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Monday, February 16, 2015

वेद और धर्म के विषय में ग़लत निकले स्वामी दयानंद जी के अनुमान

स्वामी दयानन्द जी की शिक्षाओं ने हिन्दू समाज को आन्दोलित किया। उसमें तर्क के आधार पर सोचने की क्षमता बढ़ी लेकिन आज बाद में पता चला कि उनकी शिक्षाओं का पालन करना संभव नहीं है। आज एक आर्य समाजी चाहे भी तो वह दोनों समय हवन नहीं कर सकता और न ही वह अपने बच्चों को अंग्रेज़ी तजऱ् की सह-शिक्षा वाले स्कूलों से हटा कर आर्य समाज के वैदिक गुरूकुलों में पढ़ा सकता है। 4 वर्ण, 4 आश्रम और संस्कारों का पालन करना आज किसी के लिए सम्भव ही नहीं रह गया है। आर्य समाजी विद्वानों ने स्वयं स्वामी दयानन्द जी के नियोग सम्बंधी पुण्यकर्म को नकार कर विधवा और तलाक़शुदा औरतों के लिए पुनर्विवाह के लिए आन्दोलन किया और अपनी बहिन बेटियों के सुख का ध्यान रखते हुए सरकार से क़ानून बनवाया अपनी मर्ज़ी का। इस तरह वे मुसलमान और ईसाईयों के संस्कारों को अंगीकार करते चले जा रहे हैं, यह ख़ुशी की बात है। उनके प्रयासों के फलस्वरूप जल्दी ही उनका पूरी तरह कायान्तरण हो जाएगा।
स्वामी जी को अन्दाज़ा नहीं था कि जितने परिवर्तन उन्होंने किए हैं, आज का समय उससे ज़्यादा बड़े परिवर्तन की अपेक्षा रखता है।
यह तो हमारे विचार हैं। आदरणीय विद्वान सतीश चन्द गुप्ता जी ने उनकी शिक्षाओं के अतार्किक और अव्यवहारिक होने पर एक पूरी किताब ही लिख डाली है-

इस पुस्तक को हिन्दी ब्लाॅग पर भी देखा जा सकता है। उसका लिंक यह है-