सूत्रधार कह रहा है कि ‘ज़िंदगी के जितने भी काम हैं उन्हें करने के लिए आदमी को दूसरी चीज़ों के साथ साथ एक सबसे अहम चीज़ की भी ज़रूरत पड़ती है और उसका नाम है ‘‘शांति‘‘। शांति, अमन, पीस के बिना न तो दुनिया का ही कोई काम किया जा सकता है और न ही ध्यान और इबादत जैसा कोई आध्यात्मिक काम किया जा सकता है। देश की उन्नति और उसके विकास के लिए भी शांति की ज़रूरत है और घर के कामों को अंजाम देने के लिए भी शांति चाहिए। बाहर की दुनिया में भी शांति चाहिए और मन की दुनिया में भी। हर एक को हर तरफ़ शांति की ज़रूरत है। शांति मनुष्य की ज़रूरत भी है और उसका स्वभाव भी। यही वजह है कि एक समाज में रहने वाले लोग आपस में एक दूसरे का सहयोग करते हैं। यह सहयोग उनके स्वभाव का अंग है।
इस सहयोग की मिसालें हम रोज़ाना अपनी ज़िंदगी में देखते भी हैं और खुद भी उन्हें क़ायम करते है। यह सब स्वाभाविक रूप से हमसे खुद ब खुद होता है।
मॉन्टैज 1
एक हिंदू औरत अपनी पूजा की थाली लेकर चली आ रही है और उसके साथ 5 साल का एक छोटा बच्चा सड़क के किनारे साइकिल चलाता हुआ आ रहा है। उसकी मां सड़क के किनारे खड़े हुए पीपल पर जल आदि चढ़ाकर उसके सामने हाथ जोड़कर प्रार्थना करने लगती है और उसका बच्चा साइकिल चलाते हुए सड़क पर चला जाता है। अचानक तभी सामने से कुछ लापरवाह बाइकर्स तेज़ रफ़्तार से चले आते हैं। बच्चा उनकी चपेट में आने ही वाला है। तभी मस्जिद से निकलते हुए लोगों में से एक नमाज़ी की नज़र उस पर पड़ जाती है और वह तुरंत उस बच्चे को खींच लेता है और पश्चिमी रंग में रंगे हुए लापरवाह बाइकर्स तेज़ी से शोर गुल मचाते हुए गुज़र जाते हैं।मॉन्टैज 2
एक टैम्पो लदा आ रहा है। उसमें हरेक उम्र और हरेक मज़हब के लोग लदे हुए आ रहे हैं। एक सिक्ख टैम्पो की छत पर बैठा है। अचानक सड़क पर एक गड्ढे में टैम्पो का पहिया जाते ही छत पर बैठा हुआ सिक्ख लुढ़कता हुआ टैम्पो के आगे आकर गिरता है। टैम्पो से गिरकर उसके सिर में चोट लग जाती है और उसके सिर से ख़ून बहने लगता है। सड़क पर खड़े हुए लोग दौड़कर टैम्पो के ड्राइवर को बाहर खींचकर उसके साथ धक्का मुक्की करने लगते हैं। टैम्पो एक हिंदू युवक चला रहा है। उसे मारने पीटने वाले आदमी भी हिंदू ही हैं। दो एक लोग उनका बीच बचाव करके उसे बचाते हैं। सवारियां उतर जाती हैं। सभी मज़हबों के मानने वाले लोग उस ज़ख़्मी को लेकर अस्पताल जाते हैं। रास्ते में एक मुस्लिम युवक सिक्ख युवक के मोबाइल फ़ोन से उसकी मां को एक्सीडेंट की ख़बर देता है। अस्पताल किसी ईसाई संस्था द्वारा संचालित है। डॉक्टर और नर्स ईसाई हैं। ईसा मसीह के चित्र वहां लगे हुए हैं। डॉक्टर बेहोश सिक्ख युवक को देखकर कहता है कि फ़ौरन खून देने की ज़रूरत है। वहां मौजूद हर मज़हब का हर आदमी अपना ख़ून देने के लिए तैयार हो जाता है लेकिन किसी का ख़ून मैच नहीं करता। सबसे आख़िर में टैम्पो ड्राइवर हिंदू युवक के ख़ून का ग्रुप ही मैच होता है और उसका ख़ून एक सिक्ख युवक को एक ईसाई डॉक्टर द्वारा चढ़ाया जाता है। एक बुद्धिस्ट युवक टैम्पो ड्राइवर को जूस का गिलास देता है जिसे वह थोड़ा ना नुकुर के बाद पी लेता है। घायल युवक भी आंख खोल देता है और सभी इत्मीनान की सांस लेते हैं। तभी उस घायल युवक की मां वहां आ जाती है और रोते हुए अपने बेटे से लिपट जाती है और हाथ जोड़कर सभी का शुक्रिया अदा करती है लेकिन सभी लोग उनके हाथ थामकर अपने सिरों पर रख लेते हैं। सीन नं. 1
एक मंदिर में एक महात्मा जी कह रहे हैं-‘एकम् ब्रह्म द्वितीयो नास्ति, नेह , ना , नास्ति किंचन‘ यह ब्रह्म सूत्र वेदों का सार है। इसका अर्थ है कि ब्रह्म एक है दूसरा नहीं है, नहीं है, नहीं है, किंचित मात्र नहीं है।‘ उस ब्रह्म की दया और प्रेम हर पल संसार पर बरसती रहती है। जो मनुष्य उस ब्रह्म के रूप गुण का ध्यान करते हैं, दया और प्रेम करना उनके स्वभाव का अंग बन जाता है। ऐसे मनुष्यों का मन निर्मल और चित्त शांत हो जाता है। परमेश्वर का नाम लेना और उसका ध्यान करना मनुष्य के चरित्र को पवित्र भी बनाता है और उसे शांत भी करता है। सीन नं. 2
एक मस्जिद में नमाज़ के बाद मजलिस में एक मौलाना साहब उपदेश दे रहे हैं- ‘बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम. क़ुल हुवल्लाहु अहद . अल्लाहुस्समद . लम यलिद वलम यूलद वलम यकुन लहु कुफुवन अहद‘ यानि शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम करने वाला है। कहो वह अल्लाह एक है। अल्लाह बेनियाज़ है। न उसकी कोई औलाद है और न वह किसी की औलाद है और कोई उसके बराबर का नहीं है।‘ यह सूरा ए इख़लास है जो कि कुरआन की एक बहुत अहम सूरा है। इसमें उस एक रब ने अपना तआर्रूफ़ देने से पहले यह खोलकर बता दिया है कि वह सब पर अपनी रहमत रखता है और जो लोग अपने रब की रज़ा पाना चाहते हैं, उन्हें भी लोगों के साथ रहम का बर्ताव करना चाहिए।
सीन नं. 3
कहीं दूर एक हरे-भरे टीले पर उगते हुए सूरज की किरणें पड़ रही हैं और हरियाली के बीच बैठा हुआ एक छोटा सा बच्चा गाय़त्री मंत्र पढ़ रहा है-‘ओउम् भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।‘
सफ़ेद धोती कुरते में एक आचार्य उसके सामने ऊंचाई पर ज्ञानमुद्रा में ध्यानमग्न स्थिति में बैठा हुआ है। वह गायत्री की स्वरलहरियों में गहरा ग़ोता लगाये हुए है।
बच्चा अपनी सुरीली आवाज़ में गायत्री का भावार्थ भी दोहरा रहा है-‘उस प्रकाशस्वरूप परमेश्वर का वरण करते हैं और उस देव की महिमा का ध्यान करते हैं जो हमारे पापों को नष्ट करके हमारी बुद्धियों को सन्मार्ग की प्रेरणा देता है।
वाटिका के मनोहारी माहौल में देवताओं की सी मोहिनी आवाज़ में गायत्री मंत्र का उच्चारण और श्रवण दोनों ही धरती पर स्वर्ग का साक्षात्कार करा रहे हैं।
सीन नं. 4
इसी सुबह , एक मुस्लिम घर के आंगन में बने ख़ूबसूरत बग़ीचे के बीच में घास पर चटाई बिछाए एक छोटी सी बच्ची सिर ढके अपनी अम्मी को कुरआन की पहली सूरा पढ़कर सुना रही है -‘इय्याका नाबुदु व इय्याका नस्तईन . इहदि नस्सिरातल मुस्तक़ीम.यानि हम तेरी ही इबादत करते हैं और तुझ से ही हम मदद चाहते हैं। दिखा हमको सीधा रास्ता।‘
मां खुश होकर अपनी बच्ची के सिर पर हाथ फेर रही है।
ठीक इसी समय कहीं किसी वैदिक गुरूकुल में बहुत से छात्र शांति पाठ कर रहे हैं-‘ओउम् शांतिः शांतिः शांतिः‘
एक मदरसे में एक किशोर तालिबे इल्म अपने उस्ताद को परीक्षा देते हुए बता रहा है कि ‘इस्लाम सीन लाम मीम इन तीन हरफ़ों के माद्दे से बना है जिसका मतलब है सलामती यानि कि शांति।‘
मौलाना साहिब खुश होकर कहते हैं कि बिल्कुल सही जवाब दिया आपने , आपकी ज़िंदगी का मक़सद भी यही होना चाहिए, जब आपका क़ौल और अमल एक हो जाएगा तो आपको सच्ची कामयाबी मिल जाएगी।
सूत्रधार कहता है कि ‘हमारे समाज की कामयाबी भी इसी में है कि हम सब वेद और कुरआन को समझें , उसके शांति पैग़ाम को समझें जो कि वास्तव में एक ही है।‘
कोई मलंग अपनी ढपली बजाते हुए गा रहा है। उसके पास बैठे हुए सभी मज़हबों के लोग उसके गाने का लुत्फ़ ले रहे हैं -
आ ग़ैरियत के पर्दे इक बार फिर उठा दें
बिछड़ों को फिर मिला दें, नक्शे दूई मिटा दें
सूनी पड़ी है मुद्दत से दिल की बस्ती
आ इक नया शिवाला इस देस में बना दें
दुनिया के तीरथों से ऊंचा हो अपना तीरथ
दामाने आसमां से इसका कलस मिला दें
हर सुब्ह उठके गाएं मन्तर वो मीठे मीठे
सारे पुजारियों को ‘मै‘ पीत की पिला दें
शक्ति भी शांति भी भक्तों के गीत में है
धरती के बासियों की मुक्ति प्रीत में है
बिछड़ों को फिर मिला दें, नक्शे दूई मिटा दें
सूनी पड़ी है मुद्दत से दिल की बस्ती
आ इक नया शिवाला इस देस में बना दें
दुनिया के तीरथों से ऊंचा हो अपना तीरथ
दामाने आसमां से इसका कलस मिला दें
हर सुब्ह उठके गाएं मन्तर वो मीठे मीठे
सारे पुजारियों को ‘मै‘ पीत की पिला दें
शक्ति भी शांति भी भक्तों के गीत में है
धरती के बासियों की मुक्ति प्रीत में है