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Wednesday, August 18, 2010

‘मुझे हिन्द की तरफ़ से रब्बानी खुश्बूएं (ईश्वरीय ज्ञान की सुगंध) आती हैं।’ - Prophet Muhammed (s.a.w.)

‘मुझे हिन्द की तरफ़ से रब्बानी खुश्बूएं (ईश्वरीय ज्ञान की सुगंध) आती हैं।’
हज़रत मुहम्मद साहब (सल्ल॰) के इस वचन की अहमियत ठीक तरह सिर्फ़ तभी समझी जा सकती है जबकि लोगों को कहने वाले की महानता का सही बोध हो। जो लोग उन्हें ईश्वर का दूत मानते हैं उन्हें मुस्लिम कहा जाता है। लगभग 153 करोड़ मुस्लिम दिन रात अज़ान और नमाज़ में उनका नाम लेते हैं, उन्हें याद करते हैं उनके लिए दुआ करते हैं और अपनी इबादतों में भी और उसके अलावा भी वे उनकी तारीफ़ करते हैं। जो उन्हें पैग़म्बर के रूप में तो पहचान नहीं पाये लेकिन उन्हें मानवता का उद्धारकर्ता मानकर उनकी तारीफ़ करते हैं, उनकी तादाद भी कई करोड़ है।
‘मुहम्मद’ शब्द का अर्थ होता है ‘तारीफ़ किया गया’।
जिनकी तारीफ़ अपने-पराये और दोस्त-दुश्मन सब करते हों, जिनकी तारीफ़ खुद रब करता हो, जिनकी तारीफ़ बाइबिल, ज़न्द-अवेस्ता, वेद, पुराण, उपनिषद और गुरूग्रन्थ साहिब में हो, जो अल्लाह का बनाया अव्वल नूर हों और अंतिम रसूल हों, जब उनकी पवित्र वाणी से हिन्दुस्तान की तारीफ़ बयान हुई है तो यह एक ऐसी तारीफ़ है जिससे बढ़कर कोई तारीफ़ नहीं हो सकती। यह हिन्दुस्तान की पवित्रता के लिए ऐसी सनद है जिसे कोई रद्द नहीं कर सकता। यह हिन्दुस्तान के लिए ऐसा आशीर्वाद है जिसकी बरकतें ज़ाहिर होना लाज़िमी है। इसमें हिन्दुस्तान के उस मौलिक गुण की निशानदेही भी है जिसपर उसके भविष्य की बेहतरी का दारोमदार है।
ज्ञान हरेक ख़ूबी की कुंजी  है। ज्ञान ही उन्नति का आधार है। ज्ञान से ही शक्ति का उदय होता है और शक्ति से शाँति की स्थापना होती है। शाँति से समाज में समृद्धि आती है। लोगों में प्रेम, आदर, सद्भावना और सहिष्णुता के गुण पनपते हैं। ये गुण भारतीय जाति की विशेषता कल भी थे और आज भी हैं। इन्हीं गुणों की वजह से धर्म-मत-सम्प्रदायों की विभिन्नता के बावजूद लोग रोज़मर्रा के कामों में एक दूसरे का सहयोग ले दे रहे हैं। एक दूसरे की खुशी और ग़म में शरीक हो रहे हैं। हाँ, नज़रिये के अन्तर की वजह से उनमें कुछ मतभेद भी हैं और यह बिल्कुल स्वाभाविक है। मतभेद तो एक छोटे से परिवार तक में होते हैं। तब 120 करोड़ की विशाल जनसंख्या में हों तो बिल्कुल स्वाभाविक है।
मतभेद घर में होते हैं तो घर के बड़े आपस में बैठकर बातचीत के ज़रिये उन्हें दूर करते हैं। समय-समय पर सभी धर्म-मतों के आचार्यों की सभाओं और गोष्ठियों का मक़सद भी यही होता है और उनके अच्छे नतीजे भी सामने आये हैं लेकिन समाज में कुछ लोग ऐसे भी हैं जो अपने राजनीतिक स्वार्थ की ख़ातिर लोगों में भेद डालते हैं। भड़काऊ भाषण देकर लोगों के जज़्बात भड़काते हैं। भाई को भाई से लड़ाते हैं। जिस धरती को वे माँ कहते हैं उसका आंचल उसी की सन्तान के खून से लाल कर देते हैं। कितनी सुहागिनें विधवा हो जाती हैं और कितने ही बच्चे अनाथ हो जाते हैं? बूढ़े माँ-बाप जब अपनी ज़बान औलादों की लाशें देखते हैं तो उनके दिलों पर क्या गुज़रती होगी और कैसे-कैसे श्राप उनके दिल से निकलते होंगे?
 दूसरों पर जुल्म ढाने वाला खुद भी सुखी नहीं रहता।
ज्ञान की धरती, प्रेम की धरती, इस पवित्र पुण्य भूमि पर आखिर यह अनाचार कब तक?
दारूल उलूम के आलिमों ने देश की आज़ादी के लिए लड़ाई लड़ी है और अपनी जानें कुर्बान की हैं। उनके देशप्रेम पर वे लोग उंगली उठा रहे हैं जिन्होंने आज़ादी की लड़ाई में न कभी भाग लिया और न ही कोई क़ुर्बानी दी, बड़ी हास्यास्पद सी बात है।

23 comments:

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  2. आप हमेशा हिन्दू-मुसलमानों को एक सा दिखने की कोशिश ही क्यों करते हैं? मैं मानता हूँ की आपस में प्यार-मुहब्बत होनी चाहिए, लेकिन दोनों एक से कैसे हो सकते हैं?

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  3. ज्यादह तो नहीं लेकिन आपके 10-12 लेख पढ़ चूका हूँ. सबमे यही बात है. जबकि इस्लाम और हिन्दू धर्म में काफी फरक है. ऐसा क्यों?

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  5. @ भाई शहरयार ! सब आदमी एक आदम की औलाद हैं और एक पालनहार के बंदे हैं । उसने हर ज़माने में अपने दूतों के ज़रिये इनसान को यही शिक्षा दी है कि केवल मेरी उपासना करो और मेरे आदेश का पालन करो। खुद को पूरी तरह मेरे प्रति समर्पित कर दो। उसने अपने दूतों के अन्तःकरण पर अपनी वाणी का अवतरण किया। उसने हरेक तरह की जुल्म-ज़्यादती को हराम क़रार दिया और हरेक भलाई को लाज़िम ठहराया। उन सच्चे दूतों के बाद लोगों ने वाणी को छिपा दिया और अपनी कविता और अपने दर्शन को ही जनता में प्रचारित कर दिया। इससे लोगों के विश्वास और रीतियां अलग-अलग हो गईं। लोग मूर्तिपूजा और आडम्बर को धर्म समझने लगे। हर जगह यही हुआ, इसी वजह से आपको हिन्दू और मुसलमान अलग-अलग नज़र आ रहे हैं।
    मुसलमानों की मिसाल से आप अच्छी तरह समझ सकते हैं। इसलाम में क़ब्र पक्की बनाना, उस पर चादरें चढ़ाना, रौशनी करना, म्यूज़िक बजाना, औरतों-मर्दों का मिलकर वहां क़व्वाली गाना और सुनना, मज़ार वाले से दुआ मांगना सब हराम है, यह तो है पवित्र कुरआन का हुक्म लेकिन आप ये सब होता हुआ देख ही रहे हैं। बहुत सी जगहों पर ये चीज़ें इसलाम धर्म का अंग समझी जाने लगी हैं। मालिक का हुक्म कुछ है और बंदों का अमल उसके सरासर खि़लाफ़। करोड़ों रूपये की आमदनी क़ब्रों के मुजाविरों को हो रही है। क्या ये अपनी आमदनी का दरवाज़ा खुद ही बंद कर देंगे ?
    हिन्दुओं में भी ऐसे ही विकार जड़ पकड़ गये हैं। उनके धर्मग्रंथ भी मूर्तिपूजा और आडम्बर से रोकते हैं लेकिन लोग उनकी मानते कब हैं और जिनके पौ-बारह हो रहे हैं वे भला क्यों रोकेंगे ?
    ईश्वर एक है, शाश्वत है और उसका धर्म सनातन है यानि सदा से है। सारी मानव जाति का कल्याण एक परमेश्वर के नाम पर एक होने में ही है। हरेक झगड़े का अंत इसी से होगा, इसी लिये मैं दोनों को एक मानता हूं और जिसे शक हो वह कुरआन शरीफ़ की सूर ए शूरा की 13 वीं आयत पढ़ लें।

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  6. @ भाई आलोक ! जिन बातों की आपको समझ कम है अगर उनमें न ही बोलें तो ज़्यादा अच्छा है। पहले आप अपना ज्ञान बढ़ा लें या कम अज़ कम किसी से बोलने की तमीज़ ही सीख लें। लोग उच्च जातियों के दलन-दमन का तो चर्चा करते हैं लेकिन आप उनसे शिष्टाचार तो सीख ही सकते हैं जिसकी आपको बेहद ज़रूरत है। यह संक्षेप में एक इशारा है समझने वाले के लिये। मैं आपके ब्लॉग पर आज तक नहीं गया , आप आये हैं तो कुछ तमीज़ और सलीक़े से तो पेश आइये।

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  7. maine yesa to kuch kaha hi nhi ...maine bs itna hi kaha ki sabhi dhrm santan dhrm se prabhavit h ..

    its ok ..apni baato me ha me ha milne wale sabhi ko pasand hai

    aap dusro ko khub sabal dete h .jab aap ko koi tokta hai o bura maan jate h

    ok ITS MY LAST COMMENT

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  8. आपके और शाहनवाज जी के ब्लाग पर पहली बार
    और एक साथ ही प्रवीण शाह जी के ब्लाग धर्म में
    कचरा । पढकर आया । निसंदेह धर्म पर आपकी
    सोच सार्थक है । लेकिन आप और भाई शाहनवाज
    लोगों के तर्क पर इसीलिये कहीं कहीं फ़ेल हो जाते
    हैं । क्योंकि आप लोग सनातन धर्म को वेद या पुराणों
    या इन जैसी किताबों में खोजते हैं । जबकि ये सनातन
    धर्म का ग्यान वेदान्त या सन्त फ़कीरों की वाणी में ही
    है । आप फ़कीरों की एक ही कोई भी किताब समझकर
    पढें । बहुत से रहस्य खुल जायेंगे । अगर किसी बात का
    अर्थ समझ न आता हो । मुझे बताना । और फ़िर देखना
    कि वह उत्तर कितना अलग है । मैं किसी भी जाति को
    नहीं मानता । सिवाय इंसान के ।

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  9. मुझे हिन्द की तरफ़ से रब्बानी खुश्बूएं (ईश्वरीय ज्ञान की सुगंध) आती हैं।’

    हज़रत मुहम्मद साहब (सल्ल॰) के इस वचन की अहमियत ठीक तरह सिर्फ़ तभी समझी जा सकती है जबकि लोगों को कहने वाले की महानता का सही बोध हो।

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  10. Kitaab At-Tawheed
    Shaikh Imam Muhammad Abdul-Wahhaab


    http://www.islamicweb.com/beliefs/creed/abdulwahab/index.htm


    http://www.audioislam.com/?category=Aqeedah

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  11. मुझे हिन्द की तरफ़ से रब्बानी खुश्बूएं (ईश्वरीय ज्ञान की सुगंध) आती हैं।’

    हज़रत मुहम्मद साहब (सल्ल॰) के इस वचन की अहमियत ठीक तरह सिर्फ़ तभी समझी जा सकती है जबकि लोगों को कहने वाले की महानता का सही बोध हो।

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  12. John 1:1
    In the beginning was the Word, and the Word was with God, and the Word was God.
    John 1:2
    The same was in the beginning with God.
    John 1:3
    All things were made by him; and without him was not any thing made that was made.
    John 1:4
    In him was life; and the life was the light of men.
    John 1:5
    And the light shineth in darkness; and the darkness comprehended it not.
    John 1:6
    There was a man sent from God, whose name was John.
    John 1:7
    The same came for a witness, to bear witness of the Light, that all men through him might believe.
    John 1:8
    He was not that Light, but was sent to bear witness of that Light.
    John 1:9
    That was the true Light, which lighteth every man that cometh into the world.
    John 1:10
    He was in the world, and the world was made by him, and the world knew him not.
    John 1:11
    He came unto his own, and his own received him not.
    John 1:12
    But as many as received him, to them gave he power to become the sons of God, even to them that believe on his name:

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  13. @आदरणीय एवं मेरे प्रिय अनवर जमाल जी

    अभी हाल ही में सुज्ञ जी को आपका एक कमेन्ट बहुत पसंद आया था और उन्होंने उसे एक पोस्ट के रूप में डालने की आपसे गुजारिश की थी जिसे आपने स्वीकार भी किया ,अब वही हालत आपका भाई शहरयार को दिए गए जवाब से मेरी है , मुझे आपका ये जवाब रुपी कमेन्ट बेहद पसंद आया है , इतने मूल्यवान और महत्वपूर्ण विचार को सिर्फ एक कमेन्ट के रूप में रहने देना मेरे विचार से इसके साथ ज्यादती होगी

    इसलिए मेरा भी आपसे अनुरोध है की इसे एक पोस्ट के रूप में डालें जिससे ज्यादा से ज्यादा लोगों तक ये पवित्र और सच्चा सन्देश पहुच सके और हम सबकी तरह वे भी इससे लाम्भान्वित हों

    आपकी और मेरी बहुत से विषयों पर सामान सोच है बल्कि हम दोनों को तो एक ही व्यक्ति समझ लिया गया था लेकिन कुछ विषय जैसे मांसहार सम्बन्धी विषय पर मैं आपसे सहमत नहीं हूँ और मैंने उसका कारण और जवाब देना का प्रयत्न किया है अपने कमेंट्स के ज़रिये ब्लॉग संसद की उसी पोस्ट पर जिसमें मैंने प्रस्ताव रखा था और जिस पर की बहस जारी है

    अगर समय मिले तो अवश्य आयें

    भगवान आपको लंबी उम्र दे

    धन्यवाद

    महक

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  14. आलोक मोहन जी ! यह टिप्पणी आपने " वेद कुरआन " ब्लॉग पर(रमज़ान) लेख पर दी ।
    क्या यह बदतमीज़ी नहीं है
    shayad isliye allah aap ke baccho ko mar ker kha gaye
    aap unke bacho ko maar ker khayo.wo aap के
    maine jitna pada hai duniya ke liye bahut jayda hai
    August 16, 2010 5:42 PM
    @@@ alok mohan,
    maine yesa to kuch kaha hi nhi ...maine bs itna hi kaha ki sabhi dhrm santan dhrm se prabhavit h ..
    its ok ..apni baato me ha me ha milne wale sabhi ko pasand hai
    aap dusro ko khub sabal dete h .jab aap ko koi tokta hai o bura maan jate ह
    ok ITS MY LAST COMMENT
    August 18, 2010 5:46 PM
    http://vedquran.blogspot.com/2010/08/ramazan-anwer-jamal.html?showComment=1281960768615#c4814122878808305444

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  15. @@@@@@ कामरूप 'काम' कामरूप 'काम' ???????????????????????????????????

    मेरे हंसा परदेशी जिस दिन तू उड़ जायेगा तेरा प्यारा ये पिंजरा यहीं जलाया जायेगा !!

    नहीं तो खाक मिलेगी मिटटी तेरी, ये माटी के पुतले कहाँ तू भटक रहा है,

    जीवन आये जीवन जाए - समझ तू क्यों ना कुछ भी पाए, कहाँ तू भटक रहा !!!!!

    भगवान् श्री कृष्ण, अर्जुन को कहते हैं ये काम ही तेरा शत्रु है इसे मार !!!

    भक्त और भगवान् के बीच में ये काम ही बाधा है, या तो भोग कर त्याग दो या भजन कर इसका उल्लंघन कर दो, परन्तु इसमें फंसों मत ::

    मेरे भाई >>> ये जीवन kis liye है इसे samajho

    Om shanti -3

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  16. @@@@@@ कामरूप 'काम' कामरूप 'काम' ???????????????????????????????????

    मेरे हंसा परदेशी जिस दिन तू उड़ जायेगा तेरा प्यारा ये पिंजरा यहीं जलाया जायेगा !!

    नहीं तो खाक मिलेगी मिटटी तेरी, ये माटी के पुतले कहाँ तू भटक रहा है,

    जीवन आये जीवन जाए - समझ तू क्यों ना कुछ भी पाए, कहाँ तू भटक रहा !!!!!

    भगवान् श्री कृष्ण, अर्जुन को कहते हैं ये काम ही तेरा शत्रु है इसे मार !!!

    भक्त और भगवान् के बीच में ये काम ही बाधा है, या तो भोग कर त्याग दो या भजन कर इसका उल्लंघन कर दो, परन्तु इसमें फंसों मत ::

    मेरे भाई >>> ये जीवन kis liye है इसे samajho

    Om shanti -3

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  17. @ राजीव कुमार कुलश्रेष्ठ जी ! मैं सनातन धर्म को ठीक वहीं ढूंढ रहा हूं जिसकी व्यवस्था का पालन वेदांत के प्रचारक आजन्म करते रहे। मैं खुद कामिल दरवेशों का क़द्रदान हूं। मेरे नाम के साथ आपको ‘नक्शबंदी‘ भी लिखा हुआ मिलेगा। यह सूफ़ियों से मेरी मुहब्बत की निशानी है। चिश्तिया, क़ादरिया, सुहरावर्दिया, शतारिया , मदारिया, किबरौविया और नक्शबंदिया आदि तमाम सूफ़ी सिलसिले पवित्र कुरआन पर ही आश्रित हैं, जीवन भर वे शरीअते मुहम्मदिया की ही पैरवी करते रहे हैं। समस्त जगत में ईश्वर को देखना, अपने में ईश्वर की अनुभूति करना या सर्वत्र ‘एक‘ ही को देखना उनकी रियाज़त अर्थात अभ्यास का परिणाम है उसकी भी एक हक़ीक़त है , वह एक मुकम्मल विषय है आप जब चाहें उस पर बात कर सकते हैं। ये प्रेममार्गी लोग भी एक ‘गहरी हक़ीक़त‘ के राज़दार हैं लेकिन समाज को जो आर्थिक-सामाजिक-राजनैतिक व्यवस्था दरकार है जीने-मरने के लिये वह इनसे कब किसे मिली ? और जो मिली तो वह मनु महाराज और पैग़म्बर मुहम्मद सल्ल. की व्यवस्था से अलग कब थी ?

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  18. @ राकेश लाल जी ! आपका आना अच्छा लगा लेकिन यह हिन्दी ब्लॉग है , अगर आप बाइबिल के वचनों को हिन्दी में दिखाते तो और भी अच्छा रहता। मैं बचपन से ही इंजील और मसीह में आस्था रखता हूं। नवीं क्लास में था तो मुझे ‘दिनाकरन जी‘ ने नया नियम भेजा, बाद में मुझे पूरी बाइबिल उर्दू में एक पादरी दोस्त ने दे दी, फिर अंग्रेज़ी में भी एक प्रति एक और पादरी मित्र ने गिफ़्ट कर दी।
    यूहन्ना की पहली आयत आपने उद्धृत की है और वचन को परमेश्वर ही घोषित कर दिया है। यह एक ग़लत बात है। हज़रत ईसा मसीह अलैहिस्सलाम की ज़बान इब्रानी या सुरयानी थी। उनके सामने किसी ने उनके वचनों को संकलित नहीं किया। वेटिकन सिटी में रखे हुए नुस्ख़े लैटिन और यूनानी भाषा में हैं, जो मसीह के साढ़े तीन सौ साल बाद के हैं। उनका भी केवल अनुवाद ही उपलब्ध कराया जाता है। इस आयत में यूनानी भाषा का शब्द ‘होथिओस‘ परमेश्वर के लिये आया है और जहां ‘एन्ड द वर्ड वॉज़ गॉड‘ आया है वहां यूनानी शब्द ‘टोन्थिओस‘ आया है जिसका अर्थ है ‘ देवशक्तियों से युक्त ‘। अर्थात वचन देवशक्तियों से युक्त था। आपने क्रिएशन को क्रिएटर बना डाला। यह ग़लत है।
    हज़रत ईसा मसीह अलैहिस्सलाम ने हमेशा खुद को खुदा के बन्दे के तौर पर पेश किया आप ग़लती से उन्हें खुदा का दर्जा दे बैठे। ज़रूरत हुई तो इस विषय पर एक पूरी पोस्ट लिखूंगा।

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  19. @ भाई आलोक ! मैं एक मुबल्लिग़ हूं सवालों का स्वागत करता हूं। आप कोई भी सवाल करने के लिये, मुझसे असहमत होने के लिये, विरोध करने के लिये बिल्कुल आज़ाद हैं। आप चाहें तो मुझे गाली भी दे सकते हैं और चाहे तो गोली भी मार सकते हैं। दुनिया ने जिस तरह मुझसे पहले सच बोलने वालों को विदा किया है उसी तरह मुझे भी किया जाएगा। यह मैं जानता हूं और चाहता भी यही हूं। सच बोलने वाले दुनिया के ठेकेदारों के लिये असुविधा पैदा करते हैं। वह लोगों को झिंझोड़कर जगाने की कोशिश करता है और सोने वाले को जगाने वाला हमेशा ही बुरा लगता है। आप मेरे साथ जो सुलूक करना चाहें करने के लिये आज़ाद हैं, लेकिन उस पैदा करने वाले मालिक के बारे में, उसके पैग़म्बरों के बारे में कोई भी बदतमीज़ी हरगिज़ गवारा न की जाएगी। सच्चे ऋषियों और पैग़म्बरों के बारे में भी बेअदबी न सही जाएगी। लोगों का हाल भी अजीब है। कोई राम कहकर ग़लत बोले तो उसपर पिल पड़ते हैं, ईश्वर कहकर ग़लत बोले तो न्यूट्रल से रहते हैं और अल्लाह कहकर ग़लत बोले तो या तो खुश होते हैं या फिर संज्ञान ही नहीं लेते।
    उम्मीद है आप मेरे एतराज़ का मक़सद समझ गये होंगे।

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  20. @ मेरे अज़ीज़ भाई महक ! आपको मेरा कमेंट पसंद आया और आप इसे एक पोस्ट के रूप में देखना चाहते हैं। यह जानकर मैंने इसे तुरंत एक पोस्ट का रूप दे दिया है और इसके प्रकाशन के लिये 22 अगस्त 2010 समय 3.00 बजे दिन मुक़र्रर कर दिया है। उस समय मेरी मौजूदगी एक मुक़द्दमे की पैरवी के लिये हाईकोर्ट में होगी, अपने वतन से बहुत दूर। यह पोस्ट भी एक अहम पोस्ट है। इसे भी कुछ दिन मिलने चाहियें। सो दोनों काम हो जाएंगे।

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