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Tuesday, January 18, 2011

शांति के लिए वेद कुरआन The absolute peace

Synopsis
    सूत्रधार कह रहा है कि ‘ज़िंदगी के जितने भी काम हैं उन्हें करने के लिए आदमी को दूसरी चीज़ों के साथ साथ एक सबसे अहम चीज़ की भी ज़रूरत पड़ती है और उसका नाम है ‘‘शांति‘‘। शांति, अमन, पीस के बिना न तो दुनिया का ही कोई काम किया जा सकता है और न ही ध्यान और इबादत जैसा कोई आध्यात्मिक काम किया जा सकता है। देश की उन्नति और उसके विकास के लिए भी शांति की ज़रूरत है और घर के कामों को अंजाम देने के लिए भी शांति चाहिए। बाहर की दुनिया में भी शांति चाहिए और मन की दुनिया में भी। हर एक को हर तरफ़ शांति की ज़रूरत है। शांति मनुष्य की ज़रूरत भी है और उसका स्वभाव भी। यही वजह है कि एक समाज में रहने वाले लोग आपस में एक दूसरे का सहयोग करते हैं। यह सहयोग उनके स्वभाव का अंग है।
    इस सहयोग की मिसालें हम रोज़ाना अपनी ज़िंदगी में देखते भी हैं और खुद भी उन्हें क़ायम करते है। यह सब स्वाभाविक रूप से हमसे खुद ब खुद होता है।
मॉन्टैज 1
    एक हिंदू औरत अपनी पूजा की थाली लेकर चली आ रही है और उसके साथ 5 साल का एक छोटा बच्चा सड़क के किनारे साइकिल चलाता हुआ आ रहा है। उसकी मां सड़क के किनारे खड़े हुए पीपल पर जल आदि चढ़ाकर उसके सामने हाथ जोड़कर प्रार्थना करने लगती है और उसका बच्चा साइकिल चलाते हुए सड़क पर चला जाता है। अचानक तभी सामने से कुछ लापरवाह बाइकर्स तेज़ रफ़्तार से चले आते हैं। बच्चा उनकी चपेट में आने ही वाला है। तभी मस्जिद से निकलते हुए लोगों में से एक नमाज़ी की नज़र उस पर पड़ जाती है और वह तुरंत उस बच्चे को खींच लेता है और पश्चिमी रंग में रंगे हुए लापरवाह बाइकर्स तेज़ी से शोर गुल मचाते हुए गुज़र जाते हैं।
मॉन्टैज 2
    एक टैम्पो लदा आ रहा है। उसमें हरेक उम्र और हरेक मज़हब के लोग लदे हुए आ रहे हैं। एक सिक्ख टैम्पो की छत पर बैठा है। अचानक सड़क पर एक गड्ढे में टैम्पो का पहिया जाते ही छत पर बैठा हुआ सिक्ख लुढ़कता हुआ टैम्पो के आगे आकर गिरता है। टैम्पो से गिरकर उसके सिर में चोट लग जाती है और उसके सिर से ख़ून बहने लगता है। सड़क पर खड़े हुए लोग दौड़कर टैम्पो के ड्राइवर को बाहर खींचकर उसके साथ धक्का मुक्की करने लगते हैं। टैम्पो एक हिंदू युवक चला रहा है। उसे मारने पीटने वाले आदमी भी हिंदू ही हैं। दो एक लोग उनका बीच बचाव करके उसे बचाते हैं। सवारियां उतर जाती हैं। सभी मज़हबों के मानने वाले लोग उस ज़ख़्मी को लेकर अस्पताल जाते हैं। रास्ते में एक मुस्लिम युवक सिक्ख युवक के मोबाइल फ़ोन से उसकी मां को एक्सीडेंट की ख़बर देता है। अस्पताल किसी ईसाई संस्था द्वारा संचालित है। डॉक्टर और नर्स ईसाई हैं। ईसा मसीह के चित्र वहां लगे हुए हैं। डॉक्टर बेहोश सिक्ख युवक को देखकर कहता है कि फ़ौरन खून देने की ज़रूरत है। वहां मौजूद हर मज़हब का हर आदमी अपना ख़ून देने के लिए तैयार हो जाता है लेकिन किसी का ख़ून मैच नहीं करता। सबसे आख़िर में टैम्पो ड्राइवर हिंदू युवक के ख़ून का ग्रुप ही मैच होता है और उसका ख़ून एक सिक्ख युवक को एक ईसाई डॉक्टर द्वारा चढ़ाया जाता है। एक बुद्धिस्ट युवक टैम्पो ड्राइवर को जूस का गिलास देता है जिसे वह थोड़ा ना नुकुर के बाद पी लेता है। घायल युवक भी आंख खोल देता है और सभी इत्मीनान की सांस लेते हैं। तभी उस घायल युवक की मां वहां आ जाती है और रोते हुए अपने बेटे से लिपट जाती है और हाथ जोड़कर सभी का शुक्रिया अदा करती है लेकिन सभी लोग उनके हाथ थामकर अपने सिरों पर रख लेते हैं।                
सीन नं. 1
    एक मंदिर में एक महात्मा जी कह रहे हैं-‘एकम् ब्रह्म द्वितीयो नास्ति, नेह , ना , नास्ति किंचन‘ यह ब्रह्म सूत्र वेदों का सार है। इसका अर्थ है कि ब्रह्म एक है दूसरा नहीं है, नहीं है, नहीं है, किंचित मात्र नहीं है।‘ उस ब्रह्म की दया और प्रेम हर पल संसार पर बरसती रहती है। जो मनुष्य उस ब्रह्म के रूप गुण का ध्यान करते हैं, दया और प्रेम करना उनके स्वभाव का अंग बन जाता है। ऐसे मनुष्यों का मन निर्मल और चित्त शांत हो जाता है। परमेश्वर का नाम लेना और उसका ध्यान करना मनुष्य के चरित्र को पवित्र भी बनाता है और उसे शांत भी करता है।
सीन नं. 2
    एक मस्जिद में नमाज़ के बाद मजलिस में एक मौलाना साहब उपदेश दे रहे हैं- ‘बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम. क़ुल हुवल्लाहु अहद . अल्लाहुस्समद . लम यलिद वलम यूलद वलम यकुन लहु कुफुवन अहद‘ यानि शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम करने वाला है। कहो वह अल्लाह एक है। अल्लाह बेनियाज़ है। न उसकी कोई औलाद है और न वह किसी की औलाद है और कोई उसके बराबर का नहीं है।‘ यह सूरा ए इख़लास है जो कि कुरआन की एक बहुत अहम सूरा है। इसमें उस एक रब ने अपना तआर्रूफ़ देने से पहले यह खोलकर बता दिया है कि वह सब पर अपनी रहमत रखता है और जो लोग अपने रब की रज़ा पाना चाहते हैं, उन्हें भी लोगों के साथ रहम का बर्ताव करना चाहिए।
   
सीन नं. 3
    कहीं दूर एक हरे-भरे टीले पर उगते हुए सूरज की किरणें पड़ रही हैं और हरियाली के बीच बैठा हुआ एक छोटा सा बच्चा गाय़त्री मंत्र पढ़ रहा है-
‘ओउम् भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो  यो नः प्रचोदयात्।‘
    सफ़ेद धोती कुरते में एक आचार्य उसके सामने ऊंचाई पर ज्ञानमुद्रा में ध्यानमग्न स्थिति में बैठा हुआ है। वह गायत्री की स्वरलहरियों में गहरा ग़ोता लगाये हुए है।
    बच्चा अपनी सुरीली आवाज़ में गायत्री का भावार्थ भी दोहरा रहा है-‘उस प्रकाशस्वरूप परमेश्वर का वरण करते हैं और उस देव की महिमा का ध्यान करते हैं जो हमारे पापों को नष्ट करके हमारी बुद्धियों को सन्मार्ग की प्रेरणा देता है।
    वाटिका के मनोहारी माहौल में देवताओं की सी मोहिनी आवाज़ में गायत्री मंत्र का उच्चारण और श्रवण दोनों ही धरती पर स्वर्ग का साक्षात्कार करा रहे हैं।

सीन नं. 4
    इसी सुबह , एक मुस्लिम घर के आंगन में बने ख़ूबसूरत बग़ीचे के बीच में घास पर चटाई बिछाए एक छोटी सी बच्ची सिर ढके अपनी अम्मी को कुरआन की पहली सूरा पढ़कर सुना रही है -‘इय्याका नाबुदु व इय्याका नस्तईन . इहदि नस्सिरातल मुस्तक़ीम.
यानि हम तेरी ही इबादत करते हैं और तुझ से ही हम मदद चाहते हैं। दिखा हमको सीधा रास्ता।‘
मां खुश होकर अपनी बच्ची के सिर पर हाथ फेर रही है।
ठीक इसी समय कहीं किसी वैदिक गुरूकुल में बहुत से छात्र शांति पाठ कर रहे हैं-‘ओउम् शांतिः शांतिः शांतिः‘
 एक मदरसे में एक किशोर तालिबे इल्म अपने उस्ताद को परीक्षा देते हुए बता रहा है कि ‘इस्लाम सीन लाम मीम इन तीन हरफ़ों के माद्दे से बना है जिसका मतलब है सलामती यानि कि शांति।‘
मौलाना साहिब खुश होकर कहते हैं कि बिल्कुल सही जवाब दिया आपने , आपकी ज़िंदगी का मक़सद भी यही होना चाहिए, जब आपका क़ौल और अमल एक हो जाएगा तो आपको सच्ची कामयाबी मिल जाएगी।

सूत्रधार कहता है कि ‘हमारे समाज की कामयाबी भी इसी में है कि हम सब वेद और कुरआन को समझें , उसके शांति पैग़ाम को समझें जो कि वास्तव में एक ही है।‘
कोई मलंग अपनी ढपली बजाते हुए गा रहा है। उसके पास बैठे हुए सभी मज़हबों के लोग उसके गाने का लुत्फ़ ले रहे हैं -
आ ग़ैरियत के पर्दे इक बार फिर उठा दें
बिछड़ों को फिर मिला दें, नक्शे दूई मिटा दें
सूनी पड़ी है मुद्दत से दिल की बस्ती
आ इक नया शिवाला इस देस में बना दें
दुनिया के तीरथों से ऊंचा हो अपना तीरथ
दामाने आसमां से इसका कलस मिला दें
हर सुब्ह उठके गाएं मन्तर वो मीठे मीठे
सारे पुजारियों को ‘मै‘ पीत की पिला दें
शक्ति भी शांति भी भक्तों के गीत में है
धरती के बासियों की मुक्ति प्रीत में है

28 comments:

  1. बेहतरीन लेख है अनवर भाई!!!

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  2. आ ग़ैरियत के पर्दे इक बार फिर उठा दें
    बिछड़ों को फिर मिला दें, नक्शे दूई मिटा दें
    सूनी पड़ी है मुद्दत से दिल की बस्ती
    आ इक नया शिवाला इस देस में बना दें
    दुनिया के तीरथों से ऊंचा हो अपना तीरथ
    दामाने आसमां से इसका कलस मिला दें
    हर सुब्ह उठके गाएं मन्तर वो मीठे मीठे
    सारे पुजारियों को ‘मै‘ पीत की पिला दें
    शक्ति भी शांति भी भक्तों के गीत में है
    धरती के बासियों की मुक्ति प्रीत में है
    .
    बहुत खूब

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  3. .
    .
    .
    बहुत खूब, बेहतर आलेख !

    न तेरा हरा है, न मेरा केसरिया होगा
    लहू का रंग तो, सिर्फ लाल हो सकता है।




    ...

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  4. Kash aap ki awaj un anpadh Musalmano aur Hindo tak panhuchati. to log samjhte ki Hum Dharmik Bat main hain aur Insan pahle.


    Ek accha lekh ke liye aapki tarfi karta hun.

    aur han ITNA LAMBA LEKH
    --------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------lekin accha laga

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  5. शान्ति के नाम पर इतने कम कमेंट्स?

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  6. @ ज़ीशान भाई !
    शुक्रिया ,
    आपका यह एक कमेँट हिंदी ब्लागर्स की बौद्धिकता को बेनक़ाब करने के लिए काफी है ।
    जब अनवर जमाल इन्हें दौड़ा लेता तो ये कहते हैं कि अनवर जमाल शांति की बात नहीं करता और जब वह शांति का पैग़ाम देता है तो ये दो लफ़्ज़ लिखना पसंद नहीं करते ।
    अभी मैं इनमें से किसी का ब्लागीय कोर्ट मार्शल कर दूं तो आएंगे भागे भागे और 80 कमेँट कर देंगे।
    यह प्रवृत्ति ग़लत है।
    अगर लोग चाहते हैं कि अनवर जमाल उन्हें दौड़ाना बंद कर दे तो कम से कम उसके अविवादित लेखों को तो पढ़ो और सराहो ताकि वह उसी तरह के लेखन में आगे बढ़ सके।
    उसे हतोत्साहित करने या डराने की कोशिश ख़ुद षडयंत्रकारियों के लिए ही घातक सिद्ध होगी।
    अनवर के लेखन की शैली को बदलना ख़ुद बहुसंख्यक ब्लागर्स के हाथ में है ।
    उन्हें सोचना चाहिए कि वे अनवर जमाल को किस तरह के लेख लिखते देखना चाहते हैं ?

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  7. आज दिल खुशगवार हुआ
    तेरे कूचे में आके
    इस मासूमियत से प्यार हुआ
    तेरे कूचे में आके

    ...तो क्या मै समझू कि आप प्रतिक्रिया के फलस्वरूप लोगो को दौडाने क़ा काम करते हो
    खैर जो भी हो आपकी इस अदा पे निहाल............

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  8. क्या बात है डॉ. साहब आज तो छा गए ओय तुसी। किन्ना वड्डा वड्डा फ़ण्डा दिखाया। आपकी सोच के सम्मान में इस पहलवान की एक ही टिप्पणी को सौ के बराबर समझिएगा। बहुत सुन्दर दिल पाया आपने।

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  9. @ किलर झपाटा जी ! आप का स्वागत है . अगर आप खुद को सौ के बराबर मानते हैं तो कम मानते हैं . आप के बराबर तो हज़ार भी नहीं हैं. आप की मिसाल बस आप खुद हैं .
    मैंने अपने वादे के मुताबिक़ एक लेख लिखा है .
    कृपया आप और दीगर सभी लोग उसे एक नज़र देख लीजिये और बताइए की उसमें क्या कमी है ?
    आपकी महरबानी होगी .
    गुस्से की ऊर्जा से काम लेना सीखिए ? The energy of anger

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  10. गुरु श्री अनवर जमाल जी
    मै बहुत परेशान हु ,मुझे ४ लड़िकयो से प्यार हो गया है ,मै क्या करू
    मै किसी को छोड़ना नही चाहता
    आप के पास कोई उपाय हो तो बताओ

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  11. जब स्वामी असीमानंद हैदराबाद जेल मे थे तो वहाँ पर उनकी मुलाकात अपने किए गए गुनाह (मक्का मस्जिद बम विस्फोट ) के आरोप मे बंद मासूम युवक से हुई जिसका नाम अब्दुल कलीम है । कलीम ने स्वामी जी की बहुत सेवा की तो स्वामी जी की आँखे खुली की खुली रह गई क्योंकि उन्हे तो मुसलमानों का कुछ और ही रूप दिखाया गया था और उन्हे वह रूप दिखा कर "बम का जवाब बम " देने के लिए तैयार किया गया था और स्वामी उन देशद्रोही गतिविधियों मे संघ परिवार का साथ देने के लिए तैयार हो गए मगर अब उन्हे अपनी गलती का एहसास होने लगा और उन्होने अपने किए गए तमाम बम धमाकों का इकरार कर लिया । हालाँकि अभी तक उन्ही बम धमाकों के आरोप मे जेल में बंद मुस्लिम युवक छूटे नही लेकिन अब लगता है कि वह सब छूट जाएँगे । लेकिन अभी साध्वी प्रज्ञा का साधुवाद जगाने वाला ऐसा कोई नही मिला पर हमें पूरी उम्मीद है एक दिन वह भी होगा कि जब साध्वी भी सही रास्ते पर आ जाएगी । क्योकि ईश्वर के यहाँ देर है अँधेर नही ।

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  12. @ तारकेश्वर जी ! अगर मेरी आवाज़ आपके दिल तक भी पहुँच गयी तो मैं समझूंगा कि मेरी आवाज़ वहीँ पहुँच गयी है जहां आप चाह रहे हैं .

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  13. @ जनाब पी. के. मिश्र जी ! जैसा आदमी आता है , जैसी नीयत और भाषा लेकर आता है , उसके आधार पर मैं फ़ैसला करता हूँ कि इसका सुधार कैसे संभव है .
    यह विनती से मानेगा या इसकी ऐंठ निकलने के लिए कुछ और करना पड़ेगा ?
    आप आये बहार आई .
    शुक्रिया .

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  14. @ प्रिय प्रवीण जी ! आप एक फौजी हैं इसलिए खून का रंग ठीक से पहचानते हैं .
    शारीर से आगे एक आत्मा नाम कि चीज़ भी है , कभी उसका रंग आप देखेंगे तो वहां कोई रंग मुश्किल से ही नज़र आएगा .
    वह तो सबकी एक ही है . अब आप मेरा साथ देना सीख लीजिये . एक से भले हमेशा दो हुआ करते हैं .
    आपके मतलब की एक पोस्ट आपके लिए पेश करता हूँ .
    क्या प्राकृत और संस्कृत से पहले से पंजाबी भाषा मौजूद थी ?

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  15. bahut sunder naazaare pesh kiye aapne is lekh mein... ummid karti hoon ki dharawaahik zaroor bane aur ghar ghar tak pahunche!

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  16. मैंने अभी हाल ही में ये ध्यान दिया है कुछ मुस्लिम ब्लोगकर्ता अपने ब्लॉग पर और अपनी टिप्पणियों के माध्यम से कुछ पुस्तकों का प्रचार बड़े ही लगन और परिश्रम से कर रहे हैं,उन पुस्तकों से उधृत बातों का वो अपने कुतर्कों में भी स्थान-स्थान पर वर्णन करते हैं। वैसे तो मैं उनके इन अनर्गल प्रलापों पर ध्यान नहीं देता किन्तु मुझे जब बड़ा आश्चर्य होता है कि उनके इस काम में कुछ हिन्दू भी योगदान दे रहे हैं। मुझे हिन्दू, मुस्लिम या इसाई से कोई बैर नहीं है किन्तु लोगो के कुतर्कों और मनगढ़ंत से आपत्ति है
    आज दिल खुशगवार हुआ
    तेरे कूचे में आके
    इस मासूमियत से प्यार हुआ
    तेरे कूचे में आके
    बहुत खूब, बेहतर आलेख !

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  17. अति सुन्दर, धर्म कोई भी हो वह हमें सही रास्ता दिखाते है किन्तु धर्म की गलत व्याख्या सही रास्ते से भटकाव पैदा करती है.

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  18. यह एक बेहतरीन काम होगा ! देश की एकता और आपसी प्यार के लिए अगर मेरा लिखा कुछ भी काम आये तो बताइयेगा ! हार्दिक शुभकामनायें !

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  19. शांति सिर्फ संत के लिए नहीं है, उन सबके लिए भी है जिनके मन अशांत हैं। संत अपने मन को शांत कर लेते हैं और संतत्‍व को प्राप्‍त होते हैं जबकि असंत को जब शांति प्राप्‍त होती है तब वे परमसंत की अवस्‍था को प्राप्‍त होते हैं। जय हो संतई की और शांति जी की।

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  20. हमारा हर कदम हो ऐसा
    इंसान को फख्र हो हम पर,
    सिर्फ इंसान हैं और वही रहे हम,
    धर्म का इल्जाम न हो हम पर.
    ये फासले तो हमने खुद ही बनाये हैं
    मालिक ने तो हमको सिर्फ इंसान बनाया था.

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  21. सामाजिक-धार्मिक संतुलन के लिए कार्य करती पोस्ट. बहुत अच्छा लगा.

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  22. जनाब, सबके मकसद समान हैं, लेकिन उन्हें पाने के लिए तरीके गलत अपनाए जा रहे हैं। हर कोई सुख और शांति पाना चाहता है। कोई आध्यात्म और अल्लाह का नाम लेकर तो कोई रुपयों के सहारे। रुपयों के सहारे शांति पाने वाले लोग हमेशा गलत दिशा में चलते हैं। वे हिन्दू भी हो सकते हैं और मुस्लिम भी। आपका लेख उन लोगों की आंखें खोलने में अहम है, जो किसी के उकसाने पर उत्तेजित हो जाते हैं और अपनी बुद्धि, विवेक का इस्तेमाल किए बिना कुछ भी करने को तैयार रहते हैं।
    मुम्बई पर हमला करने वालों को भी अल्लाह की पनाह और जन्नत नसीब होने का सपना दिखाया गया होगा। असीमानंद जैसे लोगों को धर्म के लिए शहीद होकर स्वर्ग में जाने का लोभ दिया गया होगा। खुदा खैर करे।

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  23. नमस्कार
    आपका ह्रदय से आभारी हूँ ,
    आपने मुझे प्रोत्साहित किया यूँ ही अपना मार्गदर्शन देते रहना ताकि और
    भी प्रगति कर पाऊं ....

    आपके सहयोग एवं स्नेह का सदैव आकांक्षी रहूँगा! धन्यवाद.......

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  24. Hi All,

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  25. आप इश्वर को किसी एक धरम में केद नही कर सकते इश्वर या अल्हा तो प्रेम रूपी अनन्त सागर हें जिसे सिर्फ एक सच्चा योगी या सच्चा भगत ही जन सकता हे , http://bharatyogi.blogspot.com/2011/04/blog-post_8870.html#links

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  26. राष्ट्रीय एकता को सुदृढ करने वाली बेहतरीन पोस्ट ।
    मैने भारतीय मुस्लिम समाज पर एक लेख लिखा है , कभी मेरे ब्लॉग पर आये और और अपने निश्पक्ष विचार दें ।
    भारतीय मुस्लिम समाज के नाम एक अनुरोध
    www.vishwajeetsingh1008.blogspot.com

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  27. atyant saarthak aur lajawab post.

    sabhi ko ye post padhni chaahiye.

    shukriya !

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