tag:blogger.com,1999:blog-4259576974473302844.post6000476840295067536..comments2023-10-18T23:46:43.430+05:30Comments on Ved Quran: वेद आर्य नारी को बेवफ़ा क्यों बताते हैं ? The heart of an Aryan lady .DR. ANWER JAMALhttp://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.comBlogger55125tag:blogger.com,1999:blog-4259576974473302844.post-58640878802123080432010-03-26T21:42:03.694+05:302010-03-26T21:42:03.694+05:30मेरे पास तो इसी सुरेन्द्र कुमार शर्मा की ही लिखित ...मेरे पास तो इसी सुरेन्द्र कुमार शर्मा की ही लिखित कुरान की पुस्तक है जिसमें इन्होने लिखा है कुरआन में अल्लाह का आदेश है <b>'सभी मुसलामानों को अपनी-२ ग**ड मरवानी चाहिए'</b> अनवर जी क्या ये भी सच है. यदि है तो अपना पता दे देना मैं आ जाऊँगा बड़ी इच्छा है तेरी ग**ड मा*ने की.सुमितnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4259576974473302844.post-82042995970356639462010-03-26T21:27:25.994+05:302010-03-26T21:27:25.994+05:30मैंने इसके अभी कई लेख देखे. इसकी बातों पर कोई ना ज...मैंने इसके अभी कई लेख देखे. इसकी बातों पर कोई ना जाये क्योंकि ये आदमी पक्का झूठा है.<br />इसका खंडन मैंने सौरभ आत्रेय द्वारा छोड़ी गयी टिप्पणी से पढ़ा जिसमें इसने गुदा से सांप लेने का जिक्र किया है. ये आदमी कुछ भी बक-२ करे जा रहा है <br />http://vedquran.blogspot.com/2010/03/blog-post_02.html<br />अगर मैं ये कहूँ कि मेरे पास एक अली हसन द्वारा लिखित कुरान की कॉपी है और उसमें लिखा है मोहम्मद साहब को अल्लाह ने अपनी गांड मरवाने के लिए लिखा हुआ है तो क्या वो सच हो जायेगी. इसी तरह से ये आदमी वेदों को बदनाम करने के लिए दिन-रात लगा हुआ है.Ram Kumarnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4259576974473302844.post-57918706183092651802010-03-20T09:32:24.206+05:302010-03-20T09:32:24.206+05:30anonymous ne chaccha ko okaat dekha dee ..chachha ...anonymous ne chaccha ko okaat dekha dee ..chachha aap ne kuran me jo aurat ke bare me jo jikar kiya heuska jawab kyo nahee diya ?????/kya kooran anonymous ne likhi he??/....kesaa ghatiya garanth he ye kuran????//chachha aap se mene pahale bhi sawal kiyaa tha thoda behooda laga hoga lakin sawal tha to toomahre riti niti ke bare me hitha naa... chachha koi aapke ghatiya kuraan ke baareme likhe to aapko mirchi lagtee hogee chacha jawab de...akhir aap ne varsho varsh kisi hindu ashram me tapsyaa karke gyan parpat kiya hoga aap gyani jo thare....Manhttps://www.blogger.com/profile/04207741457433540498noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4259576974473302844.post-44746211361254463972010-03-17T22:00:20.574+05:302010-03-17T22:00:20.574+05:30This comment has been removed by the author.Amit Sharmahttps://www.blogger.com/profile/15265175549736056144noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4259576974473302844.post-49172305842322394302010-03-17T18:18:52.284+05:302010-03-17T18:18:52.284+05:30amit ji mai aapke blog tak nahi pahoonch paa raha ...amit ji mai aapke blog tak nahi pahoonch paa raha hoon,<br />kripya kar maargdarshan kare...kunwarji'shttps://www.blogger.com/profile/03572872489845150206noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4259576974473302844.post-88454660502236086652010-03-17T14:29:00.361+05:302010-03-17T14:29:00.361+05:30नेति-नेति
उपनिषद् की यह अवधारणा कि वह पूर्ण है औ...नेति-नेति<br /><br /><br />उपनिषद् की यह अवधारणा कि वह पूर्ण है और यह भी पूर्ण है। पूर्ण से ही पूर्ण का उदय-विकास होता है। उस पूर्ण में से यह पूर्ण प्राप्त कर लेने पर भी वह पूर्ण ही रहता है—<br /><br />पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।<br />पूर्णस्य पूर्णमादाय, पूर्णमेवावशिष्यते।।<br /><br /><br />अस्तु वेद का वह सनातन भाण्डागार पूर्ण है। उससे प्रकट यह वेद भी पूर्ण हैं, क्योंकि समकालीन सृष्टि तन्त्र का पूर्ण ज्ञान इसमें रहता है। सनातन वेद में से प्रत्यक्ष वेद के प्रकट होने या न होने से उस सनातन की पूर्णता में कोई अन्तर नहीं पड़ता। पदार्थ से उत्पन्न ज्ञान (पाश्चात्य-विज्ञान) पदार्थ के साथ नष्ट हो सकता है, किन्तु चेतना अनश्वर है, इसलिए चेतना से उद्भूत ज्ञान को भी अनश्वर कहा गया है।। ऋषियों ने यह ज्ञान समाधि द्वारा परमात्म तत्त्व से एकाकार होकर पाया था। ऋषियों का ज्ञान ‘साक्षात्कार का ज्ञान’ नॉलेज बाय आयडेन्टिटी (Knowledge by Identity) है। देख-पढ़कर, बैद्धिकता, तार्किक विश्लेषण द्वारा अथवा बाह्य प्रेरणा द्वारा ऐसा ज्ञान उपलब्ध नहीं होता। यह हमारी संस्कृति की ही अनादिकालीन परम्परा रही है कि ज्ञान-प्राप्ति हेतु ऋषि-गण आत्मसत्ता की प्रयोगशाला में जाकर अन्तर्मुखी हो मनन, निदिध्यासन तथा फिर समाधि की स्थिति में जाकर चेतना जगत् के सूत्रों को खोज लाते थे। उन ज्ञान सूत्रों का क्रमबद्ध संकलन हमें वेद मंत्रों के रूप में उपलब्ध है। ऋषियों ने वेद को पूर्ण तो कहा, किन्तु उसी के साथ नेति-नेति (यही अंतिम नहीं है) भी कहा ‘पूर्णमिदं’ के साथ नेति-नेति कहना उनके तत्त्व द्रष्टा और स्पष्ट वक्ता होने का प्रमाण है। अंतर्दृष्टि की परिपक्वता के बिना कोई व्यक्ति ऐसी उक्ति कह नहीं सकता। ऋषियों ने लोक एवं काल की आवश्यकता के अनुरूप चेतना के समग्र सूत्र प्रकट कर दिये। इसलिए उन्हें पूर्ण तो कहा, किन्तु वे देख रहे थे कि यह पूर्ण ज्ञान भी इस दिव्य ज्ञान भाण्डागार का एक अंश मात्र है। इसलिए उन्होंने नेति (यही अंतिम नहीं) कह दिया। आवश्यकता के अनुरूप जिस ज्ञान का बोध उन्होंने किया, उसे जन-जन तक पहुँचाने के लिए उसे भाषा में व्यक्त करना आवश्यक हुआ। अनुभूति को व्यक्त करने में भाषा सामान्य व्यवहार में भी अक्षम सिद्ध होती है, सो वेदानुभूति को व्यक्त करने में तो वह समर्थ हो ही कैसे सकती थी ? अस्तु ऋषियों ने स्पष्टता से कह दिया जितना कुछ व्यक्त किया जा सका, तथ्य केवल उतना ही नहीं है। उसे पूर्णतया समझने के लिए तो स्वानुभूति की क्षमता ही विकसित करनी होती है।<br /><br />देवसंस्कृति के मर्मज्ञ ऋषियों ने इसी कारण से वेदाध्ययन करने वालों के लिए दो तत्व अनिवार्य बताए हैं—श्रद्धा एवं साधना। श्रद्धा की आवश्यकता इसलिए पड़ी कि आलंकारिक भाषा में कहे गए रूपकों के प्रतिमान—शाश्वत सत्यों को पढ़कर बुद्धि भ्रमित न हो जाय। साधना इस कारण आवश्यक है कि श्रवण-मनन-निदिध्यासन की परिधि से भू ऊपर उठकर मन ‘‘अनन्तं निर्विकल्पम्’’ की विकसित स्थिति में जाकर इन सत्यों का स्वयं साक्षात्कार कर सके। मंत्रों का गुह्यार्थ तभी जाना जा सकता है।<br /><br />http://pustak.org/bs/home.php?bookid=35Amit Sharmahttps://www.blogger.com/profile/15265175549736056144noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4259576974473302844.post-13802050959078672192010-03-17T14:28:29.122+05:302010-03-17T14:28:29.122+05:30आचार्य शंकर ने अपने ‘शारीरिक –भाष्य’ में वेदान्त स...आचार्य शंकर ने अपने ‘शारीरिक –भाष्य’ में वेदान्त सूत्र —‘अतएव च नित्यत्वम्’ की व्याख्या में महाभारत का यह श्लोक उद्धृत किया है—युगान्तेऽन्तर्हितान् वेदान् सेतिहासान् महर्षयः। लेभिरे तपसा पूर्वमनुज्ञाताः स्वयंभुवा।। ‘युग के अन्त में वेदों का अन्तर्धान हो जाता है। सृष्टि के आदि में स्वयंभू के द्वारा महर्षि लोगों ने उन्हीं वेदों को इतिहास के साथ अपनी तपस्या के बल से प्राप्त किया।’<br /><br />ऐसा भी प्रसिद्धि है कि परमात्मा ने सृष्टि के प्रारम्भ में ही ‘वेद’ के रूप में अपेक्षित ज्ञान का प्रकाश कर दिया। महाभारत में ही महर्षि वेदव्यास ने इस सत्य का उद्घाटन करते हुए लिखा है—अनादि निधना नित्या वागुत्सृष्टा स्वयम्भुवा। आदौ वेदमयी दिव्या यतः सर्वाः प्रवृत्तयः (महा. शा. प. 232, 24)। अर्थात्—सृष्टि के प्रारम्भ में स्वयंभू परमात्मा से ऐसी दिव्य वाणी (वेद) का प्रादुर्भाव हुआ, जो नित्य है और जिससे संसार की गतिविधियाँ चलीं। स्थूल बुद्धि से यह अवधारणा अटपटी सी-कल्पित सी लगती है, किन्तु है सत्य। आज के विकसित विज्ञान के सन्दर्भ से उसे समझने का प्रयास करें, तो बात कुछ स्पष्ट हो सकती है। कम्प्यूटर तंत्र के अंतर्गत मास्टर के साथ माइक्रोवेव टावर्स (सूक्ष्म तरंग प्रणाली) द्वारा विभिन्न कम्प्यूटर केन्द्र जुड़े रहते हैं। रेलवे टिकिट बुकिंग से लेकर अन्तर्राष्ट्रीय आँकड़ों के तन्त्रों में आज यह प्रणाली प्रयुक्त है। प्रत्यक्ष में कम्प्यूटरों के पर्दे पर इच्छित आँकड़े या सूत्र उभरते रहते हैं। यदि कोई कम्प्यूटर केन्द्र बिगड़ जाए अथवा नष्ट हो जाए तो उस अंकित आँकड़े नष्ट या लुप्त हो गये से लगते तो हैं, किंतु वास्तव में वे मास्टर कम्प्यूटर में समा जाते हैं, वहाँ सुरक्षित रहते हैं। कालान्तर में कम्प्यूटर केन्द्र पुनः स्थापित होने पर वे ही सूत्र पुनः पर्दों पर आने लगते हैं।<br /><br />उक्त विधा के अनुरूप ही पराचेतना में मास्टर कम्प्यूटर की तरह समस्त ज्ञान स्थित है। विभिन्न लोकों और विभिन्न कालों में वहाँ विकसित उच्च-परिष्कृत मानस कम्प्यूटर केन्द्रों की भूमिका निभाते रहते हैं। कभी भूलोक आदि किसी लोक का तन्त्र नष्ट या अस्त-व्स्त हो जाने से वह ज्ञान नष्ट नहीं होता। यह अवधारणा चेतना-विज्ञान का क, ख, ग समझने वालों को भी अटपटी नहीं लगनी चाहिए।<br /><br /><br />7Amit Sharmahttps://www.blogger.com/profile/15265175549736056144noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4259576974473302844.post-9281906367848000362010-03-17T14:28:00.722+05:302010-03-17T14:28:00.722+05:30वेदों को अपौरुषेय कहा गया है। भारतीय धर्म संस्कृति...वेदों को अपौरुषेय कहा गया है। भारतीय धर्म संस्कृति एवं सभ्यता का भव्य प्रसाद जिस दृढ़ आधारसिला पर प्रतिष्ठित है, उसे वेद के नाम से जाना जाता है। भारतीय आचार-विचार, रहन-सहन तथा धर्म-कर्म को भली-भाँति समझने के लिए वेदों का ज्ञान बहुत आवश्यक है। सम्पूर्ण धर्म-कर्म का मूल तथा यथार्थ कर्त्तव्य-धर्म की जिज्ञासा वाले लोगों के लिए ‘वेद’ सर्वश्रेष्ठ प्रमाण हैं। ‘वेदोंऽखिलो धर्ममूलम्’, ‘धर्मं जिज्ञासमानानां प्रमाणं परमं श्रुतिः’ (मनु. 2.6, 13) जैसे शास्त्रवचन इसी रहस्य का उद्घाटन करते हैं। वस्तुतः ‘वेद’ शाश्वत-यथार्थ ज्ञान राशि के समुच्चय हैं, जिसे साक्षात्कृतधर्मा ऋषियों ने अपने प्रातिभ चक्षु से देखा है—अनुभव किया है।<br /><br />ऋषियों ने अपने मन या बुद्धि से कोई कल्पना न करके एक शाश्वत अपौरुषेय सत्य की, अपनी चेतना के उच्चतम स्तर पर अनुभूति की और उसे मंत्रों का रूप दिया। वे चेतना क्षेत्र की रहस्यमयी गुत्थियों को अपनी आत्मसत्ता रूपा प्रयोगशाला में सुलझाकर सत्य का अनुशीलन करके उसे शक्तिशाली काव्य के रूप में अभिव्यक्त करते रहे हैं। वेद स्वयं इनके बारे में कहता है—‘सत्यश्रुतः कवयः’’ (ऋ.5.57.8) अर्थात् ‘‘दिव्य शाश्वत सत्य का श्रवण करने वाले द्रष्टा महापुरुष।’’<br /><br /> इसी आधार पर वेदों को ‘श्रुति’ कहकर पुकारा गया। यदि श्रुति का भावात्मक अर्थ लिया जाय, तो वह है स्वयं साक्षात्कार किये गये ज्ञान का भाण्डागार। इस तरह समस्त धर्मों के मूल के रूप में माने जाने वाले, देवसंस्कृति के रत्न-वेद हमारे समक्ष ज्ञान के एक पवित्र कोष के रूप में आते हैं। ईश्वरीय प्रेरणा से अन्तःस्फुरण (इलहाम) के रूप में ‘‘आत्मवत् सर्वभूतेषु’’ की भावना से सराबोर ऋषियों द्वारा उनका अवतरण सृष्टि के आदिकाल में हुआ।<br /><br />वेदों की ऋचाओं में निहित ज्ञान अनन्त है तथा उनकी शिक्षाओं में मानव-मात्र ही नहीं, वरन् समस्त सृष्टि के जीवधारियों-घटकों के कल्याण एवं सुख की भावना निहित है। उसी का वे उपदेश करते हैं। इस प्रकार वे किसी धर्म या सम्प्रदाय विशेष को दृष्टिगत रख अपनी बात नहीं कहते। उनकी शिक्षा में छपे मूल तत्त्व अपरिवर्तनीय हैं, हर काल-समय-परिस्थिति में वे लागू होते हैं तथा आज की परिस्थितियों में भी पूर्णतः व्यावहारिक एवं विशुद्ध विज्ञान सम्मत हैं।<br /><br />भारतीय परम्परा ‘वेद’ के सर्व ज्ञानमय होने की घोषणा करती है—‘भूतं भव्यं भविष्यञ्च सर्वं वेदात् प्रसिध्यति।’ (मनु.12.97) अर्थात् भूत, वर्तमान और भविष्यत सम्बन्धी सम्पूर्ण ज्ञान का आधार वेद है। आचार्य सायण ने कृष्ण यजुर्वेद की तैत्ति. सं. के उपोद्घात में स्वयमेव लिखा है—<br /><br /><br />प्रत्क्षेणानुमित्या वा यस्तूपायो न बुध्यते।<br />एनं विदन्ति वेदेन तस्माद् वेदस्य वेदता।।<br /><br /><br />अर्थात्-प्रत्यक्ष अथवा अनुमान प्रमाण से जिस तत्त्व (विषय) का ज्ञान प्राप्त नहीं हो रहा हो, उसका ज्ञान भी वेदों के द्वारा हो जाता है। यही वेदों का वेदत्व है।<br /><br />दृष्टाओं का मत है कि वेद श्रेठतम ज्ञान–पराचेतना के गर्भ में सदैव से स्थित रहते हैं। परिष्कृत-चेतना-सम्पन्न ऋषियों के माध्यम से वे प्रत्येक कल्प में प्रकट होते हैं। कल्पान्त में पुनः वहीं समा जाते हैं।Amit Sharmahttps://www.blogger.com/profile/15265175549736056144noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4259576974473302844.post-31058314777250641482010-03-17T14:21:45.443+05:302010-03-17T14:21:45.443+05:30or mane aap se koi tark-vitark toh kiye hi nahi th...or mane aap se koi tark-vitark toh kiye hi nahi the aap ne likha-कृपया पाठक वर्ग भी हमें अपने ख़याल से आगाह करे ।<br /><br />Check your spiritual G.K.<br /><br />गायत्री मन्त्र चारों वेदों में केवल ऋग्वेद दो जगह में पाया जाता है ।<br />लेकिन कहां कहां पाया जाता है ?<br />और दोनों के अक्षरों में क्या अन्तर है ?<br /><br />मैं चाहूंगा कि ये जानकारी यहां पधारने वाले ब्लॉगर्स बन्धु दें ताकि सार्थक संवाद की एक मिसाल क़ायम हो ।<br />जिसे जिस ज्ञानी का अनुवाद पसन्द हो लाए और सबको दिखाए । <br />maine bataya. kya galat kiya.<br /><br />aapne likha-"सूरज का नियत समय पर निकलना खुद इस बात का सुबूत है कि कोई है जो इस निज़ाम को कन्ट्रोल कर रहा है ।"<br />jabki suraj nikalta nahi h. is line ko batane ka matlab sirf itna tha ki kahne wale ke bhavo ko agar hum nahi samajh paye toh isne kahne wale ki galti nahih.<br />aap apna aapa kyo kho jaate h,jabki GYAAN TO SAGAR KI GAHRAYEYON KI TARAH SHANT HOTA H, OR AAP TOH MAHAGYAANI H.Amit Sharmahttps://www.blogger.com/profile/15265175549736056144noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4259576974473302844.post-42044803898347030372010-03-17T14:12:37.376+05:302010-03-17T14:12:37.376+05:30@ warna man len ki apke paas waqt ke saat gyan bhi...@ warna man len ki apke paas waqt ke saat gyan bhi kum hai.<br /><br />har baat ka nyay karne wala sirf woh parmeshver hi h,ab aap kyon us nyay karne wale ki jagh lekar apna faisla suns rahe h ki mujh me gyaan ki bhi kami h. or aap log har baat ka ant karte huye yahi baat kyo dohrate h-"WARNA MAAN LEN"<br />gyan to atha(unlimited) h koi kaise purn(full) ho sakta h.<br />PURNA to woh PURNBRAHM hi h.<br />"ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्य्ते॥"Amit Sharmahttps://www.blogger.com/profile/15265175549736056144noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4259576974473302844.post-32247030462203184532010-03-17T14:08:08.652+05:302010-03-17T14:08:08.652+05:30मुसलमानों में एक गाली है ,सूअर की ओलाद अपनी अम्मी ...मुसलमानों में एक गाली है ,सूअर की ओलाद अपनी अम्मी से पूछना. तो तुझे सच्चाई का पता जरूर लग जाएगा. एक बात और पूछना की गुदा से सांप कितनी बार लिया था.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4259576974473302844.post-23155226174810130702010-03-17T14:02:03.363+05:302010-03-17T14:02:03.363+05:30डॉ.साहब मुझे नहीं पता के आपका उद्देश्य क्या रहा हो...डॉ.साहब मुझे नहीं पता के आपका उद्देश्य क्या रहा होगा ब्लॉग को इस तरह से पेश करने का!<br /><br />परन्तु यहाँ अमित जी जो जानकारी दे रहे है वो अपने आप में अद्भुत है मुझ अज्ञानी के लिए तो!<br /><br />अमित जी का तो मै शुक्रगुजार हूँ ही साथ में आपका भी जो आप इतनी अच्छी जानकारी के सामने आने में कारण बनते जा रहे हो!परमात्मा करे आप और अधिक प्रश्न करे ओए आपको और अधिक संतुष्ट करने वाले उत्तर मिलते रहे!हम सब का चित विकारों से रहित रहे!<br /><br /><br /><br />कुंवर जी,kunwarji'shttps://www.blogger.com/profile/03572872489845150206noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4259576974473302844.post-18450059815011861892010-03-17T13:58:51.287+05:302010-03-17T13:58:51.287+05:30Waah Amit Ji,
Thanks Greate Article. Aapne to Dr A...Waah Amit Ji,<br />Thanks Greate Article. Aapne to Dr Anvwar Paint Phaad dii.<br /><br />Dr Anvar , ye asli islam hain , tumko sarm nahii aati kii tum musalmaan ho.<br />Kyaa Yehi Allah ke vichaar hain, hi..hi..hi.hiiiiiii<br />Kitne ghatiyaa vichaar hain allah ke. Muslin Aurate kewal bachhaa paidaa karene kii machine hain. Cholu Bhar paani mein doob maro musalmaano. <br /><br />@<br />" तुम्हारी बीवियां तुम्हारी खेतियाँ हैं, सो अपनी खेतियों में जिस तरफ से होकर चाहो जाओ, और आइन्दा के लिए अपने लिए कुछ करते रहो और यकीन रक्खो कि तुम अल्लाह के सामने पेश होने वाले हो। और ऐसे ईमान वालों को खुश खबरी सुना दो"<br />(सूरह अल्बक्र २ दूसरा पर आयत २२३)<br /><br /><br />Lekin Dr Anvar nahii maanegaa. Kal Phir nayee post se jahar uglegaa.<br />Dr Anvar kii baato se mujhe yahi lagta hain ki.<br />1. Kute ke dum seedhii nahi ho saktii<br /><br />2. Laato ke bhoot baton se nahii mante<br /><br />Dr Anvar Kal Koi bhi Hindu Dharm Ke baro mein Galat Post nahii aani chaahiye.<br /><br />Khabardaar. WarningAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4259576974473302844.post-75803278496632858612010-03-17T13:55:55.488+05:302010-03-17T13:55:55.488+05:30वर्ण व्यवस्था के अत्याचार से त्रस्त बहूत से लोगों ...वर्ण व्यवस्था के अत्याचार से त्रस्त बहूत से लोगों ने राहत पाने के लिए हिन्दू संस्कृति का त्याग किया और जिसको जहां ख़ैरियत नज़र आयी वहीं चला गया । गोरखपुर के राजा ने भी जैन मत अपना लिया था क्योंकि वेदवादी पण्डों ने उससे यज्ञ कराया और यज्ञ के नाम पर उसकी रानी का सहवास घोड़े से करवा दिया । बेचारी कोमल रानी इतना बड़ा पुण्य झेल न सकी और मर गयी । राजा ने वैदिक धर्म को त्याग दिया । इस घटना को दयानन्द जी ने सत्यार्थ प्रकाश में बयान किया है । <br />बहरहाल बहुत से कारणों से लोगों ने अन्य मत ग्रहण किये । इन्हीं लोगों में इसलाम ग्रहण करने वाले भी थे । यह भारत में भी हुआ और भारत से बाहर भी हुआ । <br />@ Amit ji malik apko sehat aut daulat se malamal kare.<br />lekin jo sawal apne kiya hai uska jawab apko lena to padega aur mere sawalon ke jawab apko dene padenge.<br />ab aapoot patang copy paste na karen.<br />post men pooche gaye sawalon ke aur tippani men uthaye gaye prashno ke jawab den.<br />warna man len ki apke paas waqt ke saat gyan bhi kum hai.<br />best wishes <br />happy hindu new year.DR. ANWER JAMALhttps://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4259576974473302844.post-13824008178621977442010-03-17T13:43:10.161+05:302010-03-17T13:43:10.161+05:30@ @ Indian citizen ji urf Mr. Amit
Dr.Jmal Ji m k...@ @ Indian citizen ji urf Mr. Amit<br /><br />Dr.Jmal Ji m koi urf nahi hun Mere asli VAIDIK DHARM ki bhanti asli <br /> Amit Sharma<br />(Jaipur,Rajasthan-302013)<br />hi hun. rahi baat matter copy/paste karne ki toh aap ko bata dun, shrimaan m ek kaamkaaji aadmi hun or march ka mahina alag chal raha h,accounts ka kaam dekhta hun, isliye itna time nahi h ki apne vicharo ki post likhne baithu, isliye jo matter mere vicharo se male khata h use post kar deta hun.Amit Sharmahttps://www.blogger.com/profile/15265175549736056144noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4259576974473302844.post-122309637117783672010-03-17T13:24:29.880+05:302010-03-17T13:24:29.880+05:30@ Naam na liye jane layaq aur uske khwahishmand me...@ Naam na liye jane layaq aur uske khwahishmand mere pyare bhai<br />aap fikar na karen woh bhi apko isi blog par koi shamat ka mara jald hi padhwa dega.<br />uske baad jo hamne tayyar kar rakha hai Woh bhi apko zurur pasand ayega .<br />ye hamara wada hai.<br />koi shamat ka mara us rangili kitab ko laye to sahi.<br />agar apke chero ke bache khuche rang bhi na ud jayen to jo chaho hum par jurmana kar dena .DR. ANWER JAMALhttps://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4259576974473302844.post-76460885470733070972010-03-17T13:18:24.256+05:302010-03-17T13:18:24.256+05:30@ Dr. Aslam Qasmi sb . offer ke liye shukriya lek...@ Dr. Aslam Qasmi sb . offer ke liye shukriya lekin apko nahi bulaunga.<br /> Aap aakar batoge ki cow ka goo moot kaun khata hai ?<br />fil hal to inhe ye dekhne do, gyan badhega -<br /><br />http://cpsglobal.org/content/all-men-are-equalDR. ANWER JAMALhttps://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4259576974473302844.post-879851464562428182010-03-17T13:11:26.675+05:302010-03-17T13:11:26.675+05:30@ Indian citizen ji
Aurat ko vedic sahitya men khe...@ Indian citizen ji<br />Aurat ko vedic sahitya men kheti kaha gaya hai . is par apko puri post samarpit karunga .DR. ANWER JAMALhttps://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4259576974473302844.post-31140406662407106862010-03-17T13:09:42.769+05:302010-03-17T13:09:42.769+05:30@ Indian citizen ji urf Mr. Amit
Satyarth Prakas...@ Indian citizen ji urf Mr. Amit<br />Satyarth Prakash se readymade aitraaz utha laye. aap aur ja bhi kahan sakte the?<br />Surya par swami ji ke vichaar padhen-<br />आप सूरज चांद तारों पर भी वैदिक लोगों का होना मानते हो । क्या आप आधुनिक वैज्ञानिकों के कथन को स्वीकार करते हुए दयानन्द जी की मान्यता को ग़लत स्वीकार कर लेंगे ? वैदिक सम्पत्ति के लेखक के गुरू का वेदार्थ ही हमारी समझ से बाहर है । आपके पधारने से हमें अपनी जिज्ञासा “शांत करने का दर्लुभ योग मिला है । सो आप से पूछता हूं -<br /><br /><br />गुदा से सांप ले जाना <br /><br /><br />‘ हे मनुष्यों , तुम मांगने से पुष्टि करने वाले को स्थूल गुदा इंद्रियों के साथ वर्तमान अंधे सांपों को गुदा इंद्रियों के साथ वर्तमान विशेष कुटिल सर्पों को आंतों से , जलों को नाभि के भाग से , अण्डकोश को आंड़ों से , घोड़ों को लिंग और वीर्य से , संतान को पित्त से , भोजनों को पेट के अंगों को गुदा इंद्रिय से और “व्यक्तियों से शिखावटों को निरन्तर लेओ । ’{ यजुर्वेद 25 ः 7 , दयानन्द भाष्य पृष्ठ 876 }<br /><br /><br />इस मन्त्र का क्या अर्थ समझ में आता है? <br /><br /><br />ये कौन सा विज्ञान है जिसपर मनुष्य की उन्नति टिकी हुई है । <br /><br /><br />ऐसी बातों को देखकर ही पश्चिमी वेदिक स्कॉलर्स ने वेदों को गडरियों के गीत समझ लिया तो क्या ताज्जुब है ? <br /><br /><br />हो सकता है इसका कुछ और अच्छा सा अर्थ हो जो दयानन्द जी को न सूझा हो लेकिन वैदिक सम्पत्ति आदि किसी अन्य साहित्य में दिया गया हो । यदि आपकी नज़र में हो तो हमारी जिज्ञासा अवय “शांत करें । और अगर कोई भी इसका सही अर्थ और इस्तेमाल न जानता हो तब भी कोई बात नहीं । इसके बावजूद हम वेदों का आदर करते रहेंगे । करोड़ों साल पुरानी किसी किताब की सारी बातें समझ में आना मुमकिन भी नहीं है। इसकी कुछ बातें तो समझ में आ रही हैं , ये भी कुछ कम नहीं है ।DR. ANWER JAMALhttps://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4259576974473302844.post-4865161960429234462010-03-17T13:00:45.219+05:302010-03-17T13:00:45.219+05:30@ SANJEEV RANA JI
HOSLA BADHANE KE LIYE SHUKRIYA ....@ SANJEEV RANA JI<br />HOSLA BADHANE KE LIYE SHUKRIYA .DR. ANWER JAMALhttps://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4259576974473302844.post-39327494232222996232010-03-17T12:15:43.516+05:302010-03-17T12:15:43.516+05:30इन साहबान की पूरी पोल "हर्फ़-ए-गलत" ने खो...इन साहबान की पूरी पोल "हर्फ़-ए-गलत" ने खोल रखी है पहले से… वहीं जाकर पढ़ें…। सुना है कि बड़ा तगड़ा माल रंगीला रसूल में दिया हुआ है… (काश कहीं से "रंगीला रसूल" की एक कॉपी पढ़ने मिल जाती)…Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/02326531486506632298noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4259576974473302844.post-16376458075678488012010-03-17T12:14:01.195+05:302010-03-17T12:14:01.195+05:30waah dost anwer, achha kaam kar rahe ho,, meri zar...waah dost anwer, achha kaam kar rahe ho,, meri zaroorat pade to batanaAslam Qasmihttps://www.blogger.com/profile/17354036926492989803noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4259576974473302844.post-33713950509139583032010-03-17T11:23:13.055+05:302010-03-17T11:23:13.055+05:30@ सूरज का नियत समय पर निकलना खुद इस बात का सुबूत ह...@ सूरज का नियत समय पर निकलना खुद इस बात का सुबूत है कि कोई है जो इस निज़ाम को कन्ट्रोल कर रहा है ।<br /><br />Kya "सूरज का नियत समय पर निकलना" aapne aap me Vigyan Virudh baat nahi h,,<br /><br />mujhe pata h yeh sirf kahne ke liye hi hoti h, or isi tarah se kha jata h. fir aap VEDO or dusre GRANTHO ka arth ka anarth kyo kar rahe ho.Amit Sharmahttps://www.blogger.com/profile/15265175549736056144noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4259576974473302844.post-22110851866688513032010-03-17T11:16:29.566+05:302010-03-17T11:16:29.566+05:30अब देखी यह ज़हरीली आयत
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&qu...अब देखी यह ज़हरीली आयत<br />-----------------------<br />" निकाह मत करो काफिर औरतों के साथ जब तक कि वह मुसलमान न हो जाएँ और मुस्लमान चाहे लौंडी क्यूं न हो वह हजार दर्जा बेहतर है काफिर औरत से, गो वह तुम को अच्छी मालूम हो और औरतों को काफिर मर्दों के निकाह में मत दो, जब तक की वह मुसलमान न हो जाए, इस से बेहतर मुस्लमान गुलाम है"<br /><br />(सूरह अल्बक्र २ दूसरा पर आयत 221)<br /><br />हमारे मुल्क में फिरका परस्ती का जो माहौल बन गया है उसको देखते हुए दोनों क़ौमों को ज़हरीले फ़रमान की डट कर खिलाफ वर्जी करना चाहिए। हिदुस्तान में आपसी नफ़रत दूर करने की यही एक सूरत है कि दोनों फिरके आपस में शादी ब्याह करें ताकि नई नस्लें इस झगडे का खात्मा कर सकें. कितनी झूटी बात है - - - मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना. हम देखते हैं कि कुरआन की हर दूसरी आयत नफ़रत और बैर सिखला रही है.<br /><br />" और लोग आप से हैज़ (मासिक-धर्म) का हुक्म पूछते हैं, आप फरमा दीजिए की गन्दी चीज़ है, तो हैज़ में तुम ओरतों से अलाह्दा रहा करो और इनसे कुर्बत मत किया करो, जब तक की वह पाक न हो जाएँ"<br /><br />(सूरह अल्बक्र २ दूसरा पर आयत २२२)<br /><br />देखिए कि अल्लाह कहाँ था, कहाँ आ गया? कौमी मसाइल समझा रहा था कि हैज़ (मासिक धर्म)की गन्दगी में घुस गया. कुरआन में देखेंगे यह अल्लाह की बकसरत आदत है ऐसे बेहूदा सवाल भी कुरआन ने मुहम्मद के हवाले किए हैं. हदीसें भी इसी क़िस्म की गलीज़ बातों से भरी पडी हैं. हैज़, उचलता हुवा पानी, तुर्श और शीरीं दरयाओं का मिलन, मनी, खून का लोथडा और दाखिल ओ खुरूज कि हिकमत से लबरेज़ अल्लाह की बातें जिसको मुसलमान निजामे हयात कहते हैं. अफ़सोस कि यही गंदगी इबारतें नमाजों में पढाई जाती है.<br /><br />* औरतों के हुकूक का ढोल पीटने वाला इसलाम क्या औरत को इंसान भी मानता है? या मर्दों के मुकाबले में उसकी क्या औकात है, आधी? चौथाई? या कोई मॉल ओ मता, जायदाद और शय ? इस्लामी या कुरानी शरा और कानून ज्यादा तर कबीलाई जेहालत के तहत हैं. इन्हें जदीद रौशनी की सख्त ज़रुरत है ताकि औरतें ज़ुल्म ओ सितम से नजात पा सकें. इनकी कुरानी जिल्लत का एक नमूना देखें - - -<br /><br />थू थू करें<br /><br />" तुम्हारी बीवियां तुम्हारी खेतियाँ हैं, सो अपनी खेतियों में जिस तरफ से होकर चाहो जाओ, और आइन्दा के लिए अपने लिए कुछ करते रहो और यकीन रक्खो कि तुम अल्लाह के सामने पेश होने वाले हो। और ऐसे ईमान वालों को खुश खबरी सुना दो" <br />(सूरह अल्बक्र २ दूसरा पर आयत २२३)<br /><br />तुम्हारी बीवियां तुम्हारी खेतियाँ हैं, सो अपनी खेतियों में जिस तरफ से होकर चाहो जाओ, अल्लाह बे शर्मी पर उतर आया है तो बात साफ़ करना पड़ रही है कि यायूदियों में ऐसा भरम था कि औरत को औंधा कर जिमा (सम्भोग) करने में तानासुल (लिंग) योनि के बजाय बहक जाता है और नतीजे में बच्चा भेंगा पैदा होता है. इस लिए सीधा लिटा कर जिमा करना चाहिए. मुहम्मद इस यहूदी अकीदत को खारिज करते हैं और अल्लाह के मार्फ़त यह जिंसी आयत नाज़िल करते हैं कि औरत का पूरा जिस्म मानिन्द खेत है जैसे चाहो जोतो बोवो. *मुसलमानों में अवाम से ले कर बडे बड़े मौलाना तक कसमें बहुत खाते हैं। खुद अल्लाह क़ुरआन में बिला वजे कसमे खाता दिखाई देता है, हो सकता है अरब में रिवाज हो कि बगैर क़सम के बात ही न पूरी होती हो। अल्लाह कहता है वह तुम को कभी नहीं पकडेगा तुम्हारी उस बेहूदा कसमों पर जो तुम रवा रवी में खा लेते हो मगर हाँ जिसे दिल से खा लेते हो, इस पर जवाब तलबी होगी (इसे इरादी कसमें भी कहा गया है) फिर भी फ़िक्र की बात नहीं, वह गफूर रुर रहीम है. इस सिलसिले में नीचे दोनों आयतें हैं-<br /><br />आयत २२६ के मुताबिक औरत से चार माह तक जिंसी राबता न रखने की अगर क़सम खा लो और उसपर कायम रहो तो तलाक यक लख्त फैसल होगा और इस बीच अगर मन बदल जाए या जिंसी बे क़रारी में वस्ल की नोबत आ जाए तो अल्लाह इस क़सम की जवाब तलबी नहीं करेगा. ये आयत का मुसबत पहलू है.<br /><br />(सूरह अल्बक्र २ दूसरा पर आयत २२६ )<br /><br />पूरा पढें - http://harf-e-galat.blogspot.com/2009/11/blog-post_14.htmlAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4259576974473302844.post-56298467366137459572010-03-17T11:09:56.969+05:302010-03-17T11:09:56.969+05:30कुरान में नारी महिमा
मुहम्मद का ज़ाहिर और बातिन अ...कुरान में नारी महिमा<br /><br />मुहम्मद का ज़ाहिर और बातिन अर्थात कथनी और करनी मुलाहिज़ा हो - - -<br /><br />मुहम्मद कालीन एक सहाबी अकबा अपने भाई साद को वसीअत करता है कि ज़िमा की लौंडी का बच्चा मेरे नुत्फे का है, जब वह पैदा हो तो तुम उसको लेलेना. फतह मक्का के बाद साद ने इस पर अपने भाई के वसीअत के मुताबिक दावा पेश किया मगर ज़िमा ने बच्चे को ये कहकर देने से इंकार कर दिया कि ये मेरे बाप की मातहती में पैदा हुआ है इस लिए ये मेरा भाई है. अल ग़रज़ मुआमला मुहम्मद तक पहुँचा. मुहम्मद ने फैसला दिया ''ज़िमा बच्चा तुम्हारा है क्यूंकि बच्चा उसी का होता है जिसके तहत अक़्द या मुल्क यमेन में पैदा हो, ज़ानी (दुराचारी) के लिए तो पत्थर हैं, गोकि बच्चे में अकबा की मुशाबेहत (हम शक्ल) ज़यादा थी. मुहम्मद ने अपनी दूसरी बीवी सौदा को इस बच्चे से परदा करने का हुक्म जारी कर दिया (जोकि रिश्ते में शायद उनका कुछ लगता रहा हो) जिस पर वह मरते दम तक कायम रहीं.<br />(हदीस सही बुखारी नंबर ९४० मार्फ़त आयशा)<br />इस बात से बज़ाहिर साबित होता है कि मुहम्मद कितने पाक बाज़ और चरित्रवान रहे होंगे। हालाँ कि साथ साथ इस हदीस में उनकी जेहालत साफ़ साफ़ अयाँ है कि एक मासूम से अपनी उम्र दराज़ बीवी की परदे दारी, ज़ाहिर है बच्चे को हराम मानते होंगे या उनकी अकली मेयार जो भी साबित करता हो. ऐसी ही हदीसों का गुणगान आलिमाने दीन आम मुसलामानों के सामने मुहम्मद की अजमतों की मीनार बना कर बयान किया करते हैं. इसे मुहम्मद अपने गढे हुए अल्लाह का कानून बतलाते हैं देखिए- - -<br />अल्लाह का कानून फरमाते हुए उसके खुद साख्ता रसूल कहते हैं ''जब कोई बक्र (कुँवारा) ज़िना करे बाक्रह (कुँवारी) के साथ तो उन दोनों को सौ सौ कोडे लगाओ और मुल्क बदर कर दो, इसके बाद अगर सय्यब (शादी शुदा) ज़िना करे सय्यबह (शादी शुदा) के साथ तो उन दोनों को सौ सौ कोडे लगा कर उन पर पत्थराव करके मार दो.''<br />''सही मुस्लिम किताबुल हुदूद''<br /><br />पूरा पढें - http://harf-e-galat.blogspot.com/2009/11/blog-post_07.htmlAnonymousnoreply@blogger.com