ...रिश्ते तो एक जीवन तक के ही होते है, इसी लिये तो सभी जीवों को अपने जैसा ही मानने का विधान है, मेरी सभी जीवों से मैत्री है, मेरा किसी से बैर नहिं।<br />पदार्थों के अपने गुण दोष होते है, जीवंतता और निर्जिवपना भी होता है, मात्र रंग से खून जैसा होनें से क्रूरता नहीं झलकती।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4259576974473302844.post-89491969684924898482010-08-14T17:17:51.107+05:302010-08-14T17:17:51.107+05:30जो लोग मानते हैं कि आवागमन होता है उनके अनुसार एक ...जो लोग मानते हैं कि आवागमन होता है उनके अनुसार एक ही आत्मा अपने कर्मों के फल भोगने के लिये जन्तु और वनस्पति योनि में चली जाती है । आप जो मूली या टमाटर खा रहे हैं , हो सकता है कि वह आपका ही रिश्तेदार हो ?<br />गाजर का जूस तो बिल्कुल खून जैसा ही होता है जिसे शाकाहारी बड़े शौक़ से पीते हैं ?DR. ANWER JAMALhttps://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4259576974473302844.post-85661175784622316742010-08-14T17:00:48.461+05:302010-08-14T17:00:48.461+05:30मांस न केवल क्रूरता की उपज है, बल्कि मांस में सडन ...मांस न केवल क्रूरता की उपज है, बल्कि मांस में सडन गलन की प्रक्रिया तेज गति से होती है। परिणाम स्वरूप जीवोत्पत्ति तीव्र व अधिक होती है। इतना ही नहिं, पकने के बाद भी उसमे जीवों की उत्पत्ति की प्रक्रिया निरन्तर जारी रह्ती है। और भी कई कारण है,सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4259576974473302844.post-40131775446696546762010-08-14T16:55:25.397+05:302010-08-14T16:55:25.397+05:30जनाब यूनुस एवं जमाल साहब,
वनस्पति में जीवन है यह ब...जनाब यूनुस एवं जमाल साहब,<br />वनस्पति में जीवन है यह बात आज के विज्ञान की नहीं करोडों वर्ष प्राचीन है।<br />लेकिन अकसर आप लोगों का तर्क बेमतलब होता है।<br /><br />आपका तर्क होता है कि जब सब में जीवन हैं तो क्यों न उच्च्तम क्रुर, और सबसे उपर का हिंसाजनक तरीका अपनाया जाय?<br /><br />बस यही समज़ने का फ़ेर है।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4259576974473302844.post-60097418897659079552010-08-14T16:37:30.904+05:302010-08-14T16:37:30.904+05:30भाई आलोक ! अपने भी आधा ही पढ़ा है . जनाब यूनुस पूछ ...भाई आलोक ! अपने भी आधा ही पढ़ा है . जनाब यूनुस पूछ रहे हैं कि आप हरे पेड़ काटकर फर्नीचर क्यों बनाते हो ?DR. ANWER JAMALhttps://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4259576974473302844.post-67356987501581462042010-08-13T16:27:14.422+05:302010-08-13T16:27:14.422+05:30@ ayaj ahmad ji mai to nasmajh hu
per aap adhpad(k...@ ayaj ahmad ji mai to nasmajh hu<br />per aap adhpad(kam pada lika) ho....vanspati me tantira tantra hota hai ye sahi hai per wo fal ya sabhi ke pakne per khatam ho jata hai ...fal ped ki taygne ki cheej hoti hai.jaise ager ghas ko na kata jaye to wah mar jaati hai<br /><br />@anwar jamal aap ko anonymous banker tippdi dene ki kya jaroorat hai<br />@ tarkeshwar ji such keh ke liye koi himmat ki jaroorat nhi ho tiAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4259576974473302844.post-87630528793782887142010-08-13T16:02:35.647+05:302010-08-13T16:02:35.647+05:30meat khana ya jaanavaro ko maarna to musalmaano ka...meat khana ya jaanavaro ko maarna to musalmaano kaa param dharm hain, ye to aadmi ko bhii jaanvaron kii tarah maarte hain. jo dharm maar - kaat kii sikhaata detaho vo dharm nahii adharm. musalmaan ek alok-tamtrik yaa nastik dharm hainAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4259576974473302844.post-4498161279040760142010-08-12T15:31:23.110+05:302010-08-12T15:31:23.110+05:30@ राष्ट्रधर्म सेवा संघ ! क्या यह सही है कि पेड़-पौध...@ राष्ट्रधर्म सेवा संघ ! क्या यह सही है कि पेड़-पौधे जीवित चीज़ माने जाते हैं ?<br /># क्या यह सही है कि पेड़-पौधों में तंत्रिका तंत्र भी पाया जाता है ? <br /># क्या यह सही है कि पेड़-पौधों में नर और मादा भी होते हैं ? और उनमें अनुभूतियां भी होती हैं ? # क्या पेड़-पौधों पर अन्य करोड़ों जीव भी होते हैं ? <br /># अगर यह सब सही है तो फिर मनुष्य को क्या अधिकार है कि वह हरे पेड़ काटकर अपने लिये फ़र्नीचर बनाये ? <br /># साग-सब्ज़ी काटकर जीवों की हत्या करे और उन्हें खाये ? <br />आप कहते हैं -<br /><i> सभी उसी परमात्मा के जीव हैं, चाहे वह कीडा हो या हाथी, परमात्मा के लिए इनमें कोई अन्तर नहीं है, इसलिए सभी जीवों पर दया किजिए।<br /></i><br /><b>आपकी दया से ये सब जीव क्यों महरूम रह जाते हैं ?</b>HAKEEM YUNUS KHANhttps://www.blogger.com/profile/11947101320031096515noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4259576974473302844.post-35054001012002313702010-08-12T10:03:00.175+05:302010-08-12T10:03:00.175+05:30@@@ Anwar Jamal -
I hope u can understand it bett...@@@ Anwar Jamal -<br /><br />I hope u can understand it better than me - सभी उसी परमात्मा के जीव हैं, चाहे वह कीडा हो या हाथी, परमात्मा के लिए इनमें कोई अन्तर नहीं है, इसलिए सभी जीवों पर दया किजिए।<br /><br />Waise aapakaa hamaare Leh waalon ke liye kya program hai, agar koi charity aarambh ki ho to bataiye, ham aapake saath hain, kyonki chahe koi Hindu ho Ya Musalmaan ho hain to sab us allaah ke hee bande, <br /><br />matbhed to bas maanytaon kaa hee hai .<br /><br />Om Shantiराष्ट्र धर्म सेवा संघhttps://www.blogger.com/profile/16030967315563416078noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4259576974473302844.post-69271254634057089492010-08-12T09:56:08.457+05:302010-08-12T09:56:08.457+05:30दया धर्म का आधार है, जिस धर्म में दया का नियम नहीं...दया धर्म का आधार है, जिस धर्म में दया का नियम नहीं है, वह धर्म व्यर्थ है, दया के विषय में कबीरदासजी कहते हैं -<br /><br />जहाँ दया वहाँ धर्म है, जहाँ लोभ वहाँ पाप।<br />जहाँ क्रोध वहाँ काल है,जहाँ क्षमा वहाँ आप।।<br /><br />दया किस पर करें इस पर कहते हैं -<br /><br />दया कौन पर किजिए का पर निर्दय होए।<br />सांई के सब जीव हैं, किरि कुन्जर दोए॥<br /><br />सभी उसी परमात्मा के जीव हैं, चाहे वह कीडा हो या हाथी, परमात्मा के लिए इनमें कोई अन्तर नहीं है, इसलिए सभी जीवों पर दया किजिए।राष्ट्र धर्म सेवा संघhttps://www.blogger.com/profile/16030967315563416078noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4259576974473302844.post-60562170543011669112010-08-12T09:53:49.232+05:302010-08-12T09:53:49.232+05:30हमारे देश में आज भी 84 करोड़ लोग 20-30 रुपये प्रति...हमारे देश में आज भी 84 करोड़ लोग 20-30 रुपये प्रतिदिन पर निर्वाह करते हैं ऐसे में मांस की कीमत है 200 रुपये प्रति किलो जिससे केवल दो लोगों का ही पेट भर सकता है जबकि 10 रुपये किलो गेहूं से लगभग 20 लोगों का 200 रुपये में पेट भर सकता है| आप ही सोचिये क्योंकि किलो मांस = 20 किलो गेहूं अथवा 15 किलो चावल || <br /><br />क्या उचित है? <br /><br /><br />हमारे बहुत से भाई-बहन केवल अपनी आत्मा को धोखा देते हुए मांसाहार को भगवान से जोड़ देते हैं कहतें हैं - "जीवो जीवस्य भोजनं" (अर्थात जीव ही जीव का भोजन है) यह भगवान द्वारा बनाया नियम है, जबकि वे एक बार भी नहीं सोचते की यदि ऐसा हो तो भी हम मनुष्य इस नियम के अंतर्गत नहीं आते क्योंकि हमारा कोई भी प्रकृति भक्षक नहीं है| कोई हमारे बच्चों को पैदा होते ही नहीं खा जाता है| कुछ भगवान राम के मृग शिकार तथा दशरथ के शिकार का अपवाद देते हैं तो याद रखिये की जिस सीता के कहने पर राम ने हिरण का शिकार किया वह उनसे जीवन दूर हो गयी, दशरथ के बारे में सब जानते हैं, यहाँ पर भगवान ने जीव हिंसा करने वालों के लिए प्रत्यक्ष परिणाम उदाहरण स्वरुप दिखाया है|राष्ट्र धर्म सेवा संघhttps://www.blogger.com/profile/16030967315563416078noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4259576974473302844.post-32662571469177584362010-08-12T09:51:09.336+05:302010-08-12T09:51:09.336+05:30विश्व में यदि सभी माँसाहारी हो जाएँ तो विश्व के पे...विश्व में यदि सभी माँसाहारी हो जाएँ तो विश्व के पेट्रोलियम भंडार केवल 13 वर्षों में समाप्त हो जायेंगे, लेकिन सभी शाकाहारी हो जाएँ तो यह 260 वर्षों के लिए पर्याप्त है (ख) एक किलो गेहूं के उत्पादन में 24 लीटर पानी, जबकि 1 किलो मांस के उत्पादन में 2,400-10,000 लीटर पानी लगता है (ग) गेहूं से एक किलो प्रोटीन के लिए 115 रुपये जबकि मांस से 1 किलो प्रोटीन के लिए 1159 रुपये खर्च करने पड़ते हैं|राष्ट्र धर्म सेवा संघhttps://www.blogger.com/profile/16030967315563416078noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4259576974473302844.post-2473634062207130262010-08-12T09:49:24.699+05:302010-08-12T09:49:24.699+05:30@ Dr. Anwar Jamal- कम खाने से जितना खाना बचेगा वह ...@ Dr. Anwar Jamal- कम खाने से जितना खाना बचेगा वह यतीम, मिस्कीन, ग़रीब व फ़क़ीर वग़ैरह पर सदक़ा होकर क़यामत में उसके लिए साया करेगा। <br /><br />Please see below :- <br /><br />आज के समय में तो हर समझदार यह मानता है कि "Non voilence is the need of peaceful world" (अहिंसा विश्व शांति के लिए आवश्यक है), लेकिन यदि हम किसी जीव को क्रूरता से मार सकते हैं, तो संभव है की उससे अधिक क्रूर होने पर हम किसी मनुष्य को ही मार दें, शायद यहीं आज हो रहा है| इसलिए पूर्ण अहिंसा आवश्यक है|<br /><br />अहिंसा का अर्थ कायरता नहीं है क्योंकि अपने से कमजोर कि रक्षा करना बहादुरी है न कि कायरता| कायर तो वे हैं जो अपने से कमजोर, शस्त्रहीन, प्राकृतिक रूप से असहायों पर अत्याचार करते हैं| वीर तो सदैव कमजोर जीवों की रक्षा ही करते है और अत्यचार वालों को दंड देते हैं|राष्ट्र धर्म सेवा संघhttps://www.blogger.com/profile/16030967315563416078noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4259576974473302844.post-24722380641682999572010-08-12T08:04:03.537+05:302010-08-12T08:04:03.537+05:30तारकेश्वर जी ने बहुत अच्छी बात कही!तारकेश्वर जी ने बहुत अच्छी बात कही!इस्लामिक वेबदुनियाhttps://www.blogger.com/profile/11061886527726526853noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4259576974473302844.post-39096622398156220252010-08-11T18:11:19.571+05:302010-08-11T18:11:19.571+05:30तारकेश्वर जी ने बहुत अच्छी बात कही!तारकेश्वर जी ने बहुत अच्छी बात कही!zeashan haider zaidihttps://www.blogger.com/profile/16283045525932472056noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4259576974473302844.post-32432615779452587482010-08-11T17:04:16.148+05:302010-08-11T17:04:16.148+05:30ROJA MUBARAK HOROJA MUBARAK HOTaarkeshwar Girihttps://www.blogger.com/profile/06692811488153405861noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4259576974473302844.post-62256984511930779222010-08-11T17:03:24.176+05:302010-08-11T17:03:24.176+05:30एक अच्छी पोस्ट के लिए बधाई.
अलोक जी आपकी हिम्मत ...एक अच्छी पोस्ट के लिए बधाई. <br /><br />अलोक जी आपकी हिम्मत कि दाद देनी पड़ेगी, कि आप ने इधर टिप्पड़ी कि, मगर एक बात ये भी जान लीजिये कि अगर जानवर खाए नहीं जायेंगे तो वो इंसानों को खा जायेंगे.रही बात रोजे कि तो सचमुच रोजा एक अच्छी सेहत प्रदान करता हैं . और जंहा तक में जनता हूँ कि मुस्लमान लोग रोजे में मांस का प्रयोग काम करते हैं.<br /><br />सब कुछ मौसम के ऊपर निर्भर हैं. अरबियन देश का मौसम और हिंदुस्तान के मौसम में बहुत फर्क हैं. अरबियन देश में हरियाली काम और रेगिस्तान ज्यादा हैं इस वजह से वंहा के लोग शुरुवाती दौर से ही रोजा रखते हैं और मांस का प्रयोग करते हैं. दिन भर कि चिल-चिलाती गर्मी से नमाज उनको नई उर्जा देती हैं. ठीक उसी तरह से रोजा पुरे शारीर को तारो ताजा और कई बिमारियों से दूर रखता हैं.<br /><br />ठीक उसी तरह से हिन्दू लोग नवरात्रों का वर्त रखते हैं और फलाहार ही ग्रहण करते हैं क्योंकि हिंदुस्तान में फलो का भंडार हैं.Taarkeshwar Girihttps://www.blogger.com/profile/06692811488153405861noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4259576974473302844.post-41869586231830377492010-08-11T15:52:16.591+05:302010-08-11T15:52:16.591+05:30medicaly रोज़ा उपवास का सबसे अच्छा तरीका है. और म...medicaly रोज़ा उपवास का सबसे अच्छा तरीका है. और मोटे लोगों के पतले होने का.impacthttps://www.blogger.com/profile/09650609253555091496noreply@blogger.com